एक प्रेम-कहानी और बिरजू की छलांगें? / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :01 अप्रैल 2015
राम नवमी के दिन राजकुमार हीरानी और अभिजीत जोशी ने संजय दत्त के जीवन पर पटकथा लिखना प्रारंभ किया है। कुछ लोगों की नजरों में संजय दत्त में रामजी जैसा कोई गुण नहीं है वरन् रावण की झलक-सा भ्रम उत्पन्न होता है और अभी तक कुछ लोगों के कान में सुभाष घई की खलनायक का थीम गीत गूंजता है 'नायक नहीं खलनायक हूं मैं'। कानून ने भी उन्हें मुजरिम करार दिया है और अभी वे यरवड़ा जेल में सजा काट रहे हैं। कुछ इस तरह की अफवाहें भी रहीं कि मात्र तेरह की उम्र में उन्होंने अपने मोहल्ले पाली हिल में गोलियां चलाई थीं। यह सभी जानते हैं कि नशे की लत को छुड़ाने के लिए उनके पिता सुनील दत्त उन्हें विदेश ले गए थे जहां लम्बे समय तक उनका इलाज चला। उन्होेंने अपनी पहली पत्नी को जब तलाक दिया तब वह कैंसर पीड़ित थी और दूूसरी ओर सुनील दत्त ने नरगिस दत्त मेमोरियल कैंसर ट्रस्ट खोला है। संजय दत्त हमेशा विवादों में रहे हैं और उनके लड़ाई-झगड़े तथा बदसलूकी की अनेकों घटनाएं बहुत प्रचारित रही हैं।
स्वयं राजकुमार हीरानी का बयान है कि संजय दत्त की पत्नी मान्यता ने उन्हें अपने पति की अनेक प्रेम कहानियां सुनाईं जिन्हें बाद में संजय दत्त ने स्वयं भी स्वीकारा। अत: इस विवादास्पद आशिक मिजाज के चरित्र में हीरानी की रुचि जागी और अब वे अपनी पांचवीं फिल्म की तैयारी कर रहे हैं। यह तो तय है कि राजकुमार हीरानी इस बायोपिक को अपनी हास्य की शैली में प्रस्तुत करेंगे। अगर वे दर्शक को गांधीजी की मौजूदगी का यकीन दिला सकते हैं तो संजय दत्त को प्यारा, मासूम और लवेबल इंसान के रूप में भी दिखा सकते हैं। उनकी और जोशी की योग्यता पर संदेह नहीं किया जा सकता। वे कड़वी से कड़वी कुनैन को भी शकर लपेटकर खिला सकते हैं। सबसे बड़ी बात यह कि वे आम दर्शक के अचेतन की गहरी समझ रखते हैं।
हीरानी ने रनवीर कपूर को संजय दत्त की भूमिका के लिए अनुबंधित किया है। यह भी अजीब संयोग है कि नरगिस दत्त के बेटे की भूमिका राजकपूर का पोता निभा रहा है। कुछ प्रेम कहानियों की निरंतरता अजीबोगरीब ढंग से समय-समय पर उजागर होती रहती हैं। अब याद आता है कि राजकपूर के जीवन-काल में ही उनके एक बेटे की फिल्म में संजय दत्त व माधुरी को लिया जाना था और उन्होंने सहर्ष इसकी अनुमति दी थी परंतु राजकपूर की मृत्यु के बाद संजय दत्त जेल चले गए, अत: माधुरी के साथ ऋषिकपूर को लेकर राजीव कपूर ने 'प्रेमग्रंथ' बनाई थी। जब संजय दत्त की पहली फिल्म रॉकी शुरू हुई तब ऋषिकपूर के विवाह में सुनील दत्त, नरगिस एवं संजय दत्त आए थे जिन्होंने अपने माता-पिता के संकेत पर राजकपूर के चरण छूकर आशीर्वाद लिया था।
क्या यह मुमकिन है कि जब बचपन में संजय की उदंडता से खिन्न सुनील दत्त ने नरगिस की इच्छा के विपरीत संजय को बोर्डिंग स्कूल में दाखिल किया और वहां उनके सहपाठी शायद उनकी मां और राजकपूर के रिश्ते को लेकर कोई तानाकशी करते हों? संभवत: इस कारण भी संजय का मन कड़वाहट से भरा हो जबकि सुनील दत्त ने सब कुछ जानकर नरगिस को अपनाया था। बच्चे कभी-कभी निर्मम होते हैं। याद कीजिए गुरुदत्त की 'कागज के फूल' में उनकी बेटी बेबी नाज को उसके सहपाठी उसके पिता और वहीदा के रिश्ते को लेकर ताने देते थे और वह आक्रोश से भरी वहीदा को खरी-खोटी सुनाती है।
क्या यह संभव है कि नरगिस की मदर इंडिया की भूमिका में उनका रिबेल पुत्र सुनील दत्त महाजन की बेटी को विवाह मंडप से ले भागता है और गांव की इज्जत के कारण मां अपने लाड़ले बेटे बिरजू को गोली मार देती है। उस दौर में बिरजू का पात्र आक्रोश से भरा पात्र था। मेहबूब खान की इच्छा थी कि उनका प्रिय कलाकार दिलीप इस भूमिका को करे परंतु उन्होंने यह कहकर इंकार किया कि वे नरगिस के साथ कई प्रेम कहानियां कर चुके हैं, अत: उनके पुत्र की भूमिका नहीं करेंगे परंतु बिरजू का पात्र उनके अंतस में पैंठा था इसलिए उन्होंने बिरजू को ही 'गंगा जमना' में ढाला जिसे एक दशक बाद सलीम-जावेद ने 'दीवार' में महानगरीय स्वरूप दिया। मदर इंडिया के बिरजू ने बड़ी छलांगें लगाई हैं। उसी दौर में नरगिस सुनील दत्त का प्रेम हुआ तो क्या उनका पुत्र संजय भी बिरजू ही है। ये सब मात्र आकलन और कल्पना है।