एक प्रेम त्रिकोण: फिल्म और जीवन दोनों / जयप्रकाश चौकसे

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एक प्रेम त्रिकोण: फिल्म और जीवन दोनों


स्वयं स्मिता पाटिल ने विवाहित राज बब्बर से विवाह किया, परंतु संभवत: प्रेम की अनुभूति में इतनी तीव्रता होती है कि वह कुछ सोच-विचार की इजाजत ही नहीं देती। प्रेम पहाड़ी नदी की तरह बेगवान होता है और सब कुछ बहाकर ले जाता है। अगर ईश्वर के तौर-तरीके निराले होते हैं, तो प्रेम की आंकी बाकी पगडंडियों को भी जान पाना संभव नहीं है

वह तेरह दिसंबर 1986 की मनहूस रात थी। जब ब्रेबोर्न स्टेडियम में फिल्म उद्योग के भव्यतम समारोह के मुख्य आयोजक राज बब्बर थे, जिन्हें सूचना मिली कि उनकी पत्नी स्मिता पाटिल की तबीयत बहुत खराब है, जिन्होंने कुछ दिन पूर्व ही एक सुंदर बालक को जन्म दिया था। बच्चे के जन्म के समय हुई किसी बात ने मात्र इकतीस वर्ष की स्मिता पाटिल की जान ले ली। किसी कवि की यह पंक्ति कि ‘ईश्वर जिन्हें प्यार करता है, उन्हें कम उम्र में उठा लेता है’। न तो राज बब्बर को दिलासा दे सकती और न ही स्मिता पाटिल के अनगिनत प्रशंसकों को। सचमुच तेरह दिसंबर 1986 की वह रात अभागी साबित हुई। सब कुछ इतनी जल्दी हुआ और इतना अनेपक्षित था कि सब स्तंभित रह गए।

स्मिता पाटिल अत्यंत सघन संवेदनाओं वाली सितारा थी और उसके अभिनय में भावना का अजब-गजब आवेग था। श्याम बेनेगल ने उसे दूरदर्शन पर खबरें पढ़ते देखा और अपनी फिल्म ‘निशांत’ में एक महत्वपूर्ण भूमिका दी, जिसकी बहुत प्रशंसा हुई और ठीक एक वर्ष बाद 1976 में श्याम बेनेगल ने उसे ‘मंथन’ में प्रस्तुत किया, जिसमें स्मिता ने एक हरिजन महिला की भूमिका इतनी संवेदना से प्रस्तुत की कि उसे अने पुरस्कार मिले तथा अगले ही वर्ष श्याम बेनेगल की ‘भूमिका’ में उसने हंसा वाडकर के जीवन से प्रेरित फिल्म में एक अभिनेत्री के शोषण की कथा विश्वसनीयता से निभाई। स्मिता पाटिल के जीवन में उसकी अभिनीत कुछ भूमिकाओं में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए।

महेश भट्ट ने स्वयं के परवीन बॉबी से प्रेम से प्रेरित प्रेम-त्रिकोण ‘अर्थ’ बनाई। जिसमें स्मिता पाटिल ने नायिका का वह पात्र अभिनीत किया, जो अपने शादीशुदा निर्देशक की पत्नी की भूमिका शबाना आजमी ने निभाई थी। क्या इस फिल्म को अभिनीत करने के बाद स्मिता को शादीशुदा पुरुष से प्रेम की उलझन और उससे उत्पन्न वेदना ने कुछ नहीं सिखाया। स्वयं स्मिता पाटिल ने विवाहित राज बब्बर से विवाह किया, परंतु संभवत: प्रेम की अनुभूति में इतनी तीव्रता होती है कि वह कुछ सोच-विचार की इजाजत ही नहीं देती। प्रेम पहाड़ी नदी की तरह बेगवान होता है और सब कुछ बहाकर ले जाता है। अगर ईश्वर के तौर-तरीके निराले होते हैं, तो प्रेम की आंकी बाकी पगडंडियों को भी जान पाना संभव नहीं है।

राज बब्बर और स्मिता पाटिल में अभिनय में भावना की तीव्रता के सिवा कुछ भी समान नहीं था। वे अलग क्षेत्रों और भाषाओं को बोलने वाले लोग थे, परंतु प्रेम कभी क्षेत्रियता से नही रुकती और भाषा का अंतर भी कोई अर्थ नहीं रखता। वे अपने दिल के सामने लाचार थे। इस प्रेम त्रिकोण में राज बब्बर की पहली पत्नी नादिरा बब्बर ने अपने दर्द के परे एक गरिमा का निर्वाह किया। वे आहत थीं, परंतु विक्षिप्त नहीं हुईं और बिना किसी नाटकीयता के सारा प्रसंग गरिमा से संपन्न हुआ। नादिरा भी राज बब्बर की तरह रंगमंच से आई थी। राज और नादिरा की बेटी जूही टेलीविजन सितारे अनूप सोनी से ब्याही है और प्रसन्न है।

स्मिता पाटिल ने ‘निशांत’, ‘मंथन’ और ‘भूमिका’ से खूब ख्याति अजिर्त की और कम बजट में बनी इन सार्थक फिल्मों में उसने इतना नाम कमाया कि मसाला फिल्मों के निर्माताओं ने भी उसे अनुबंधित किया। यह स्मिता पाटिल की ही प्रतिभा थी कि उसने जिस सहज भाव से ‘चक्र’ नामक फिल्म में गरीब बस्ती में साहसी स्नान दृश्य किया, उसी स्वाभाविकता से उसने मसाला फिल्म ‘नमक हलाल’ में अमिताभ बच्चन के साथ वर्षा गीत ‘आज रपट जाएं’ भी किया। स्मिता का सांवला रंग और व्यक्तित्व पारंपरिक गोरी-चिट्टी नायिकाओं से अलग था, परंतु उसका धरती से उपजे मटमैलेपन में एक अजीब-सी मादकता थी और अरमान जगाने का अपरिभाषेय माद्दा भी था। स्मिता पाटिल ने सार्थक और मसाला दोनों किस्म की फिल्मों में सहज अभिनय करके सिनेमा के आधार सिद्धांत को ही सत्य साबित किया कि एक सेकेंड में 24 फ्रेम ही होते हैं। चाहे फिल्म किसी भी बजट में बने और किसी भी किस्म की हो।

राज बब्बर नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में प्रशिक्षित थे और बलदेव चोपड़ा की जीनत अमान अभिनीत फिल्म ‘इन्साफ का तराजू’ में खलनायक की भूमिका में खूब चमके और शीघ्र ही ‘आज की आवाज’ ने उनकी सितारा स्थिति को मजबूत किया। यह अजीब-सी बात है कि स्मिता पाटिल के माता-पिता राजनीति में थे, परंतु उनका दामाद राज बब्बर सांसद चुना गया। क्या स्मिता की ही किसी इच्छा को पूरा कर रहे थे। यह राज बब्बर का साहस है कि उन्होंने महिला केंद्रित ‘वारिस’ को स्मिता पाटिल की ‘मदर इंडिया’ मान सकते हैं। स्मिता और राज का पुत्र प्रतीक भी अभिनय में सक्रिय है। ऐसा लगता है, मानो स्मिता पाटिल स्वर्ग से किसी शापित देवता की थाली से गिरा पूजा का फूल था, जिसका अभिनय आज भी सुगंध दे रहा है।