एक फलसफा जिन्दगी / स्वाति तिवारी
“शाम का अखबार पढ़ा?” अमन ने शाम को दफ्तर से घर आकर अपनी टाई ढीली टाई ढीली करते हुए मेरी तरफ देखकर पूछा।
“नहीं, अखबार आया ही नहीं।”
“मेरी फाइल के अंदर रखा है।” अमन यह कहते हुए तौलिया उठा बाथरूम में घुस गये।
अब फाइल तो ब्रीफकेस में बंद है। पता नहीं क्या छपता है शाम के अखबार में। चिन्ता और कौतूहल की लहर फैल गई मेरे वजूद पर। पता नहीं ये शाम के अखबार कब क्या खबर चटखारेदार बना दें। पता नहीं खबर अमन को लेकर है। क्या पता कहीं मेरे बारे में तो नहीं?
“पढ़ा?” बाथरूम से निकल अमन ने पूछा।
“तुम्हारे ब्रीफकेस में लॉक है और मुझसे नहीं खुल रहा।” चिढ़ते हुए मैंने कहा।
अखबार निकालते हुए अमन ने ही खबर दे दी, “तुम्हारी सहेली सुभद्रा ने अपने नए बॉस से शादी कर ली।”
“क्या...?”
“हाँ... अपनी उम्र से दुगुनी उम्र के बॉस से।”
अमन सुभद्रा से मेरी दोस्ती पसंद नहीं करते। कारण जो भी हो... सुभद्रा बोलने में मुंहफट और तेज-तर्रार है, शायद इसीलिए।
“शादी कर ली तो कौन-सा गुनाह किया?” मैंने सुभद्रा का पक्ष रखा।
“चलो, गुनाह नहीं किया पर देखते हैं, कितने दिन निभते हैं उसके इस पति के साथ।”
अमन ने यह जिक्र कुछ उस उपेक्षा और व्यंग्यभरे लहजे में किया, जैसे सुभद्रा का मेरी सहेली होना निहायत ही घटिया बात हो और सुभद्रा एक चालू स्त्री है।
अखबार हाथ में आ गया था और वहीं डाइनिंग टेबल पर फैल गया। अमन के लिए गैस पर चढ़ी चाय उबल-उबलकर काढ़ा हो गई। शादी की बॉक्स न्यूज थी। कुमार कंस्ट्रक्शन के अधेड़ मालिक राजकुमार सिंह ने अपने से आधी उम्र की अपनी युवा स्टेनो सुभद्रा से विवाह कर लिया था।
अखबार तह कर रखा तो चाय का ख़याल आया। चाय केतली में बची ही नहीं थी। दुबारा चढ़ाई और खौलते पानी के साथ-साथ सुभद्रा के ब्याह का कारण क्या रहा होगा, यह प्रश्न भी उबलता रहा।
शाम के खाने के वक्त अमन सुभद्रा को लेकर ही सोच रहे हैं, ऐसा लगता रहा।
“सुभद्रा ने राजकुमार का पैसा देखा, चरित्र नहीं... वरना शादी कैसे करती?”
“जानती हूँ... पर शायद ठीक ही किया उसने।”
“पैसा जिन्दगी की सबसे बड़ी ताकत है यह बात सुभद्रा की समझ में आ गई है।” मेरा सपाट-सा उत्तर था, जिसमें फिलॉसफी भरी थी।
“अब तक कितने बॉस बदल चुकी है, पांच-सात शायद और ज्यादा। अब इसी तर्ज पर पति न बदल डाले।”
“हाँ, शायद उसकी कुण्डली में चक्कर हैं और पैर में भंवर।” मैंने अमन की बात पर अपना पासा रखा।
“हर बार नौकरी बदलती है तो तुमसे जरूर सलाह लेती है।” अमन उगलवाना चाहते हैं सुभद्रा और मेरी दोस्ती को।
“हाँ, अपनी शर्तों पर वह नौकरी करना चाहती है, पर प्राइवेट फर्म में उसकी शर्तें कौन मानेगा? जरा-सी कुछ हुआ नहीं कि ताव में आकर चली गई नौकरी छोड़कर।”
मैंने सुभद्रा के नौकरी छोड़ने के कारण स्पष्ट करने चाहे।
“इतना सब तुम्हें बताती रही है तो शादी क्यों की, यह भी तो बताया होगा न?” अमन ने प्रश्न कुछ इस तरह लग रहे थे, जैसे सुभद्रा ने नहीं, मैंने ही की हो।
“हाँ, अक्सर अपनी परेशानी मुझसे शेयर करती है।”
“शादी का राज तुमसे शेयर नहीं किया?” अमन के तरकश में प्रश्न पर प्रश्न थे।
“हाँ, किया था शादी का राज भी और मेरी सलाह भी ली थी। पर तुम सुभद्रा की शादी से इतने परेशान क्यों हो?” मुझे अमन के व्यवहार पर ताज्जुब हो रहा था और गुस्सा भी आ रहा था। “शादी उसने की, कटघरे में मुझे क्यों घसीट रहे हैं?”
“ओह, तो यह तुम्हारी सलाह से किया है उसने।”
“हाँ, मेरी सलाह से बस, हो गई शांति।” मैं इस जवाब-सवाल कार्यक्रम में रुआंसी हो गई थी। मेरी भर्राती आवाज ने अमन के तीखेपन को कम किया।
“इतने दफ्तर बदले हैं इस लड़की ने, लोग इतनी जल्दी तो कपड़े भी नहीं बदलते होंगे। पर ये मैडम तो नौकरी ही बदल लेती थीं। अब अगर हनीमून से लौटकर तुमसे सलाह मांगे तो कहना पति नौकरी की तरह नहीं बदल डाले।”
“देखो अमन, किसी पर इतना कीचड़ उछालने से पहले उसकी स्थिति-परिस्थिति, लोगों की डिमांड, लड़की की मजबूरी के बारे में जान लेना चाहिए। इतनी बड़ी दुनिया में मां और बहनों की जिम्मेदारी अकेली के कंधों पर है। दिखने में बला की खूबसूरत। नौकरी लोगों के लिए ढूंढना ही मुसीबत है, पर सुभद्रा को देखते ही हर बार नई नौकरी क्या यूं ही मिल जाती है।”
“स्टेनो, टाइपिस्ट, रिसेप्शनिस्ट के जॉब तो चेहरों की योग्यता पर ही दिए जाते हैं।”
“जो भी हो... जैसा भी हो, पर नौकरी बदलना जरूरी है क्या? तुम्हारे कहने पर मैंने सुभद्रा को अपनी फर्म के मालिक से मिलवाया, अहसान लिया सुभद्रा की नौकरी लगवाकर, पर मैडम एक माह में इस्तीफा मैनेजर के मुंह पर मारकर चली गई। सारा स्टाफ मुझे कुसूरवार ठहराता रहा। मैनेजर ने उसकी गुस्ताखी मालिक को बताई। मालिक ने मुझे बुलाकर जानती हो क्या कहा?”
“क्या कहा था?”
“कहने लगा-मिस्टर अमन, रिक्मेण्ड करने से पहले जरा लोगों को देख तो लिया करो? दो टके की छोकरी हमारे कैरेक्टर पर हाथ डाल गई।”
“जानती हूँ तुम्हारे दफ्तर वाली घटना। सब बताया था उसने आकर। बहुत दुखी थी। कह रही थी-देखना ऋचा, लोग अमन को भी बुरा जरूर कहेंगे।”
“हाँ, तो कहा था... पर देखो, नौकरी करने निकली है तो नाक पर गुस्सा और जुबान पर कोड़े लेकर प्राइवेट नौकरी नहीं चलती।”
“हाँ, सो तो है, पर जिल्लत ओर जलालत भी हद से ज्यादा सहन करना संभव नहीं होता ना। वह बड़े अधिकारी की लड़की रही है। पिता होते तो यूं ही मारी-मारी नौकरी करती क्या? बीमार मां और दो बहनों का भार अचानक उसके ऊपर आ गया था। उसका भी एक चरित्र है, स्वभाव है, वजूद है, पर लोग नौकरी देकर सोचते हैं मजबूर छोकरी को खरीद लिया जैसे। अब वो जो तुम्हारी फर्म का मालिक और मैनेजर है ना, उसने पहले तो एक दिन रात को आठ बजे तक लेटर टाईप करवाए, फिर कमरे में बुलाकर कहता है कि मेरे साथ टूर पर दिल्ली चलना पड़ेगा। रिजर्वेशन करवा लिया है।”
“अच्छा, तुमने यह घटना बताई क्यों नहीं?” अमन मेरी बात का अर्थ समझ रहे थे।
“क्या बताती, बता देती तो तुम जाकर भिड़ जाते मैनेजर से। फिर तुम्हारी नौकरी भी चली जाती”
“उसने मालिक से पूछा कि अचानक दिल्ली क्यों जाना है? उसके लिए संभव नहीं है। मां से पूछे बगैर वह नहीं जा सकती। तो मालिक ने कहा था, नौकरी हमारी करती हो और पूछने मां से जाती हो?” उसने अगले दिन अपने सहकर्मी को बताया था। सब मुस्कराने लगीं। वह अर्थ समझ गई और नौकरी छोड़कर घर बैठ गई। उसके बाद वाली नौकरी सरकारी दफ्तर में एवजी पर लगी थी, पर चार हजार पर साईन कर दो हजार हाथ आए। शोषण की भी हद है। लड़की है तो इसका क्या मतलब- किसी न किसी रूप में शोषण कर ही लो। तन से नहीं तो धन से। परेशान हो गई थी वह। जानते हो पहली नौकरी वर्मा एण्ड संस में स्टेनो की मिली थी। एक साल अच्छी चली। वर्मा तो ठीक था, पर संस वाली पीढ़ी गलत थी। बेचारी को प्यार-मोहब्बत के सपने दिखाए और शादी किसी दूसरी ही लड़की से की। यहां मन का भी शोषण। बाद में वर्मा का लड़का उससे कहता है, सुभद्रा, शादी तो पापा की पसंद की है, मजबूरी थी, पर हमारा प्यार चलता रहेगा। वह कोई बिकाऊ चीज है, जो चलता रहेगा। वहां अब उसका रहना कैसे संभव था। छोड़ दी उसने वह नौकरी।”
“सुभद्रा लड़की बुरी नहीं है, पर लोग उसके बारे में तरह-तरह की चर्चा करते हैं।”
“ये तो लोगों की आदत है, जानते हैं बेचारी बगैर बाप की है और परिवार के लिए संघर्ष कर रही है। पिछले माह एक सटरडे को आयी थी। सटरडे हमारा भी ऑफ था। तुम प्रताप नारायण जी की फेयरवेल पार्टी में गए थे?”
“आयी थी, वह तो तुमने बताया था।” अमन ने बात आगे बढ़ाई।
“उस दिन सुभद्रा बेहद परेशान थी। आते ही सोफे पर धंस गई थी। मैंने पूछा, क्या हुआ तुझे?”
“कुछ नहीं, होते-होते बच गई।” वह हॉफ रही थी। पानी का गिलास एक बार में ही गटक गई।
फिर खुद ही कहने लगी, “साला...अकाउंटेट समझता क्या है अपने आप को? कहता है-मेडम, आपको इन्क्रिमेंट लगाया है। पूरे एक साल बाद, कुछ हमारी भी डिमांड है, पूरी नहीं करेंगी?”
“बड़ा कमीना है अकाउंटेंट?” मुझे भी गुस्सा आ गया था।
फिर कहने लगी, “ऋचा शायद गलती मेरी ही है। आज शनिवार है, दफ्तर में स्टॉफ नहीं आता, केवल एक्स्ट्रा काम वाले ही आते हैं। मैं वेतन लेने आज नहीं आती तो वह इस तरह नहीं कह पाता। जानती है, क्या कह रहा था?”
“क्या?”
“पहले तो रुपये पकड़ाते वक्त हाथ का स्पर्श किया, फिर गंजा हँसते हुए कहता है, बड़ी कोमल हो, तुम्हें तो पूरी स्पर्श करने को मन होता है।”
“अच्छा, उसकी ये हिम्मत!”
“लगाती साले को दो चप्पल!”
“वही तो लगा आयी हूँ और सीधी तेरे पास आ रही हूँ। कुछ बनाया हो तो दे भूख लग रही है।”
फिर मेरे साथ खाना बनाते वक्त कहने लगी, “याद ऋचा, पैसा दुनिया की सबसे बड़ी ताकत है और सुन्दरता अभिशाप।”
मैंने सहज ही कहा था, “सुभद्रा, इतनी सुन्दर है तू, इंटेलीजेंट भी। अच्छा-सा पैसे वाला कोई लड़का पसंद कर और शादी कर ले। कब तक परेशान होती रहेगी?”
कहने लगी, “तेरी बात में दम है, यार। अब इस दिशा में सोचती हूँ। चल, अगली बार शादी के बाद ही मिलूंगी।”
मुझे लगता है, इसी बात से प्रभावित होकर उसने यह फैसला किया होगा।
“हो सकता है शायद। चलो, छोड़ो, मैं सेंट्रल लाइब्रेरी तक होकर आता हूँ।” कहते हुए अमन चले गए।
बात वहीं खत्म हो गई, पर सुभद्रा से मिलने का मन बना रहा। एक दिन सामने एक चमचमाती विलायती कार रुकी और रेशमी साड़ी और पार्लर से कटे बालों में वह राजकुमारी की तरह उतरी। आते ही गले लग गई।
“थैंक्यू, ऋचा?”
“शादी मुबारक हो, मिसेज सुभद्रा राजकुमार सिंह।”
“सब तेरी ही सलाह का परिणाम है, पर मैं खुश हूँ। बहुत खुश।... ऐसी सलाह पहले क्यों नहीं दी?”
मैंने सहज पूछा, “कैसे जम गया ये सब?”
“बस उस दिन वाली घटना के बाद।”
“अच्छा।”
“मैं अकाउंटेंट की शिकायत लेकर अपनी कम्पनी के मालिक के पास पहुँची, उन्होंने मेरी बात ध्यान से सुनी। फिर मुझे प्रस्ताव दिया कि मैं तुम्हें कम्पनी की मालकिन बना देता हूँ, यदि तुम चाहो तो सारी समस्याएं खत्म हो सकती हैं। एक पल को लगा चप्पल निकालूं और जड़ दूं इसको भी, पर तेरे शब्दों का चक्रव्यूह मेरे चारों तरफ था कि पैसे वाला लड़का देखकर शादी कर ले और मैंने हाँ कर दी। अब अकाउन्ट्स मेरी सहकर्मी सुलभा देखती है। उस गंजे अकाउंटेंट को नौकरी से निकाला तो पैरों में लोट रहा था गंजा, मैडम, मुझसे गलती हो गई। मेरे बीवी-बच्चे हैं। मेरा घर बरबाद हो जाएगा। दूसरी समस्या थी, वर्मा एंड संस। प्यार का नाटक करने वाले उस दोगले से बदला तो लेना ही था। कल ही वर्मा कंस्ट्रक्शन को टेकओवर कर दिया है। वहीं पर सुभद्रा कंस्ट्रक्शन का बोर्ड लगवाकर आ रही हूँ। पैसा सबसे ताकतवर है। सच, यह बात समझ में आ गई। घर भी संभल गया, माँ भी खुश है और अंजू-मंजू भी।”
“पर लड़के की उम्र?”
“समझौते में उम्र कोई बड़ी बाधा नहीं। मैं छब्बीस की हूं, मिस्टर सिंह अड़तीस के। मां कहती है, उनकी जब शादी हुई थी, वे केवल सोलह की थीं, पिताजी अट्ठाईस साल के थे। बस वैसा ही तो फर्क हुआ ना। मैं पढ़ी-लिखी हूं, मां कम पढ़ी थी। मुझे जिन्दगी का गणित ज्यादा समझना चाहिए ना....।”