एक फिल्म के बहाने अकिरा कुरोसावा का स्मरण / जयप्रकाश चौकसे

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एक फिल्म के बहाने अकिरा कुरोसावा का स्मरण
प्रकाशन तिथि :26 अगस्त 2016


शीघ्र ही 'अकिरा' नामक फिल्म का प्रदर्शन होने जा रहा है। संभवत: अकिरा खलनायक का नाम है। फिल्म के लेखक नायक के नाम पर उतना परिश्रम नहीं करते, जितने खलनायक के नाम और चरित्र चित्रण पर करते हैं। सलीम-जावेद ने गब्बर सिंह और मोगेम्बो जैसे नाम के खलनायक रचे हैं। खलनायकों के तकिया कलाम और नाम दर्शक गलियों और गालियों में इस्तेमाल करते हैं और प्राय: अपनी प्रेमिकाओं के पिताओं को भी हिटलर, मुसोलिनी, गब्बर या मोगेम्बो के नाम से संबोधित करते हैं। बहरहाल अकिरा पर हमारी स्मृति केंद्रित होती है, क्योंकि जापान के फिल्मकार अकिरा कुरोसावा की 'सेवन समुराई' दुनिया के सभी फिल्म बनाने वाले देशों ने अपने ढंग से बनाई है। अकिरा कुरोसावा की 'सेवन समुराई' से प्रेरित किसी भी फिल्म ने उस महान फिल्म के मूल संदेश को नहीं पकड़ा है या जानकर उससे बचते रहे हैं, क्योंकि सिनेमा का आर्थिक आधार आम आदमी है और उसे बुरे व्यक्ति के रूप में दिखाने की आत्मघाती कोशिश कोई नहीं करना चाहता। अमेरिका जैसे पूंजीवादी देश की अधिकांश फिल्मों के नायक आम आदमी ही रहे हैं और पूंजीपतियों को प्राय: खलनायक के रूप में ही प्रस्तुत किया गया है और यह प्रवृत्ति कोई फिल्मकारों का समाजवादी रुझान नहीं है। यह महज बॉक्स ऑफिस की जरूरत है।

मणिरत्नम की 'गुरु' धीरुभाई अम्बानी के चरित्र से प्रेरित थी और फिल्म का नायक कैसे अमीर बनता है, कौन-से भ्रष्ट तरीके अपनाता है- यह सब दिखाने के बाद क्लाईमैक्स में उसे महानायक बनते हुए दिखाया गया है। संभवत: फिल्म में पूंजी निवेश करने वाली कंपनी के मालिक धीरुभाई ही थे और सच तो यह है कि कोई भी पूंजीपति स्वयं की खराब छवि के प्रस्तुतीकरण पर आपत्ति नहीं लेता, क्योंकि ऐसी फिल्म उसके लिए लाभ ही कमा रही है। अपने लाभ के लक्ष्य के लिए उनको अपना कार्टून बनाया जाना भी स्वीकार है।

गुरुदत्त की 'मि. एन्ड मिसेज 55' में एक अमीर स्त्री की इकलौती पुत्री एक गरीब युवक से प्रेम करती है, जो एक अखबार में काम करता है। उसके प्रगतिवादी विचारों के कारण वह धनाढ्य महिला उससे पूछती है कि क्या वह कम्युनिस्ट है। वह मुस्कराकर कहता है कि वह तो कार्टूनिस्ट है। कार्टून बनाने की विधा बिहारी के दोहों की तरह 'देखन में छोटन लगे, घाव करत गम्भीर' होते हैं। दशकों तक 'टाइम्स' में महान आर.के. लक्ष्मण का बनाया कार्टून प्रथम पृष्ठ पर प्रकाशित होता रहा और प्राय: कार्टून अखबार के प्रथम पृष्ठ पर ही अंकित होते हैं और वे वह सब भी कह देते हैं, जो सम्पादकीय नहीं कह पाता।

बहरहाल, अकिरा कुरोसोवा की 'सेवन समुराई' में प्रस्तुत गांव सभ्यता का प्रतीक है और एक निर्मम अपराधी उस पर शासन करता है गोयाकि 'असभ्यता' 'सभ्यता' पर आक्रमण करती है और गांव के लोग अपनी रक्षा के लिए दो दुस्साहसी लोगों की सेवाएं लेते हैं। जब दो साहसी व्यक्ति 'सभ्यता' को 'असभ्यता' के चंगुल से बचा लेते हैं, तो सुरक्षित गांव वाले अपने मददगारों को गांव छोड़ने को कहते हैं। 'सेवन समुराई' में गांव की एक कन्या एक समुराई से प्रेम करती है, परंतु आतंक के चंगुल से मुक्त होते ही वह प्रेमी को झिड़ककर अपने खेत में फसल बोने के काम के लिए चली जाती है। संकट टलते ही आम आदमी अपने स्वाभाविक टुच्चेपन और स्वार्थ पर लौट आता है। संकट की घड़ी में आम आदमी अपनी रक्षा के लिए कुछ भी करने के लिए तैयार हो जाता है। शायद आम आदमी से सीखकर ही हमारे नेता चुनाव के समय बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, लम्बे-चौड़े वादे करते हैं, परंतु चुनाव जीतते ही वे बदल जाते हैं और अपने सत्ता सुख में आकंठ लीन होकर अपने वादे भूल जाते हैं। आज भी हर मतदाता विदेश से काला धन वापस लाकर हर एक खाते में पंद्रह लाख जमा कराए जाने के मधुर स्वप्न में डूबा है। नए चुनाव के साथ नए वादे और नारे खोज लिए जाएंगे और हम फिर यकीन करने लगेंगे, क्योंकि यकीन करने का माद्दा हमें अपने आख्यानों पर यकीन करने के हजारों वर्ष के अभ्यास से आया है। मनुष्य की अपनी यादों के साथ सामुहिक यादें भी होती हैं।

बहरहाल सोनाक्षी सिन्हा अभिनीत 'अकिरा' का कोई संबंध अकरा कुरोसावा से नहीं है और न ही इन फिल्मकारों को फिल्म इतिहास का कोई बोध है। किसी फिल्म में खलनायक का नाम शांताराम, मेहबूब, गुरुदत्त या राजकपूर भी हो सकता है। किसी फिल्म में खलनायक का नाम डेविड लीन, हिचकॉक या एटनबरों भी हो सकता है।