एक फेफड़े वाली हंसा / नीलम कुलश्रेष्ठ
"हलो मैडम !"
वह बिस्तर से अभी उठी ही थी कि चौंक गई. सुबह का धुँधलका अभी छँटा नही है, खिड़कियों के पर्दे अभी हटे नहीं हैं, ये सभ्य व सुरीली आवाज़ कहाँ से आई ?
"हलो मैडम ! ये मै हूँ, दरवाज़ा खोलिये."
"ओ बाप रे ! तुम हो."
उसने पीछॆ का दरवाज़ा खोल दिया, "कल इतनी सुबह काम करने मत आना."
हंसा अन्दर आते ही मुस्कराई, उसके बिलकुल सूखे हुए चेहरे में से बड़े दाँत बाहर आ लिये. उसे लगा दो सूखे बाँस सफेद साड़ी में लिपटे हुए अन्दर चले आ रहे हैं. पीठ ऐसे झुकी हुई है कि जैसे मोर की गर्दन. बालों को ऊपर ले जाकर ऊँचा जूड़ा बनाया हुआ है जैसे मोर की कलगी. बड़ी बड़ी आँखें बाहर ऐसी निकली पड़ रही हैं जैसे दो कटोरियों में उबले हिए अंडे रक्खे हों, पीछे वाले घर की नवविवाहिता इन्हे देखकर अन्दर वाले कमरे में जा छिपती है. बाद में सड़क पर जब लारी पर से सब्ज़ी लेते हुए उसकी मित्र मंडली जुटी तो वह हँस-हँस कर लोट-पोट हो गई, ``आजकल तो आउटहाऊस वाली भी बिना अँग्रेजी के बात नही करतीं.”
जीना ने आँखें तरेरी, ``तू ही खुश हो हंसा की बातों पर. वह बाँस सी खड़खड़ाती टीबी की मरीज लगती है. मेरे पास कांता बाई सोर्स लेकर आई थी लेकिन मैंने तो उसकी सूरत देखकर अपने आउटहाऊस में नही रक्खा.``
वह सफ़ाई देने लगी, "मैंने सब पूछताछ कर ली है. एक बार उसे भयंकर ब्रॉन्काइटिस हो गई थी, छाती में बलगम भर गया था, उसका एक फेफड़ा टेड़ा हो गया था, उस फेफड़े को निकालना पड़ गया इसलिए उसका फ़िगर ख़राब हो गया. वैसे ध्यान से देखा जाए तो उसके चेहरे का एकाएक नक्श अच्छा है."
"उस `ज़ी हॉरर की कैरेक्टर को तू ही अपने घर में रख और दिन रात देखा कर." जीना की बात पर सब `हो` हो``कर हंस पड़ी थी.
उसने फिर भी हंसा का पक्ष लिया था, Эउसका झौंपड़ा टूट गया है, बारिश में बिचारी कहाँ रहेगी यदि मैं भी उसे निकाल दूँ? उसकी अस्पताल की आया की नौकरी छूट गई है."
"तू ही तरस खा ऐसे लोगों पर. कांता बाई बता रही थी कि उसका` सो कोल्ड हसबैंड `दिन रात खांसता रहता है. उसे भी कोई भयानक बीमारी है."
"मैं मान ही नहीं सकती. वह अस्पताल के सामने सारे दिन की लारी लगाता है. कोई भयानक बीमारी होती तो सारे दिन कैसे खड़ा रह सकता था? और तू ये क्या कह रही है `सो कोल्ड हसबैंड`?"
"अरे! तुझे हंसा ने नहीं बताया. हंसा और बंसी की शादी नहीं हुई है. उनका सौगंधनामा हुआ है."
"ये क्या होता है ?"
"हम गुजराती लोगों में कोई औरत व मर्द साथ रहने की कसम खाकर `सौगंधनामा `कर लेते हैं. इनका ये साथ सिर्फ़ एक कसम पर टिका होता है."
वह चौंककर तन कर बैठ गई.``सौंगधनामा ? अंग्रेज़ी में कहें तो `लिव इन रिलेशनशिप` ---पौराणिक भाषा में कहें तो `गंधर्व विवाह.``
सबीना ने जोड़ा था, "फ्रेंडशिप कॉन्ट्रेक्ट या मैत्री करार भी."
"लेकिन फ्रेंडशिप कॉन्ट्रेक्ट का आइडिया किस का था,"
"अहमदाबाद के कुछ वकीलों का. एक से अधिक विवाह गैर कानूनी हैं तो दूसरी औरत से सम्बन्ध बनाने के लिए ये रास्ता निकाला गया था."
"अरे बाप रे !ये तो नई तरह की शादी हो गई ?"
वह बोली थी, "शादी नही, इसका भ्रम तभी तो सन् 1981 में सरकार ने इसे बैन कर दिया है."
जीना बोली, "तू ने इस पर एक सर्वे भी किया था."
"हां यार ! मुझे क्या पता था कि मेरे आउटहाउस में सिर्फ़ एक कसम लिए जोड़ा आकर रहने लगेगा."
"हाँ, घूम फिरकर बात एक ही है. स्त्री पुरुष के साथ रहने के अलग अलग नाम हैं "
"पेपर में आया था कि बॉम्बे में लिव इन रिलेशन में रहने वाली एक लडकी ने आत्महत्या कर ली थी." सबीना ने कहा.
"पत्नियां भी तो आत्महत्या करती हैं."
वह फिर बोल उठी थी, "कितनी पत्नियों को अपने बच्चो का प्यार इससे रोकता है."
"हां, ये बात तो सही है वह और दार्शनिक हो उठी थी, `लिव इन रिलेशनशिप `में सिर्फ़ दो लोगों का रिश्ता बनता है लेकिन जीवन जीने के लिए ढेरों रिश्ते चाहिये क्योंकि कोई भी एक रिश्ता अपने आप में पूरा नही होता. मुझे तो शादी एक एक कोशिका का जीव अमीबा लगती है."
"अमीबा ?``सब हंस पड़ी थी, ``देखो अपनी साइंस ले आई बीच में."
"हाँ, जैसे अमीबा एक से दो होता है, दो से चार. चार से आठ मतलब उसकी संख्या बढ़ती जाती है वैसे ही शादी में एकल परिवार बढ़ता जाता, समाज से उसके रिश्ते ब ढ़ते जाते हैं ---कितने तो ढेर से जीने के बहाने मिलते जाते हैं."
जीना ने चुटकी ली, "यदि हम इस फिलॉसफ़र की बातें सुनते रहे तो हमारे घर के अमीबा `भूख-भूख’ चिल्लाकर हमारा दिमाग चाट जायेंगे."
सड़क के एक कोने में खड़ी ये सभा तो विसर्जित होनी ही थी. घर आकर भी बेचैन मन करवट बदलता रहा था... पृथ्वी की सबसे खूबसूरत इकाई स्त्री पुरुष एक दूसरे के पूरक होकर एक दूसरे के वजूद के आकर्षण के सौंदर्य में आकंठ डूबे नही रह पाते... किसका मन कहाँ भटकता रहता है... जीवन सौंदर्य अधूरा, अतृप्त रहता है... बेवफ़ाइयो का सिलसिला क्या तृप्ति देता है?... या वहाँ भी चैन कहाँ... स्त्री पुरुष के सम्बन्ध क्यों इतने क्लिष्ट मायाजाल में उलझे हुए है कि इनमें अनुराग खोजता मन रीता ही रह जाता है.... ये भरी पूरी दुनिया रीती लगने लगती है.
एक फेफड़े वाली और आधी अधूरी शादी वाली हंसा बर्तन साफ़ करना छोड़ रसोई के एक कोने में बैठ हांफने लगती थी. कभी कभी पोंछा छोड़ बीच में दीवार का सहारा ले हाँफती बैठ जाती थी. उसकी सूखी काया को देखकर ऐसा लगता था कि कोई बकरी तेज़ भागती चली आ रही हो, घबराहट में उसका सपाट सीना उठ गिर रहा हो. उसकी पतली नाक लाल पड़ जाती थी.
उसे अपने कामों की लिस्ट से सिर उठाने की फुर्सत नही मिलती थी फिर भी वह कहती, "हंसा! तू आराम कर ले. काम बाद में भी होता रहेगा."
वह पनियाई आंखों से अपनी धौंकनी सी चलती साँस पर काबू पाते हुए चिल्लाती, "काम तो मुझे ही करना है. कब तक ये पड़ा रहेगा ?"
उसकी तुर्श आवाज़ की तुर्शी से वह तिलमिला जाती लेकिन उसकी हालत देखकर तय नही कर पाती कि उसे बारिश में पनाह देकर वह अहसान कर रही है या वह उसका काम संभाल कर. जब हंसा पीछे के दरवाजे की सांकल खटखटा कर अपने कमरे में जाने की तैयारी करती तो वह उसे दाल या सब्ज़ी थमा देती, बंसी तो काम पर गया है बिचारी अकेली जान क्या पकाएगी ?
कभी कभी दो-तीन दिन बंसी काम पर बारिश के कारण जा नहीं पाता या बीमार हो जाता तो लारी बन्द... आमदनी बन्द. वह रोज़ ही उन्हें कुछ न कुछ खाने की चीज देती रहती कहीं उसके अहाते में रहने वाले दो प्राणी भूखे ना सो जाए.
आने के दो सप्ताह बाद ही वह चिल्लाई, "मैडम !आपका ये बर्तन धोने वाला वॉश बेसिन मुझसे साफ़ नहीं होगा. आप और इंतज़ाम कर लीजिए."
"क्यों ? क्या इसके लिए दूसरी बाई रक्खूँगी ?"
"मै कुछ नही जानती, इसमे तो बदबू आती है, कोई जमादार रख लेजिए."
"क्या रसोई में जमादार आएगा ?"
"हमारे अस्पताल में तो साफ़ सफाई का काम जमादार ही का था."
उसका सिर पीटने को मन हुआ, "ओ हंसा ! तुझे अस्पताल की नाली व घर की रसोई में अन्तर नही दिखाई देता ?"
कहकर वह गुस्से में कमरे में आ गई. उसके पति सारी बात सुन रहे थे, वे चिल्ला उठे, "तुमने किस बला को पाल लिया है?"
"बिचारे बारिश में कहाँ...,"
"तुम्ही ने सभी गरीबो का ठेका ले रक्खा है! सुबह उठते ही इसका मुँह देखकर मेरा मूड ऑफ़ हो जाता है."
वह हंसी में बात हल्की करना चाहती है, "दुनिया की हर समझदार बीवी ऐसी बाई रखती है जिसकी शक्ल देखकर पतिदेव का मूड ऑफ़ हो जाए."
वह नाश्ता करने के बाद पीछे के कम्पाउण्ड की धूप में अखबार लेकर बैठी थी कि जीना का फ़ोन आ गया, "प्लीज़ ! तू कैसे भी टाइम निकाल कर मेरे घर आ जा."
"लेकिन ...."
"लेकिन वेकिन कुछ नही, बस आ जा."
जीना के ड्रॉइंग रूम की गुजराती पारंपरिक भव्यता उसे हमेशा लुभाती है... दरवाजे के ऊपर झूलता काँच वर्क का तोरण, सनखेड़ा गाँव का लकड़ी का सुनहरी व लाल रंग का झूलेनुमा सोफा, कोने पर रक्खी बाजोट पर सफेद, लाल, नीले पीले पोत के मोती से कवर किए सजे कलस, सामने की दीवार पर पैचवर्क की कड़ाई किया हुआ आदिवासी पिथोरा लेकिन वहाँ एक महिला और एक युवती उदास सी बैठी हुई देखकर वह इस कलात्मकता का हमेशा की तरह जायज़ा नही ले पाई. उसके अभिवादन के बाद जीना ने परिचय करवाया, "ये रक्शिता देसाई है व ये उनकी माँ." जीना तुरंत ही मुख्य बात पर आ गई, "रक्शिता ने अपने पड़ोसी की चिकनी-चुपड़ी बातों में आकर उससे मैत्री करार कर लिया था."
वह मन ही मन भुनभुनाई क्या ये बच्ची है जो कोई इसे कोई फँसा लेगा लेकिन वह गुस्सा ज़ब्त कर बोली. "लेकिन गुजरात सरकार ने तो इसे बैन कर दिया है."
"तू सही कह रही है लेकिन इसने ये फ्रेंडशिप कॉन्ट्रेक्ट दो वर्ष पूर्व कर लिया था. इसके एक बेटा भी है."
"ओ नो !."
वह लड़की सिसक कर रोने लगी, शायद रूमाल लाना भूल गई होगी इसलिए अपने नीले दुपट्टे से आंसू पोंछने लगी थी. उसकी माँ क्रोध में बोली, "मैंने इसे कितना समझाया था कि ईश्वर भाई की गांव में बीवी है तू इससे मैत्री करार नही कर तो ये दस रुपये का स्टैंप पेपर लहरा कर बोली थी कि तुम मुझे बेवकूफ़ समझती हो हमारी दोस्ती पर ये कानूनी मुहर लग गई है. तुम क्या जानो नये नए ज़माने की बात है हज़ारों लड़कियां मैत्री करार कर रही हैं."
"अब समस्या क्या है ?"
"ईश्वर भाई ने इसे अपने फ़्लेट से बच्चे के साथ बेदखल कर दिया है. ये लौटकर मेरे पास आ गई है."
वह बोझिल आवाज़ में बोल उठी, "किसी वकील से राय नहीं ली ?"
"ली है लेकिन वह कह रहे हैं कि माँ बेटे का उस व्यक्ति की जायदाद पर कोई हक नही है. `वह तो अश्चर्य कर रहा था कि ये पढ़ी लिखी होकर उसके जाल में कैसे फँस गई. मैंने तो साफ़ कह दिया. शादी के नाम पर कुछ नया करने के जुनून में ये जा फँसी."
जीना ने धीमी आवाज़ में उससे अनुरोध किया, "तू ने मैत्री करार पर सर्वे करके एक लेख भी लिखा था. कुछ तो रास्ता होगा जिससे इस बच्चे को उसका अधिकार मिल सके."
तो वह यहाँ एक फ़्रेडशिप कॉन्ट्रेक्ट एक्सपर्ट की तरह बुलाई गई है... सोचकर वह उदास हो गई कैसे समझाए कि शब्दों की शृंखला कोई राजपाट नहीं है जो किसी का अधिकार दिला सके, बस वह एक अभिव्यक्ति है. वह उसाँस लेकर बोली थी, "स्त्री पुरुष सम्बन्ध कोई रोमनियत भरी ख्वाबगाह नहीं है कि आप कुछ भी उलटे सीधे प्रयोग करते रहें और आपको अपनी गलतियों का खामियाजा ना भुगतना पड़े . दुःख तो ये है कि स्त्री को ये खामियाजा अधिक भुगतना पड़ता है वह जब सपनों की दुनिया में हिन्डोले खाते हुए ज़मीन पर आ गिरती है."
"रक्शिता अब क्या करे ?"
"कोर्ट, कचहरी या वकीलो के चक्कर काटने से कुछ नहीं होने वाला. कुछ स्त्रियाँ तो इन तीन चार वर्षों में इस कॉन्ट्रेक्ट के चक्कर में दो तीन बच्चे तक पैदा कर चुकी हैं. तब जाकर सन् 1981 में इसे बैन किया है. मेरा सुझाव है कि तुम एक नौकरी खोजो और प्रतीक्षा करो कि तुमसे एक बच्चे के साथ कोई शादी करने को तैयार हो जाए. उस लम्पट आदमी के लिए आँसू बहाने में अपना समय मत बर्बाद करो."
उसकी बात समाप्त होते ही जीना उठी, "बस दो मिनट... मै चाय बनाकर लाती हूँ."
"छोड़ यार ! मूड नही है."
"आज मैंने नायलॉन खमण बनाया है, टेस्ट करके जा."
"फिर कभी."
वह भरे मन से घर लौट आती है. कैसा होता है स्त्री पुरुष के बीच का ये आकर्षण ! दुनिया एक तरफ, ये सम्बन्ध एक तरफ़ . रोमानी दुनिया की तसवीर दिखाता पुरुष किसी मखमली ख़्वाबों के महल में ले जाता है, स्त्री उस सौंदर्य की भूल भुलैया में भटकती रहती है, कभी बस भटक कर रह जाती है.
क्या स्त्री ही छल का शिकार बनती है? यदि वह इस समस्या पर सर्वे नही करती तो जान नही पाती कि बाहर निकली ये स्त्री मनचाहे रईस पुरुषों से सम्बंध बना रही है, क्योंकि उसके शौक आसमान छूने लगे हैं. कुछ समय बाद इन संबंधों के सबूत दिखाकर लाखों रुपये ऐंठना चाहती है. तब वकीलो ने फ़्रेंडशिप कॉन्ट्रेक्ट की युक्ति निकाली. वह पुरुष फ़्रेंडशिप कॉन्ट्रेक्ट दिखाकर कह तो सकता है कि ये अपनी मर्ज़ी से मेरे पास आती थी. छल कोई भी कर रहा हो, अच्छा हुआ सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया वर्ना अकेले अहमदाबाद में ये संख्या ढाई हज़ार तक पहुँच गई थी... पूरे गुजरात में इसकी तीन गुना... और प्रदेश भी नकल करते जा रहे थे.
हंसा ने भी कही सुना होगा इसलिए वह पूछ बैठी, "मैडम ! मैंने सुना है आप कहानी लिखती हैं. मुझे अपनी कहानी पढ़ने को दीजिए."
वह आश्चर्यचकित रह गई थी, "तू मेरी कहानी पढ़ेगी ? तुझे हिन्दी आती है ?"
"हाँ, मैं धोरण [कक्षा ] दसवीं नापास हूँ ."
उसका दिल ना टूट जाए इसलिए उसने अपनी एक कहानी उसे पढ़ने को दे दी. बाद में उस कहानी पर उसकी राय जान कर उसे और कहानियाँ पढ़ने को देती चली गई कि ऐसी बाई जीवन में कब नसीब होगी जो कि उसकी कहानी का मूल्यांकन कर सकती हो.
वह कभी प्रखर आलोचक की तरह टिप्पणी करती थी, "आपने क्या ये कहानी जल्दी में लिखी है? एकदम कहानी दौड़ती चली गई हैं."
कभी अपनी राय देती, "मैंने भी अस्पताल में देखा है, आपने इस कहानी मैं जैसे बदमाश बॉस का वर्णन किया है, यह ज़माना ऐसा ही है."
एक दिन वह रसोई में आल्मारी साफ़ कर रही थी, हंसा पास बैठी सब्ज़ी काट रही थी. वह बोली. ``मैडम! बंसी ने तीन चार बरस मेरे चक्कर काटे हैं तब मै इसके साथ रहने के लिये तैयार हुई हूँ वर्ना इसका मेरा जोड़ ही क्या है ?मैं दसवीं नापास व ये अँगूठा छाप. ``
वह कह नही पाई तेरे जैसी खड़खड़ाती औरत को अपने साथ रख रहा है तो ये उसकी मेहरबानी है. वह पूछने लगी, ``तेरी उसकी मुलाकात कैसे हुई ?``
``मै जिस प्राइवेट हॉस्पिटल में आया की नौकरी करती थी वहाँ ये सामने सड़क पर चाय की लारी लगाता था. ``
``फिर. ``
``धूप हो या बारिश हो, मेरी एक झलक पाने के लिए सड़क पर खड़ा रहता था. मैं ही इसे भाव नहीं देती थी. मेरी रात की ड्यूटी नौ बजे खत्म होती थी. एक दिन मेरी नाईट ड्यूटी बदल गई, इसे पता नहीं था. जब मै सुबह छ ;बजे ड्यूटी पर आई तो देखा बंसी बारिश में खड़ा भीग रहा है. मैंने पूछा इतनी सुबह तुम बारिश में क्यों भीग रहे हो ?वह दुखी होकर बोला कि मै तो रात नौ बजे से तेरी राह देख् रहा हू.मैडम !मेरी आंखों में आँसु आ गए, बताइये कौन औरत नही पिघलेगी ?``
``बाप रे !तब तू खूब स्वस्थ होगी, तेरा . फेफड़ा नही निकाला होगा ?``
`` ना रे ! तब तक मेरा. फेफड़ा निकाल दिया था. मेरा ऐसा ही दुबला पतला फिगर था. ``वह फिक्क से हंस दी थी. उसके हाथ से कलछी छूटते छूटते बची.
वाह री ! टी बी की मरीज जैसी दिखती सूखी हंसा तुझे भी ऎसा दीवाना आशिक मिल गया?
अपनी रौ में हंसा बही जा रही थी, ``कभी आप मेरी लाइफ़ के बारे में भी एक स्टोरी लिखना. मेरी ज़िन्दगी कहाँ से कहाँ पहुँच गई. मा बचपन में मर गई थी. पिताजी कॉन्स्टेबल थे. गांव में हमारे खेत थे.पिताजी के सामने ही मैं बीमार पड़ी थी, मेरा. फेफड़ा निकाल दिया गया था. उसके बाद पिताजी चल बसे. ``
बोझिल मन से उसने पूछा, ``फिर ?``
`` बस तब से मेरे खराब दिन आ गए. दोनो भाइयों ने गांव का मकान, खेत बेच दिये. मै उनके घर रहती तो भाभी बच्चो को ऐसे दूर् रखते कि मैं जैसे चुड़ैल हूँ. मुझे फिर बंसी मिल गया . उसका दीवानापन देखकर दोनो भाइयों ने भी कह दिया कि तुझे उसके साथ खुशी मिलती है तो जा उसके साथ रह. ``
`तू इससे शादी क्यों नहीं कर लेती ?``
``जब मन मिल गया है तो क्या ? फिर बंसी के औरत गांव में है इसने अभी छुट्टा छेड़ा नहीं लिया है. फिर मैं दसवीं नापास व ये अँगूठा छाप, इसका मेरा क्या मेल ?``
`` वाह री हंसा बेन तेरा भी जवाब नहीं है. ``उसे हंसी दबानी मुश्किल हो रही थी.
हंसा की बददिमागी , पति व पड़ोसियों के उलाहने -तब भी वह हंसा से आउट हाउस खाली नहीं करा पाती थी हालाँकि उसे महानता दिखाने का शौक नहीं था.
एक दिन फिर हंसा सनक गई , ``मैं शाम की झाड़ू नहीं लगाऊँगी. ``
``तो कौन लगायेगा ?``
``मैडम !आप लगाओगी. आप भी तो कुछ काम किया करो .
``तुझे रक्खा किसलिये है ?``
वह अपनी सूखी कमर पर दोनो हाथ रखकर तन कर खड़ी हो गई, ``मैंने कह दिया कि ये काम बंद तो बंद समझो. इस काम से मेरा मूड निकल गया है. ``
वह भी चिल्लाई,``मैंने तुझे बहुत निबाह दिया अब तू आज ही मेरा कमरा खाली कर. ``
वह दुगने ज़ोर से चिल्लाई, "मैं अभी चली जाती लेकिन बंसी लारी पर गया है. कल सुबह घर खाली कर दूँगी."
सुबह बंसी ने अन्दर आकर हाथ जोड़ दिए, "मैडम ! मैं बड़ी मुश्किल में हूँ. पुलिस वालों को हफ्ता कम दिया तो उन्होंने मेरी लारी उठवा ली. अब मैं अपने भाइयों से गांव पैसा लेने जा रहा हूँ , तब लारी छुड़वा पाऊँगा. अब बोलिए, ऐसे समय में हम कहाँ सिर छिपाए ?."
हंसा भी उसके पीछॆ से सामने आ गई, "मैडम ! अब मैं आपसे ठीक से बोलूँगी." हंसा की उबली आँखों में जैसे बाड़ आ गई हो,उसका सूखा शरीर थर थर काँपने लगा. उसे अवश होना ही था.
फिर दिन ऎसे ही गुजरने लगे. एक दिन हंसा ने रात के नौ बजे पीछॆ का दरवाज़ा खटखटाया., "मैडम ! मैडम !"
वह डाइनिंग टेबल पर बर्तन लगा रही थी दरवाज़ा खोलते हुए खीज उठी , "क्या है ?"
"आप बंसी को समझाओ. वह इस कॉलोनी में आकर बदमाश हो गया है."
उसके घबराहट में लाल पड़े चेहरे को देखकर उसे तरस आ गया. वह ज़मीन पर बैठकर रोने लगी, "बंसी आसपास के आउट हाउस वालों के साथ दारू के अड्डों पर जाने लगा है. वो लोग नशे में अपनी घरवालियों को पीटते हैं, ये भी मुझे पीटने लगेगा."
"हंसा ! तू चुप हो जा, ज़रूरी थोड़े ही है कि वह तुझे पीटने लगे."
वह और ज़ोर से रोने कांपने लगी, "क्या पता दारू के साथ साथ किसी औरत के चक्कर में पड़ जाए. आप तो जानती है कि मै इसके साथ एक धागे जैसे सौगंधनामे से बंधी रह रही हूँ , जिसे वह एक झटके में तोड़ सकता है." उसका चेहरा असुरक्षा की दहशत से बिलकुल सफ़ेद हो गया था.
बात बात पर खौखियाती, चीखती हंसा अन्दर से इतनी डरी हुई है ? बंसी के दो चार बार दारू पीने से सौगंध के टूटने की बात सोच सकती है ? उसने मन ही मन उन बुज़ुर्गों की बुद्धि पर अचरज किया जिन्होने इस फंदे को तोड़ने की सज़ाये लिखी, न्याय विदो ने क़ानून बनाए वर्ना स्त्रियां अपने पति के ज़रा इधर उधर होते ही असुरक्षित कांपने लगती. उसने हंसा को समझाया, "बंसी के आते ही मै उसकी ख़बर लूँगी."
दूसरे दिन उसके समझाने पर बंसी ने सच ही कान पकड़ कर हंसा से माफ़ी माँग ली.
कुछ दिनों बाद हंसा ने अपने भाई के घर से आकर उसे चांदी की भारी पायलें दिखाईं, ``इस बार भाई ने मेरी माँ की निशानी मुझे सौंप दी हैं. माँ ने इन्हें मेरी शादी के लिए ख़रीदा था. `` उसकी आँखों में एक सपना टिमटिमाया और बुझ गया. हंसा के पास बंसी जैसा दीवाना है फिर वह क्यों इस सपने से अपने को मुक्त नही कर पा रही ?भारी पायल मिलने की ख़ुशी में वह बीस इक्कीस दिन ख़ुशी ख़ुशी काम करती रही.
एक दिन चार बजे पीछे के दरवाजे की खड़ खड़ से उसकी नींद टूट गई. उसने गुस्सा होते हुए दरवाज़ा खोला लेकिन हंसा के सूखे पड़े चेहरे से, उबली हुई आँखों में तैरते पानी से वह उसे डाँट नहीं सकी. वह बोली, ``मैडम! कोई दोपहर में कम्पाउण्ड में आया था ?``
"नहीं तो, क्यों क्या हुआ ?"
"मेरे बक्स में से मेरी पायल गायब हैं."
"किसी ने ढक्कन का ताला तोड़ दिया है ?"
"नहीं तो, बक्स का ताला भी ज्यों का त्यों है."
"तू कहीं गई थी ?"
"हाँ, अपनी अस्पताल वाली सहेली से मिलने गई थीं."
"तो चाबी कहीं गिरा तो नहीं आई थीं ?"
"नहीं, वह भी मेरे पर्स में रक्खी है." उसने पर्स खोल कर चाबी दिखाई.
"तो अच्छी तरह घर में ढूंढ़ ."
हंसा अपने कमरे में बौराई सी पायल ढूंढ़ती रही. शाम को बंसी के आते ही फूट पड़ी, "मेरी माँ की निशानी खो गई है."
बंसी उसे समझता रहा. बीच बीच में हंसा के रोने की आवाज़, उन दोनों के झगड़ने की आवाजे उनके घर के पर्दो को चीरती रही.
अब पायल खोने का गुस्सा उस पर, कभी काम पर उतरता उसकी बड़ बड़ से वह खीज उठती, ``हंसा मुँह बंद करके काम कर``
"एक तो मेरी पायल खो गई है दूसरे आप ही मुझे गुस्सा दिलाती हो."
क्या ? उसे लगा उसने कौन सी घड़ी में हंसा पर तरस खाकर अपने घर रख लिया था.
वह उसे और भी डाँट लगाती लेकिन तभी फ़ोन की घंटी बज़ उठी. फ़ोन पर पतिदेव के ऑफ़िस से उनके दोस्त प्रशांत का फ़ोन आ गया, "भाभी जी ! नमस्कार ! मेरी दीदी की शादी है."
"वाह ! बधाई हो, वही दीदी जो कानपुर से आकर सूरत में नौकरी कर रही है ?."
"जी वही. हमारा परिवार तो आपका कभी उपकार नहीं भूलेगा."
वह चौंक गई थी, "मैं तो आपके परिवार से मिली भी नहीं हूँ."
"दरअसल दीदी के अपने दस वर्ष बड़े बॉस से फ़्रेंडशिप हो गई थी. वे पीछॆ पड़े थे कि वे उनसे फ़्रेंडशिप कॉन्ट्रेक्ट कर ले. हम सब मना कर रहे थे लेकिन दीदी किसी की भी सुन नहीं रही थी. यु नो, लव इज़ ब्लाइंड.तभी मैंने आपका फ़्रेंडशिप कॉन्ट्रेक्ट पर आर्टिकल पढ़ा और उन्हें भी पढ़वाया, उन्हें समझाया तब वे हमारी बात मानी."
"तब तो मैं ज़रूर शादी में आऊँगी."
मैं प्रशांत की दीदी की शादी में उन्हें वरमाला पहनाते हुए देखकर खिल उठी थी, एक लड़की तो मेरे लेख से खाई में गिरने से बच गई., शायद औरों की भी आँखें खुली हों.अरे!मै क्यों शंकित हो रही थीं कि शब्दों की सत्ता नहीं होती ?
उसने बाद में प्रशांत के परिवार व नव दम्पत्ति को डिनर पर आमंत्रित किया था. वह घर की सफ़ाई अपनी देख रेख में करवा रही थी. हंसा सोफ़े को कपड़े से साफ़ करते हुए संज़ीदा हो चुकी थीं, ``साब के दोस्त की बहिन ने सच ही शादी की है ?``
"हां, तो ?"
"वैसे ही पूछ रही थी." वह सिर झुकाकर काम करती रही फिर अचानक बोली, "मैडम ! दो वर्ष पहले मेरे चांदी के कंगन भी ऎसे ही खो गए थे."
"कैसे ?" उसे पता था कि यदि उसकी बात नहीं सुनी तो काम करने के लिए उसका मूड ना निकाल जाए.
"बक्स में ताला था, ढक्कन पर ताला लगा था और मेरे कंगन गायब."
"बंद ताले में से कौन ले जा सकता है ?."
"तब मै बंसी को भोई [ओझा] के पास ले गई थीं. उसने बंसी के हाथ में चावल देकर कसम खाने को कहा था कि उसने कंगन नहीं चुराए. बंसी ने इस बार भी हाथ में चावल लेकर कसम खाई है कि उसने पायल नहीं चुराई."
ओ बाप रे ! उसने इस तरह सोचा भी नहीं था. बंसी ने कब पार किए होंगे हंसा के कंगन, उसकी पायल ? जब वह पड़ौस में गई होगी या रात में सो रही होगी ?
हंसा बीच की मेज़ पोंछते हुए उसे बहला रही है या स्वयं को, "भोई बाबा ने कहा है कि तुम्हारे आस पास रहने वाले किसी कॉलेज के लड़के ने ये काम किया ही."
उसने गहरी साँस ली कि अच्छा है कि उसके बच्चे स्कूल में पढ़ रहे है, नहीं तो हंसा की उबली आँखें उन पर टिक जातीं .
हंसा अकसर उदास रहती है बीच बीच में काम छोड़ कर बैठ जाती है. वह चिल्लाती है, "साहब के आने का समय हो गया है तू सब्ज़ी कब काटेगी ?"
वह स्वयं उसे काटने को दौड़ती, "आपको सब्ज़ी की पड़ी है, मेरी माँ की निशानी खो गई है." वह रसोई में आकर रोने बैठ जाती. थोड़े दिन बाद उसे फिर चिल्लाना पड़ा, "हंसा! तू दरवाज़े के पीछे रोज़ कचरा छोड़ देती है. ठीक से सफाई किया कर."
"आपको कचरे की पड़ी है. मेरी माँ की निशानी खो गई है. अस्पताल में मैंने बहुत कड़क डॉक्टर देखी हैं लेकिन आप जैसी कड़क बोलने वाली मेम्साब मैंने ज़िन्दगी में कभी नहीं देखी."
"क्या ?" उसका धीरज सारी सीमाएँ तोड़ बैठा, "बस, अब बहुत हो गया तू मेरा आउट हाउस खाली कर दे."
"हाँ, कर देगी. हाथों में जब तक दम है हम कमा कर खा लेंगे." वह अपने दोनों सूखे हाथ उठाकर बोली और गुस्से में फड़फड़ करते शरीर से बाहर चली गई.
"वाह री अकड़." वह भी वाह कर उठी.
हंसा के आउट हाउस खाली करने के बाद आई सुंदर सुघड़ कल्पना. अपने सुंदर पति व सुघड़ बेटी के साथ. उस नपा तुला बोलने वाली व झट पट काम करने वाली कल्पना ने जैसे उसके स्नायु तंत्र को तनाव मुक्त कर ठंडक पहुँचा दी थी. वह पति व बेटों के सामने गर्व करती, "देखा मैंने सबके विरोध व तानों के बावजूद बीमार व चिड़चिड़ी हंसा को घर में जगह दी तो भगवान ने मेरे घर इतनी अच्छी बाई भेज दी."
बच्चों ने खिल्ली उड़ाई, "और क्या भगवान को आपके लिए बाई ढूँढ़ने के अलावा और कोई काम नहीं है."
बढ़ते बच्चों के साथ अधिक सोचने की कहाँ फुर्सत रहती है, जीवन बढ़ता ही जाता है -----रक्शिता ने नौकरी कर ली है, दूसरी शादी का सपना सँजो लिया है, ---उसी आदिम स्त्री की तरह ---प्रशांत की दीदी शादी के साल भर में ही एक बेटे की माँ बन चुकी हैं उसी आदिम व्यवस्था के तहत.
इन बातों को कितने तो वर्ष गुजर गए हैं.... मुठ्ठी भर लोग नाक भौंह चढ़ाते हैं विवाह व्यवस्था सड़ गल गई है... `एक्सपायर` हो गई है.... फिर भी विवाह होते जा रहे हैं और तो और अमेरिका में रहने वाले फ़िल्म अभिनेता ब्रेड पिट और एंजला जॉली भी बिना शादी साथ रहकर छह बच्चे पैदा करने के बाद भी शादी करके कौन सी सुरक्षा धूढ़ रहे है ? सबकुछ तो है उनके खजाने में पैसा, प्यार, शोहरत . ऋग्वेद के अनुसार कहते हैं दुनिया में सबसे पहला विवाह शिव पर्वती का हुआ था. तो क्या उस मील के पत्थर से ज़रा हटकर भी सुकून नहीं मिलता ? तो इस शरीर, इस जीवन को भोगने का सर्वोत्तम उपाय सिर्फ़ शादी ही है ? क्या इसीलिए थ्री डब्ल्यू [वेल्थ, वाइन. वुमन ]को भोगने वाला स्वीडन भी पारंपरिक विवाह व परिवार की तरफ लौट चुका है ?
कहाँ होगी वह हंसा ? अपनी तमाम व्यस्त्ताओ के बीच उसे अंग्रेज़ी शब्दों का तमीज़ उच्चारण करती, अकड़ती चीखती, तमीज़ से बात करती, रोती हुई, थोड़ी देर बाद ही हांफती, सूखी हंसा याद आ जाती है. जब भी कभी बंसी गांव में रहने वाली अपनी मा के पास रात में रुक जाता होगा . बिचारी एक एक घड़ी बेचैन होकर काटा करती होगी सिर्फ़ सौगंनधनामे की डोर से बंधा वह इस बार वापिस लौटेगा या नहीं.
यदि फिर कभी हंसा का ताले लगे कमरे व ताले लगे बक्स से चांदी का गहना गायब होगा तो फिर हंसा बंसी को भोई के दिए चावल खिलाकर अपने मन को बहला लेगी और कर भी क्या सकती है हंसा ?