एक बार-गर्ल की डायरी / राजकिशोर

Gadya Kosh से
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वह दिन मेरे लिए कितनी खुशी का था, जब उच्चतम न्यायालय ने यह फैसला सुनाया कि बार में महिलाएँ भी शराब परोस सकती हैं। मैं जानती हूँ कि जेसिका लाल का खून इसी पेशे की वजह से हुआ था। लेकिन रोज कोई न कोई कार दुर्घटनाग्रस्त हो जाती है, इससे लोग खरीदना या कार में बैठना थोड़े ही छोड़ देते हैं। औरत होने के कारण मैं जानती हूँ कि जीवन अपने आपमें एक दुर्घटना है। जब से अपने औरत होने का एहसास हुआ, मैंने यही पाया है कि हर आदमी में एक भेड़िया छिपा हुआ होता है और मौका मिलते ही वह अपने शिकार पर छलाँग लगा बैठता है। इसलिए, औरत होने के नाते, मैं हर समय दुर्घटना की प्रतीक्षा में लगी रहती हूँ। जिस दिन कम दुर्घटनाएँ होती हैं, उस दिन मैं ऊपरवाले का धन्यवाद करती हूँ। सो बार में ग्राहक को शराब देने की नौकरी से मुझे बिल्कुल डर नहीं लगा। मैं जानती थी कि बार में मैं अकेली तो रहूँगी नहीं, फिर कोई क्या कर लेगा।

लेकिन जिस दिन मैं नौकरी के लिए इंटरव्यू देने गई, वह मेरे लिए एक मनहूस दिन साबित हुआ। मैं तो साकी (मैंने उर्दू शायरी बहुत पढ़ी है और साकी होने की कल्पना से ही मेरा तन-मन रोमांचित हो उठता है; अमिताभ बच्चन के फादर ने, जो बहुत बड़े कवि थे, इसे मधुबाला कहा है) बनने की तमन्ना से भरी हुई थी, पर बार मालिक ने मुझे एक तरह से हड़का दिया। इंटरव्यू के दौरान उन्होंने पूछा, 'अगर कोई शराबी तुम्हारे साथ बदतमीजी करने लगे, तो तुम क्या करोगी?' मैंने जवाब दिया, 'चप्पलों से मार-मार कर उसका भुरता बना दूँगी।' बार मालिक हँसने लगा। उसने कहा, 'मेरे बार में बैंगन नहीं, अमीरजादे आते हैं। तुमने ऐसा करना शुरू कर दिया, तो मेरा तो बिजनेस ही चौपट हो जाएगा। फिर तुम्हारी तनखा कहाँ से आएगी?' उनकी बात एक तरह से सही थी। सो मैंने कहा कि कस्टमर ज्यादा बहकने लगा, तो मैं सुरक्षा कर्मचारियों को बुलाऊँगी। वह फिर हँसने लगा। उसने कहा, 'मेरे सुरक्षा कर्मचारी उसे नहीं, तुम्हें ही अपने साथ ले जाएँगे और उसे शराब सर्व करने के लिए दूसरी लड़की को लगा देंगे। मुझे कस्टमरों को नाराज नहीं करना है।' यह सुन कर मैंने कहा, 'तब मैं उसके सामने बिछ जाऊँगी और कहूँगी, सर, मैं आपकी ही हूँ, मुझे जितना खुश रखेंगे, आपको उतना ही फायदा होगा।' इस दफा बार मालिक ठठा कर हँसने लगा। बोला, 'मेरा मतलब यह नहीं था। मैं कहना यह चाहता हूँ कि हम सभी को इस तरह विहेव करना चाहिए, जिससे साँप भी मर जाए और लाठी भी न टूटे। आखिर हम बिजनेस करने निकले हैं, मुशायरा करने नहीं।' मैंने मुसकरा दिया और मेरी नियुक्ति हो गई।

मैंने पाया, कॉल सेण्टर की नौकरी बेहतर थी। वैसे, दोनों जगह ही रात की ड्यूटी होती है, पर उसमें बोरियत बहुत ज्यादा थी। यहाँ रोज नए-नए दृश्य देखने को मिलते थे। शराब पी कर कोई रोने लगता था, कोई बहुत ज्यादा हँसने लगता था। कोई गमगीन या गंभीर हो जाता था, तो किसी की जुबान ही बंद नहीं होती थी। मैं सब पर नजर रखती थी, पर सबसे निरपेक्ष हो कर ड्यूटी बजाती थी। एक दिन बार मालिक ने मुझे बुला कर पूछा, 'तुम्हारा टर्नओवर इतना कम क्यों है? सुजाता, रेशमा, छाया वगैरह की मेजों से दस-बारह हजार रुपए का बिल बनता है, तुम्हारा बिल किसी भी दिन पाँच हजार से ऊपर नहीं गया। अगर यही हाल रहा, तो हमें रिप्लेसमेंट के बारे में सोचना होगा। वैसे तो तुम बड़ी स्मार्ट हो। तुम पिलाओ तो मैं खुद एक रात में दो-तीन हजार की पी जाऊँगा। पर लगता है, तुम्हारे कस्टमर तुमसे खुश नहीं रहते।' उस शाम मुझे पता लगा कि मेरा काम सिर्फ बार टेंडर का नहीं है, सेल्स गर्ल का भी है। मेरा मन रुआँसा हो गया।

एक दिन एक कस्टमर मुझसे मेरा नाम, पता पूछने लगा। वैसे तो मैं बहुत हिम्मती हूँ, पर उसकी आँखों में मैं जो पढ़ पा रही थी, उसने मुझे डरा दिया। आखिर में मुझे कहना पड़ा, 'सर, मैं बार की नौकरी करती हूँ, बस। मेरा नाम सपना है, पर मैं अपना पता किसी को नहीं देती।' इस पर वह मेरा मोबाइल नंबर माँगने लगा। मैंने बचने के लिए कह दिया, 'मेरे पास मोबाइल नहीं है।' उसने आँखें तरेर कर कहा, 'आजकल तो मजदूरनें भी मोबाइल रखती हैं। खैर, तुम बिल लाओ, मैं देख लूँगा।'

उस रात देर तक मुझे नींद नहीं आई।

उसके तीसरे दिन एक और कस्टमर ने गलत व्यवहार किया। मैं पेग ले कर उसके पास गई, तो वह मेरी आँखों में आँख डाल कर बोला, 'गिलास में थोड़ा-सा सोडा भी डाल दो।' जब मैं सोडा डाल रही थी, तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। कहने लगा, 'अरे, अरे, ज्यादा सोडा मिला दिया। अब क्या खाक मजा आएगा! जाओ, एक पेग और लाओ।' मैं पेग ले कर गई, तो वह कहने लगा, 'देखो, जिंदगी में असली चीज है प्रपोर्शन। शराब में भी प्रपोर्शन ठीक होना चाहिए और औरत में भी। तभी पूरा मजा आता है।' झेंप भरी मुसकान के साथ मैं चलने को हुई, तो उसने हाथ के इशारे से मुझे रोक लिया और कहने लगा, 'इस संडे को क्या कर रही हो? मेरे साथ कुछ समय बिताओ, तो मैं और भी बहुत-सी जरूरी चीजें तुम्हें सिखाऊँगा।' दूसरी मेज की ओर इशारा कर कि वहाँ मेरी जरूरत है, मैं चल दी। पर वह बार बंद तक वहाँ बैठा रहा और कनखी से मुझे घूरता रहा। उस दिन मेरी सेल काफी ऊपर चली गई, पर मुझे अपने ऊपर ग्लानि भी उतनी ही हुई। मुझे लगा, मैं किसी बार में नहीं, चकलाघर में काम करती हूँ।

अगले दिन बार मालिक ने मुझे सैक कर दिया। उसने कहा, 'तुम्हारे खिलाफ कस्टमर्स की शिकायत बहुत है।' मैं पूछना चाहा कि 'और कस्टमर्स के खिलाफ मेरी शिकायतें?' पर मैं चुप रह गई। मैं जानती थी, वह यही कहेगा - 'कस्टमर इज आलवेज राइट।'

घर जा कर मुझे लगा कि मुझे सैक नहीं किया गया है, मैंने ही बार मालिक को सैक कर दिया है।