एक बूढ़े आक्रोश की उद्गम कथा / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
एक बूढ़े आक्रोश की उद्गम कथा
प्रकाशन तिथि : 10 अक्तूबर 2012


अमिताभ बच्चन उम्र के इस पड़ाव पर भी अपने से कम उम्र के लोगों से अधिक सक्रिय हैं, जबकि उन्हें मात्र धन के लिए परिश्रम करने की आवश्यकता नहीं है। वह कई पीढिय़ों के लिए धन एकत्रित कर चुके हैं। अब उन्हें किसी को कुछ सिद्ध भी नहीं करना है। सच तो यह है कि विगत कुछ वर्षों में उनके अनेक ऑपरेशन हो चुके हैं। अनेक व्याधियों से वह घिरे हैं और संभवत: भोजन की मात्रा से अधिक दवाएं खाते हैं। जितना घर में रहते हैं, उससे अधिक समय सेट पर या अस्पताल में गुजारते हैं। वह केवल अपने इरादे के दम पर कार्यरत हैं। सारा जीवन अनुशासन और अथक परिश्रम उनके मंत्र रहे हैं। जिन दिनों वह मैरियट के जिम में सुबह सात बजे वर्कआउट के लिए आते थे, लोग उनके आने से अपनी घडिय़ां मिलाते थे। उनकी अदम्य महत्वाकांक्षा उन्हें सदैव मुस्तैद रखती है।

इस सदैव जगाए रखने वाली महत्वाकांक्षा का जन्म कहां हुआ? संभवत: नैनीताल के उस स्कूल में, जहां हरिवंशराय बच्चन और तेजी ने उन्हें उस समय पढऩे के लिए भेजा, जब पं. जवाहरलाल नेहरू की अनुशंसा से हरिवंशराय की नियुक्ति विदेश विभाग में हिंदी के अधिकारी के पद पर हुई थी और उनके लिए महंगे स्कूल में भेजना संभव था। खानदानी अमीर व भूतपूर्व राजाओं के बच्चों के साथ पढ़ते समय उनके मन मेें महत्वाकांक्षा का जन्म हुआ, ऐसा अनुमान किया जा सकता है। सहज ही सवाल उठते होंगे कि ये इतने अमीर कैसे और मैं उच्च-मध्यमवर्गीय क्यों? इसी संस्थान में उन्हें नाटक में अभिनय के लिए ज्योफ्रे केंडल पुरस्कार मिला था।

ज्ञातव्य है कि इंग्लैंड का केंडल परिवार स्कूली बच्चों के लिए ताउम्र शेक्सपीयर के लिखे नाटक मंचित करता रहा और इसी परिवार की जेनिफर केंडल से शशि कपूर का विवाह हुआ था। इसका अर्थ यह है कि अमीर होने की महत्वाकांक्षा के जन्म के समय ही अभिनय के सपनों ने उनके हृदय में पहली अंगड़ाई ली थी। उनके मध्यमवर्गीय पिता कवि और लेखक थे, परंतु माता तेजी अभिजात्य वर्ग से आई थीं और उन्हें भी अभिनय का शौक था। एक बार बच्चन दंपती पुणे में एक शूटिंग देखने गए और हरिवंशजी के मित्र जोश मलीहाबादी ने उनका परिचय निर्माता से कराया, जिसने एक नजर देखकर ही तेजी बच्चन को नायिका की भूमिका का प्रस्ताव रखा। श्रीमती तेजी बच्चन स्वीकार करना चाहती थीं, परंतु पति के कहने पर इलाहाबाद पहुंचकर निर्णय करना तय पाया गया। वहां पहुंचने पर ज्ञात हुआ कि तेजी गर्भवती हैं, अत: अभिनय के प्रस्ताव को अस्वीकार करना पड़ा। इस घटना के समय अमिताभ शायद तीन-चार वर्ष के थे। अगर ऐसा हो जाता तो अमिताभ भी सितारा पुत्र की तरह प्रस्तुत होते।

बहरहाल, अभिजात्य वर्ग में स्कूली शिक्षा पूरी करके अमिताभ ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज में दाखिला लिया। उन दिनों नेहरू ने हरिवंशराय जी को राज्यसभा का सदस्य मनोनीत कर दिया था और अपने पड़ोस वाला बंगला आवंटित करा दिया था। इन्हीं दिनों शिखर राजनीति को अमिताभ बच्चन ने नजदीक से देखा और शायद नैनीताल में रोपित महत्वाकांक्षा के पौधे को जनपथ के हवा-पानी ने मजबूत बनाया।

बहरहाल, कलकत्ता में एक प्राइवेट कंपनी की अच्छी-खासी नौकरी छोड़कर अमिताभ बच्चन मुंबई आए और ख्वाजा अहमद अब्बास की 'सात हिंदुस्तानी' में उन्होंने अभिनय किया। उनकी तकरीबन 11 फिल्में असफल रहीं और घोर नैराश्य ने आ घेरा। उन्हें एक फिल्म से चंद रीलों की शूटिंग के बाद हटाया गया और संजय खान को लिया गया। अपमान और अवहेलना के उन दिनों में अमिताभ बच्चन लगभग टूट गए थे, परंतु प्रकाश मेहरा और सलीम-जावेद की 'जंजीर' ने उन्हें नैराश्य से मुक्त कर दिया। उसके बाद उन्होंने इतनी सफल फिल्में कीं कि उद्योग में एक से दस तक बस वही थे। अगला प्रतिद्वंद्वी 11वें नंबर पर था। उन शिखर दिनों में 'कुली' के सैट पर बैंगलोर में एक मामूली-सी दिखाई देने वाली दुर्घटना ने गहरा भीतरी जख्म दिया और मुंबई के ब्रीच कैंडी अस्पताल में उन्हें मृत घोषित करने का क्षण भी आया, परंतु अकस्मात वह मृत्यु से आंखें चार करके लौट आए। उन दिनों प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी उन्हें देखने अस्पताल पहुंची थीं। बाद में वह अपने बालसखा राजीव गांधी के कहने पर राजनीति की काली कोठरी में आए, जहां उन पर बोफोर्स का दाग लगा, जिसे लंदन की कोर्ट ने धो दिया। प्राय: अफवाहों के अंधड़ गेहूं के साथ घुन को भी पीस देते हैं। उस दौर में फेयरफैक्स नामक संदिग्ध संस्था के असत्य आंकड़ों ने वैसा ही जुल्म ढाया था, जैसा आज विकीलीक्स कर रहा है। भारतीय भ्रष्टाचार भारत की संस्था स्वयं उजागर नहीं करती और इस मामले में भी हम पश्चिम की ओर देखते हैं।

बहरहाल, अनेक यद्धों में फंसे अमिताभ अपनी महत्वाकांक्षा की खातिर विजय प्राप्त करते रहे हैं और इस यात्रा में संभव है कि उन्होंने अपनों को भी आहत किया हो। इस अदम्य महत्वाकांक्षा का एक और कारण यह हो सकता है कि उनकी माता की प्रसव पीड़ा से हरिवंश जब जगाए गए, तब वह स्वप्न में अपने पिता को रामायण में राम-जन्म कथा बांचते देख रहे थे और उनकी आजन्म धारणा रही कि यह पुत्र विशेष है और उन्होंने अपनी अवधारणा पुत्र के अवचेतन में भी रोपित की है। इस तरह के विश्वास तर्क के तराजू पर नहीं तौले जाते। महत्वाकांक्षा दिव्य योजना नहीं है। यह मनुष्य की रचना है।