एक महान विरासत का धराशायी होना / जयप्रकाश चौकसे

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एक महान विरासत का धराशायी होना
प्रकाशन तिथि : 29 अगस्त 2018


राज कूपर के स्टूडियो को बेचे जाने पर मीडिया में 'होली उत्सव' मनाया गया। इस तरह के झूठ भी उछाले गए कि इसे खरीदने में नरगिस ने भी कुछ धन राज कपूर को दिया था। लता मंगेशकर के सहयोग की बात भी कही गई। आश्चर्य यह है कि शांताराम, बिमलराय और गुरुदत्त के स्टूडियो बंद हो जाने पर इस तरह का बवाल खड़ा नहीं किया गया था, क्योंकि उस दौर में मीडिया का फोकस राष्ट्रीय समस्याओं पर था। आज स्टूडियो से बिकने को व्यवस्था के ठप होने जाने, रुपए के निरंतर अवमूल्यन होने और केरल में बाढ़ की तबाही जैसी समस्याओं के ऊपर तरजीह दी गई। यहां तक कि 40 हजार प्रति वर्ग फीट के हिसाब से ढाई एकड़ जमीन की राशि भी बताई गई। तथ्य यह है कि कपूर परिवार ने केवल बेचने का विचार किया है और किसी से सौदे को अंतिम स्वरूप नहीं दिया है।

इस प्रक्रिया में तीन महीने लग सकते हैं। कपूर परिवार अपनी फिल्मों के निगेटिव पुणे फिल्म संस्थान को भेंट कर चुका है। विगत वर्ष एक केंद्रीय मंत्री की मौजूदगी में बहुमूल्य निगेटिव पुणे फिल्म संस्थान को दिए गए। राज कूपर ने अपनी फिल्म 'आग' का निर्माण किया, जब वे मात्र 22 वर्ष के थे। संभवत: विश्व सिने इतिहास में वे सबसे कम वय के व्यक्ति थे, जिन्होंने फिल्म निर्माण व निर्देशन किया। 'आग' बॉक्स ऑफिस पर अपनी लागत निकालने में सफल हुई और किसी भी वितरक को कोई हानि नहीं हुई। निर्माता और कुछ वितरकों को आंशिक मुनाफा भी हुआ। अपनी पहली फिल्म के इस लगभग ठंडे से स्वागत से राज कपूर हताश नहीं हुए वरन नौ माह में ही अपनी दूसरी फिल्म 'बरसात' का प्रदर्शन भी कर दिया। 'आग' का संगीत राम गांगुली ने रचा था और 'बरसात' के लिए राम गांगुली के साथ बैठकर तीन गीतों की धुन बनाई गई थी परंतु राज कपूर को ज्ञात हुआ कि उनमें से एक गीत की धुन राम गांगुली अन्य निर्माता के लिए रिकॉर्ड कर चुके हैं तो राज कपूर ने तुरंत घोषणा की कि 'बरसात' का संगीत शंकर-जय किशन देंगे। जो पृथ्वीराज के नाटकों के लिए संगीत बनाते थे। इस खबर ने हड़कम्प मचा दिया, क्योंकि राम गांगुली अत्यंत गुणवान एवं स्थापित व्यक्ति थे। शंकर और जयकिशन का नाम प्रसिद्ध भी नहीं हुआ था। बहरहाल 'बरसात' अत्यंत सफल फिल्म सिद्ध हुई। उस फिल्म की पूरी लागत संगीत की बिक्री पर मिलने वाली रॉयल्टी से ही प्राप्त हो गई। जरा कल्पना करें कि उस दौर में रिकॉर्ड अत्यंत कम कीमत में बेचे जाते थे। 'बरसात' इतने अधिक रिकॉर्ड बिके कि बाजार में आने के कुछ ही दिनों बाद रॉयल्टी की रकम से फिल्म की लागत प्राप्त हो गई। गीत दसों दिशाओं में गूंजे थे। 'बरसात' से प्राप्त आय से राज कपूर ने दो एकड़ जमीन खरीदी और स्टूडियो निर्माण की कार्य प्रारंभ हुआ।

ज्ञातव्य है कि 'आवारा' की शूटिंग अन्य स्टूडियो में की गई। पूरी फिल्म की शूटिंग होने के बाद राज कपूर ने यह तय किया कि कुछ उपदेशात्मक दृश्यों को हटाकर एक स्वप्न दृश्य में नायक के मन में हो रहे द्वंद्व को प्रस्तुत करेंगे। उस स्वप्न का आकल्पन इस तरह किया गया कि धरती पर बेराजगार नायक रोजगार पाने के लिए मारा-मारा फिर रहा है परंतु उसे काम नहीं मिल रहा है। आज भी नहीं मिल रहा है। उसके लिए अब जीवन नर्क में बिताने की तरह है और वह अब आर्तनाद करता है कि उसको भी चाहिए बहार, उसे भी चाहिए प्यार। नायिका की प्रेरणा से वह उस नर्क से निकलने का प्रयास करता है। स्वर्ग समान स्थान पर नायिका उसे ले जाती है और वहां खलनायक उसे धक्का देकर पुन: नर्क में धकेल देता है। स्वप्न दृश्य के अंत में महान छवियों का ध्वस्त होना दिखाया गया है। 'आवारा' का यह स्वप्न दृश्य आरके स्टूडियो में शूट किया गया है। उस समय स्टूडियो की छत नहीं डाली गई थी। अत: शूटिंग रात में की जाती थी।

इस गीतांकन में चार माह का समय लगा और पूरी फिल्म की लागत के ऊपर पचास प्रतिशत खर्च इस पर हुआ। गोयाकि एक रुपए में बनाई गई फिल्म में इस गीतांकन पर आठ आने का खर्च हुआ। यह स्वप्न दृश्य नौ मिनट का है। आरके स्टूडियो का एक स्टेज नंबर एक और स्टेज दो के बीच हटाने लायक दीवार है, जो भव्य सेट लगाने के लिए हटा दी जाती है। इसकी छत 45 फीट पर बनी है, क्योंकि ऊपर तराफे बांधकर उस पर लाइट्स रखी जाती थी। आज कैमरे व लाइट्स विकसित हो चुके हैं और सामान्य छत होने पर भी शूटिंग की जा सकती है। केवल इसी स्टूडियो में रिवॉल्विंग सेट लगाने की सुविधा है, जिस कारण सुभाष घई ने अपनी फिल्म 'कर्ज' के लिए 'ओम शांति ओम' गीत का फिल्मांकन यहां किया था। आरके स्टूडियो में अन्य निर्माता भी शूटिंग करते रहे हैं।

मीडिया ने यह तथ्य नज़रअंदाज किया है कि कपूर परिवार ने कितना दु:ख सहते हुए यह निर्णय लिया है। उनका बचपन स्टूडियो के अहाते में खेलते हुए बीता। रणधीर कपूर और ऋषि कपूर के विवाह के स्वागत समारोह भी स्टूडियो में ही आयोजित किए गए थे। वहां नया स्टूडियो बनाना अव्यावहारिक था। फिल्मकार, कथाकार एवं तकनीशियन बांद्रा, खार, जुहू उपनगर में रहते हैं। टेलीविजन से जुड़े लोग लोखंडवाला में रहते है। मुंबई में यातायात में कठिनाइयां हैं। समुद्र के किनारे बसे इस महानगर में सड़कों पर मनुष्य की लहरें चलती हैं। कपूर परिवार ने गहरे द्वंद की बाद व्यावहारिकता का निर्णय लिया है। इस दौर में अनेक संस्थाएं धराशायी होने का दुख मनाए या फिल्म विरासत के बिकने का मनाएं?