एक लोटा पानी / श्याम सुन्दर अग्रवाल

Gadya Kosh से
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बहुत समय पहले की बात है। एक गाँव में राधा नाम की एक औरत रहती थी। राधा बहुत ही समझदार थी। उसके पास एक भेड़ थी। भेड़ जो दूध देती, राधा उसमें से कुछ दूध बचा लेती। उस दूध से वह दही जमाती। दही से मक्खन निकाल लेती। छाछ तो वह पी लेती, लेकिन मक्खन से घी निकाल लेती। उस घी को राधा एक मटकी में डाल लेती। धीरे-धीरे मटकी घी से भर गई।

राधा ने सोचा, अगर घी को नगर में जा कर बेचा जाए तो काफी पैसे मिल जाएंगे। इन पैसों से वह घर की ज़रूरत का कुछ सामान खरीद सकती है। इसलिए वह घी की मटकी सिर पर उठा कर नगर की ओर चल पड़ी।

उन दिनों आवाजाही के अधिक साधन नहीं थे। लोग अधिकतर पैदल ही सफर करते थे। रास्ता बहुत लम्बा था। गरमी भी बहुत थी। इसलिए राधा जल्दी ही थक गई। उसने सोचा, थोड़ा आराम कर लूँ। आराम करने के लिए वह एक वृक्ष के नीचे बैठ गई। घी की मटकी उसने एक तरफ रख दी। वृक्ष की शीतल छाया में बैठते ही राधा को नींद आ गई। जब उसकी आँख खुली तो उसने देखा, घी की मटकी वहाँ नहीं थी। उसने घबरा कर इधर-उधर देखा। उसे थोड़ी दूर पर ही एक औरत अपने सिर पर मटकी लिये जाती दिखाई दी। वह उस औरत के पीछे भागी। उस औरत के पास पहुँच राधा ने अपनी मटकी झट पहचान ली।

राधा ने उस औरत से अपनी घी की मटकी माँगी। वह औरत बोली, “यह मटकी तो मेरी है, तुम्हें क्यों दूँ?”

राधा ने बहुत विनती की, परंतु उस औरत पर कुछ असर न हुआ। उसने राधा की एक न सुनी। राधा उसके साथ-साथ चलती नगर पहुँच गई। नगर में पहुँच कर राधा ने मटकी के लिए बहुत शोर मचाया। शोर सुनकर लोग एकत्र हो गए। लोगों ने जब पूछा तो उस औरत ने घी की मटकी को अपना बताया। लोग निर्णय नहीं कर पाए कि वास्तव में मटकी किसकी है। इसलिए वे उन दोनों को हाकिम की कचहरी में ले गए।

राधा ने हाकिम से कहा, “हुजूर! इस औरत ने मेरी घी की मटकी चुरा ली है। मुझे वापस नहीं कर रही। कृपया इससे मुझे मेरी मटकी दिला दें। मुझे यह घी बेचकर घर के लिए जरूरी सामान खरीदना है।”

“तुम्हारे पास यह घी कहाँ से आया ? और इसने कैसे चुरा लिया ?” हाकिम ने पूछा।


“मेरे पास एक भेड़ है। उसी के दूध से मैने यह घी जमा किया है। रास्ते में आराम करने के लिए मैं एक वृक्ष की छाया में बैठी तो मुझे नींद आ गई। तभी यह औरत मेरी मटकी उठा कर चलती बनी।”

हाकिम ने उस औरत से पूछा तो वह बोली, “हुजूर, आप ठीक-ठीक न्याय करें. मैने पिछले माह ही एक गाय खरीदी है, जो बहुत दूध देती है। मैने यह घी अपनी गाय के दूध से ही

तैयार किया है। जरा सोचिए, एक भेड़ रखने वाली औरत एक मटकी घी कैसे जमा कर सकती है?”

हाकिम भी दोनों की बातें सुनकर दुविधा में पड़ गया। वह भी निर्णय नहीं कर पा रहा था कि वास्तव में घी की मटकी किसकी है। उसने दोनों औरतों से पूछा, “क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है ?”

दोनों ने कहा कि उनके पास कोई सबूत नहीं है।

तब हाकिम को एक उपाय सूझा। उसने दोनों औरतों से कहा, “वर्षा के पानी से कचहरी के सामने जो कीचड़ जमा हो गया है, उसमें मेरे बेटे का एक जूता रह गया है। तुम पहले वह जूता निकाल कर लाओ, फिर मैं फैसला करूँगा।”

राधा और वह औरत कीचड़ में घुस कर जूता ढूँढ़ने लगीं। वे बहुत देर तक कीचड़ में हाथ-पाँव मारती रहीं, परंतु उन्हें जूता नहीं मिला। तब हाकिम ने उन्हें वापस आ जाने को कहा। दोनों कीचड़ में लथपथ हो गईं थीं। हाकिम ने चपरासी से उन्हें एक-एक लोटा पानी देने को कहा, ताकि वे हाथ-पाँव धो कर कचहरी में हाज़िर हो सकें।

दोनों को एक-एक लोटा पानी दे दिया गया। राधा ने तो उस एक लोटा पानी में से ही अपने हाथ-पाँव धो कर थोड़ा-सा पानी बचा लिया। परंतु गाय वाली वह औरत एक लोटा पानी से हाथ भी साफ नहीं कर पाई। उसने कहा, “इतने पानी से क्या होता है! मुझे तो एक बाल्टी पानी दो, ताकि मैं ठीक से हाथ-पाँव धो सकूँ।”

हाकिम के आदेश से उसे और पानी दे दिया गया।

हाथ-पाँव धोने के बाद जब राधा उस औरत के साथ कचहरी में पहुँची तो हाकिम ने फैसला सुना दिया, “घी की यह मटकी भेड़ वाली औरत की है। गाय वाली औरत जबरन इस पर अपना अधिकार जमा रही है।”

सब लोग हाकिम के न्याय से बहुत खुश हुए क्योंकि उन्होंने स्वयं देख लिया था कि भेड़ वाली औरत ने कितने संयम से सिर्फ एक लोटा पानी से ही हाथ-पाँव धो लिए थे। गाय वाली औरत में संयम नाम मात्र को भी नहीं था। वह भला घी कैसे जमा कर सकती थी।