एक विरल कृष्णायन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 06 मई 2013
सिनेमा शताब्दी की शाम मैंने श्रीमती कृष्णा राजकपूर की संगत में ब्रीच कैंडी अस्पताल में बिताई जहां वे विगत अनेक दिनों से बेहद बीमार चल रही हैं। उनकी बीमारी के वैज्ञानिक कारणों के अतिरिक्त मानसिक त्रास है क्योंकि उनकी सबसे प्रिय बेटी रितु नंदा न्यूयॉर्क के स्लोन केटरिंग अस्पताल में कैंसर से जूझ रही हैं। टेक्नोलॉजी ने बात करते समय बिम्ब देखने की सुविधा भी दे दी है और अपनी बेटी की दारुण दशा ने 83 वर्षीय श्रीमती कृष्णा कपूर को भीतर से तोड़ दिया है। कुछ माह पूर्व तक वे पूरी तरह तंदुरुस्त और सक्रिय जीवन जी रहीं थीं और यकीन करना कठिन था कि वे उम्र के इस पड़ाव पर हैं। विगत माह उनका वजन 14 किलो घट गया है। फिल्म उद्योग में यह संभव है कि आप दस लोगों से राजकपूर पर राय जानना चाहें तो दो लोग नाराज नजर आ सकते हैं परन्तु सौ लोगों से भी श्रीमती कृष्णा कपूर के बारे में राय जानना चाहें तो आपको एक भी व्यक्ति उनके खिलाफ नहीं मिलेगा क्योंकि विगत छह दशकों में सभी ने उनके संयत व्यवहार, गरिमापूर्ण आचरण और अपार स्नेह को महसूस किया है। हर एक के दुख-सुख में वे साझीदार रही हैं। अनिल कपूर ने भी स्वीकार किया कि वे इतना स्नेह करती रही हैं कि बचपन में शरारत करने पर उनके मारे हुए थप्पड़ का भी उन्होंने बुरा नहीं माना।
रीवा के आला पुलिस अफसर की इस बेटी ने महानगर मुंबई में फिल्म उद्योग के प्रथम घराने में प्रथम बहू की तरह प्रवेश किया और आज तक किसी पत्रकार को कोई साक्षात्कार नहीं दिया, कभी किसी तरह से अपने को मीडिया में उजागर नहीं किया। आज तो दो दृश्य करने वाली लड़की अपनी फोटो आसमान पर चस्पा कर देती है और शौमेन राजकपूर की पत्नी, दो प्रमुख सितारों की भाभी, तीन कलाकारों की मां और फिल्म उद्योग में पृथ्वीराज जैसे महान कलाकार की बहू सभी किस्म की शोशेबाजी से बची रहीं। आज तो लोग किसी और के लिए आए मेहमान सितारे के साथ किसी तरह फोटो खिंचा कर यहां-वहां वर्षों तक छपवाते रहते हैं। रीवा से मुंबई के फिल्म उद्योग घराने तक उन्होंने करुणा, स्नेह और मासूमियत को अक्षुण्ण रखा। शायद पहली बार मुंबई की प्रयोगशाला व्यक्ति को बदलने में असफल रही। जब ऋषिकपूर के विवाह में दत्त परिवार बधाई देने आया तब राजकपूर विचलित से लगे परन्तु श्रीमती कृष्णाकपूर ने सहज रहकर सस्नेह स्वागत किया। जब नरगिस ने उनसे कहा कि आज मां बनकर मैं आपके दुख को समझ पा रही हूं और क्षमा चाहती हूं तब श्रीमती कृष्णा ने उन्हें झूठे अपराध बोध से मुक्त करते हुए कहा कि स्वयं को दोष मत दो, उस दौर में तुम न होतीं तो कोई और होता। उन्होंने जीवन के किसी भी दौर में घृणा, कुंठा और नकारात्मक भावनाओं को स्थान नहीं दिया क्योंकि उनका व्यक्तित्व ठोस था।
सृजनशील व्यक्तियों की पत्नियों को बहुत विशेष होना होता है और अनपेक्षित के लिए तैयार रहना पड़ता है। राजकपूर आधी रात को दर्जन भर कलाकारों के साथ बिना किसी पूर्व सूचना के घर आते थे और उनकी पत्नी को मेहमाननवाजी करना होती थी। जीवन के अन्य क्षेत्रों में भी पति की असफलता या व्यक्तिगत कुंठाओं का भार पत्नियों पर ही आता है। युद्ध कोई भी हारे और कहीं भी लड़ा जाए परन्तु सारे जख्म और पीड़ा पत्नी को ही झेलना पड़ती है। फिल्म उद्योग में अनिश्चितता अधिक है, अत: यहां पत्नी के लिए भार भी बढ़ जाता है। अन्याय आधारित व्यवस्था का हर कहर औरतों पर ही टूटता है चाहे महंगाई हो, अभाव हो। समृद्ध घरानों में महंगाई नहीं वरन् अन्य प्रकार की समस्याएं होती हैं। आप किसी भी आर्थिक वर्ग के हों, जीवन के निरंतर कुरुक्षेत्र की पीड़ा से बच नहीं सकते। श्रीमती कृष्णा कपूर ने राजकपूर को सृजन के लिए मुक्त रखा, पारिवारिक तपन की कोई आंच उन तक नहीं पहुंचने दी, यहां तक कि स्वयं अपने हृदय में उठे संशयों की छाया भी पति तक नहीं पहुंचने दी। इतना ही नहीं उन्होंने अपने देवरों को भी पुत्रवत माना और जब गीताबाली की असमय मृत्यु के कारण शम्मीकपूर स्वयं के मलबे पर बैठे थे तब उनका विवाह भावनगर के राज परिवार की नीला देवी से कराया जिन्होंने कृष्णा जी की शैली में शम्मीकपूर के घर और गीताबाली की दोनों संतानों की परवरिश की। रीवा हो या भावनगर संस्कारवान लोगों को महानगर और उसका मनोरंजन जगत तोड़ नहीं पाता। श्रीमती कृष्णा कपूर का हंसने-हंसाने का माद्दा भी कमाल का है। कुछ वर्ष पूर्व वे एक गंभीर शल्य चिकित्सा के लिए स्ट्रेचर पर ऑपरेशन थियेटर ले जाई जा रहीं थीं और चिंतातुर परिवार जन कतार में खड़े थे। उन्होंने मुस्करा कर कहा कि अरे आज मेरा ऑटोग्राफ तो लो, पहली बार थिएटर जा रही हूं। राजकपूर चाहे कुछ भी कहें किसी के साथ भी प्रेम करें, अनजाने ही उनका सोच और जीवन कृष्णामय ही रहा है।