एक वेश्या की तहरीर / सुरेश सौरभ

Gadya Kosh से
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उस दिन मैं, काम से जा रही थी, तभी रास्ते में बहुत भीड़ लगी देखी, भीड़ को इधर-उधर हटाते हुए आगे बढ़ी, भीड़ के बीचोंबीच में खून से लथपथ एक बच्ची अचेत, अर्द्धनग्न अवस्था में पड़ी थी, जिसे देख कर मेरी आंखें फटी की फटी रह गईं, कलेजा मुंह को आ लगा। अवाक मूर्ति-सी जड़वत हो गई मैं। लोग लानत-मलामत कर रहे थे-ऐसे भेड़ियों को जिंदा दफन कर देना चाहिए, ऐसे नराधमो की बोटी-बोटी काट डालनी चाहिए, ऐसे हवस के पापियों के अंग-भंग कर के नपुंसक बना कर सारी ज़िन्दगी जेल में सड़ाना चाहिए. इस बच्ची के साथ न्याय होना चाहिए. अगर पुलिस ने सही न्याय न किया तो हम सभी मिलकर रोड जाम करेंगे। प्रशासन की ईंट से ईंट बजा देंगे।

गम और गुस्से का वहाँ सैलाब उमड़-घुमड़ रहा था। पुलिस को इत्तला की जा चुकी थी। बस पुलिस आने ही वाली थी। वहाँ के कातर स्वरों से मेरा दिल बैठने लगा। तभी मैं जाने कैसे एकदम आवेश में से आ गई और मेरी जुबान से अंगारे छूटने लगे-हां-हाँ आप लोग सही कहतें हैं, बिलकुल ऐसा ही होना चाहिए. पुलिस आए तो चीख-चीख कर मैं कहूंगी इस बच्ची के साथ इंसाफ किया जाए. इसके साथ मैं यह भी कह रही हूँ, आप सभी से कि मैं एक रंडी हूँ। "तब भीड़ उस बच्ची को देखना छोड़ कर मुझे हैरानी से घूरने लगी," हाँ-हाँ मैं एक रंडी हूँ। मैं पैसे से अपना जिस्म बेचती हूँ। अगर कोई हवस का भूखा भेड़िया हो तो मेरे पास आए मैं मुफ्त में उसकी भूख मिटाऊंगी, पर हमारी इन बच्चियों को बख्श दे। इन मासूम कलियों को बख्श दे, इन नन्हीं चिड़ियों को बख्श दे। " मुझे ऐसा लगा अब सभी की नजरें मेरे जिस्म को बेध रही हैं, अपनी रौ में मैं क्या कहती चली गई, मुझे कुछ होश न था। अब चुपचाप भारी कदमों से चल पड़ी। मेरे कदम मन-मन भर के हो रहे थे और दिल पर दुनिया भर का भार महसूस करते हुए चली जा रही थी। अब ऐसा लग रहा था उस बच्ची की आत्मा मेरा पीछा कर रही है और मुझसे कह रही है ' मुझे न्याय दिलाओ, मुझे न्याय दिलाओ मैं, जल बिन मछली-सी तड़पती सन्न में भागी जा रही थी, जैसे मेरा कोई पीछा कर रहा हो।