एक सच्ची मुच्ची की प्रेम कहानी / सुभाष चन्दर
कहानी कुछ ऐसे शुरू करता हूँ।
एक शहर में एक अदद लड़का था और एक नग लड़की थी। लड़का और लड़की दोनों ही इश्किया फिल्मों के शौकीन थे। इश्किया फिल्म देखकर आहें भरते थे और रोज़ प्रार्थना करते थे - हे भगवान काश हमें भी ये निगोड़ा इश्क हो जाये।
लड़के ने तो बाकायदा मन्नत मांग रखी थी कि जिस दिन वह इश्क के इम्तिहान में पास हो जायेगा। ठाकुर जी के मंदिर में सवा किलो देसी घी के लड्डू चढ़ायेगा। इसके लिए वह काफ़ी यतन भी करता था। मसलन वह प्रचलित फैशन के हिसाब से बालों का फुग्गा बनाता था, रंगीन छींटदार शर्ट पहनता था, उसके नीचे घिसी हुई जीन्स धारण करता था। दिन हो या रात, आंखों पर काला चश्मा चढ़ाए रखता था। दिन में कई घंटे आइने को भेंट करता था। उसे कई फिल्मों के डायलॉग याद थे जिन्हें वह अपनी भावी प्रेमिका को सुनाने के लिए बेताब था। पर उसकी यह मनोकामना सिद्ध नहीं हुई। हारकर उसने एक प्रेम विशेषज्ञ से सम्पर्क किया। ये लवगुरू महाराज वाकई गुरु थे, एक अदद बीबी और नौ प्रेमिकाओं को एक साथ अफोर्ड करते थे। कहीं कोई लफड़ा की नहीं होने देते थे। ऐसे महानुभावों के तो दर्शन करने से भी पुण्य मिलता है। सो हमारा हीरो, उस लव गुरु की शरण में पहुंचा। जाकर सीधे उसके चरणों में गिर गया।
लव गुरु ने पहले लड़का देखा, उसका जुगराफिया जांचा, उसकी जेब का हाल मालूम किया। इश्क पर उसके इन्वेस्टमेंट की संभावनाएं तलाशीं। तब जाकर उवाचे- बालक, तेरा भविष्य उज्जवल है। इश्क की बिसात पर तेरी गोटी ज़रूर फिट बैठेगी। मैं तुझे एक लव लैटर डिक्टेट करा देता हूँ। तू इसकी कम्प्यूटर पर सात आठ कॉपी तैयार कर लियो और जहां-जहां तुझे थोड़ी-सी भी संभावना लगे, इन्हें बांट दियो। कामदेव ने चाहा तो तू जल्दी ही इश्क के मैदान में कबड्डी खेलने लगेगा। हीरो ने डिक्टेशन ली। पत्र पढ़कर उसकी बांछें खिल गयी। उसके मंह से बेसाख्ता निकल पड़ा – ये मारा पापड़वाले को। उसने लव गुरु के दुबारा पैर पकड़ लिया। लव गुरु प्रसन्न भए. उसे विजयी भव का आशीर्वाद दिया। लड़का जब जाने लगा तो उसे पीछे से टोककर बोले- बालक इश्क के मैदान में एक बार घुस जाने के बाद कदम पीछे मत हटाईयो। हो सकता है कि लड़कियों के भाई-बाप, नाते-रिश्तेदार तेरे दो-चार दांत तोड़ दें। तेरा एकाध हड्डी चटका दे। पर उनसे डरने का नहीं है। दांत नकली लग सकते हैं, हड्डी दुबारा जुड़ सकती है पर इश्क का चांस एक बार निकल गया तो आसानी से हाथ नहीं आयेगा। कहकर लव गुरु ने पान का बीड़ा मुंह के हवाले कर लिय। लड़के ने बड़े श्रद्धाभाव से गुरु की बातें गांठ में बांध लीं और अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ गया।
पहले राउन्ड में उसने प्रेम-पत्र की सात कॉपियां कम्प्यूटर पर तैयार कराई. तीन प्रतियां उसने कॉलेज में, दो पड़ौस में और दो उस टाइम सेंटर में इंवेस्ट कर दीं, जहां वह टाइप सीखने जाता था। सात कन्याओं को प्रेमपत्र वितरित करने के बाद वह उनके जवाब के इंतजार के काम में लग गया। छह पत्रों का जवाब जल्दी आ गया। कॉलेज वाली दो कन्याओं ने तो उसे लगे हाथ थप्पड़ों का भुगतान कर दिया तो तीसरी कन्या के भाई और उसके दोस्तों ने यह काम सम्पन्न किया। हीरो का मन कॉलेज से तो खट्टा हो गया पर मीठे की आशा अब भी थी क्योंकि पड़ोस और टाइप सेंटर के विकल्प अब भी खुले थे। अगले दिन तक पड़ोस का भी जवाब आ गया। एक कन्या ने बताया कि वह पहले से ही इन्गेज्ड है, इसलिए सॉरी। दूसरी की अम्मा, हीरो की अम्मा से मिलने आ पहुंची। कहना ना होगा क प्रेम पत्र उसके हाथ में था फिर क्या था अम्मा ने पहले अपना माथा ठोका, फिर लड़के को। मामला फिर भी काफ़ी सस्ते में निपट गया क्यों कि अम्मा ने सिर्फ चार-पांच चप्पलें मारी और गालियां भी एक दर्जन के करीब ही दीं। अब उसकी आशा टाइप सेंटर पर केन्द्रित हो गयी। वहाँ दो पत्रों का इन्वेस्टमेंट था। एक लड़की ने तो उसे अपनी शादी का कार्ड़ थमा दिया। मतलब यहाँ भी भैंस पानी में थी। पर सातवां पत्र जिस पर कन्या रत्न के पास था, उसी पर सारी उम्मीदें टिकी थीं।
अब कहानी को थोड़ा लड़की यानी कहानी की हीरोइन की तरफ मोड़ देता हूँ। पहले ही बता चुका हूँ कि लड़की फिल्मों की शौकीन थी और उसका पसंदीदा गाना भी था- ऐ काश किसी दीवाने को हम से भी मौहब्बत हो जाये। वह दिन में तीन बार कपड़े बदलती थी और तीस बार आईना देखती थी। मतलब हर तरह से हीरोइन बनने की पात्रता रखती थी। वैसे उसके मन मंदिर में तो सलमान खान बसा था पर अपनी व्यस्तताओं के कारण न तो वह उसका मोबाइल चार्ज करा सकता था, ना अपनी मोटर साईकिल पर मॉल ले जा सकता था और तो और वह उसे पिक्चर भी नहीं दिखा सकता था। सो इन हालातों में उसे एक फुलटाइम आशिक की ज़रूरत थी, जो ये सब पात्रताएं पूरी कर देता। वह हमेशा सपनों में देखती कि उसका आशिक उसे कनॉट प्लेस में चाट-पकौड़ी खिला रहा है, महंगे-महंगे गिफ्ट दिला रहा है बॉक्स में फिल्में दिखा रहा है और इनसे समय बचने के बाद प्यार की गाड़ी भी हांक रहा है। सो वह एक अदद इश्क के लिए बेचैन थी और खासी बेचैन थी। इसी बेचैनी के हालातों में उसे हमारे हीरो का लवलैटर मिल गया। बस फिर क्या था, उसका दिल मीटरों उछल गया। पर उसने दिल के भावों को चेहरे पर आने नहीं दिया। रात भर में उसने प्रेम पत्र को बीस-पच्चीस बार पढ़ा। चालीस-पचास बार चूमा और फिर पिया मिलन की आस वाला गान गाकर सो गयी। कहना ना होगा कि आज उसके सपने में सलमान खान की जगह अपना हीरो गाना गा रहा था।
अगले दिन लड़का और लड़की... नहीं अब उन्हें हीरो और हीरोइन कहेंगे... तो अगले दिन हीरो-हीरोइन पत्र में लिखी जगह पर मिले। हीरो सच्चे भारतीय आशिक की तरह समय से आधा घंटे पहले पहुंच गया। अलबत्ता हीरोइन ने प्रेमिका के किरदार की लाज़ रखी। वह सिर्फ एक घंटे लेट पहुंची। हीरो ने धड़कते दिल से हीरोइन को गुलाव का भेंट किया। लड़की ने थोड़ी ना-नुकुर के बाद स्वीकार कर लिया। उसके बाद बातों का सिलसिला चल पड़ा। कुछ संवाद यहाँ प्रस्तुत है... कृपया ध्यान दें कि कोष्ठक के संवाद पात्रों के मन से फूट रहे हैं-
- क्यों जी... इतनी चुप क्यों हो... कुछ बोलो ना?
- (चुप्पी) ... क्या बोलूं... आपने तो मुझे फंसा दिया है। आप जानते हैं मैंने तो इस बारे में कभी सोचा भी नहीं था। सच्ची... मैं ऐसी लड़की नहीं हूँ (मन में सोचती तो हर वक्त रहती थी, पर किसी कमबख्त ने घास ही नहीं डाली)
- सच कहूँ जी –मैं भी ऐसा लड़का नहीं हूँ- मेरा भी यह पहला प्यार है। मैंने भी आज तक किसी लड़की की तरफ आँख उठाकर नहीं देखा (जब भी देखा, टकटकी लगाकर देखा)
- फिर मुझमें ऐसा क्या था... खिस्स... हंसने की आवाज़...
- आप में तो वह बात है जो दुनिया की किसी लड़की में नहीं। आपकी आंखे प्रियंका चोपड़ा जैसी है, नाक कैटरीना जैसी और होंठ तो बिल्कुल करीना जैसे हैं- (बोलना तो आगे भी कुछ चाहता हूँ... पर पहली मुलाकात में... नो... नो... पांच सात मुलाकात के बाद ही कुछ बोलूंगा... हो सका तो...)
- हुम्म (शर्माकर) – मैं कहाँ ऐसी हूँ... मैं तो बिल्कुल सिम्पल-सी हूँ... पता नहीं, आपने मुझमें क्या देख लिया (कमबख्त मेरी तुलना इन फटीचर हीरोइनों से कर रहा है, ये तो मेरे आगे पानी भरती हैं... दो चार मुलाकातें और हो जाने दे... फिर देखूंगी, तू कैसे हीरोइनों का नाम लेता है)
- ये आप क्या कह रही हैं। मैं तो पहली नज़र में ही आप का दीवाना हो गया था। सोचता था कि प्यार करूंगा तो सिर्फ आपसे ही... वरना जीवन भर कुंआरा रहूँगा (कब से सोच रहा था, ये डायलॉग मारूंगा, पर ससुरा मौका ही नहीं मिला। अब तुम्हें क्या बताऊं कि सात को लव लैटर दिए थे, पसंद तो मुझे अपनी क्लास फैलो तृष्णा थी... पर ठीक है जो मिल गया)
- क्या हुआ... जी... किस सोच में पड़ गये। अच्छा, अभी आपने कहा था कि मैं अगर आपको नहीं मिलती तो आप जीवन भर कुंआरे रहते। क्या इतनी दूर की सोच रहे हैं... बोलिए ना चुप क्यों हैं?
- ऐं... (अब क्या बोलूं, घबराहट में ऐसी बेवकूफियां तो हो ही जाती है, गज़ब कर दिया- अपने पैरों पर पहली मुलाकात में ही कुल्हाड़ी मार ली। लड़की सैंटी हो गयी तो आफ़त आ जायेगी)
- सुनो जी... क्या सोच रहे हैं?
- कुछ नहीं... अब बताइये... आपको देखने के बाद सोचने को रह ही क्या जाता है। वह क्या कहा है शायर ने... तुमको देखें कि तुमसे बात करें (बात तो थोड़ी बनी प्यारे)
- खिस्स... आप भी ना... (शर्माना) ... अच्छा सुनिये जी... मुझे शिप्रा मॉल जाना है। एक दो ड्रेस खरीदनी है- आप मुझे वहाँ छोड़ देंगे (पट्ठे पता चल जायेगा मॉल में कि तू कितने पानी में है)
- (ड्रेस खरीदवायेगा तो मामला फाइनल वरना जैराम जी की, सोच लूंगी, कोई बहाना) हां जी बोलिए छोड़ देंगे, मोटर साइकिल से।
- अरे... क्यों नहीं... क्यों नहीं... मोटर साइकिल आपकी... हम आपके, चलिए ना... इसी बहाने आपके साथ कुछ वक्त और गुज़र जायेगा (वक्त तो गुजरेगा बेटे, पर सारा जेब खर्च स्वाहा हो जायेगा, लोंडिया को ड्रेस तो दिलवानी ही पड़ेगी... आखिर फर्स्ट इम्प्रेशन का मामला है)
- चलिये जी... क्या सोचने लगे... (ये तो सोचने लगा, कमबख्त कहीं बाहर छोड़कर ही ना चला जाये)
- आइये जी... बैठिये... मोटर साइकिल की घर्र-घर्र...
- सुनिये... थोड़ा आगे सरककर बैठिये... पिछले पहिये में हवा कम है...
- जी... ठीक है... (ये तो काफी शरारती लगता है... चलो अपना क्या जाता है।) मोटर साइकिल की घर्र-घर्र...
आगे की कहानी में जुड़ता है। हीरो हीरोइन के साथ मॉल जाता है। ड्रेस की दुकान के पास हीरो के कदम ठिठकते हैं, लड़की तड़ाक से हीरो का हाथ अपने हाथ में ले लेती है। नतीजा अच्छा निकलता है। हीरो तीन ड्रेस खरीद देता है। हीरोइन खुश हो जाती है और मोटर साइकिल पर हीरो से चिपककर बैठती है। हीरो का इन्वेस्टमेंट सार्थक हो जाता है।
तीन चार मुलाकातों में इश्क काफी आगे बढ़ता है। हीरो हीरोइन का मोबाइल चार्ज कराता है। चाय पकौड़ी का रसावादन करता है। सिनेमा दिखाता है। गाहे-बगाहे गिफ्ट देता है। बदल में किसी पार्क के कोने में या सिनेमा हॉल के अंधेरे में छुआ-छुई, पुच-पुच का सुख पाता है। हीरोइन खुश है। हीरो इश्क की परीक्षा में पास हो गया। हीरो अपने खर्चे का हिसाब लगाता है, इश्क का सुख उसे खर्चे से बड़ा लगता है और लगभग साल भर तक लगता रहता है। लड़की सुरक्षित दूरी की सीमा को पीछे छोड़कर आधुनिक सीमाओं में प्रवेश करती है। यानी इश्क की गाड़ी अपनी मंजिल तलाशने लगती है।
कहानी कुछ ज्यादा ही फुटेज ले रही है, सो अब थोड़ा दी एंड की ओर बढ़ा जाये।
एक दिन लड़की के रिश्ते वाले घर आते हैं। उन्हें लड़की पसंद है। लड़का अपने बाप की इकलौती संतान है। बैंक में प्रोबेशनरी ऑफिसर है। घर का मकान है। देखने-सुनने में अच्छा है। हीरो से अच्छा। रिश्ता पक्का हो जाता है। हीरोइन और हीरो फिर मिलते हैं। उनके डायलॉग (मन वाले कोष्ठक के डायलॉगों के साथ पाठकों की सेवा में प्रस्तुत हैं)
- सुनो जी... आज मेरा मन बहुत खराब है।
- क्या हुआ जानू?
- पता है आज सुबह मेरा रिश्ता पक्का हो गया (ऊं... ऊं... ऊं...)
- हे भगवान... ये किस को हमारे प्यार की नज़र लग गयी। (गहरी सांस) ... रोओ मत... भगवान ठीक करेगा। भगवान तो जो करता है, ठीक ही करता है। मैं तो सोच रहा था कि मेरे गले ना पड़ जाये, वरना बापू बहुत मारता, लाखों का दहेज मारा जाता)
- तुम बताओ जी... अब मैं क्या... मन तो करता है कि ज़हर खाकर जान दू दूं (सिसकियां) (जान दें मेरे दुश्मन)
- अरे... अरे... रोओ मत... तुम रोती हो तो दर्द मेरे दिल में होता है (वाह क्या फंडू डायलॉग मारा है प्यारे)
- सच्ची कहती हूँ... मैं तुम्हारे बिना एक पल भी नहीं रह पाऊंगी... तुम कहो तो मैं शादी के लिए इंकार कर दूं... तुम्हारी नौकरी लगने तक मैं इंतज़ार कर लूंगी (निठल्ले तू बस इश्क के मतलब का ही है, वर्ना क्या अब तक नौकरी ना पा जाता, तेरा इन्तज़ार करे मेरी जूती। मैं तो बैंक अफसर की बीबी बनूंगी) बोलो ना जी... क्या कहते हो?
- (गहरी सांस) - मैं क्या कहूँ जानू... मैं तो किसी लायक हूँ ही नहीं, मां-बाप के टुकड़ों पर पल रहा हूँ... और पता नहीं... नौकरी कब तक मिलेगी... (मिल भी जाये तो क्या तुझसे शादी करुंगा, तेरा कंजूस बाप कुछ देगा भी)
- (सिंसकियां) - तो तुम क्या कहते हो... मैं जीते जी उस नर्क में गिर जाऊं। सच कहती हूँ जी तुम्हारे बिना तो मैं एक पल भी नहीं जी पाऊंगी...
- (गहरी सांस) - क्या कहा जानू... मज़बूरी है। तुम मेरा इन्तज़ार भला कब तक करोगी। तुम्हारी दो बहने और भी तो हैं... मेरी मानो तो... (गहरी सांस) ... तुम शादी कर ही लो (सिसकियां)
- सुनो जी... अब तुम रोने लगे... प्लीज़ मत रोओ... देखो, हम दोनों एक-दूसरे से हमेशा प्यार करते रहेंगे, शादी के बाद भी।
- सच कहती हो ना... मुझसे शादी के बाद भी प्यार करोगी...
- हां हां... हमेशा करूंगी... मेरे देवता... (सिसकियां) तो जानू अब पक्का रहा ना कि मुझे अपने घर वालों की मर्जी से शादी करनी पड़ेगी। रिश्ते को हां कर दूं ना... (रिश्ता तो पहले ही पक्का हो गया है, लल्लू, मैं तो तुझे सिर्फ ख़बर कर रही हूँ।
- हां... हां... हां कर दो... सच कहूँ, मेरा दिल फटा जा रहा है (अच्छा हुआ, बला टली)
- तो जानू... अब में चलूं... लड़के वाले अब भी घर पर हैं...
- ठीक है जानू... तुम जाओ...
- अच्छा चलती हूँ... सुनो... मैंने सुना है लडके वाले शादी के लिए जल्दी कर रहे हैं अगले महीने ही शादी हो जायेगी। सुनो... अब हम आगे नहीं मिल पायेंगे... मेरी मज़बूरी समझ रहे हो ना... प्लीज़... समझ लेना... (लल्लू, ये सब मैं इसलिए कह रही हूँ कि तू शादी में कोई बवाल ना कर दे)
- हां... हां... जानू... मैं नहीं चाहता कि बदनामी से तुम्हारी शादी टूट जाये। ठीक है तुम्हारी खातिर मैं अपने दिल पर पत्थर रख लूंगा... पर तुमसे कभी नहीं मिलूंगा... बाय... जानू...
-...बाय मेरे राजा... मेरे हीरो... अच्छा हां... सुनो... मेरा मोबाइल रिचार्ज करा देना... चलती हूँ...
हीरोइन चली जाती है। हीरो कुछ देर वहीं खड़े होकर मुक्ति का आनंद लेने के लिए एक सिगरेट फूंकता है। अपने मोबाइल से संभावित गलफ्रैण्ड का नम्बर मिलाता है। कुछ पुराने डायलॉग दोहराता है। भावी गलफ्रैण्ड से मिलने का टाइम फिक्स हो जाता है। अब वह निर्णय लेता है कि वह लड़की का मोबाइल रिचार्ज नहीं करायेगा। इस प्रोजेक्ट पर और इन्वेस्टमेंट करना बेकार है।
इस घटना के कुछ दिन बाद हीरोइन की सहेली मिलती है।
- क्यों री... मैंने सुना है तू शादी कर रही है...
- हां... री... अगले हफ्ते ही तो शादी है। मेरे होने वाले वह ना... बैंक में अफसर हैं। देखने में बिल्कुल हीरो जैसे हैं... हमारी जोड़ी खूब जमेगी।
- अरी वह तो ठीक है पर वह लड़का... जिससे तेरा अफेयर चल रहा था... उसका क्या होगा?
- मैंने क्या उसका ठेका ले रखा है वह भी कर लेगा, कहीं शादी... हुम्म...
- पर तुम लोग तो एक दूसरे के पीछे दीवाने थे एक साथ जीने मरने की कसमें खाते थे...
- तो क्या हुआ...
- फिर भी बता ना... तूने उससे शादी क्यों नहीं की?
- अरी तू पागल है क्या... उस निठल्ले से शादी करके क्या करती। क्या कमाता... क्या खिलाता... खाली इश्क से पेट भरता क्या... और सुन... एक बात और कहूँ... अपने कान ज़रा पास ला।
- हां... बोल...
- (फुसफुसाकर) - शादी तो मैं किसी अच्छे कैरेक्टर के लड़के से ही करुंगी... वह तो कमीना...
सहेली का मुंह खुला रह जाता है, इतना खुला कि एक मक्खी उसमे घुस जाती है और कुछ देर घुम घामकर साबुत बाहर निकल आती है।
आधुनिक युग की एक सच्ची प्रेम कथा का अन्त यूं भी होता है।