एक सड़क सत्तावन गलियाँ / कमलेश्वर / पृष्ठ 1

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मयन देवताकी बसाई हुई इस बस्ती की ज़िन्दगी की धुरी है- यह रिकटगंज की सराय, झम्मनलाल की मंडी और मोटरों के अड्डे। औरतों के अपने तीज-त्यौहार, मनौती-पूजा के ठिकाने हैं- शीलता देवी, गमा देवी, सैयद की मज़ार, बाबा का थान और नीम के नीचे पड़ी मयन देवता की मूरत। दो-चार मौके ऐसे ज़रूर आते हैं, जब मर्द-औरतों का सम्मिलित रूप दिखाई देता है- सदानन्द आश्रम में साधु-समागन हो या मंडी में रामलीला शुरू हो।

जिले की पाँच तहसीलों में सिर्फ दो को रेल जोड़ती है, बाकी तहसीली के लिए आवागमन के ज़रिए दो ही हैं- मोटर और इक्के। बरसात में जब मौसमी नदियाँ और नाले इतराने लगते हैं तो रास्ते कट जाते हैं, कच्चे दलदलों में बदल जाते हैं, इक्के वाले हाथ रखकर बैठ जाते हैं और घोड़े; उनके सिर्फ दो ही काम रह जाते हैं- पूछ से मक्खियाँ उड़ाना और हिनहिनाना।

नदियाँ घहरा उठती हैं, पर आदमी का आना-जाना नहीं रुकता। नदियों में कड़ाह पड़ जाते हैं और इन छोटी-छोटी बस्तियों के दिलेर लोग उन कड़ाहों में बैठकर बड़ी-बड़ी भँवरें, हाथी-डुबाऊ गहराइयों और चौड़े पाट पार कर जाते हैं। जानवरों तक को लँघा ले जाते हैं। खासतौर से अषाढ़ में मंडी की नाड़ी धीमी पड़ जाती है.....पूरी बस्ती पर उदासी छा जाती है। सब कामों के सिलसिले टूट जाते हैं। नाज की लदाई बन्द हो जाती है। पल्लेदार और तौला बेकार हो जाते हैं। सौदागरों का आना-जाना बन्द। और फिर आढ़तियों की अपनी तिकड़मी। बरसात के लिए जिन दिनों अन्न की बेहद खींचातानी पड़ती है, गोदान भर लिए जाते हैं। थोक बिक्री में तब उनका मन नहीं रमता.....ब्याने के वक्त भला कोई अपनी गाय बेचता है ! यह तो पाप का भागी होना हुआ। कोई हिम्मतवाला सौदागर मंडी में आ ही गया तो टका-सा जवाब मिल जाता है- अपने शहर के लिए भी कुछ रखेंगे सेठ जी बरसात बाद में आना।

मंडी की नाड़ी धीमी पड़ते ही पूरी बस्ती उदास हो जाती है। सच पूछा जाए तो शहर के मध्य में स्थित यह मंडी ही दिल इसका है। इसी की धड़कनों के साथ जीवन की गति बंधी है। सड़कें वीरान हो जाती हैं, गलियों का उछाल मूर्छित हो जाता है। तहसील-कचहरी के बाबू लोग पैजामा-कुरता में-छतरी या तौलिए डाले झमझाते पानी में भी निकल पड़ते हैं, बाकी लोगों के गोल के गोल बैठते हैं।