एक सावित्राी रोॅ मौत / अमरेन्द्र
"तोहें ठिक्के पहचानलौ बाबूजी, ई वही बसमतिया छेकै--छट्ठू मरड़ के जेठी बेटी, मतरकि आबेॅ एकरोॅ नाम बसमतिया नै। आबेॅ यैं आपनोॅ नाम रबिया खातून बतावै छै।"
"से कैन्हें?"
"बड़ी लम्बा कहानी छै बाबूजी. सब तेॅ बतैबोॅ एकदम मोश्किल। होनो केॅ के नै जानै छै--बसमतिया के कहानी! आबेॅ तेॅ गाँव केरोॅ बच्चा-बच्चा जानी लेलेॅ छै--बसमतिया के कहानी। बसमतिया नै कहिऐ बाबू! रबिया खातून कहिऐ."
"मतरकि ई सब होलै केना?"
"की कहियौं बाबूजी; ननकेसर भगत छेलै नी--अरे वही, पूबारी टोला वाला ननकेसर भगत--ओकरे बेटा कर्कट...की कहियौं बाबूजी, ऊ तेॅ बसमतिया पर ई रं लट्टू-लट्टू छेलै कि बस! गाँव-टोला भरी में दोनों के प्रेम के चर्चा उठतैं रहै। यहू बसमतिया की कम रहै बाबूजी... कहै के तेॅ तेरह-चौदह बरस के छेलै, मतरकि राधाहौ के कान काटैवाली।"
"जात तेॅ दोनों के एक्के छेलै। कैन्हें नी ननकेसर आरो छट्टूं बातचीत करी केॅ दोनों के जोड़ी लगाय देलकै।"
"ई बारे में आबेॅ हम्में की कहियौं, मतर एत्तेॅ तेॅ जानै छियै कि ई बातोॅ केॅ लै केॅ बसमतिया मांय कर्कट के दुर्गत पुराय देलकै। समैयो के फेर देखोॅ, की सुमति-कुमति के फेर पड़लै कि बसमतियो के मोॅन धीरें-धीरें कर्कट सें उचाट हुएॅ लागलै।"
"से कैन्हें?"
"ई बारे में की बतैय्यौं बाबूजी. होना केॅ गोतिया-लोहिया रोॅ यही कहवोॅ छेकै कि बसमतिया मांय ओझा-गुनी रोॅ मन्तर पढ़लोॅ बतासा बसमतिया केॅ खिलाय देलेॅ रहै--देवघरोॅ के परसाद कही केॅ, आरो वही दिनोॅ सें बसमतिया रोॅ मोॅन कर्कट दिशोॅ सें उचाट हुएॅ लागलै। मजकि ईटहरीवाली भौजी के तेॅ कहवोॅ छेकै कि एकरा ओकरी मैय्यंे कहनें छेलै कि आबेॅ सें जों बसमतिया कर्कट सें मिललै-जुललै, तेॅ वैं ओकरोॅ चमड़ी उतरवाय देतै आरो यहेॅ डरोॅ सें यैं कर्कट सें मिलनौं-जुलनौं छोड़ी देलकै...मतरकि कर्कट एकरा कहाँ सें छोड़ै वाला छेलै। कोय-न-कोय वक्त, आरो कोय-न-कोय बहाना बनाय केॅ ऊ दिन भरी में बसमतिया सें मिलिऐ लै... ई परेमो अजगुत चीज होय छै बाबूजी--आदमी केॅ नचाय-नचाय केॅ राखी दै छै...आरो जबेॅ देवी राधाहै केॅ नचाय देलकै, तबेॅ मनुक्खोॅ के की बात। मजकि बाबूजी, की हेनोॅ परेमोॅ सें केकरौ जशो मिललोॅ छै? बदनामी छोड़ी केॅ आरो मिलले छै की? कर्कटो के की नै दुर्गत पुरलै...की कहियौं बाबूजी, एक राती बसमतिया मांय ओकरा आपनोॅ घरोॅ के पिछुवाड़ी में पावी, ओकरोॅ जुल्फी लचाय-लचाय केॅ जे पिटाय करलकै कि मत पूछोॅ, ओकरोॅ परेम करै के सब निशाँवे उतरी गेलै। की जानौं, केना केॅ भोर होत्हैं-होत्हैं ई खबर सब्भे केॅ मिलियो गेलै। पूबारी टोलोॅ सें लै केॅ पछियारी टोलोॅ आरो उतरवारी सें लै केॅ दखिनवारी टोलोॅ तांय रोॅ के नै जानलकै। ...कर्कटो आपनोॅ कारिख लगलोॅ मूँ कहाँ-कहाँ नुकैतियै, तेसरे दिन जे गाँव छोड़लकै, तेॅ आय तांय नै लौटलोॅ छै। कोय तेॅ कहै छै, कर्कटें कहलगांव टीशनोॅ के नगीच टरेनोॅ सें कटी केॅ जान दै देलकै--लहाश छिनमान कर्कटे सें मिलै-जुलै छेलै, मजकि सुरेनमां आपनोॅ आँखी देखलोॅ बतावै छै कि वैं पौरकां साल कर्कट केॅ जमालपुर टीशनोॅ पर खोमचा बेचतें देखलेॅ छेलै--सुरेनमा केॅ देखत्हैं ऊ भीड़ केॅ ठेलतें टीशनोॅ सें बाहर निकली गेलै। आबेॅ के की कहेॅ सकै छै बाबूजी कि कर्कट जीत्तोॅ छै आकि मरी गेलै।"
"मजकि बासमती रोॅ ई हाल?"
"मत पूछोॅ बाबूजी, कर्कट के गेला रोॅ बाद, साल भर तेॅ बसमतिया रोॅ घर-दुआर सें निकलवोॅ बन्द होय गेलै--नद्दी-बारी करबोॅ तेॅ छोड़ी दौ। जोॅर-जनानी की बात कहै छै, की सुनभौ। तोरा याद होतौं बाबूजी, नहियो हुएॅ, तबेॅ महमूदवा चार या पाँच साल के होतै।"
"के महमूदवा? वहेॅ इस्माइल रोॅ बेटा?"
"हों-हों बाबूजी, वहेॅ इस्माइल रोॅ बेटा, तबेॅ तेॅ यादे छौं। बम बैजनाथ, हम्में एक्को बात जों झूठ बोलतें रहौं बाबूजी. महमूदवा रोॅ लच्छन हमर्हो ठीक नै लागै, मजकि गाँव-जवार रोॅ बात छेलै, के की बोलेॅ। होना केॅ जे कहोॅ बाबूजी, घरवैय्या केॅ बुरा लगौ, नै लगौ, आन-आन केॅ बुरा ज़रूरे लगै--घरे-घर काना-फूसी तेॅ चलवे करै।"
"तेॅ तोरोॅ मतलब छै की।"
"बम बैजनाथ, जों हम्में झूठ बोलतें रहौं। विश्वास नै छौं तेॅ गामोॅ के बिन्देसरी पांडे, कैलू भगत, रामचन्नर मरड़, गोविन्द घोष--जेकरा सें चाहौ, पूछी ला। सब्भैं एक्के बात बतैथौं। ठिक्के कहावत छै कि तिरिया रोॅ चरित्तर आरो पुरुखोॅ के भाग--भगमानो नै जानै छै तेॅ आदमी की जानतै। यहेॅ बसमतिया जे कर्कट बिना चोइयाँ नोचलोॅ मछली सन लागै छेलै; महमूदवा साथें लटसट होत्हैं केन्होॅ हलफलाय उठली छेली--ई तेॅ हम्में आँखोॅ देखलोॅ बताय रहलोॅ छियौं बाबूजी. बसमतिया के फेनू सें नद्दी-बारी जाना शुरू होय गेलोॅ छेलै।"
"तेॅ की एकरी मांय एकरा नै रोकै छेलै?"
"माय की रोकतियै बाबूजी, जे आपन्हैं चरतें-फिरतें रहै, वैं बेटी केॅ भला की रोकतियै...नारी मरजाद केॅ ताखा पर राखी देलेॅ छेलै बाबूजी."
"तेॅ दोनों रोॅ व्याह कैन्हें नी करी दै छेलै?"
"अहा, वही कहाँ हुएॅ सकलै। माय जे कुछ सोचै छेलै, ओकरा सें तेॅ ऊ बाते छिनाय गेलै।"
"ऊ की?"
"तोंहे तेॅ जानवे करै छौ कि छट्ठू के खाय-पीयै के ठिकानाहे की छेलै। खींची-तीरी केॅ बसमतिया रोॅ जनम तांय तेॅ चललै, मतरकि ओकरोॅ बाद बसमतिया माय बसमतिया केॅ लेनें चचेरोॅ दियोर खखर्है कन पड़ली रहै छेलै। मजकि तोहें कहोॅ बाबूजी, ई कोय अच्छा काम भेलै! पेट रोॅ आगिन केकरोॅ पास नै होय छै...आरो एक दाफी शरम जेकरोॅ साथ छोड़ी दै छै, तबेॅ तेॅ जानबे करै छोॅ बाबूजी...खखरा गामे के पुलिस चौकी में रतजग्गी करै छेलै...अरे बाबूजी, चाम जरै छै तेॅ केकरा लुग नै दुर्गन्ध पहुँचै छै। धीरें-धीरें बसमतिया माय आरो खखरा के लटसट वाला दुर्गन्ध पुलिसोॅ के नाकी केॅ लागी गेलै। ओकरोॅ बाद तेॅ बसमतिया माय केॅ लेलेॅ दिन-रात खखरा केॅ फांड़ी पहुँचतेॅ के नै देखै... मतरकि जुआनियो की ओरदा पूरै तांय के होय छै बाबूजी, ओकर्हौ में दस ठो के होय केॅ--एक्के-दू साल में तेॅ बसमतिया माय गुलगुलैन नाँखी दिखावेॅ लागलै आरो जबेॅ ओकरोॅ मोल घटलै तेॅ बसमतिया केॅ महमूदवा के हाथें बेचै के बात सोचेॅ लागलै... नै मालूम, बसमतिया माय केॅ केकरा सें तेॅ ई पता चली गेलोॅ छेलै कि इनरकास्ट बीहा होला सें सरकारी पैसा साथें-साथें सरकारी नौकरियो मिलै छै। ...पेट जे नै करावेॅ। एक दिन वैं बसमतिया केॅ--की कहै छै ओकरा--कोर्ट मैरिज? वहा करावै लेली गाँमोॅ सें भोरे-भोर बाहर भेजी देलकै।"
' तबेॅ? "
"तबेॅ की। तबेॅ तेॅ बिन्डोवोॅ उठवे नी करलै बाबूजी, गामोॅ में। भोरे-भोर खैरावाली, डुमरीवाली आरो गोलहट्ठीवाली जे उधियैलै की मत पूछोॅ--सात पुस्त केॅ निनौन पुराय केॅ राखी देलकै। आखिर हम्मी पूछै छियौं बाबूजी, कैन्हें नी पुरैतियै--गाँव-जवार के मरजाद तेॅ सब्भे पर होय छै। होय छै कि नै बाबूजी?"
"मजकि बसमतिया रोॅ ई हाल?"
"वही तेॅ बताय लेॅ चाहै छियौं। बसमतिया केॅ लै केॅ जबेॅ महमूदवा गाँव सें चली देलकै, तबेॅ गाँमोॅ के भयंकर बिन्डोवोॅ उठलै--हिन्दू-मुसलमान रोॅ बिन्डोवोॅ--एक दिश हिन्दू पट्टी रोॅ भोला पासवान, जोगिन्दर जादव, रामकिसुन सिंह रोॅ भीड़ आरो दूसरोॅ दिश मौलाना साथें सब्भे मुसलमान पंचपट्टी वाला मैदानोॅ में जुटेॅ लागलौं। हमरोॅ करेजोॅ तेॅ लोहारोॅ के धौंकनी रं हुएॅ लागलौं। ऊ तेॅ ठीक टैम पर दरोगा-निसपिट्टर आवी गेलौं बाबूजी, दू दाफी हवा में फेरिंग करलकौं आरो बन्दूक के आवाज होना छेलै कि एक-एक करी केॅ दोनों पट्टी के लोग खिसकी गेलौं। मतरकि महीना भरी गामोॅ में डोॅर बनले रहलौं बाबूजी, नै हमरा सिनी हुन्नें जइयौं, नै मुसलमान टोला के कोय्यो हिन्नें आवौं।"
"मजकि ई बसमतिया...?"
"बसमतिये के बारे में बताय लेॅ जाय रहलोॅ छियौं...एकरोॅ लेली की-की नै होलै, मजकि सब बतैवोॅ मोश्किल बाबूजी! टोला-टोला में पुलिस घूमेॅ लागलौं--बसमतिया केॅ खोजै लेॅ। वसुदत्त सरपंचे मियां टोली केॅ चेतावनी दै देलेॅ छेलै--जों पाँच रोजोॅ में बसमतिया केॅ हाजिर नै करलोॅ गेलै तेॅ मियां पट्टी के सब गुंडागर्दी हेट करी देलोॅ जैतै। भला तोहीं बतावोॅ बाबूजी, यै में मियां पट्टी वाला के की दोख छेलै आरो जों हमरा सें साफ-साफ पूछोॅ तेॅ यै में खाली दोखी छै बसमतिया माय। यै में इस्माइल के की दोख? महमूदवो रोॅ की? दही बिल्ली रोॅ आगू राखवौ तेॅ चाटवे करतै--ऊ बिल्ली काली रहौक कि गोरी।"
"हों, तबेॅ की होलै?"
"होना की छेलै बाबूजी. गामोॅ में बसमतिया रहतियै, तबेॅ नी। मतरकि कानूनोॅ सें के बचेॅ पारलेॅ छै। दसो रोज बितलोॅ नै बितलोॅ होतै कि दरोगा साहबें पकड़िये तेॅ लेलकै महमूदवा केॅ। मुंगेरी के हौ कौन टोला कहावै छै--इखनी नाम भुलाय रहलोॅ छियौं--कहै छै, सौ योजन दूरो के चीज गिद्ध केॅ दिखाय पड़ै छै। नै जानौं, केना पुलिसोॅ केॅ ई खबर लागी गेलै कि महमूदवा बसमतिया केॅ लै केॅ मुंगेर भागी गेलोॅ छै--मानै लेॅ होथौं पुलिसोॅ केॅ, अजगुत बरेन राखै छै बाबूजी, केन्हौं न केन्हौं सच केॅ उगलवैय्ये लै छै, आरो होलै वही। हेनोॅ पेंच मारलकै कि... की कहै छै हुनका, जे मुसलमानोॅ के शादी-बीहा कराय छै, जे भी कहैतेॅ रहौ, हुनका सें एक-एक करी केॅ सब बात उगलवाय लेलकै। तबेॅ की छेलै। ...हेनो केॅ जे कहोॅ बाबूजी, बीहा जबेॅ होय्ये गेलोॅ छेलै तेॅ एत्तेॅ घिकवा-मंथन करला सें फायदे की छेलै।"
"से तेॅ ठीक छै। वहू में जबेॅ बसमतिये माय चाहै छेलै।"
"बसमतिया माय की चाहै छेलै आरो की नै, ई तोहें की जानवौ बाबूजी, ओकरोॅ तेॅ एक्के किंछा छेलै--कोय रकम सें सरकारी पैसा पावै के. मतरकि ओकरोॅ मनसुआ पर जेना पानी फिरी गेलै, तभिये तेॅ वहूँ ई बवंडर के विरोध नै करलकै। बलुक घूमी-घूमी केॅ टोला सें लै केॅ थाना तांय यहेॅ कहतेॅ फिरै कि इस्माइलैं जानी-बूझी केॅ हमरा धरमभ्रष्टोॅ करै लेली हमरी बेटी केॅ उड़वैलेॅ छै... हद होय गेलै... बाबूजी, पुलिसोॅ सें तेॅ लटसट छेवे करलै, तभिये तेॅ पुलिसवाल्हौं जी-जान एक करी देलकै। नै तेॅ हेेनोॅ इग्गी-दुग्गी परिवारोॅ लेली पुलिसोॅ केॅ की पड़लोॅ छै।"
"तेॅ तोहें बसमतिया के बारे में बताय रहलोॅ छेलैं।"
"कहै लेली बसमतिये पर खाली की, ई घटना सें जुड़लोॅ बहुत्ते पर बहुत कुछ कहलोॅ जावेॅ सकै छै, मजकि की होतै कही केॅ... कहल्हैं सें की होय जैतै। आबेॅ तेॅ बसमतियौ केॅ जिनगी में जे भोगना छै, भोगी रहलोॅ छै--देखवे करै छौ। होना केॅ जे कहोॅ, जों महमूदवा केॅ पुलिसें नै पकड़तियै... होना केॅ पकड़ियो केॅ कहाँ पकड़ेॅ पारलकै पुलिसें।"
"से केना?"
"अरे, की बतैय्यौं बाबूजी, महमूदवा के जग्घा में एकर्है खींची-तीरी केॅ थाना लानलोॅ गेलै। जोॅन वक्ती बसमतिया केॅ थाना लानलोॅ गेलै, की बतैय्यौं, देखैवाला के की भीड़ छेलै। लागै छेलै, थाना में मेला लागलोॅ रहेॅ। मौगी, मरद, बूढ़ोॅ-बुतरू के ठसाठस भीड़ में जबेॅ पुलिसें बसमतिया सें पूछना शुरू करलकै, तेॅ की कहियौं... मजकि वाह, बसमतियौं आपनोॅ नाम रबिया खातून छोड़ी केॅ आर नाम नै बतैलकै बाबूजी. पुलिसें जबेॅ माय-बाप के नाम पूछै तेॅ यहेॅ कहै, 'हमरोॅ कोय माय-बाप नै।' ... जहलोॅ में राखलोॅ गेलै, मजकि बसमतिया पर तेॅ जेना भूत-नाम्ही गेलोॅ रहेॅ। बस एक्के बात बोलै, ' हमरोॅ कोय माय-बाप नै।"
"तबेॅ?"
"तबेॅ की? डागडरी जाँच भेलै। बसमतिया केॅ कै दिनोॅ तांय कोर्ट-होस्पीटल लै गेला बादें, नै जानौं डागडर आरो पुलिसें मिली-जुली की गिटपिट करलकै आरो बसमतिया केॅ छोड़ी देलकै।"
"ई कैन्हें कि ससुराल जाय के बदला यहाँ हटिया में तरकारी बेची रहलोॅ छै?"
"नै तेॅ आरो की करतै बाबूजी."
"कैन्हें, महमूदवां नै लै गेलै?"
"आय बाबूजी, तोरा तेॅ ई बतैये लेॅ भूली गेलियौं कि जोॅन वक्ती पुलिसें बसमतिया केॅ मुंगेरी में पकड़लकै, तबेॅ तेॅ महमूदवा साथे छेलै, मजकि, थाना पर लोगें नै देखलकै। की कहियौं बाबूजी, दस आदमी, दस रं के बात। कोय कुछ कहै छै, कोय कुछ। तबेॅ तेॅ बिरजू मिसिर हकाय-हकाय केॅ कहै--पुलिसवालां पैसा लै केॅ महमूदवा केॅ छोड़ी देलेॅ छै, मजकि नसीम मियां तेॅ यहेॅ कहलेॅ फुरै कि बसमतियै मांय पुलिसोॅ केॅ पैसा-कौड़ी दै केॅ महमूदवा केॅ भगवाय देलकै--रहस खुली जाय के डरोॅ सें। आबेॅ के की कहेॅ सकै छै। मजकि एतना बात तेॅ ज़रूरे छै कि तबेॅ सें महमूदवां जे गाँव छोड़लकै, तेॅ घूमी केॅ ओकरोॅ छायाहो यहाँ लौटी केॅ नै ऐलै।"
"मजकि बसमतिया रोॅ ससुरालवाला?"
"तहूँ की बात करै छौ बाबूजी. बसमतिया सें मतलब छेलै तेॅ महमूदवा केॅ। घरवाला केॅ एकरा सें की लेना-देना छेलै। बलुक पुलिस-उलिस के चक्कर देखी केॅ तेॅ घरवालां साफ-साफ कही देलकै कि 'हमरासिनी कोय बसमतिया आकि रबिया खातून केॅ नै जानै छियै; जों महमूदवा गलती करलेॅ छै तेॅ ओकरा मारोॅ-डँगावोॅ।' ...मजकि सच पूछोॅ तेॅ बाबूजी, भीतरिया बात कुछु आरो रहै। इस्माइल के साफ-साफ कहना छेलै कि जे जनानी जहल काटी केॅ ऐलोॅ छै, ओकरोॅ अखण्डोॅ होय के की भरोसोॅ। यही लेली बसमतिया केॅ इस्माइलें आपनोॅ द्वारी पर चढ़हौ लेॅ नै देलकै।"
"ई तेॅ बसमतिया साथें बड़ा अन्याय भेलै।"
"हों, बड़का भारी अन्याय, आरो की, यहू पर बसमतियां आपना केॅ रबिया खातून कहवोॅ नै छोड़लकै। अइयो कहै छै... मजकि कहौ आपना केॅ भले कुछ, काम तेॅ आबेॅ करै छै आपनोॅ माय्ये वाला। की करतियै... सास-ससुर छोड़ी देलकै, माय के देहरी लौटनैं नै छेलै...नौड़ियो के काम पर तेॅ हिन्दू राखै लेॅ तैयार नै छेलै, तेॅ मियां पट्टी रोॅ लोग की... जबेॅ एकरोॅ वास्तें कोय्यो नै रहलै, तेॅ सबकेॅ ही यैं आपनोॅ बनाय लेलकै... पेट की नै करावै... आबेॅ तेॅ देखवे करै छौ बाबूजी, कभी-कभी सब्जी बेचलकौं आरो कभियो आपनां केॅ... नजर घुमाय केॅ देखिये लौ नी।"
गर्वी दयालें कुछ यै ढंगोॅ सें हमरा कहलकै कि हमरोॅ नजर एकबारगिये बसमतिया दिश पलटी गेलै। देखलियै--तरकारी भरलोॅ डलिया केॅ आपनोॅ माथा पर उठैनें बसमतिया एक दिश चली देनें छेलै आरो अधवैसू उमरी के मरद, जे कुछुवे देर पहिलंे सब्जी रोॅ मोल-तोल करै छेलै, आबेॅ कुत्ता नाँखी बसमतिया केॅ पिछुवैलेॅ जाय रहलोॅ छेलै।
"सुरेनमा चोट्टा छेकौं... आक्-थू, हेनोॅ सब आदमी केॅ तेॅ कमर सें काटी केॅ अलगाय देना चाही।" गर्वी दयाल के टनटनैलोॅ आवाज तेज हुएॅ लागलोॅ छेलै। हमरा लागलै, हमरोॅ सीना के खून एकबारगिये बलबलाय केॅ बाहर निकली ऐतै आरो यहू कि बसमतिया रोॅ सौंसे देह खूनोॅ सें लथपथ हुएॅ लागलोॅ छै।