एक सुपरहिट सनसनीखेज सामग्री / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 23 फरवरी 2013
फरहान अख्तर की 'भाग मिल्खा भाग' प्रदर्शन के लिए तैयार की जा रही है और प्रियंका चोपड़ा बॉक्सर 'मैरीकॉम' के जीवन से प्रेरित फिल्म की शूटिंग शुरू करने जा रही हैं। माधुरी दीक्षित नेने की गुलाबी गैंग से प्रेरित फिल्म बन रही है। वॉक वॉटर मीडिया भी ध्यानचंद पर बायोपिक की कागजी तैयारी में लगे हैं। अनुराग बसु की किशोर कुमार प्रेरित फिल्म के लिए रणबीर कपूर २०१४ में समय देंगे। सारांश यह कि जीवन चरित पे्ररित फिल्मों पर कुछ निर्माता फोकस कर रहे हैं। महात्मा गांधी, सरदार पटेल, सुभाषचंद्र बोस और बाबा साहेब आंबेडकर के जीवन से प्रेरित फिल्में बन चुकी हैं। इस दौर में महेश भट्ट जैसा प्रतिभाशाली व्यक्ति आचार्य रजनीश के जीवन-चरित से प्रेरित फिल्म बना सकता है। उनमें योग्यता है। आज उनके पास साधन भी हैं और सबसे बड़ी बात यह है कि उन्होंने आचार्य रजनीश को नजदीक से जाना है। विनोद खन्ना तो शिखर के निकट होते हुए भी आचार्य रजनीश के साथ अमेरिका चले गए थे और कुछ वर्ष पश्चात लौटने पर उनकी स्टारडम जा चुकी थी। वे ज्ञान लेकर आ सके या नहीं, ये तो वे भी स्वयं आज बताने में असमर्थ हैं।
आचार्य रजनीश ११ दिसंबर १९३१ को जबलपुर के निकट किसी स्थान पर जन्मे। उनका नाम था चंद्रमोहन जैन। जबलपुर में २१ मार्च १९५३ को मौलश्री वृक्ष के नीचे बैठे हुए उन्हें 'दिव्य ज्ञान' प्राप्त हुआ। सागर विश्वविद्यालय से उन्होंने दर्शन शास्त्र में एमए किया था। कुछ वर्ष अध्ययन-अध्यापन के पश्चात १९६२ में उन्होंने पहला ध्यान केंद्र प्रारंभ किया और १९६८ में 'सेक्स से समाधि तक' के प्रकाशन के बाद उन्हें सेक्स गुरु के नाम से भी पुकारा जाने लगा, परंतु उनके डायनेमिक मेडिटेशन ने युवा वर्ग को उनकी ओर आकर्षित किया और लोकप्रियता की अभूतपूर्व लहर पर सवार उन्होंने स्वयं को १९७१ में भगवान रजनीश मान लिया और उनके शिष्यों के मन में इस विषय को लेकर कभी शंका नहीं थी। प्राय: देखा गया है कि किसी भी क्षेत्र में किसी भी व्यक्ति का परम भक्त शिष्य होते ही अपनी स्वतंत्र विचार-शक्ति को तिलांजलि दे देता है और यह बात लगभग वैसी ही है, जैसे हम नाटक या सिनेमा में देखते समय अपने अविश्वास की क्षमता को त्याग देते हैं, अन्यथा आप नाटक या सिनेमा में दिखाई घटनाओं पर यकीन कैसे कर सकते हैं। दरअसल, पूरी दुनिया को ही एक विराट जलसाघर में बदलने पर ही आपका जादू सिर चढ़कर बोलता है, अत: इस खेल में व्यक्ति की हैसियत उसके थिएटर के आकार से आंकी जाती है। अभी बाबा रामदेव जिस प्राइमरी कक्षा में हैं, उस विराट संस्था के आदि गुरु रहे हैं आचार्य रजनीश। दरअसल, 'बाबाडम' पर शोध करके एक ग्रंथ रचा जा सकता है, परंतु प्रकाशन के उपरांत अनेक विवाद खड़े हो सकते हैं, क्योंकि सत्य को साधने के अतिरिक्त सभी चीजों की संपूर्ण स्वतंत्रता दी गई है। हमें अपनी जंजीरों की लंबाई तक ही सैर-सपाटा करना चाहिए।
बहरहाल, आचार्य रजनीश के स्वतंत्र विचार और पाखंड के खिलाफ लगातार बोलने के कारण विलास तूपे नामक एक धार्मिक संप्रदाय के अंधे भक्त ने आचार्य की हत्या का असफल प्रयास २२ मई १९८० को किया। १० अप्रैल १९८१ से साढ़े तीन वर्ष तक आमसभाओं में प्रवचन नहीं देने का संकल्प उन्होंने किया। प्राय: इस क्षेत्र मेें मौन व्रत बड़ा सुविधाजनक है और लोकप्रियता की अग्नि में घी का काम करता है। अन्नाजी भी इसे आजमा चुके हैं। आचार्य रजनीश जून १९८१ में अपने शिष्यों और सारे तामझाम के साथ अमेरिका पहुंचे, जहां ६४ हजार एकड़ पर रजनीशपुरम की स्थापना हुई। यह अपने आप में एक नगर रियासत थी, जिसकी अपनी पुलिस, अपना न्यायालय और अपना चिकित्सालय भी था। यह धरती पर स्वर्ग की स्थापना की तरह प्रचारित हुआ, परंतु १९८५ में ही अमेरिकन सरकार ने नशीले पदार्थ और अन्य आरोपों की जांच पड़ताल शुरू की। पहली बार एक 'स्वर्ग' की जांच-पड़ताल मानवीय कानूनों के तहत हुई और आचार्य रजनीश २८ अक्टूबर १९८५ को जर्मनी में गिरफ्तार कर लिए गए, परंतु जाने किस तरह के दबाव में उन्हें मुक्त भी कर दिया गया और इक्कीस देशों द्वारा उने प्रवेश को रोके जाने के बाद २९ जुलाई १९८६ को वे भारत आ गए - बाबाडम के अनंत देश में उनका स्वागत हुआ। १९ जनवरी १९९० को वे देह त्याग कर अनंत में विलीन हुए। उनकी समाधि पर लिखा है कि जो कभी जन्मा ही नहीं, कभी मरा भी नहीं, केवल यात्री के तौर पर इस लोक में आया था। भगवान मरते नहीं, मार दिए जाते हैं। चाहे वे कृष्ण हों या क्राइस्ट। बहरहाल, इसमें कोई संदेह ही नहीं कि आचार्य रजनीश अत्यंत विद्वान और विलक्षण प्रतिभा के धनी थे और उन्होंने तमाम धर्मों की तर्कसम्मत परिभाषा देने का महान प्रयास किया। धर्म के अतिरिक्त आप कबीर और मीरा को भी उनकी व्याख्या पढऩे के बाद बेहतर समझ सकते हैं। उनकी अंतरंग शिष्या मां आनंदशीला ने हाल ही में 'डोन्ट किल हिम' नामक किताब लिखी है, परंतु अत्यंत नजदीक रहा व्यक्ति तटस्थ नहीं हो पाता, महेश भट्ट हो सकते हैं। आज भी उनके व्याख्यानों पर आधारित किताबें लाखों की संख्या में बिकती हैं। आज भी अनेक आहत आत्माओं में उनकी वाणी गूंजती है। उनकी जीवन-चरित प्रेरित फिल्म उनकी मृत्यु से शुरू की जा सकती है, जिसे उनके कुछ भक्त उनकी हत्या मानते हैं। कई परम अनुयायी सत्य की खोज में निकल पड़े। कई बार यह शंका होती है कि उनका स्वयं को भगवान घोषित करना केवल वैदिक संस्कृति के इस सनातन संस्कार से प्रेरित है कि स्वयं को जान लेना ही ईश्वर को जान लेना है - अहम् ब्रह्मास्मि।