एक ही धरातल / प्रमोद यादव
बहुत ही ‘रिजर्व नेचर’ का खुबसूरत, सांवला-सा लड़का था विक्रम. शायद मैं ही उसका एकमात्र दोस्त था जिसे वह अपने दिल की एक-एक बात बेझिझक बताता..औरों से केवल ‘हेलो-हाय’ तक सीमित रहता. .तीन-चार साल तक उससे दोस्ती रही लेकिन मैंने कभी यह जानने की जरुरत न समझी कि उसका परिवार कहाँ है...कहाँ का रहनेवाला है...जब तक यहाँ रहा-नितांत अकेला रहा. मेरा ही घर उसका अपना घर रहा...मेरा ही परिवार, उसका अपना परिवार रहा.
वे कालेज के दिन थे. बहुत ही भावुक किस्म का लड़का था विक्रम. कालेज की एक लड़की निशा उससे बहुत प्रभावित थी. निशा एक अमीर घराने से ताल्लुक रखती थी.अक्सर विक्रम अपने और निशा के विषय में बातें सुनाता शुरू-शुरू के दिनों ही उसे आगाह किया कि निशा से ज्यादा मेलजोल रखना उचित नहीं. कई बार उसे सलाह भी दी कि वापस कदम खींच लो लेकिन वह बिना कोई परवाह किये प्यार की मंजिलें नापता रहा...कदम बढाता रहा.निशा से हुई सारी बातें रोज मुझे सविस्तार सुनाता...कभी उसके ख़त दिखाता ..कभी कोई सलाह मांगता..कभी तो मुझसे ही ख़त लिखवाता..दोनों का प्यार इतना गुप-चुप था कि सिवा मेरे किसी को भी खबर न थी.कई बार मैंने इस प्यार की परिणिति के विषय में सोचा...उसे समझाया भी ..तब हर बार वह भोलेपन से जवाब देता-‘ मैं निशा को अपनी दुल्हन बनाऊंगा..अपनी रानी बनाऊंगा ‘
न मालूम क्यों मुझे अक्सर डर लगता...कभी लगता कि निशा किसी दिन उसके सपनों को रौंद चली जाएगी..लेकिन मैं चुप रहता...अपने दिल की बात अपने तक ही रखता..क्योंकि जानता था कि मेरी बातों का उस पर कोई असर नहीं होगा. दो साल तक प्यार-मुहब्बत का यह गुप-चुप सिलसिला चला और दुर्भाग्य यह की मैं चाहकर भी इस दौरान निशा से कभी नहीं मिल सका. कालेज में उसे रोज देखता लेकिन उससे बातें कभी न हो सकी. कई बार विक्रम ने मिलवाने की कोशिश की ...कार्यक्रम बने..पर कभी न मिल सके. हर वक्त कुछ न कुछ प्रतिकूल स्थितियां आडे आ जाती. विक्रम उसके प्यार में आकंठ डूबा था. निशा के विषय इतनी बातें सुन गया था कि स्वाभाविक ही उससे मिलने को दिल करता लेकिन वह घडी कभी न आई. और फिर एक दिन......
वह मनहूस दिन तो कभी भुलाये नहीं भूलता . उस दिन दोपहर बारह बजे कालेज पहुंचा और वहां जो चर्चा सुनी तो अवाक रह गया. पूरा कालेज छान मारा..विक्रम कहीं न मिला. तुरंत उलटे पाँव दौड़कर उसके क्वार्टर गया..वहां ताला लटका दिखा ..मकान -मालकिन से पूछा तो मालूम हुआ कि सुबह-सुबह एकाएक ही सारा सामान ले मकान खाली कर चला गया. मैं शाम-रात तक उसके लौटने का इंतज़ार करता रहा पर वह नहीं लौटा..दुसरे दिन भी नहीं लौटा. फिर सप्ताह बीते..महीने बीते..और साल बीत गया...विक्रम नहीं लौटा..कभी नहीं लौटा.
निशा के बारे में सुनकर मुझे भी सदमा पहुंचा...कभी सोचा तक न था कि निशा विक्रम के साथ इस कदर धोखा करेगी. निशा कालेज के एक प्राध्यापक के साथ कोर्ट मैरिज कर ली थी .इस हादसे से मेरा मन लड़कियों के प्रति नफ़रत से भर गया. सपनों के टूटने की बात से तो मैं पहले ही आतंकित था लेकिन कल्पना तक न थी कि निशा ऐसे रुख अपनाएगी.
विक्रम के बारे में सोच-सोचकर मन उदास हो जाता.उसकी भावुकता मैं जानता था. डर था कि वह कहीं कुछ कर न बैठे. बार-बार उसकी बेचारगी पर तरस आता. कई-कई दिनों तक मैं उसे इधर-उधर ढूंढ़ता रहा लेकिन वह कहीं न मिला. मैं जान गया था, दुबारा अब वह नहीं लौटेगा..और नहीं लौटने का कारण भी ‘मैं’ ही था. सारी दुनिया से वह आँखें मिला लेता..लेकिन मुझसे....मेरी नज़रों से बचने ही वह शहर छोड़ गया था. मैंने बहुत तलाश की पर वह कहीं न मिला.
फिर अचानक चार साल बाद इंदौर से उसका एक खत मिला.लिफ़ाफ़े पर प्रेषक के स्थान पर ‘विक्की’ का नाम देख मैं खुशी से उछल पड़ा.लेकिन खत पढकर फिर निराशा हुई.वह अपनी भावुकता छोड़ नहीं पाया था.उसी भावुकता ने उसे पागल सा बना दिया था.चार साल पहले की बातों को लेकर वह जी रहा था.उसने लिखा था-‘ जो जख्म लेकर चार साल पहले मैं तुम्हारे शहर से चला था...वह जख्म आज कुछ भरा है..एक धनवान की बेटी जो पिछले दो सालों से यहाँ मुझसे बे-इन्तहां मुहब्बत करती थी ..मुझसे शादी के सपने देखती थी..उसे आज मैंने ‘क्लाइमेक्स’ में ठोकर मार दी..सीमा को ठुकराकर एक अजीब सी सुख की अनुभूति हुई..वह बिलखती रही..रोती रही..और मैं मन ही मन कहकहे लगाता रहा.. मेरी मानसिकता समझ रहे हो न ? तुम्हारी कमी आज बहुत खल रही है दोस्त...अपनी खुशी अकेले सेलिब्रेट नहीं कर पा रहा हूँ..खत पाते ही पहुँचो..तुम्हारे इंतज़ार में- तुम्हारा ‘विक्की’
खत मिलाने के दो दिनों बाद उसके दिए पते पर इंदौर पहुंचा तो उसके घर पर ताला पड़ा था.मकान-मालिक से पूछा तो उसने नाम पूछ कर एक पत्र थमा दिया.पत्र मेरे ही नाम लिखा गया था- ‘ अमित, लगता है..पूरी जिंदगी सदमों और भाग-दौड़ में ही कट जायेगी...कल तक जिसे मैं अपनी जिंदगी की सबसे बड़ी जीत समझता था-वही आज मेरी सबसे बड़ी हार साबित हुई..हाँ अमित..जिस लड़की के बारे में मैंने तुमसे जिक्र किया था..जिसे मैंने क्लाइमेक्स’ में ठोकर मार दी थी..और जिसे मैंने खूब अपमानित किया.. उसी सीमा से मैं कहीं न कहीं अन्दर से सचमुच कुछ जुड़ सा गया था..लेकिन निशा का ख्याल आते ही मुझ पर एक पागलपन सवार हो जाता था...जानते हो जिस दिन उस बेकुसूर और मासूम सीमा को मैंने अपमानित कर ठोकर मारी - उस दिन क्या हुआ ? वह ख़ुदकुशी के इरादे से ट्रेन के सामने कूद गयी..ईश्वर का लाख-लाख शुक्र कि बच तो गयी पर एक पैर गँवा बैठी. सुनकर मैं पागल हो गया दोस्त.. मेरे अंदर का कोई हिस्सा उससे सचमुच प्यार करने लगा था..मैं दौड़ा-दौड़ा हास्पिटल पहुंचा..वहाँ उसके परिवार के लोगों की भारी भीड़ जमा थी. वहां कोई मुझे जानता तक नहीं था..लेकिन मेरी भावुकता और मज़बूरी कुछ ऐसी थी कि चाहकर भी अपने को रोक न सका.शायद सबकी उपस्थिति में ही मैं सीमा के पास चला जाता अगर डाक्टर शर्मा न मिलते..
डाक्टर शर्मा मेरे परिचित थे...उन्हें मामला समझते देर न लगी...उन्होंने ही मुझे सीमा से पहली बार मिलवाया था तब तक सीमा होश में आ चुकी थी.मैंने उससे बातें करने की कोशिश की ..उससे हाथ जोड़ माफ़ी मांगी..उससे शादी की मंशा जाहिर की लेकिन वह सिर्फ रोती रही..रोती रही...कुछ न बोली..मैंने सांत्वना देने उसे छूना चाहा तो वह चीख सी पड़ी- ‘ चले जाओ यहाँ से...चले जाओ..मुझे तुम्हारी कोई हमदर्दी नहीं चाहिए..चले जाओ...दोबारा कभी मेरी जिंदगी में न आना..चले जाओ..’
मैं जा रहा हूँ अमित...अब कभी नहीं लौटूंगा..लोग कहते हैं-वक्त हर जख्म को भर देता है...बिलकुल गलत कहते हैं दोस्त...जख्म कभी नहीं भरता...कभी नहीं...मेरा पहले भी कोई न था..आज भी कोई नहीं है..सिवा तुम्हारे जिसके सामने मैं अपनी बात कह सकूँ...हाँ दोस्त..हो सके तो तुम भी अब मेरी यादों को दफना देना...बस...तुम्हारा-विक्की.’
इंदौर से लौटने के दूसरे दिन सबेरे ही ‘नईदुनिया’ में ‘ युवक द्वारा आत्महत्या ‘शीर्षक का समाचार पढ़ मैं स्तब्ध रह गया.लिखा था- ‘ स्थानीय संगम होटल के कमरा नंबर-27 में एक नवयुवक की लाश पाई गयी जो एक दिन पूर्व ही यहाँ ठहरा था.पुलिस सूत्रों के अनुसार इसे आत्महत्या का मामला बताया गया. आत्महत्या का कारण ज्ञात नहीं हो सका.होटल के रजिस्टर में युवक का नाम विक्रम शर्मा दर्ज है ’
मैं आंसुओं के सैलाब से अभी उबरा भी न था की कि ठीक इसी समाचार के नीचे छपे समाचार को पढ़ आश्चर्यचकित रह गया. ‘ नवयुवती मृत ‘शीर्षक से छपा था- ‘ पिछले दिनों एक प्रसिद्ध व्यवसायी की लड़की जो आत्महत्या के प्रयास में ट्रेन के नीचे एक पैर गवां बैठी थी, खून के अधिक बह जाने के कारण हास्पिटल में चल बसी. विश्वस्त सूत्रों ने इसे असफल प्रेम का मामला बताया. युवती का नाम सीमा है.’
समाचार पढ़ आँखों के सामने अँधेरा छा गया.सोचने लगा-आदमी की नियति भी क्या अजीब होती है...जिंदगी के विभिन्न पृष्ठों पर जुदा-जुदा जीना..और मरना ..एक ही धरातल पर..एक ही पृष्ठ पर..ठीक इस अखबार के पृष्ठ की तरह...करीब ..और बेहद करीब...