एजेण्डा / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’
"आप इस देश की नींव हैं। नींव मज़बूत होगी तो भवन मज़बूत होगा। भवन की कई-कई मंजिलें मज़बूती से टिकी रहेंगी-" पहले अफ़सर ने रूमाल फेरकर जबड़ों से निकला थूक पोंछा। सबने अपने कंधों की तरफ़ गर्व से देखा, कई-कई मंज़िलों के बोझ से दबे कंधों की तरफ़।
अब दूसरा अफ़सर खड़ा हुआ, "आप हमारे समाज की रीढ़ है। रीढ़ मज़बूत नहीं होगी, तो समाज धराशायी हो जाएगा।" सबने तुरंत अपनी-अपनी रीढ़ टटोली। रीढ़ नदारद थी। गर्व से उनके चेहरे तन गए-समाज की सेवा करते-करते उनकी रीढ़ की हड्डी ही घिस गईं। स्टेज पर बैठे अफ़सरों की तरफ़ ध्यान गया ... सब झुककर बैठे हुए थे। लगता है उनकी भी रीढ़ घिस गई है।
"उपस्थित बुद्धिजीवी वर्ग!"-तीसरे बड़े अफ़सर ने कुछ सोचते हुए कहा, "हाँ, तो मैं क्या कह रहा था," उसने कनपटी पर हाथ फेरा, "आप समाज के पीड़ित वर्ग पर विशेष ध्यान दीजिए।"
पंडाल में सन्नाटा छा गया। बुद्धिजीवी वर्ग! यह कौन-सा वर्ग है? सब सोच में पड़ गए. दिमाग़ पर ज़ोर दिया। कुछ याद नहीं आया। सिर हवा-भरे गुब्बारे जैसा लगा। इसमें तो कुछ भी नहीं बचा। उन्होंने गर्व से एक दूसरे की ओर देखा समाज हित में योजनाएँ बनाते-बनाते सारी बुद्धि खर्च हो भी गई तो क्या।
अफ़सर बारी-बारी से कुछ न कुछ बोलते जा रहे थे। लगता था सब लोग बड़े ध्यान से सुन रहे हैं। घंटों बैठे रहने पर भी न किसी को प्यास लगी, न चाय की ज़रूरत महसूस हुई, न किसी प्रकार की हाज़त।
बैठक ख़त्म हो गई. सब एक दूसरे से पूछ रहे थे "आज की बैठक का एजेंडा क्या था?"
भोजन का समय हो गया। साहब ने पंडाल की तरफ़ उँगली से चारों दिशाओं में इशारा किया। चार लोग उठकर पास आ गए। फिर हाथ से इशारा किया, पाँचवाँ दौड़ता हुआ पास में आया 'सर'
"इस भीड़ को भोजन के लिए हाल में हाँककर लेते जाओ., इधर कोई न आ पाए।" साहब ने तनकर खड़ा होने की व्यर्थ कोशिश की।
पाँचवाँ भीड़ को लेकर हाल की तरफ़ चला गया।
"तुम लोग हमारे साथ चलो।" साहब ने आदेश दिया।
चारों लोग अफ़सरों के पीछे-पीछे सुसज्जित हाल में चले गए.
चारों का ध्यान सैंटर वाले सोफे की तरफ़ गया,। वहाँ चीफ़ साहब बैठे साफ्ट ड्रिंक पी रहे थे। साहब ने चीफ़ साहब से उनका परिचय कराया, "ये बहुत काम के आदमी हैं। बाढ़, सूखा, भूकंप आदि जब भी कोई त्रासदी आती है; ये बहुत काम आते हैं।"
चीफ़ साहब के चेहरे पर कोई भाव नहीं आया।
"चलिए भोजन कर लीजिए।" उन्होंने चीफ़ साहब से कहा "हर प्रकार के नानवेज का इंतज़ाम है।"
"नानसेंस" चीफ़ साहब गुर्राए, "मैं परहेज़ी खाना लेता हूँ। किसी ने बताया नहीं आपको?"
"सारी सर"-छोटा अफ़सर मिनमिनाया "उसका भी इंतज़ाम है, सर! आप सामने वाले रूम में चलिए।"
वहाँ पहुँचकर चारों को साहब ने इशारे से बुलाया। धीरे से बोले, "निकालो।"
धीरे से चारों ने बड़े नोटों की एक-एक गड्डी साहब को दे दी। साहब ने एक गड्डी अपनी जेब में रख ली तथा बाकी तीनों चीफ़ साहब की जेबों में धकेल दीं।
चीफ़ साहब इस सबसे निर्विकार साफ्ट ड्रिंक की चुश्कियाँ लेते रहे, फिर बोले, "जाने से पहले इन्हें अगली बैठक के एजेंडे के बारे में बता दीजिएगा।"
(18-04-2005)