एम्नेशिया, एनेस्थेसिया और गुमशुदा याददाश्त / जयप्रकाश चौकसे

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एम्नेशिया, एनेस्थेसिया और गुमशुदा याददाश्त
प्रकाशन तिथि : 19 अक्तूबर 2019


टीनू आनंद लंबे समय से सक्रिय हैं। उन्होंने फिल्में बनाना छोड़ दिया है परंतु अभिनय जारी रखा है। यहां तक कि विज्ञापन फिल्मों में भी वे नज़र आ आते हैं। उन्होंने अपना कॅरिअर फिल्म निर्देशन से प्रारंभ किया था। उनके पिता इंदरराज आनंद ने पटकथाएं लिखी हैं, संवाद लिखे हैं। इंदरराज आनंद का विवाह पृथ्वीराज कपूर की रिश्ते की बहन के साथ हुआ था। टीनू के भाई बिट्‌टी आनंद ऋषि कपूर के सहपाठी और निकटतम मित्र रहे हैं। इंदरराज आनंद की सिफारिश पर टीनू आनंद सत्यजीत राय के सहायक निर्देशक नियुक्त हुए। उन दिनों अमिताभ बच्चन कोलकाता में ही नौकरी कर रहे थे। एक दिन टीनू आनंद ने अमिताभ बच्चन को शूटिंग देखने आए लोगों की भीड़ में देखा। उन्होंने अमिताभ बच्चन को शूटिंग देखने की सुविधा प्रदान की। इस छोटे से उपकार के पुरस्कार स्वरूप कुछ वर्षों बाद अमिताभ बच्चन ने अपनी निर्माण संस्था में बनने वाली फिल्म 'मेजर साहब' के निर्देशन का उत्तरदायित्व टीनू आनंद को दिया। 'मेजर साहब' अमेरिकी फिल्म 'ए जेंटलमैन एंड एन ऑफिसर' से प्रेरित थी। फिल्म एक अश्वेत कैडेट और गोरे अमेरिकी के व्यवहार को प्रदर्शित करती है। इस तरह के रिश्ते को भारतीय संदर्भ में प्रस्तुत करने के लिए अफसर को ब्राह्मण और कैडेट को शूद्र की तरह प्रस्तुत किया जाना चाहिए था! इसी तरह अबरार अल्वी ने 'फिडलर ऑन द रूफ' के भारतीयकरण में जातीय समीकरण को नज़रअंदाज कर दिया था। फिडलर में यहूदी पिता की सात सुंदर बेटियां हैं और वह क्रिश्चियन बहुल क्षेत्र में रहता है। तमाम युवा उन सुंदर कन्याओं के दीवाने हैं। इसके भारतीयकरण में भी शूद्र की सात सुंदर बेटियां हैं और वह ब्राह्मण बहुत क्षेत्र में रहता है। अबरार अल्वी की इस कथा पर फिल्म पूरी नहीं हो पाई।

बहरहाल, टीनू आनंद को निर्देशन का पहला अवसर भाई बिट्‌टू आनंद ने दिया और अमिताभ बच्चन अभिनीत 'कालिया' सफल फिल्म रही। कोलकाता में सत्यजीत राय की शूटिंग से शुरू हुई अमिताभ बच्चन और टीनू की नज़दीकी 'कालिया' में एक मुकाम पर पहुंची। 'मेजर साहब' बहुत बाद की फिल्म है। ज्ञातव्य है कि बोफोर्स विवाद के दु:खभरे दिनों में अमिताभ बच्चन आधी रात के बाद अपनी कार में टीनू आनंद को बैठाकर अलसभोर तक शहर का भ्रमण करते थे। वे दोनों इस यात्रा में एक शब्द भी नहीं बोलते थे। खामोशी भी अभिव्यक्ति का एक माध्यम है। अबोला या अनबोला दसों दिशाओं में गूंजता है। लंदन की अदालत ने अमिताभ बच्चन को बोफोर्स घपले में निर्दोष पाया। यह बात विस्मृत कर दी गई कि बोफोर्स गन ही कारगिल युद्ध में काम आई थी। बोफोर्स गन के कमीशन के एवज में लिट्‌टे को शस्त्र दिए गए थे। फिल्म 'मद्रास कैफे' में इसका संकेत है।

टीनू आनंद ने अमिताभ बच्चन अभिनीत 'अग्निपथ' में चरित्र भूमिका अभिनीत की थी। उन्होंने राजकुमार संतोषी की 'लज्जा' में भी एक लम्पट महाजन की भूमिका अभिनीत की थी। 'लज्जा' में सारे नारी पात्रों के नाम सीता के अन्य नामों से प्रेरित थे जैसे वैदेही, मैथिली इत्यादि। विस्तार के कारण फिल्म का संकेत गुम हो गया।

टीनू आनंद ने अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म 'शिनाख्त' की घोषणा की थी परंतु फिल्म पूरी नहीं हो पाई। यह फिल्म 'बोर्न आइडेंटिटी' नामक उपन्यास से प्रेरित थी। उपन्यास का कथा सार यूं था कि समुद्रतट पर बसे कस्बे में लहरें एक घायल व्यक्ति को किनारे पर पटककर चली गईं। उस कस्बे में एक शराबी सर्जन रहता है, जिसका लाइसेन्स रद्द किया जा चुका है। कस्बे के लोग घायल व्यक्ति को उसके पास लाते हैं। सर्जन गोली निकाल देता है। उसके पास एनेस्थेशिया नहीं था, अत: वह जख्म पर ढेर-सी शराब डालता है। मरीज के गले में भी शराब उड़ेलता है। गोली निकालते समय उसके हाथ मांसपेशियों में दबी प्लास्टिक की एक पर्ची निकल आती है, जिसमें एक अंक लिखा हुआ है। मरीज को होश आता है परंतु वह अपनी याददाश्त खो चुका है। अत: उस नंबर की मदद से ही अपनी पहचान खोजने का एकमात्र साधन उसे उपलब्ध है। क्या यह नंबर किसी स्विस बैंक के खाते का है? बहरहाल, पूरा उपन्यास सही पहचान प्राप्त करने की जद्दोजहद है। उस दौर में नागरिकता का रजिस्टर भी नहीं था कि उससे कुछ सहायता प्राप्त होती। याददाश्त खो जाना त्रासद है परंतु कभी-कभी याददाश्त खो जाना ही एक एनेस्थेशिया की तरह उपयोगी सिद्ध हो सकता है। याद आता है कि विचारक सईद मिर्जा ने किताब लिखी है 'मेमोरी इन टाइम्स ऑफ एम्नेशिया'।