एवज / पद्मजा शर्मा
राम जन्म भूमि और बाबरी मस्जिद जमीन को लेकर जिस दिन कोर्ट का निर्णय आना था। उस दिन मालिश वाली सलमा घर जाने की हड़बड़ी में थी। कह रही थी शहर में दंगा होने वाला है।
मेरी सहयोगिनी भंवरी देवी ने हड़बड़ी में कहा-'भाभीजी, आज मैं तीन बजे घर चली जाऊंगी। सुना है चार बजे बाद शहर में दंगा होने वाला है।'
मुझे आश्चर्य हुआ भंवरी से पूछा तुम्हें किसने बताया? '
रहस्यपूर्ण स्वर में उसने जवाब दिया 'हमारी बस्ती में रात को कई लौंडों के साथ एक नेता आया था, वही कहकर गया था। सब जगह यही चर्चा है। आप किस दुनिया में रहती है? सिटी बसें बंद हो जाएंगी। जो जहाँ होगा वहीं रह जाएगा और सुनो भाभीजी, कल का भरोसा मत करना। आऊँ न आऊँ। माहौल पर ही टिकी है सारी बात।'
मैंने उसे समझाया-'लोग यू ही बोल रहे हैं। उनकी बातों में मत आओ. अपना काम शांति से करो। कुछ नहीं होगा।' पर पलट कर उसने चिंतित स्वर में कहा-'भाभीजी, अपनी जान जोखिम में कौन डालेगा? कल को दंगे हो गए तो दस बीस जनों की जान जाएगी ही। भाभीजी, बुरा मानो या भला। मैं काम के बदले जान की' रिकस'नहीं ले सकती।'
और वह जल्दी-जल्दी काम निपटाकर तीन बजते न बजते चली गई. अब मैं थोड़ी परेशान थी। टी.वी. ऑन किया। फैसला आया। सुना। टी.वी. बंद किया। काम में जी लगाया। बेचैन-सी इधर-उधर डोलती फिरी। फिर राजेश को फोन लगाया। वह एक पत्र में संपादक था। कह रहा था कि 'कहीं से किसी भी तरह के दंगे की कोई खबर नहीं है। जनता समझदार होती जा रही है। अब नेताओं के भड़काऊ भाषणों के लच्छे पब्लिक नहीं खाने वाली है। एक पक्ष कह रहा है इस जमीन पर आप मस्जिद बनाएं। दूसरा पक्ष कह रहा है मंदिर बनाओ. बल्कि हम आपके काम में सहयोग करेंगे।' सुनकर मैंने चैन की सांस ली।
दूसरे दिन मेरी सहयोगिनी की प्रतिक्रिया थी-'भाभीजी, यह तो अच्छा नहीं हुआ। वह नेता आज सुबह गुंडे मवालियों के साथ आया और हमारी बस्ती वालों के साथ जो गुंडागर्दी की, पूछो मत। कहता रहा सालों मेरे पैसे खा गए और काम भी नहीं किया। अब देखना कैसे तुमको झूठे केसों में जेल पहुँचाता हूँ।'
सलमा की भी लगभग यही प्रतिक्रिया सुनकर मैं और सुबह अपने-अपने कारणों से एकाएक उदास हो गईं। पर कहीं खुश भी थीं।