एहसास / महेश दर्पण
Gadya Kosh से
आज महीनों बाद उसे यह मौका हाथ लगा था। शीशे के सामने खड़ा वह अपना चेहरा निहार रहा था।
उसे लगा कि कनपटी पर के बालों में सफेदी उभर आई है और मूँछ के बाल बेतरतीब बढ़े चले जा रहे हैं। दाढ़ी पर हाथ फेरते हुए तो उसकी हँसी ही छूट गई।
घर से दफ़्त्तर और दफ़्त्तर से घर के बीच झूलते हुए वह अपने–आप से मिल ही नहीं पाता था।
पत्नी जाने कब पीछे आ खड़ी हुई थी। जैसे ही उसने अपनी ठोड़ी उसके कन्धे पर रखी, वह घबरा ही गया। तभी उसे शीशे में पत्नी का चेहरा नजर आ गया।
"आज कोई खास बात नजर आती है।" --पत्नी ने चेहरा घुमाकर पूछा।
"हाँ, खास बात तो है ही।" कहते हुए वह पत्नी की आँखों में तैरने लग गया।
"क्या बात है, जल्दी बताओ!" इस बार पत्नी उससे सट ही गई।
"देखते–देखते कितना वक़्त्त गुज़र गया न! अपनी शादी को पूरे दस साल हो गए।" उसने कहा और पत्नी का चेहरा गौर से देखने लगा।