ऐंगना पार के सोएब चाचा / मृदुला शुक्ला

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जखनी हम्में बहुत छोटोॅ छेलियै तेॅ दुर्गापूजा में हम्में दामोदरपुर गेलोॅ छेलियै आरू माय।बाबूजी बताय छेलै कि हम्में वहाँ यहेॅ कहियै आरू कानियै कि-"हम्में आपनोॅ चच्चा लगीं जैवै। यहाँ नै रहवै। हमरा वहेॅ घोॅर अच्छा लागै छै।" आरू बाबूजी समझावै छेलै कि बेटा-"यहेॅ घोॅर आपनोॅ छेकै। यहाँ तोरोॅ दादी।बाबा रहै छौं, आरू ऊ सरकारी घोॅर छेकै।" मतरकि हम्में कपसी.कपसी केॅ कानियै कि-तबेॅ हमरोॅ आपनोॅ चच्चा केॅ लानी देॅ।

हमरोॅ आपनोॅ चच्चा मानी-भागलपुरोॅ के सरकारी क्वार्टर के ऐंगना के पार जे ऐंगन छेलै, वाँही में रहै छेलै-सोएब चच्चा, जे हमरा बड़ी मानै छेलै। जहिया सें होश संभालियै, पता नै हुनका सें केतना दुलार आरू स्नेह मिललोॅ छेलै, जे एक एन्होॅ अनोखा बन्धन सें हमरा सिनी के परिवार केॅ बान्ही देलेॅ छेलै कि टुटवो मुश्किल।

बाबूजी के परम घनिष्ठ मित्र छेलै-सोएब चच्चा। बाबू जी पक्का ब्राह्मण आरू हुनी आपनोॅ मजहब के पक्का सिद्धकी। मतरकि धरमोॅ के भरम दुनो नें समझै छेलै आरू हौ कहियो बीचोॅ में नै ऐलोॅ छेलै।

सोएब चच्चा केॅ दुए टा सन्तान छेलै-वहू बड़ोॅ होय गेलोॅ छेलै। हमरा सिनी-छोटोॅ तीनो भाय।बहिन केॅ-हुनका घरोॅ में जाय।आवै के कोनो खास मौका वाली बात नै छेलै। जखनी मोॅन करै, वाँही भागी जाय छेलियै। मतरकि जीयै के तरीका आरू तहजीब हुनकोॅ घरोॅ में जाय केॅ हम्में सीखी रहलोॅ छेलियै। खाली 'हाँ' बोलै सें 'जी हाँ' बोलै में बड़ोॅ के आदर होय छै आरू एन्हें सिनी बात। हुनका घरोॅ में एक बड़का दीवार घड़ी छेलै-घण्टा वाला। पढ़तें।पढ़तें मोॅन ओकताय जाय तेॅ हम्में पहुँची केॅ पूछेॅ लागियै-"कितना बजा चच्चा।" चच्चा बुझी जाय कि आपनोॅ बाबूजी सें टेबल घड़ी में समय पूछै के हमरा हिम्मत नै होय छै, यही लेॅ भागी केॅ आवै छियै। हुनी यही लेॅ खेल।खेल में हमरा घड़ी देखै लेॅ सिखैनें छेलै। बालमन प्यार के परख करै में पूर्ण सक्षम होय छै आरू हमरोॅ सोएब चच्चा के प्यार-सोलह आना खांटी छेलै।

कहिये देनें छियै कि हमरोॅ चच्चा आरू हमरोॅ घोॅर के ऐंगना के बीच बस एकटा दीवार छेलै। ई पार हमरा सिनी जे भी गप्प करियै आरू बड़ोॅ परिवार होय के कारण जे भी अच्छा।बुरा बात।बहस होय छेलै, ऊ सब ज़रूर हुनका सिनी के कानोॅ तक पहुँचतेॅ होतै, मतरकि आयकल एक अच्छा पड़ोसी होय के जे कर्त्तव्य-कत्तेॅ।कत्तेॅ पढ़लोॅ।लिखलोॅ आरू आपनेॅ केॅ सुसंस्कृत समझै वाला आदमीयो नै पूरा करै छै, से गुण हमरोॅ सोएब चच्चा आरू चाची में रहै। हुनकोॅ द्वारा हमरोॅ घरोॅ के कोय्यो बात-कहियो कोय-हुनका सें नै जानेॅ पारलकै, हालाँकि हर समाज में ऐन्होॅ ताक।झाँक करै वाला मनोवृति के लोग रहवे करै छै। मतरकि जखनी हमरोॅ पीठी पर कोय बात सें गोस्साय केॅ माय धप।धप धौल मारै छेलै आरू हम्में कानियै तेॅ ऊ तरफोॅ सें तुरंते चच्चा के आवाज आवै-"छुन्नी की अम्मा, जा के देखो तो काहे को मार रही है मिरदुल को। नन्ही।सी जान का मार खाय खातिर हैं।" बस हम्में माय के कोप सें बची जैय्यै। हमरी दीदी एक बेर माँड सें जरी गेली छेलै। हाथ।पैर में माँड़ पड़ी गेलोॅ छेलै, तखनी हुनका सिनी पड़ोसी धरम वास्तें सबसें पहिनें दौड़लोॅ आवै छेलै आरू सहारा बनी केॅ खाड़ोॅ रहै।

ऊ प्यार, ऊ शासन आरू धरमोॅ के प्रति ऊ गंभीरता सोएब चच्चा के चेहरा पर नूर नाँखी बरसतें रहै छेलै। इन्सान तेॅ हुनी सचमुचे बहुत बड़ोॅ छेलै-छरहरा शरीर, पैजामा।कुरता आरू गंभीर स्वभाव, साफ जुबान, मद्धिम आवाज वाला कोय्यो प्रौढ़ मुसलमान देखी केॅ आइयो हमरोॅ बालमन में धँसलोॅ यहेॅ रूप वाला सोएब चच्चा केॅ खोजेॅ लागै छै।

मजहबी अलगाव के बीच केना मोहब्बत के रस्ता बनैलोॅ जाय छै, ऊ हमरोॅ बाबूजी आरू सोएब चच्चा के जीवन।शैली सें हम्में समझलियै। आपनोॅ धरम आरू आपनोॅ संस्कृति के साथें दोसरा के धरम।संस्कृति केॅ सम्मान दै के भावना दुन्हो में छेलै। जखनी चच्चा के रोजा चलै, तखनी बाबूजी हुनकोॅ प्रति हृदय सें सम्मान करै आरू बड़ाय करै-जेना कोय हिन्दू के व्रत एकादशी पर होय छेलै।

हमरोॅ बाबूओ जी चण्डी.पाठ करै तेॅ मुँहोॅ में अन्न नै लै छेलै आरू चच्चो पाँचों वक्त नमाज के पाबंद छेलै। मतरकि देखावा दोन्हो केॅ पसन्द नै छेलै। इस्लाम के जोॅन रूप सें हमरा सोएब चच्चां परिचय करैनें छेलै, ऊ सें होन्होॅ लागवे नै करै कि हौ हमरोॅ भी धरम नै हुवेॅ पारै। आत्मप्रशंसा-चाहे आपनोॅ हुवेॅ, चाहे घोॅर, चाहे धरम के-हुनी कभियो पसन्द नै करै। काम के प्रति ईमानदारी आरू हुनका में सच बोलै के अद्भुत शक्ति छेलै। शुरू।शुरू में बाबूजी हुनकोॅ घरोॅ में चाय भी नै पीयै छेलै, कोय बहाना बनाय दै, मतरकि चच्चा के समझदारी सें रिस्ता चलथैं रहलै। हमरोॅ घरोॅ में चाय पीयै वक्ती, हुनी कोय।नै।कोय बात कही केॅ आपनोॅ घोॅर सें कप मंगाय लै। है चालीस बरसोॅ सें पहिनें के शुरूआत छेलै।

मतरकि प्रेम आरू दोस्ती में ई सिलसिला बेसी दिन नै चलेॅ पारै छै, एकरोॅ भी हम्में गवाह छी। चच्चा के बेटी के शादी आपनोॅ बड़ोॅ भाय के बेटा सें होय रहलोॅ छेलै। हमरा सिनी केॅ है सिनी बात जानी केॅ कहियो आश्चर्य नै होय छेलै। जबकि एखनियो देखै छियै-यहेॅ सिनी बात केॅ मजाक करी।करी लोग, दोसरा के सम्मान केॅ ठेस लगावै छै। सोचै छियै कि हमरा सिनी आपन्हें संस्कृति केॅ कैन्हें अच्छा समझै छियै। संस्कृति नै अच्छा होय छै, नै खराब होय छै-बस आपनोॅ होय छै आरू दोसरा के होय छै। हमरा जेना आपनोॅ संस्कृति।सभ्यता पर गर्व करै के अधिकार छै, होन्हे दोसरो केॅ आपनोॅ संस्कृति।सभ्यता पर गर्व करै के अधिकार छै। मगर यै लेली मोॅन केॅ बड़ोॅ बनाना चाहियोॅ, जे नै हुवेॅ पारै छै। तबेॅ हौ शादी चच्चा के गामोॅ सें होय रहलोॅ छेलै-जे मुजफ्फरपुर तरफ शायद छेलै। ढेर सिनी आदमी नें हौ बीहा में जाय के हामी भरलकै, हुनकोॅ विरादरी के भी आरू कचहरी के समाज के लोगो नें जाय लेली वचन देलेॅ छेलै। एक टा हुनकोॅ अभिन्न छेलै-जिनका हाजी कहै छेलै आरू ईद।बकरीद के मौका पर हुनकोॅ घोॅर आवै छेलै-हुनीयो जाय वाला छेलै। दूर जाय के वास्तें पैसा आरू तखनी नया जग्धोॅ सोची केॅ सब्भें विचार छोड़ी देलकै, मतरकि हमरोॅ बाबूजी घोॅर के दस खरचा टाली केॅ भी ऊ शादी में जाय केॅ आपनोॅ दोस्त के मनोबल बढ़ैनें छेलै। बीहा खतम होला के बाद हमरोॅ बाबूजी केॅ सब्भे परिवार सिनी नें आग्रह करी केॅ रोकी लेलकै। जबेॅ बाबूजी केॅ ई मालूम होलै कि शादी के बाद भी हिन्दू रसोइया खाली हुनकोॅ वास्तें रखलोॅ जाय रहलोॅ छै, तेॅ हुनी साफ।साफ मना करी देलकै-"बेटी के शादी में आए है सोएब बाबू, खर्चा मत बढ़ाइये। हाँ इतना कोशिश कीजिये कि हम मुर्गा।अण्डा नहीं खाते हैं, तो बरतन पड़ोस से मंगा लीजिए." चाची नें जेना हमरी माय केॅ खाना बनैतेॅ देखै छेलै, होने खाना बनैलकै आरू बरतन सिनी निरामिष परिवार सें मंगाय केॅ बाबूजी के भावना के इज्जत करलकै। आय एतना छोटोॅ।छोटोॅ बात केॅ लोग साम्प्रदायिकता आरू अस्पृश्यता कही।कही आलोचना करेॅ पारै छै, मतरकि साथें भोजन।पानी करी केॅ भी आय लोगोॅ के हृदय केतना कलुषित छै, से सब्भे जानै पारै छियै। तखनियो लोग कहै-सुकुल जी के गोतिया तेॅ मुसलमान नी छेकै, आरू हमरो बाबूजी सीना ठोकी केॅ कहै छेलै-"ओकरा सें हमरा कोय चिन्ता नै छै।"

दुख आरू परेशानी में, आर्थिक।तंगी में-ऊ परिवार हमरोॅ परिवारोॅ के पीठी पर हरदम खड़ा रहै। बाबूजी के चिन्ता करै के स्वभावोॅ सें सोएब चच्चा चिंतित रहै आरो अक्सर हुनका समझावै, हिम्मत बंधावै छेलै। उसूल के हुनी ओन्हे पक्का छेलै कि जहाँ कहीं बाबूजी के शिकायत होतेॅ रहै-सोएब चच्चा वहाँ सें सीधा उठी आवै, चाहे ऊ कतनो हुनकोॅ प्रिय रहै। मतरकि है नै कि बात सुनी केॅ यहाँ।वहाँ लगावै।बुझावै छेलै। ई सिनी बात के हुनी जिक्रो नै करै। दोसरा के मुँह सें हम्मेॅ सिनी सुनै छेलियै।

सोएब चच्चा के बेटी-हमरा सिनी के छुन्नी दी छेलै आरू बड़की बहिन के सखियो। दोन्हो सखी में पहिलोॅ बेर मातृत्व के लक्षण एक्के साथ देखाय पड़लोॅ छेलै। हमरी बहिनी नें कॉलेज में नाम लिखाय लेलेॅ रहै आरू हमरोॅ घरोॅ के जाल।परिवार बड़का रहै, यै लेली बड़की दी के ओतना देख।रेख नै हुवेॅ पारै छेलै। हुन्नें छुन्नी दी के सास याने बड़की माय आवी गेलोॅ रहै। बड़ी जतन के देख।भाल-सूप।जूस, डॉक्टर-सब तरह सें सब्भे लागलोॅ रहै। दीदी जेना सहज भाव आरू गैर जिम्मेदारी सें रहै, यै लेली चाची हमरोॅ माय केॅ बोलै आरू दीदीयो केॅ समझावै छेलै। ई तेॅ दुर्भाग्ये छेलै कि छुन्नी दी के बच्चा ज़्यादा स्वस्थ होला आरू ऑपरेशन में देरी होला के कारण मरलोॅ पैदा होलै। स्वाभाविक रूप सें परिवार एकदम टूटी गेलै। मतरकि हिम्मत आरू बहादुरी के साथें सहै के जे सीमा इस्लाम नें खींची देलेॅ छै, वै कारण-ऊ धरम के निश्चित प्रशंसा होना चाहियोॅ। इस्लाम, हर कष्ट खुदा के इच्छा मानी केॅ धीरज सें सहै के संकल्प दै छै। हमरा सिनी अत्यधिक भावुक होय केॅ एतना धीरज नै राखेॅ पारै छियै-भले गीता के उपदेशोॅ सें मोॅन थोड़ोॅ देर लेॅ शांत होय जाय।

हमरोॅ माय केॅ पकड़ी केॅ छुन्नी दी जबेॅ फफकी केॅ कानेॅ लागलै आरो हमरोॅ माय नें समझाना शुरू करलकै तेॅ ओतना कम उमर में छुन्नी दी आपना केॅ तुरंते बदलतें कहलकै-"नन्ही चच्ची, वह तो खुदा का था, इसलिए नहीं रो रही हूँ पर मेरे कारण उसको तकलीफ हुई, इसी से रो रही हूँ।" दर्द केॅ घोटी लेनें छेलै हुनी, मतरकि अन्दर में मातृत्व तेॅ हाहाकार करिये रहलोॅ छेलै।

कुछुवे दिन बाद हमरो दीदी केॅ बेटी होलै। कमजोर रङ, मतरकि घोॅर भरी के आँखी के पुतरी। बड़का।बड़का आँख, करिया कुच।कुच केश आरू एकदम खाड़ोॅ नाक-छिनमान पुतुल रङ लागै। जोॅन दिन अस्पतालोॅ सें हमरी दीदी ऐली, छुन्नी दीदी धीरें।धीरें आपनोॅ घोॅर सें निकली केॅ हमरोॅ घोॅर आवी गेलै आरू सखी आरू बच्चा केॅ देखै लेॅ घोॅर के दरवाजा पर खड़ी होय गेली। चाची नें ई सोची केॅ कि हिन्दू।घर।परिवारोॅ में शायद नया बच्चा लुग हुनका देखी केॅ कुछू खोॅभ लागै-छुन्नी दी केॅ बाहरे रहै लेॅ कही देलकै। छुन्नी दीं आपनोॅ दरद केॅ दबाय केॅ कहलकै-"वीणा, ज़रा उसकी शक्ल तो दिखा न, कैसी है बिटिया।" हमरी माय नें जबेॅ हिन्नें ध्यान देलकै तेॅ छुन्नी दी केॅ पकड़ी केॅ अन्दर पलंग पर बैठाय देलकै आरू दीदी नें आपनोॅ बेटी हुनकोॅ गोदी में दै केॅ कहलकै-"जा अपनी खाला अम्मा के पास।" गोदी में बच्चा पावी केॅ छुन्नी दी केॅ आपनोॅ कोख के याद ज़रूर ऐलोॅ होतै, मतरकि आँखी के आँसू छिपाय केॅ हुनी सौंसे प्यार, सखी के बेटी पर बरसावेॅ लागली। ऊ आय।तांय आँखी में नाचै छै। आबेॅ जबेॅ भागलपुर के दंगा, अल्पसंख्यक आरू बहुसंख्यक सिनी शब्द सुनै छियै तेॅ सोचै छियै कि सौंसे दुनियाँ में की होय छै पता नै, मतरकि हम्में आपनोॅ अनुभव सें जानलोॅ छियै कि हमरोॅ घरोॅ के ऐंगना के ऊ पार में सूफी।संत नाँखी जे चच्चा रहै छेलै-हुनी हमरोॅ चच्चा छेलै आरू छुन्नी दी नें जे हमरोॅ बहिन।बेटी केॅ ऊ दिन करेजा सें सटाय लेलेॅ छेलै, हुनका वास्तें-हौ समाज बेरादरी के लोग सें-ज्यादा प्यारोॅ छेलै। कतना भाय।बहिनी से डाँट आरू मार खाय केॅ हम्में छुन्नी दी के गोदी में मुँह छुपाय के, ॅ कानलेॅ होवै, कतना दाफी माय के घोॅर चल्लोॅ गेला पर हमरोॅ ओझरैलोॅ केश केॅ झाड़ी केॅ छुन्नी दी चुट्टी गूँथी देलेॅ होतै, आरू कतना बेर देर सांझ तांय खेलतेॅ देखी केॅ हमरा डाँटलो होतै। फेनू लोग पानी केॅ बांटै लेॅ कैन्हें चाहै छै।

हमरी दोसरी बहिनी के बीहा में रात भर कुर्सी पर बैठी केॅ बीहा देखी केॅ गदगद होय जाय वाली चाची-जखनी कोय खाय लेॅ शादी।बीहा में बुलावै तेॅ नै जाय। हमेशा टाली दै छेलै, लेकिन सामाजिकता निभाय में हरदम आगू रहै। हमरोॅ माय के आग्रह करला पर कहेॅ लागलै-"नहीं वीणा अम्मा, मेरा खाना घर में भिजवा देना। मेरे सबके साथ खाने पर तो तुम लोग को बेकार बात सुनना पड़ेगा।" तखनी हमरा सिनी केॅ बहुत दुख होलोॅ छेलै। चालीस बरस पहिलकोॅ समाज में धीरें।धीरें बीच के दीवार ढही रहलोॅ छेलै। मतरकि अदृश्य दीवारोॅ सें आय सौंसे देश पटी गेलोॅ छै-के तोड़तै एकरा।

हमरी बहिन।बेटी पूनम केॅ जबेॅ एक बेर डिपथेरिया होय गेलै आरू ऊ भयंकर रात जबेॅ रोग एकदम उग्र रूप धारण करी लेनें छेलै, तबेॅ वै रात घरोॅ में सब लोग जागलोॅ छेलै। हम्में आठवाँ में पढ़ै छेलियै। पूनम के छोटोॅ भाय केॅ लै केॅ हम्में सोएब चच्चा के घर्हे में सुतलोॅ छेलियै, कैन्हें कि डाक्टर नें छोटोॅ बच्चा केॅ रोगी सें दूर राखै लेॅ कहलेॅ छेलै। हौ रात भर चच्चो नै सुतलोॅ छेलै। कहीं सें पानी पढ़वाय केॅ लानी केॅ पीयै लेॅ दै, कभी मस्जिद जाय केॅ नमाज पढ़ी केॅ आवै आरू सुतली पूनम के माथा आरू आँखी पर हाथ फेरै। चाची तस्बीह के दाना पर रात भर हाथ फिरावै। भोर केॅ जबेॅ पूनम नें घूँट।घूँट करी केॅ दूध कुछ पीयेॅ पारलकै आरू डाक्टर नें कहलकै-खतरा टली गेलोॅ छै-तेॅ चाचा कहेॅ लागलै-"हम सोच रहे थे छुन्नी की अम्मा कि हमरी नजर तो नहीं लग गयी पुतूल को। छुम।छुम पायल बजाती आती थी। हम एकदम डर गये थे, इसी से उत्ते रात में ही निकल गये थे।" जे चच्चा आपनोॅ वक्ती धीरज धरनें छेलै, वहेॅ चच्चा के भावुकता देखी केॅ हमरा आइयो समझ में कुछ नै आवै छै। आरू आय तक कोय हेनोॅ हिन्दू चच्चा-जे सिर्फ़ प्यार बाँटी केॅ चाचा बनी जाय छै-हमरा नै मिलेॅ पारलेॅ छै-जे सोएब चच्चा के जगह लियेॅ पारेॅ आकि हुनकोॅ याद केॅ मिटावेॅ पारै।

अड़सठ ई0 में हिन्दू।मुसलमान के तनाव राँची सिनी जग्घोॅ में बढ़ी गेलोॅ छेलै, तेॅ थोड़ोॅ बहुत भागलपुरो शायद प्रभावित होलोॅ छेलै। पूरा कलौनी में दू टा घोॅर मुसलमान के रहै। स्वाभाविक छै कि हुनी आपना केॅ असुरक्षित भी समझतेॅ होतै। हमरोॅ भाय चाची के बाहर वाला बरन्डा।घरोॅ में सुतै छेलै। चाची एक दिन कहलकै कि "बेटा, हमरे घर में सोने से कहीं तोको भी खतरा ना होय जाय।" भइयां कहलकै-"तब चाची हमको और भी यहाँ सोना होगा। देखते हैं कौन इस घर में घुसता है।" हालाँकि कलौनी यै सब सें एकदम अछूतोॅ छेलै। तैहियो चाची के आँखीं में डोॅर समाय गेलोॅ छेलै। हुन्नें हुनकोॅ बिरादरी।समाज नें हुनका पर दवाब डाली रहलोॅ छेलै। एक ठो बेटा छेलै-जे दिन।रात हिन्दू दोस्तोॅ साथें घूमै छेलै। कँही वैं कुछू बोली नै दै। यै सिनी सें हुनी डरी गेलै। बहुत दुखी होय केॅ क्वार्टर छोड़ी केॅ भीखनपुर में जाय केॅ रहेॅ लागलै। हमरोॅ माय सिनी जबेॅ हुनका कन घूमै लेॅ जाय तेॅ कहै-"वीणा की अम्मा, ज़िन्दगी ठहर गयी है। मन बिल्कुल नहीं लगता है। वह सोच।विचार, वह खुलापन नहीं है, लेकिन रहना इन्हीं लोगों के बीच हैं न, इसलिये बदल रहे हैं अपने को।"

हम्में जबेॅ पी0 जी0 जावेॅ लागलियै, तबेॅ तांय चच्चा रिटायर होय गेलोॅ छेलै। हमरा सिनी केॅ देखी केॅ एकदम सें खुश होय जाय आरू कहै-"अरे देखो तो कौन आया है।" फेनू हुनकोॅ जिनगी हमरा कैन्हेॅ तेॅ विस्थापित रङ लागै छेलै। एतना दिन के सोच के जे उन्मुक्तता छेलै, ओकरा पर एक अंकुश तेॅ ज़रूरे लागलोॅ होतै।

रिटायर होल्हौ पर चच्चा गाँव नै गेलोॅ छेलै। आपनोॅ एक मात्र बेटा केॅ यहाँ अकेला छोड़ी केॅ जाय नै पारलै। हुनी एक बार पैसा के कमी केॅ पूरा करै लेॅ कोयला।डिपो खोललेॅ छेलै, मतरकि हुनकोॅ ईमानदारी आरू सच्चाई सें वहो नै चलेॅ पारलै। बाबूजी केॅ एक बेर बताय छेेलै-"सुकुल जी, सारे डिपो वाले नये माप में सैंतीस किलो को एक मन बताकर बेचते हैं। मैं-एक मन-कहने पर जब पैसे जोड़ कर बताता हूँ, तो लोगों को महंगा लगता है। नौसाद कहते हैं कि आप भी सैतीस किलो तौल कर एक मन बता दीजिए. पर बताइए-कोयले के धंधे में भी झूठ बोलूं। ये तो हमसे नहीं होगा।" आरू सच्चे में एक दिन हुनी डिपो बन्द करी देलकै।

चच्चा पहिलें सें सीधा।सादा रहै, हजोॅ सें लौटला के बाद हुनकोॅ जीवन आरू सादा होय गेलै। हमरा सिनी केॅ चाची भी बतावै छेलै कि "जमा करना या लोगों की ज़रूरत की चीज अपने पास जोड़ कर रखना-कितना खराब काम है, इसीलिए हज से आकर लोगों को अपना-ज़रूरत से ज़्यादा पैसा, सोना-सब बाँट देना चाहिए." ई सिनी उत्तम विचारोॅ के कारण चच्चा आरू चाची बहुत याद आवै छै।

हुनकोॅ आखिरी दर्शन तेॅ आइयो मनोॅ केॅ भारी करी दै छै। हम्में आपनोॅ पति के साथें अस्पताल गेलोॅ छेलियै-हुनके देखै लेॅ। पेटोॅ में कोय तकलीफ छेलै। वहौं वार्ड के गरीब लोगोॅ के बीच आपनोॅ फोॅल, खाना आरनी बाँटी दै आरू सबके बारे में बात करथें रहलै।

अस्पताल में हमरा सिनी केॅ देखी केॅ हुनी एतना खुश होलै कि लागवे नै करै-हुनका कोय कष्ट रहै। हमरोॅ पति केॅ बतावेॅ लागलै-"मिरदुल कितनी छोटी थी और पहली बार जब हमको छोड़कर गाँव गई तो यहाँ मेरा भी जी ना लगे और वहाँ उसने सुकुल जी को भी परेशान कर दिया था। बड़ी समझदार और बातूनी थी। हमलोगों का मन तो बस इन्ही लोगों से लग जाता था, अपना।पराया था ही नहीं-इन बच्चों में। सुकुल जी इन्ट्रोवर्ट आदमी थे। आफिस में भी किसी से खुलते ही नहीं थे। पर मेरे लिए तो वे अजीज दोस्त, भाई वह कहते हैं न-फ्रेन्ड, फिलोस्फर एण्ड गाइड-सब बन गये थे।" बहुत सिनी बात हुनी हौ दिन बतैलकै-जे हम्में पहिनें नै जानै छेलियै। जेना हमरोॅ बाबूजी केॅ पहिनें एक दोसरोॅ पड़ोसी मिली रहलोॅ छेलै। शायद मुसलमान सोची केॅ चच्चा केॅ एक अलग क्वार्टर दै के विचार छेलै। मतरकि बाबूजी आपनोॅ बगलोॅ में ऊ पड़ोसी केॅ नै चाहै छेलै आरो है अन्दर के बात बोलनाहौ असभ्यता होतियै, फेनू ऊ आदमी भी की समझतियै-यै लेली चिंतित छेलै। तबेॅ सोएब चच्चा नें अलग में बाबूजी सें साफ पुछलकै-"आप मेरे बगल के क्वार्टर में तो रह सकते हैं ना।" बाबूजी नें जबेॅ हाँ कहलकै, तबेॅ सोएब चच्च्हैं नें आपनोॅ तरफ सें कोशिश करी केॅ बगल में आवी गेलै। जेकरा पर हुनी आपन्हैं बतावेॅ लागलै-"लोग सोच रहे थे-ई तो चल ही नहीं सकता है। सुकुल जी जैसा पूजा।पाठी आदमी, उधर मुसलमान का अण्डा।आमलेट की गंध-कैसे सहेगा। पर दिल का रिश्ता सबसे बड़ा होता है और वह खुद की नेमत है।"

हमरोॅ पतिदेव नें ऊ दिन अस्पतालोॅ सें बाहर आवी केॅ कहलकै-"तोरोॅ चच्चा सच्चे बहुत अच्छा आदमी छौं, बहुत नेक।"

एक साल बाद हम्में गाँव दामोदरपुर गेलियै, तेॅ बाबूजी कहेॅ लागलै-"सोएब बाबू के चिट्ठी ऐलोॅ छै। लिखलेॅ छै कि-बड़ी तकलीफ सें लिख रहा हूँ-सबसे छिपाकर। मेरा मर्ज बढ़ता जा रहा है, कोई बताता नहीं, पर डायगनोसिस से लगता है-मुझे कैंसर ही है। आप लोगों की मोहब्बत याद आती है। आखिरी बार मिल लीजिये।" हमरा भागलपुरो जाना छेलै। बाबूजी के पैसा बैंक सें निकाली केॅ लान्हौं छेलै आरू आपनोॅ कामो छेलै। बाबूजी कहलकै-' विनय सें कही दिहें-ऑटो रिजर्व करी केॅ ऐतै। हम्में सोएब बाबू सें भेंट करै लेॅ जैवै। अकेलोॅ तेॅ जावेॅ नै पारवै। " बाबूजी के आवाज एकदम भरभरैलोॅ छेलै आरू हुनी आपना केॅ बहुत बेबस समझी रहलोॅ छेलै। जहिया सें हुनका पहिलोॅ हार्ट अटैक होलोॅ छेलै-अकेल्ले जान्हौ।आना बंद छेलै आरू बसोॅ सें जाय में भी हुनी घबराय छेलै। मतरकि जबेॅ हम्में आवी केॅ ई सम्बन्ध में विनय भैया सें बात करलियै, तेॅ हुनी कहेॅ लागलै-परसूये तेॅ हुनकोॅ इन्तकाल होय गेलै। हम्में भी वहाँ गेलोॅ छेलियै। हम्में चिन्तित होय गेलियै कि बाबूजी केॅ ई बात अचक्के में कहना ठीक नै होतै, यै लेली हुनका धीरें।धीरें तैयार करै लेॅ पड़तै आरू अभी हम्में नै जैवै-वहेॅ सही होतै।

हम्में जबेॅ लौटी केॅ घोॅर ऐलियै तेॅ बाबूजी केॅ चच्चा सें मिलै के उत्कंठा एकदम तीव्र होय चुकलोॅ छेलै। हम्में खाली नजर चोराय केॅ, कि-आभी नै आवेॅ पारथौं-कही देलियै। तखनी हुनकोॅ करुण दृष्टि सें हम्में अन्दर तांय हिली गेलोॅ छेलियै। की होय छै दोस्ती, ई साक्षात् रूप में हम्में देखी रहलोॅ छेलियै। बेबसी सें एक लम्बा सांस छोड़ी केॅ हुनी छलछलैलोॅ आंखी सें कुछ पल देखथैं रहलै, फेनू कहेॅ लागलै-"हमरोॅ ऊपर बहुत करजा छेलै सोएब बाबू के, आय हुनका बोलैल्हौ पर हम्में नै जाय पारै छी...एन्होॅ लाचार होय गेलां।"

ऊ बेर पता नै कैन्हें बाबूजी बहुत गुमसुम रहलै। हेना हम्में जबेॅ नैहरोॅ जैय्यै, तेॅ हमरोॅ बेटा के शैतानी सें आरू बेटी के गप्प सें हुनी प्रसन्न रहै छेलै, मतरकि आवै के एक दिन पहिनें चद्दर में मूँ झाँपलोॅ सुतलोॅ रहै। जाय केॅ चद्दर उघारी केॅ देखै छियै तेॅ हुनी अन्दरे।अन्दर सुबकी।सुबकी केॅ कानी रहलोॅ छै। हम्मेॅ सिनी आपनोॅ बाबूजी के बहुत करीब छेलियै। हुनकोॅ आँखी सें लोर पोछलियै, तेॅ हमरो आँखी में आवी गेलै। हुनी बच्चा नाँखी फूटी.फूटी केॅ कानेॅ लागलै-"बेटा, आबेॅ तोरा सिनी के गेला के बाद जीयै के कोय बहाना नै देखाय पड़ै छै।" हम्में भरोसा दिलाय के कोशिश करलियै-"बाबूजी, हम्में तेॅ चाहै छियौ नी।" तेॅ हुनी कहेॅ लागलै-"बेटी तेॅ मोॅन सें ही नगीच रहेॅ पारै छै नी, सें तेॅ छेवे करौ, मतरकि हमरोॅ छोटोॅ भाय दुनियाँ से चल्लोॅ गेलै आरू आबेॅ भाय एन्होॅ दोस्त सोएब बाबू भी अस्पताल में पड़लोॅ छै।"

तबेॅ हम्में बड़ी बनी केॅ बाबूजी केॅ समझावै लागलियै। कत्तेॅ बेर बाबूजी नें हमरा सिनी केॅ समझाय छेलै-"कथी लेॅ घबराय छौ? हम्में छिहौं नी।" आय हमरा ऊ सम्बल छिनलोॅ रङ बुझाय छेलै। हम्में जखनी घरोॅ सें आवेॅ लागलियै, तखनियो बाबूजी विह्वल होय गेलै। हम्में सोएब चच्चा के बारे में हुनका सच्चा बात नै बताय केॅ अपराध।बोधो सें भी भरलोॅ जाय रहलोॅ छेलियै। बीस नवम्बर उन्नीस सौ तेरासी केॅ हम्में आपनोॅ बाबूजी के आँखी में लोर आरो दामोदरपुर नाँखी छोटोॅ गांव के ऐंगन सें विदा लै केॅ आपनोॅ नौकरी पर लौटी ऐलियै। ई बीचोॅ में बाबूजी भागलपुरो गेलै आरू वही बरस के बाइस दिसम्बर केॅ हुनकोॅ एक पोस्टकार्ड आवै छै-"मैं अपनी जान पर खेल कर भागलपुर सें पुनः दामोदरपुर आ गया हूँ। विनय की बीमारी के कारण तुम्हारी माँ नहीं आ सकी। यहाँ गाँव की स्थिति अच्छी नहीं है-अब प्रभु इच्छा।"

ई हुनकोॅ अन्तिम पत्र हमरा मिललै। हुनी बड़ा दिन छुट्टी में हमरोॅ इन्तजार करथें रहलै आरू तीस दिसम्बर केॅ ई संसार सें विदा लै लेलकात। हार्ट अटैक हुनका दामोदरपुर में ही होय गेलै आरू भागलपुर में बहत्तर घण्टा बिताय केॅ हुनी हमरा सिनी केॅ छोड़ी देलेॅ छेलात। सोएब चच्चा के पत्र के दू महीनाहौ हुनी इन्तजार नै करेॅ पारलकै। आय जबेॅ मोॅन भारी होय छै तेॅ लागै छै दूनो ऐंगना सें तेॅ जेना एक्के आवाज उठै छेलै-सब एक है। ऐंगन के यहू पार आरू वहू पार।