ऐतिहासिक भ्रातृ-मिलन / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'
चांद ने पृथ्वी से कहा—माते! मुझे एक बात पूछनी है।
"पूछो पुत्र। क्या पूछना है?" माता पृथ्वी ने अनुमति दी। चांद ने दोनों हाथ जोड़कर कहा, "क्षमा करें माते। आज आप काफी प्रसन्न लग रही हैं। होठों की मुस्कान छुपाए नहीं छुप रही। बात क्या है?"
माता की मुस्कान सहसा बढ़ गई पर अगले ही पल वह गंभीर हो गई। बोली—हे पुत्र, मेरी उम्र 460 करोड़ वर्ष हो गई। आज तक मैंने अपनी अरबों-खरबों संतानों का भातृ-विद्वेष देखा है। उन्हें अलग होते हुए देखा है। दो भाइयों के बीच आंगन में दीवार बनते देखा है। परंतु कल सुबह।
"कल सुबह क्या होगा माते?" चांद ने आकंठित होकर पूछा।
"कल सुबह हजारों भाई एक-दूसरे के गले मिलेंगे। आंगन की दीवार टूटेगी। तुम भी आ जाना देखने के लिए। कौन जाने, ऐसा दृश्य फिर कभी देखने को मिले कि न मिले।"
09 नवंबर 1989 की सुबह...
धड़ास-धड़ास की आवाज के साथ हजारों लोगों के प्रसन्नता मिश्रित कोलाहल से आसमान गूंज रहा था। चांद के कान खड़े हो गए। वह पूरी धरती पर नजर दौड़ाने लगा। तभी उसकी नजर बर्लिन पर अटक गई। ब्रांडेनबर्ग गेट तोड़ा जा रहा था। दीवार की दोनों तरफ आबाल-वृद्ध-वनिताओं की भीड़ उत्कंठित होकर खड़ी थी। चंचला स्प्री कल-कल करती... गुनगुनाती... उन्मत्त हुए जा रही थी... और माता पृथ्वी की आंखों से प्रसन्नता के आंसू छलक रहे थे!