ऐसा कभी होता है क्या ? / शुभम् श्रीवास्तव
शाम 7 बजे
चाँदनी अपने घर पर हाँफते-हाँफते पहुँची। उसने हड़बड़ी में दरवाज़ा खोला। सैंडल इधर-उधर हवा में फेंक कर रसोई में पानी पिया। उसने शंकर को फ़ोन किया। फ़ोन बंद आ रहा था। पिछले 6 घंटे से वह हर आधे घंटे में एक बार शंकर को फ़ोन मिलाती। हर बार बंद। दोस्तों से उसके फ़ोन पर बात की तो उन्होंने बताया वह लंच में ही निकल गया था। इसलिए वह और ज़्यादा चिंतित थी। उसने जैसे ही अपने बैडरूम कक्ष का दरवाज़ा खोला उसके होश उड़ चुके थे। शंकर को उसने पंखे पर झूलता हुआ पाया। उसके होश उड़ गए. वह अपने आप को संभाल नहीं पा रही थी। उसे लग रहा था कि क्या करे क्या ना करे। जल्दी से उसने पुलिस को बुलाया आधे घंटे में पुलिस घर पहुँचती है। सारे पड़ोस के लोग एकजुट हो जाते है। पुलिस घर के कोने-कोने में कुछ छान-बीन करती है ताकि कुछ सुराख मिल जाए. अंत में उसे एक पत्र मिलता है।
दो दिन पहले
शंकर को कुछ ही दिन हुए थे असिस्टेंट वाईस प्रेसिडेंट बने हुए. खुशमिजाज स्वभाव का होने के कारण उसके कई दोस्त बन गये थे, पुल्सार कंपनी में। वहीँ कुछ दुश्मन भी जो उसकी कामयाबी देख उससे जलते थे। 36 की उम्र में गुडगाँव जैसी जगह में खुद का घर और गाडी वहीँ कई लोग अपनी ज़िन्दगी इस वक़्त भी सेटल करने में लगे रहते थे। शंकर ने ख़ुशी के मौके पर सबको पार्टी दी, पार्टी में सबने केक और पिज़्ज़ा खाया उसको प्रमोशन की बधाई दी। वह सबके साथ सेल्फी ले रहा था अब बारी आई निवेदिता और कुसुम के साथ सेल्फी लेने की। वह खुले विचारों वाला था, उसने दोनों के कंधो पर हाथ रखकर प्यार से फ़ोटो खिचवाई.
दोनों को यह बात अखरी क्योंकि वह उनसे इतना घुला मिला नहीं था।
एक दिन पहले रात को 10 बजे.
'शंकर तुम इतने गुमसुम क्यों बैठे हो।'
शंकर-'कुछ नहीं वह थोड़ा प्रोजेक्ट डेडलाइन का प्रेशर था, चलो फ़िल्म देखते है।'
शंकर ने चाँदिनी को बाहों में भर कर बोला।
चाँदिनी ने भी मूँह बनाकर बोला–'लुका-छुपी'
शंकर ने टी0वी0 पर मूवी लगा दी। दोनों की शाम लगभग हररोज़ उसी तरह गुजरी जैसे रोज गुजरती थी।
सुबह घटना के दिन।
आप पर इलज़ाम लगा है कि आपने दो महिला कर्मचारी को उत्पीड़ित किया है। आपने उन्हें दो घंटे ज़्यादा काम करने को कहा।
शंकर–'पर सर प्रोजेक्ट की डेडलाइन दी कल मैंने एक को नहीं कई लोगों को कहा रुकने को 6-7 लडकियाँ थी और 4-5 लड़के. आप कौन दो की बात कर रहे हो सर।'
मीटिंग सेल स्पीकर ने कहा–'मामला सोशल मीडिया में पहुँच गया है। लोग ट्वीट कर रहे है। जब तक तफ़्तीश नहीं पूरी होने पर बुलाएँगे।'
शंकर अच्छे से वाक़िफ़ था फॉर्मल लैंग्वेज की। हम आपको कल बुलाएँगे, हम आपको सोमवार को बुलाएँगे, हम आपको बाद में कॉल करेंगे का मतलब क्या होता है। वह अन्दर से टूट गया। मन में उसके चलने लगा–' अब क्या मूँह दिखाऊंगा, क्या कहूँगा लोगो को जो तंज कसेंगे उठते-बैठते मुझपर। वह सीधे उठकर अपना सब कुछ पैक करने लगा और लंच में ही घर की ओर चल दिया।
एक हफ्ते बाद
पोस्ट-मार्टम एक हफ्ते बाद एस0एस0पी0 का बयान आता है कि हमने मृतक का पोस्ट-मार्टम किया है उसमे कोई मादक वस्तु या नशीला पदार्थ नहीं पाया गया। मृतक के घर से एक पत्र बरामद होता है। -" उसमे मृतक ने लिखा था जो उन्होंने अपनी पत्नी को लिखा था।
'मैं तुम्हें इस बात का अहसास दिलाना चाहता हूँ की मैं तुमसे कितना प्यार करता हूँ। मुझ पर दो कर्मचारियों द्वारा यौन उत्पीडन का आरोंप लगाया है और मुझपर विश्वास करों मैंने कुछ नहीं किया मुझे पता है दुनिया एक दिन यह समझेगी, लेकिन तुम और हमारे परिवार को मुझपर विश्वास होना चाहिए. यह सारे आरोप निराधार है और पूरा पुल्सार यह बात एक दिन जानेगा।'
'लेकिन मुझमे अब साहस नहीं बचा है सबका सामना करने का। मैं चाहता हूँ की तुम सशक्त बनो और अपनी ज़िन्दगी खुलकर जियों पूरे सम्मान के साथ, क्योंकि तुम्हारे पति ने कुछ नहीं किया। मैं जा रहा हूँ क्योंकि हर कोई मुझे उस ही नजरो से देखेगा अगर मैं पाक-साफ़ साबित हो जाऊ तो भी।'
उसी दिन कंपनी सफ़ाई देती है कि–' सस्पेंड कुछ समय के लिए ही था और जाँच में कोई बाधा न आए इसलिए ऐसा किया गया। हमने कंपनी के रूल के मुताबिक कार्य किया, यह हमारे लिए एक दुख: द घटना है और इस मुश्किल समय में हम आपका साथ चाहते है। हमे मृतक के परिवार के साथ पूरी सहानुभूति है और हम चाहते है कि मीडिया उन्हें उनका सम्मान व निजता दे जिसके व पूर्ण अधिकारी है।
मीडिया में सब कुछ वायरल हो गया लोग तरह-तरह की बात करने लगे। टी0वि0 देख रहे दो बच्चो में से दानिश अपने बड़े भाई बिट्टू से बोलता है–'क्यों बड़े भाई बड़े बने फिरते होना नारीवादी देखलो आज के नारीवाद ने ले डूबी जान एक की।'
सही-गलत का भेद इसमें मुस्किल है।
बिट्टू–' मैं दुखी हूँ। यह सब देखकर बस इतना ही कह सकता हूँ कि एैसा कानून होता जिससे पुलिस को एक महीने के अन्दर सारे तथ्य किसी भी हाल में पेश करने का आदेश होता तभी न्याय हो पाता।
दानिश भिड़ने के मूड में था उसके हाथ बड़ा कुछ एैसा लग गया था लेकिन बिट्टू उठकर चल दिया क्योंकि वह जानता था कि बड़प्पन भिड़ने में नहीं समस्या का समाधान करने में निहित है।