ऐसा भी होता है / कविता वर्मा
गली के नुक्कड़ पर जब से पान की दुकान खुली है मोहल्ले के लड़कों को ठिया मिल गया। सुबह से शाम तक मज़मा लगा रहता ,बातें और ठहाके गूंजते रहते। हालांकि किसी ने कोई ऐसी वैसी बात या हरकत नहीं की थी लेकिन फिर भी लड़कियाँ और औरतें वहाँ से गुज़रते हुए सिर और नज़रें झुका लेतीं। मोहल्ले के बड़े बूढ़े उनकी हँसी पर कुढ़ते रहते।
एक सुनसान दोपहर किसी लड़की की चीख़ के साथ दौड़ने भागने चिल्लाने की आवाज़ें सुनाई दीं तो लोग दरवाज़े खोल कर बाहर आ गये, सभी को आशंका थी कि इन लड़कों ने किसी को छेड़ा होगा, ये तो होना ही था।
तभी एक लड़का मोहल्ले की एक लड़की को उसके घर तक छोड़ कर तेज़ी से वापस भागा। लड़की ने रोते हुए बताया बाज़ार से एक लड़का उसका पीछा करते हुए मोहल्ले तक आ गया। नुक्कड़ पर खड़े लड़कों ने उसे फब्तियाँ करते सुना तो सबने मिलकर उसकी पिटाई कर दी और उन्ही में से एक भैया उसे हिफाज़त से घर तक छोड़ने आये। सब हतप्रभ थे।