ऐसी थी वो / अलका प्रमोद

Gadya Kosh से
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मैं आर्चडरोड पर घूम रही थी, घूमते घूमते मैं लकी प्लाजा के सामने पहुंच गई। आज रविवार था इसी लिये यहाँ अच्छी खासी भीड़ थी सब इधर से उधर अपनी अपनी दुनिया में व्यस्त आ जा रहे थे। कोई लड़की अपने मित्र के साथ सीढ़ियों पर बैठ कर आइसक्रीम खा रही थी, तो कुछ लड़कियें के झुंड किसी बात पर हंसी मजाक कर के खिलखिला रही थीं। यहाँ कुछ माह में रहते रहते मैं जान गई थी कि इस माल में दिख रही ये भीड़ अधिकतर विदेश से आई, उन लड़कियों की है जो अपने देश से इस सोने के अंडे देने वाले देश में पैसा कमाने आई हैं और किसी के घर में नौकरानी हैं या किसी रेस्ट्रां में वेट्रेस। यहां के नियम के अनुसार इन्हे दो सप्ताह में एक दिन अवकाश मिलता है। इस माल में, उनकी जेब के अनुसार दामों में चीजें मिल जाती हैं इसी लिये अधिकतर ये इसी माल में आकर अपने ज़रूरत की षापिंग करती हैं और फूड कोर्ट में खाती पीती हैं। टाइट पैंट, टाप पहने, शैम्पू किये बालों में हील पहन कर इतराती मस्त इन बालाओं को देख कर कौन कह सकता है कि अपने मन में ये कौन कौन से दर्द छिपायें हैं और गरीबी की मार से जूझने न जाने अपने किन किन आत्मीयों से दूर गुलामी का जीवन जी रही हैं।

चलते चलते थक कर मैं एक बेंच पर बैठ गई थी, तभी मैंने देखा क्रिस्टीना जैसी लगभग पचास वर्ष की एक महिला सामान ढोने की ट्राली में सामान रखे अपनी दुनिया में खेाई चली जा रही थी।मैं चौक गई, 'क्या ये क्रिस्टीना थी? नहीं नहीं वह कैसे हो सकती है वह तो लगभग पन्द्रह वर्ष पहले ही अपने देश फिलिपीन्स वापस जा चुकी है।हो सकता है ये मेरा भ्रम हो, वैसे भी एक देश के लोग मिलते जुलते होते है कि मुझे सब एक से ही लगते हैं।'

वेा जो भी रही हो पर जाते जाते वह मुझे अतीत की गलियों में ढकेल अवश्य गई थी।लगभग पांच वर्ष पूर्व मैं सिंगापूर अपने बेटे बहू के पास रहने आयी थी तो प्रायः कान्डोस में नीचे बने स्विमिंग पूल पर शाम को चली जाती थी। वहाँ शाम को नन्हे नन्हे पानी में तैरते स्केटिंग करते और खेलते हुए बच्चेां को देख कर मन प्रसन्न हो जाता था। अधिकतर छोटे बच्चो के साथ उनकी मेड रहती थी। जब बच्चे खेल रहे होते तो वह उनसे लापरवाह हो कर अपना गुट बना कर बातें करती रहती थीं। पर उन्ही में से एक मेड थी जो बस अपने काम से काम रखती। मैने उसे कभी हैलो हाय के अतिरिक्त किसी से अधिक बातें करते नहीं देखा।वह पूरी देर अपने मालिक के बच्चे से खेलती रहती। मुझे उसकी बच्चे और अपने मालिक के प्रति समर्पण और आत्मीयता ने प्रभावित किया, शायद यही कारण रहा होगा कि अब मै उसको देखती रहती।वह शायद मेरी आंखेंा की भाषा समझ गई थी इसी लिये अक्सर मुझे देख कर मुस्कुरा देती। धीरे धीरे हम दोनो में अनकही दोस्ती होने लगी फिर वह कभी कभी हमसे अपनी टूटी फूटी इंगलिश में बात भी करने लगी। बाद में पता चला िकवह कई वर्श किसी भारतीय के साथ भी काम कर चुकी है अतः काफी हिन्दी बोल लेती है फिर क्या था हमारे बीच भाषा की दीवार के ठहते ही परायानप भी चलता बना।

उसने बताया कि वह भह फिलीपीन्स के एक छोटे से शहर में अपने दो छोटे बेटो को छोड़ कर सालों पहले यहाँ आ गई थी। तबसे साल में एक बार मिलने चली जाती है। उसकी बात सुन कर मुझे उस पर गुस्सा आया, ऐसा भी क्या पैसे का लालच कि छोटे छोटे बच्चें को बेसहारा करके वह विदेश में पड़ी है। मैं अपना क्रोध छिपा न सकी और मैने उससे कहा” क्या तुम्हे पता है कि बचचे को माँ की कितनी ज़रूरत होती है ”यह सुन कर कुछ क्षणों के लिये वह चुप हो गई किफर उदास-सी बोली मैम यू आर आलसो मदर, आप तो समझ सकता है कि कितनी विवशता में कोई मो अपने बच्चे से दूर जाती है” फिर रुक कर बोली”माना एक बच्चे को मा की ज़रूरत होती है पर उससे जादा उसे जीवित रहने के लिये खाने की और कुछ बनने के लिये पढ़ाई की ज़रूरत होती है।”

मुझे अपनी भूल का अहसास हुआ, सच ही तो है हर इंसान की मजबूरियां ही उसे अपनो से दूर रहने को विवश करती हैं। बातों बातों में ही उससे पता चला कि उसका पति कुछ खास नहीं कमाता और जो कमाता है वह भी नशे की भेंट कर देता है।उसके देश में इतनी कमाई नहीं है िकवह अपने बच्चों को सुख दे सके इसी लिये वह अपनी भावनाओं का गला घोट कर यहाँ रहती है। वह जो भी कमाती बस थेाड़ा बहुत बचा कर शेष बच्चों के लिये भेज देती। मैंने पूछा तुम साल में एक बार तो जाती ही होगी न? तो वह बोती हो पहले तो जाती ्रेिािी पर अब दोनो बेटे ऊंची पढ़ाई कर रहे हैं इसी लिये पैसा जादा चाहिये। जाने में जो पैसा खर्च होता है मैं उन्हे ही भेज देती हूँ'6

मैने कहा तुम्हारा मन नहीं करता

मन किसमा नहीं करता अपने बड़े होते बच्चों को देखने का पर उनका भविश्य भ्बनान जादा ज़रूरी है

वह प्रायः ही अपने मालिक के बच्चे को प्यार करती और कहती इसे देख कर मुझे अपने छोटे बेटे की बहुत याद आती है। इतना ही बड़ा था जब मैं उसे छोड़ कर यहाँ आ गयी थी।ऐसा कहते हुए वह प्यार तो उस बच्चे को कर रही होती पर उसका मन अतीत में दूर कहीं फिलीपीन्स के छोट से शहर के उस घर में भटक रहा होता जहां उसका बेटा देर से आती बस को रांज इस आशा से देखता होगा कि शायद इससे उसकी माँ आ जायें। पर फिर अचानक ही उदासी को झटक कर वह मुस्करा कर कहती '8 मैम कुछ दिनों की बात है अब तो मेरा बेटा बीस साल का हो गया है जब वह कमाने लगेगा तब मैं जा कर आराम करुगी।उसकी तपस्या देख कर मेरा मन भी यही दुआ करता कि ईश्वर उसे षीघ्र ही वह दिन दिखाये जब वह अपने परिवार के साथे रहे।

एक दिन वह मिली तो बहुत प्रसन्न थी मैने पूछा क्या बात है क्रिस्टीना आज बहुत खुश दिखाई दे रही हो?

ते बोली मैम गॉड ने हमारी सुन ली मेरे बड़े बेटे की नौकरी लग गई है औ छोटे बेटे की पढ़ाई भी पूरी हो गयी है। अब मेरा यहाँ एक दिन भी मन नहीं लग रहा है मैं अगले महीने अपने देश वापस चली जाऊंगी।

मुझे यह सुन कर आन्तिरिक प्रसन्नता हुई मैने कहा बहुत खुशी की बात है पर तुम्हारे मालिक को दुख होगा उन्हे इतनी अच्छी मेड नहीं मिलेगी।इस पर वह बोली अरे मैम मालिक के पास पैसा है कोई न कोई मेड मिल ही जायेगी पर मुझे आज बरसों बाद मेरा परिवार मिलेगा। मैने अपने बच्चो का अचपन नहीं देखा पर अब इन्हे अपने हाथे से उनके मन का खाना खिलऊगी उनका काम करुगी उनकी बाते सुनूंगी...बातें करते करते वह अपनी कल्पना की दुनिया में खई न जाने क्या क्या बोले जा रही थी। मैंने उसे षुभकामनायेंद ीं उसकी खुशी छिपाये नहीं छिप रही थी।मैने हंस कर कहा”कोमूस्ता” तो वह हंस पड़ी। मुझे बातों बातों में उसी ने बताया था कि उसकी भाषा तगालो में नमस्कार को कोमूस्ता कहते हैं। उस समय उसका अंग अंग हंस रहा था उसने खिलखिला कर कहा” कोमूस्ता” और हाथ हिला कर विदा ले कर चली गयी।

कुछ दिनों में मैं भारत आ गई। इस बार सिंगापूर आने तक तो मैं क्रिस्टीनाको भूल भी चुकी थी पर आज उस स़्त्री को देख कर क्रिस्टीना की याद आ गई।काफी देर मैं विचारों के समुंदर में गोते लगाते लगाते सुस्ता ली थी अतः मैं चलने के लिये उठ खड़ी हुई। तभी उधर से वही स्त्री फिर आती दिखाई दी कुछ पास आने पर उसे देख कर मैं चौंक पड़ी वह मेरा भ्रम न था वह क्रिस्टीना ही थी।

मुझे देख कर इतने वर्षों बाद मै ही नहीं वह भी मुझे पहचान गई थी। मैंने कहा क्रिस्टीना तुम?

तो उसके चेहरे पर मुझे देख कर आई खुशी क्षण भर को विलुप्त हो गई और बोली” हां मेम मैं यहाँ एक यूरोपियन के यीां काम कर रही हूँ वह इतना अचछा है कि मैं आप को क्या बताता, मैं बहुत खुश हूँ आराम से घूमती मजे करती।उसकी टू फूटी हिन्दी सुन कर मुझे हमेशा मजा आता था पर आज

में समझ गई कि मेरे प्रश्नो से बचने के लियो वह यह अनावश्यक सूचनाये मुझे दिये जा रही है। पर मेरा मन नहीं माना मैने कहा वह सब तो ठीक है पर तुम तो सदा के लिये अपने घर चली गयी थी फिर ये क्या? क्या तुम्हारे बेटे को नौकरी नहीं मिली?

क्रिस्टीना के चेहरे पर क्षण भर को एक काली छाया आ कर चली गयीकुछ क्षण तो चुप रही फिर एक उदास-सी हंसी के साथ बोली मैम जो गॉड चाहता है वही होता है। यद्यपि क्रिस्टीना की व्यक्तिगत मामला था क्रिस्टीना मेरी इतनी आत्मीय नहीं थी कि मैं उससे कुछ पूछूं पर न जाने क्यों मुझे लगा कि शायद वह भी किसी से कुछ कहना चाहती थी अतः यह जानते हुए कि किसी के व्यक्तिगत जीवन में ताक झांक करना अभद्रता की श्रेणी में आता है मैने उससे कहा आओ मैं तुम्हे काफी पिलाती हूँ।

काफी का आर्डर दे कर मैने उससे पूछा अब बताओ तुम्हे क्यों फिर यहाँ नौकरी करने आना पड़ा

क्रिस्टीना ने बताया कि ज बवह अपने देश वापस पहुची तो इस आशा के साथ कि सब उसे पा कर खुश हों गे पर वहाँ तो अलग ही नजारा था ज ब वह घर पहुची तो दरवाजा खटखटाने पर एक स्त्री ने दरवाजा खोला और पूछा आपको किससे मिलना है क्रिस्टीना चौंक पड़ी उसने कहा यह जान का घर है न

हा और मैं उसकी पत्नी रोजा हूँ यह क्रिस्टीना के ऊपर तो मानो पहाड़ ही गिर पड़ा उसने कहा पर उसकी पत्नी तो मैं हूँ मैं आगे कुछ पूछती कि जान आ गया उसने कहा अरे! तुम कब आई

क्रिस्टीना ने कहा तुमने शादी कर ली और मुझे बताया भी नहीं

तुम तो सालों से आई भी नहीं मुझे एक साथी की ज़रूरत थी मैने शादी कर ली

कम से कम मुझसे पूछते या बताते तो

क्या होता क्या तुम खुश होती या मान जाती

और इब्राहिम और डिसूजा कहाँ हैं

इब्राहिम को रोजा पसंद नहीं थी वह अलग रहने लगा और अब तो उसने किसी लड़की से शादी भी करली है

क्रिस्टीना अभी एक आघात से उबरी भी नहीं थी कि उसे दूसरी चोट लगी उसका तो सिर ही चकराने लगा उसने डरते डरते पूछा डिसूजा कहाँ है तो पता चला िकवह कही गया हुआ है।

डिसूजा आया तो उसने मो को उदेख औपचारिक-सा प्यार किया और ओला माम तुमने बताया नहीं कि आ रही हो

क्रिस्टीना ने नाराज स्वर में कहा पर तुमने तो यह तक नहीं बताया कि यहाँ यह सग हो गया तुम तो हमेशा यही कहते रहे कि सब ठीक है इस घर में चार साल से दूसरी औरत रह रही है और तुम्हारे पापा ने न सही तुम तो मेरे बेटे थे पर तुमने भी नहीं बताया

कम आन माम तुम तो जानती हो यहाँ यह आम बात है। तुम सालों से बाहर हो आखिर पापा को भी पत्नी चाहिए थी न।

पर कम से कम बताता तो

अगर बता देता तो तुम हल्ला करती मुझे पता है तुम यह सह नहीं पाती और तलाक लेती या नौकरी छोड़ कर आ जाती।उससे क्या होता अगर तुम तलाक ले लेती तो यह घर भी पापा और उनकी दूसरी पत्नी को मिल जाता क्योंकि यह तो पापा के नाम है और तुम नौकरी छोड़ती तो मुरी पढ़ाई छूट जाती।वह तो तुम भी न चाहती।मेरी।वैसे भी पापा अपनी दूसरी पत्नी के साथ रहते हैं तुम जानती हो मेरे पास घर नहीं है इस लिये मैं तो यहीं रळूंगा। तुम चाहो तो यहीं रहो पापा मना तो कर नहीं रहे हें। पर मेरी मानो तो नौकरी करो स्वतंत्र रहो और ऐश करो बहुत दिन सबके लिए कमा लिया पर मौज करो।

क्रिस्टीना को विश्वास नहीं हो रहा था कि जिनके लिये उसने अपनी पूरी जिंदगी तपस्या में बिता दी उनके लिये वह मात्र एक पैसा कमाने की मशीन थी।उसकी भावना मान सम्मान ओर अधिकार से किसी को कुछ लेना देना नहीं था।काश जान, या डिसूजा किसी ने उससे एक बार यह कहा होता कि नहीं तुम रहो मुझे अच्छा लगेगा तो अपने अनमान भावना सब भूल कर रह लेती पर उसने पाया कि वहाँ तो किसी को उसकी ज़रूरत ही नहीं है।

क्रिस्टीना वापस आ गई।उसकी कहानी सुन कर मेरी ओखों में आसू आये बिना नहीं रह पाय, मैं उसके दर्द को अनुभव कर सकती थी क्योंकि मेंने उन ओखों में जाते समय उठती उमंग को देखा था अपनो से मिलने की आतुरता को देखा था।मैंने उसे अपना फोन नम्बर दे कर उससे विदा ली।

घर आ कर में निरंतर सोचती रही दोश किसका है उसके पति जान का? माना उसने धोखा दिया एक तो जो दायित्व उसे उठाना चाहिए था वह क्रिस्टीना ने उठाया वह उसकी प्रतीक्षा नहीं कर पाया पर क्रिस्टीना बता रहीथी कि दूारी बीबी रखना वहाँ आम बात है ऐसे में सालो साल पत्नी के दूर रहने पर ग़लत होते हुये भी क्या यह अस्वाभाविक नहीं था। दोश तो डिसूजाऔर इग्राहिम का भी नहीं उन्होने माँ के प्यार को जाना ही कहाँ जब उसे माँ के सान्ध्यि की आवश्यकता रही होगी त ब उसे कहाँ समझ आता होगा कि जिस सुविधा को देने के लिये माँ दूर गई है उसका क्या महत्त्व है।उसने तो उसे मात्र पैसा कमाने की मशीन समझा और आज उसको उसकी आवश्यकता नहीं रह गयी थी।

पर दोशी तो क्रिस्टीना किसी हालत में नहीं थी बच्चों को रोटी कपड़ा पढ़ाई देना भी तो आवश्यक था न और फिलीपीन्स में तो अधिकतर स्त्रियां यही कर रही है यहाँ तक कि सिंगापूर में ही 75 प्रतिशत स्त्रियां मेड के रुप में काम करने वाली वही की हैं तो क्या इन सब के लिश्े वहो का समाज और परिश्थितिया दोशी हैं, मन मकडत्रे के जाल के समान उलझता जा रहा था पर कारण जो भी हा यह निशिचत था कि क्रिस्टीना के साथ अन्याय हुआ था। कल क्रिस्टीना ठीक ही तो कह रही थी अब मेरा कोई नहीं में सिर्फ अब अपने लिये जीवन जियोंअपने भविश्य के लिये पैसे जमा करो।

दूसरे दिन मैं चाय पी रही थी कि मेरा मोबाइल बज उठा मैने फोन उठाया तो क्रिस्टीना थी बोली मैम मैं फिलीपीन्स जा रही हूँ आप मेरी इजनी चिन्ता हरती हैं इस लिये मैने सोचा बता दूं मैं चौंक पड़ी अभी कल तो कह रही थी मैने सारे नासते तोड़ दिये अब आज क्या हुआ

बोली” मैम आप ने न्यूज नहीं पढ़ी एक फिलीपीन्स की फेरी डूब गई, बहुत लोग डूब गये”

“तो क्या तुम्हारा बेटा...मुझे पता था कि डिसूजा फेरी पर ही काम करता है”

“नही नहीं मैम बाई गॉड ग्रेस वह बच गया पर उसे बहुत चोट आई है और नौकरी भी चली गई उसका है ही कौन जो सेवा करे”।

मैं समझ नहीं पा रही थी कि क्या कहूँ बस यही कह पायी 'ईश्वर तुम्हे खुशी दे।'