ऐसे आई रात / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
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तब सूरज और चाँद समुद्र में रहते थे। सुबह जागते और चल पड़ते। शाम होती और लौट आते। एक बार धरती और चाँद बातें कर रहे थे। धरती ने कहा,‘‘सूरज की धूप से मुझे परेशानी होती है। मेरी पपड़ी सूख जाती है।’’ चाँद बोला-‘‘सूरज की गरमी से मुझमें गहरे गड्ढे हो गए हैं।’’ सूरज सब सुन रहा था। वह बोला-‘‘मेरा काम ही धूप बिखेरना है। मुझे भी तो गरमी लगती है।’’ चाँद ने कहा-‘‘तुम्हारी गरमी से धरती पीड़ित है।’’ सूरज को बुरा लगा। वह बोला-‘‘तो क्या आराम करूँ?’’ चाँद ने कहा-‘‘तो जाओ। रोक कौन रहा है?’’

सूरज बहुत दूर चला गया। उसके बिना सब बेरंग हो गया। चीख-पुकार और खलबली मचने लगी। अँधेरा भी होता है। यह पहली बार पता चला। कल तक चाँद दूध की तरह सफेद दिखाई देता था। आज कोयला जैसा हो गया। धरती भी काँपने लगी। काँपते-काँपते घूमने लगी। धरती से गरमी ग़ायब हो चुकी थी। पक्षी उड़े तो पेड़ों से टकरा गए। पशु दौड़े तो लड़खड़ाकर गिर गए। बादल उड़े तो हिमालय की चोटियों में जा फँसे। मछलियाँ तटों से बाहर जा गिरीं। अँधेरा छा गया।

सरदी बढ़ गई। सब ठिठुरने लगे। थककर घबराने और चिल्लाने लगे। शोर बढ़ता चला गया। हवा पूछते-पूछते सूरज के पास पहुँची। सूरज ने कहा-‘‘धरती और चाँद को समझाओ। उन्हें ही परेशानी हुई थी।’’ हवा ने समझाया-‘‘वह ग़लती मान चुके हैं। रात क्या होती है? यह तुम्हारे जाने के बाद पता चला। प्रलय मची हुई है। हाथ को हाथ नहीं सूझ रहा है।‘‘ सूरज अड़ा रहा। हवा ने फिर समझाया-‘‘तुम्हारी रोशनी से ही तो धरती में जीवन है। चाँद की चमक तुम्ही से है। वह पछता रहे हैं। वापिस चलो।‘‘ सूरज बोला-‘‘धरती को मेरे चक्कर लगाने होंगे।’’ हवा बोली-‘‘ठीक है।’’ सूरज ने कहा-‘‘ठीक है। अब मैं अपनी जगह टिका रहूँगा। कहीं नहीं जाऊँगा।’’ सूरज चमकने लगा। सबने राहत की सांस ली। सूरज धरती और चाँद से बहुत दूर हो गया था। वहीं धरती घूमते-घूमते सूरज का चक्कर लगाती है। जो भाग सूरज के सामने आता है, वहाँ उजाला रहता है। वह दिन कहलाता है। जिस भाग पर सूरज की रोशनी नहीं पहुँचती, वहाँ अँधेरा रहता है। उसे रात कहते हैं। चाँद घटता-बढ़ता दिखाई देता है।