ऐसे चखा शहद / मनोहर चमोली 'मनु'
तितली फूलों पर मंडरा रही थी। भालू ने पूछा-"दिन भर फूलों पर मंडराती हो। क्या करती रहती हो?" तितली एक फूल पर बैठ गई। बोली-"रस चूसती हूँ।" भालू चैंका-"रस?" तितली ने बताया-"हाँ रस। इन फूलों में रस होता है।" भालू ने पूछा-"ये कैसा होता है?" तितली ने बताया-"बहुत ही मीठा।"
भालू बोला-"मुझे भी चखाओ न।" तितली हंसने लगी-"मैं दिन भर रस ही तो चूसती हूँ। मैं सारा रस एक जगह पर इकट्ठा करूं तो भी वह एक बूंद भर ही होगा। अब एक बूंद से तुम्हें स्वाद का कैसे पता चलेगा?" भालू सोच में पड़ गया। अचानक तितली को कुछ सूझा। वह बोली-"तुम एक काम करो। रानी मधुमक्खी से बात करो। मधुमक्खियाँ फूलों के रस को शहद में बदल देती हैं।" भालू ने तितली की ओर देखा-"शहद!" तितली ने पंख फैलाए, कहा-"हाँ, शहद। यह बहुत ही मीठा होता है। शानदार। लाजवाब। मजेदार। मधुमक्खियाँ मेरी तरह फूलों के मकरंद से मधुरस तैयार करती हैं।" भालू ने पूछा-"ये रानी मधुमक्खी कहाँ मिलेगी?"
तितली बोली-"छत्ते पर। मधुमक्खियाँ छत्ता बनाती है। वे शहद को छत्ते में जमा करती है। अपने और अपने बच्चों के भोजन के लिए।" भालू फिर चैंका-"छत्ता!" तितली झल्लाते हुए बोली-"तुमने छत्ता नहीं देखा? तुम्हारी सूंघने की क्षमता बहुत होती है। तुम पानी में तैर लेते हो। पेड़ पर भी चढ़ जाते हो। तुम तो सब कुछ खा लेते हो। अजीब बात है कि तुमने अभी तक शहद नहीं चखा है।" भालू झेंप गया। कहने लगा-"अब छोड़ो न। मुझे छत्ते का पता तो बताओ।" तितली ने इधर-उधर देखा। कहा-"देखो। कितनी सारी मधुमक्खियाँ। वे फूलों का रस चूसने के लिए सैकड़ों चक्कर लगाएगी। रस चूस कर अपने छत्ते में ले जाएंगी।" भालू मुस्कराया। वह मधुमक्खियों के पीछे-पीछे चलता हुआ छत्ते तक जा पहुँचा।
भालू ने आवाज़ लगाई-"रानी मधुमक्खी। ओ रानी मधुमक्खी।" मधुमक्खी बाहर आई। भालू ने कहा-"मुझे थोड़ा-सा शहद चाहिए। मैंने आज तक शहद नहीं चखा।" रानी मधुमक्खी सोचने लगी-"भालू से छत्ता बचाना होगा।" वह भालू से बोली-"अभी तो हमने छत्ता बनाना ही शुरू किया है। बाद में आना।" भालू चला गया। वह कुछ दिनों बाद फिर आया। उसने आवाज़ लगाई। मधुमक्खी बाहर आ गई। वह भालू से बोली-"छत्ता बन चुका है। अब मधुमक्खियाँ फूलों से रस इकट्ठा करेंगी। छत्ते में लाएंगी। जब छत्ता रस से भर जाएगा, तब आना।" भालू चला गया। वह कुछ दिनों बाद फिर आया। रानी मधुमक्खी ने समझाया-"रस अभी चिपचिपा है। हम अब शहद बनायेंगे। बाद में आना।" भालू कुछ दिनों बाद फिर आया। रानी मधुमक्खी ने कहा-"मेरे बच्चे अभी सो रहे हैं। शहद गाढ़ा है। छत्ते से शहद टपकेगा तो आवाज़ होगी। बच्चे जाग जायेंगे। बाद में आना।" भालू फिर आया। पूछने लगा-"बच्चे जाग गए?" रानी मधुमक्खी ने जवाब दिया-"बच्चे जाग गए हैं। वे अभी खाना खा रहे हैं। बाद में आना।"
भालू चला गया। रास्ते में उसे तितली मिल गई। तितली ने भालू से पूछा-"शहद चख लिया न?" भालू ने सारा किस्सा सुनाया। तितली हंसते हुए बोली-"अब शायद ही तुम्हें वहाँ शहद मिले।" भालू दौड़ा-दौड़ा छत्ते के पास जा पहुँचा। उसने रानी मधुमक्खी को आवाज़ लगाई। रानी मधुमक्खी छत्ते से बाहर नहीं आई। भालू पेड़ पर चढ़ गया। यह क्या! छत्ते में कच्चा मोम ही बचा था। मधुमक्खियाँ बच्चों समेत उड़ चुकी थीं। छत्ते में शहद की एक बूंद तक न बची थी। भालू बौखला गया। सोचने लगा-"छत्ते के कई चक्कर लगाए। एक बूंद शहद नहीं मिला। कोई बात नहीं। अब मैं जान गया हूँ कि मधुमक्खियाँ छत्ता कब बनाती हैं। कैसे बनाती हैं। शहद बनाने में वह कितना समय लेती हैं। अब मैं शहद मांगकर नहीं, छीनकर खाऊंगा।" बस! तभी से भालू छत्तों पर नज़र रखता है। मौका पाते ही वह छत्ते पर टूट पड़ता है। भरपेट शहद खाता है। आज भी मधुमक्खियाँ भालू से शहद बचाने की कोशिश में लगी है।