ऐसे बचाए पेड़-पौधे / मनोहर चमोली 'मनु'

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक राजा बगीचे में टहल रहा था। तभी एक कौए ने उसके सिर पर बीट कर दी। राजा बौखला गया। चिल्लाया, ‘‘न रहेगा बांस, न बजेगी बांसुरी। जब ये पेड़ ही नहीं रहेंगे, तो कौए भी नहीं रहेंगे। ये पक्षी भी किसी काम के नहीं होते। मैं राज्य के सभी पेड़-पौधे कटवाने का आदेश देता हूं।”

राजा ने कुछ दिनों बाद अपने आदेश के बारे में पूछा। सेनापति ने कहा, ‘‘कुल्हाड़ियों और आरियों की धार तेज की जा रही है। फिर इस काम के लिए कुशल मजदूर चाहिए। किसकी हिम्मत है कि आपके आदेश का पालन न करे।” मगर सचाई तो दूसरी ही थी। दरबारी राजा की सनक से परेशान थे।

पेड़-पौधे कटने ही वाले हैं, यह बात एक साधु को भी पता चली। वह दरबार में आया और राजा से बोला, ‘‘महाराज, यदि आप अमर होना चाहते हैं, तो मेरी कुटिया में चलिए। आपको एक दिन मेरे अतिथि कक्ष में ही रहना होगा। बस, राजमहल लौटने तक आपको आंखों पर काली पट्टी बांधनी होगी। ध्यान रहे कि पट्टी किसी भी दशा में खोली नहीं जाएगी। मेरा सबसे विश्वसनीय शिष्य हर पल आपकी सेवा में वहां उपस्थित रहेगा।”

राजा ने खुश होते हुए कहा, ‘‘मैं अमर होने के लिए एक दिन राजसी ठाट-बाट त्याग सकता हूं। चलिए, अभी चलते हैं।”

राजा साधु की कुटिया में आया। उसकी आंखों पर पट्टी बांध दी गई। अगले दिन राजा उठा और आवाज लगाई, तो साधु का एक चेला हाजिर हो गया। राजा ने कहा, ‘‘दंत मंजन चाहिए।”

चेले ने कहा, ‘‘हम तो नीम, हरड़, बहेड़ा, लौंग और मुलेठी से दांत साफ करते थे। लेकिन आपके आदेश के बाद पेड़ ही नहीं बचेंगे। सो यहां दंत मंजन नहीं किया जाता।”

राजा सकपका गया।

राजा ने चेहरा पोंछने के लिए तौलिया मांगा। चेले ने फिर कहा, ‘‘महाराज, तौलिए के रेशे कपास के पौधे से मिलते थे। जब पेड़ नहीं बचेंगे, तो रेशे कहां से आएंगे? हमने तौलिया ही रखना छोड़ दिया।” राजा चुप हो गया।

अब राजा की इच्छा चाय पीने की हुई। चाय लाने की बात कही। चेले ने कहा, ‘‘क्षमा महाराज, चाय भी तो चायपत्ती के पौधे से मिलती है। जब पौधे ही नहीं रहेंगे, तो चायपत्ती कहां से आएगी?”

राजा बौखला गया। बौखलाहट छिपाते हुए उसने दूध मांगा। चेले ने फिर क्षमा मांगते हुए कहा, ‘‘महाराज, जब पेड़-पौधे ही नहीं बचेंगे, तो मवेशियों को चारा कहां से मिलेगा? यही कारण है कि अब कुटिया में दूध भी उपलब्ध नहीं है।”

राजा को थोड़ी देर में भूख लगी। उसने चपाती मंगाई। चेले ने विनम्रता से कहा, ‘‘महाराज, आपका आदेश सिर आंखों पर। लेकिन गेंहू भी तो एक पौधा है। अब खेतों में फसल उगाने पर आपके सैनिक प्रतिबंध लगाएंगे। जब गेंहू ही पैदा नहीं होगा, तो आटा कहां से आएगा? फिर चपाती का तो कोई मतलब ही नहीं है।”

राजा कांप उठा। उसे ठंड लगी, तो उसने ऊन से बने वस्त्र की मांग की।

चेले ने कहा, ‘‘महाराज, आप बार-बार ऐसी मांग क्यों करते हैं, जिन्हें पूरा करना संभव नहीं। ऊन भेड़ों से मिलती है। अब आपके राज्य में चारा ही नहीं मिलेगा, तो भेड़ कहां से जीवित रहेंगी। ऊनी वस्त्र कहां से आएंगे?”

राजा ने याचना भरे स्वर में कहा, ‘‘अच्छा, कुछ फल ही कहीं से मंगवाइए! बहुत भूख लगी है।”

चेला मुसकराते हुए कहने लगा, ‘‘महाराज, फल भी तो पेड़ों पर लगते हैं। फल से पहले पेड़ों पर फूल आते हैं....।”

राजा के सब्र का बांध टूट गया। उसने गुस्से में पट्टी उतार दी। तभी साधू आ गया। उसने कहा, ‘‘अरे महाराज! यह क्या किया आपने? आपने तो पट्टी ही उतार फेंकी। अब आप अमर कैसे हो पाएंगे?”

राजा ने साधू को प्रणाम करते हुए कहा, ‘‘महात्मा, मुझे क्षमा करंे। मुझसे अनजाने में ही बहुत बड़ी गलती हो गई। मेरे दरबारी राज्य के सभी पेड़-पौधों को काटने की तैयारी में जुटे हुए हैं। बहुत बड़ा अनर्थ होने से पहले ही मुझे दरबार में पहुंचना होगा।”

राजा सिर झुकाते हुए राजमहल की ओर चल पड़ा। साधु की सूझ-बूझ से राज्य के पेड़-पौधे कटने से बच गए।