ऐ मालिक तेरे बंदे हम / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 01 फरवरी 2022
अपराध और बुराई को रोकने के लिए हर देश में दंड विधान अलग-अलग हैं परंतु आदर्श एक रहा है कि एक निरपराध व्यक्ति दंडित नहीं हो, भले ही कुछ गुनहगार दंड से बच जाएं। सजा सकारात्मक हो ताकि मनुष्य को दूसरा अवसर मिल सके। शांताराम की फिल्म ‘दो आंखें बारह हाथ’ में एक पुलिस अफसर सरकार से अनुमति लेकर कुछ अपराधियों को सुधारने का उत्तरदायित्व लेता है। अफसर उन्हें अहिंसा के मार्ग पर लाने का प्रयास भी करता है। गांधीवादी आदर्श से प्रेरित इस फिल्म में प्रस्तुत किया गया है कि अपराधी कड़ी मेहनत कर फसल उगाते हैं। वे अपने उपजाए अन्न और फल लागत पर आंशिक मुनाफा लेकर मंडी में बेचने जाते हैं। बाजार पर कब्जा जमाए हुए लोग किसान से सस्ते में वो फल-सब्जियां खरीदकर उपभोक्ता को महंगे दाम में बेचते हैं।
अपराधियों के श्रम के फल सस्ते में उपलब्ध हैं। दलाल वर्ग उन्हें हिंसा के लिए उकसाता है क्योंकि इससे जेलर का आदर्श टूटेगा। ऐसा होने पर ईमानदार व्यक्ति टूट जाता है। दलाल अपनी तरकीब में कामयाब होते हैं। मेहनती किसान अपना माल लुटते देखता है तो धैर्य खो देता है। वह पलट वार करता है। जेलर का आदर्श टूट जाता है पर मेहनतकश लोग पुनः प्रयास करते हैं। इस बार चतुर दलाल उनके पसीने की फसल को बर्बाद करने के लिए एक पागल सांड उनके खेत में पहुंचाते हैं। जेलर स्वयं उस सांड को पराजित करता है। परंतु इस काम में वह गंभीर रूप से चोटिल हो जाता है उसके लिए कैदी प्रार्थना करते हैं। ‘ए मालिक तेरे बंदे हम ऐसे हो हमारे करम नेकी पर चलें और बदी से टलें ताकि हंसते हुए निकले दम’। गौरतलब है कि शांताराम ने इस सांड से लड़ाई के दृश्य की शूटिंग में कोई बॉडी डबल या डुप्लीकेट नहीं लिया। इसका खतरा बहुत था। उन्होंने इसे कोल्हापुर में फिल्माया, जहां से उनका कॅरिअर प्रारंभ हुआ था। बहरहाल, कभी-कभी राजा अपने अनोखे ढंग से सजा देते हैं। रस्किन बॉन्ड की एक रचना में प्रस्तुत किया गया है कि एक राजा अपना सफेद रंग का हाथी एक परिवार को भेंट में देता है। शर्त यह थी कि भेंट में दिया हाथी मरना नहीं चाहिए। बहरहाल, हाथी को पालते-पालते, पालने वाला परिवार ही पूरी तरह खत्म हो जाता है। अत: राजा ने इस ढंग से उन्हें दंड दिया। दक्षिण भारत में बनी एक फिल्म में प्रस्तुत किया गया है कि राजा अपनी सेविका से प्रेमिका बनी महिला को महंगी वस्तुएं भेंट में देता है। उसकी सेविका के निवास के निकट एक धोबी रहता है। वह उस सेविका से पूछता है कि कुछ समय उसके साथ बिताने के लिए उसे कितना धन देना होगा। वह अपना पेट काटकर बचत करता है और सेविका के लिए धन जमा करता है। लेकिन इन सेविकाओं के लिए यह खेल है। एक दिन सेविका को धोबी बताता है कि अब उसे पैसे जमा करने की आवश्यकता नहीं रही क्योंकि कभी-कभी वह सेविका को इतनी शिद्दत और भावना की गहराई से याद करता है कि उनका मिलन स्वप्न में ही हो जाता है। इस बात पर वह सेविका भड़क जाती है।
वह सेविका दरबार में प्रार्थना पत्र प्रस्तुत करती है कि धोबी से उसे धन दिलाया जाए। रानी से कुछ भी छुपा नहीं था। वह राजा से प्रार्थना करती है कि इस प्रकरण में उसे न्याय मिले।
रानी दरबार में एक आदम कद आईना रख देती है। आईने के सामने ढेर सारा धन रखवाया जाता है। उस सेविका से कहा जाता है कि आईने में दिख रहा धन उसका मेहनताना है। अब सपने में मुलाकात की कीमत तो धन की यह परछाई ही हो सकती है। इस फैसले के बाद राजा उस महिला के यहां जाना बंद कर देता है। इस तरह चतुर रानी ने एक तीर से दो निशाने साधे।
अत: व्यवस्था द्वारा दी गई भेंट भी हानिकारक हो सकती है। जाने कब कहां से सफेद हाथी भेज दिया जाता है और उसे पालते-पालते लोग मर जाते हैं। बादल वर्षा देते हैं, कभी-कभी बिजली भी गिरती है। निदा फ़ाज़ली की पंक्तियां याद आती हैं कि ‘बरसात का बादल तो दीवाना है क्या जाने किस राह से बचना है किस छत को भिगोना है ।’