ऑनर किलिंग / कविता वर्मा
बेटी के शव को पथराई आँखों से देखते रहे वह। बेटी के सिर पर किसी का हाथ देख चौंक कर नज़रें उठाई तो देखा वह था। लोगों में खुसुर पुसुर शुरू हो गयी कुछ मुठ्ठियाँ भिंचने लगीं। इसकी यहाँ आने की हिम्मत कैसे हुई। ये देख कर वह कुछ सतर्क हुए आगे बढ़ते लोगों को हाथ के इशारे से रोका और उठ खड़े हुए। वह चुपचाप एक किनारे हो गया।
तभी अचानक उन्हें कुछ याद आया और वह अन्दर कमरे में चले गए। बेटी की मुस्कुराती तस्वीर को देखते दराज़ से वह कागज़ निकाला और आँखों को पोंछ पढने लगे।
पापा मैं ऐसे अकेले विदा नहीं लेना चाहती थी। बिटिया की आँखों में उन्हें आँसू झिलमिलाते नज़र आये।
चिता पर बिटिया को देख उनकी आँखे भर आयीं उसे इशारा कर उन्होंने अपने पास बुलाया और जेब से कुमकुम की डिबिया निकल कर उसकी ओर बढा दी।
हतप्रभ से डबडबाई आँखों से उसने डब्बी लेकर उसकी मांग में सिन्दूर भरा और रोते हुए उसके चेहरे पर झुक कर उसका माथा चूम लिया।
उन्होंने जलती लकड़ी उसे थमा दी और बिटिया से माफ़ी माँगते हुए उसके सिरहाने वह कागज़ रख दिया।
जलते हुए कागज़ के साथ उन्होंने ऊँची जाती का अभिमान भी जला डाला था।