ऑर्डर-ऑर्डर और सिल्वर स्क्रीन / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 15 नवम्बर 2021
गौरतलब है कि ‘उपहार’ सिनेमाघर अग्निकांड फैसले में अंतिम कुछ अखबारी सुर्खियां इस तरह हैं कि ‘दिल्ली के उपहार सिनेमाघर में फिल्म ‘बॉर्डर’ के प्रदर्शन के समय आग लगने के कारण कुछ लोगों की मृत्यु हो गई थी। सिनेमाघर मालिकों पर मुकदमा चलाया गया। पीड़ित, नीलम कृष्णमूर्ति को 24 वर्ष तक चले मुकदमे में 9 नवंबर को न्याय मिला।’ एक अन्य प्रकरण में 6 वर्ष तक मुकदमा चला और 25 लाख खर्च होने के पश्चात पीड़ित को न्याय मिला। व्यक्ति ने अदालत के 80 चक्कर लगाए और जमा पूंजी गंवाई। गौरतलब है कि अदालत केंद्रित कई उपन्यास लिखे गए हैं और फिल्में बनाई गई हैं। श्री लाल शुक्ल के उपन्यास ‘राग दरबारी’ में एक पात्र को न्याय मिला, परंतु फैसले की प्रतिलिपि देने के लिए उससे रिश्वत मांगी गई, जिसे देने से उसने इनकार कर दिया। बाद में वह सारा जीवन वह फैसले की कॉपी पाने का प्रयास करते हुए मर गया। इस प्रकरण का दूसरा पक्ष फिल्म ‘जॉली एलएलबी’ में प्रस्तुत हुआ जहां जज कहता है कि ‘अदालत के इन बदबूदार कमरों में बैठने से उनका दम घुटने लगता है।’ वकील फैसले में देर करने के लिए तरह-तरह की अड़चन डालते हैं। फिल्म में एक वकील निर्णायक गवाह को रोकने के लिए धरने पर बैठ जाता है। जज भी धरने पर बैठ जाता है और अंत में जज अपना फैसला सुनाने में सफल होता है।
विजय तेंदुलकर के नाटक ‘शांतता कोर्ट चालू आहे’ इस विषय पर एक महान नाटक है। अगाथा क्रिस्टी की रचना ‘विटनेस फॉर द प्रॉसिक्यूशन ’ दशकों तक इंग्लैंड में मंचित किया गया है। इससे प्रेरित फिल्म भी बनी है। एक अन्य रचना में दंडित अपराधी जेल से भागकर जज के घर जा पहुंचता है। वह जज के द्वारा किए गए अपराध के राज से परदा उठा देता है। कहा जाता है कि हजारों लोगों का जीवन जेल में गुजर जाता है और उन्हें कभी अदालत में प्रस्तुत नहीं किया जाता। अमिताभ बच्चन और तापसी पन्नू अभिनीत फिल्म ‘पिंक’ में उम्रदराज वकील न्याय दिलाने में सफल होता है।
बलदेव राज चोपड़ा की फिल्म ‘कानून’ में अदालत में इस तरह के तथ्य उजागर होते हैं कि जज ही अपराधी है। फिल्मकार ने एक रोचक प्रसंग में पतली गली यह निकाली की जज के जुड़वां भाई ने अपराध किया था। पंडित जवाहरलाल नेहरू ने लंदन से वकालत की डिग्री पाई थी। ज्ञातव्य है कि महात्मा गांधी ने भी दक्षिण अफ्रीका में रंगभेद के खिलाफ हुकूमत-ए-बरतानिया की अदालत में संघर्ष किया था। एक दौर में प्रशिक्षित वकीलों ने स्वतंत्रता संग्राम में हिस्सा लिया था। फिल्म ‘अंधा कानून’ में अमिताभ बच्चन के पात्र को एक प्रकरण में फंसाया गया और जेल की सजा काटकर बाहर आने पर वह उसी व्यक्ति का भरी अदालत में कत्ल करता है, जिसके तथाकथित कत्ल के लिए वह 20 वर्ष की सजा काट चुका है। श्रीदेवी की मां को इलाज के लिए अमेरिका के अस्पताल में भर्ती किया गया था। उनके शरीर के बाएं तरफ जख्म था और सर्जन ने गलत जगह की शल्य चिकित्सा कर दी। बोनी कपूर ने प्रकरण, अमेरिका की कोर्ट में दाखिल किया और मुआवजे में लगभग 20 लाख रु. श्रीदेवी को दिए गए थे। श्रीदेवी अभिनीत अंतिम फिल्म ‘मॉम’ में श्रीदेवी अभिनीत पात्र अपनी सौतेली बेटी से दुष्कर्म करने वाले चारों अपराधियों को इस तरह मारती है कि वह कोई सबूत नहीं छोड़ती।
अंतिम अपराधी को मारने के लिए तहकीकात करने वाला अफसर उसे अपनी रिवॉल्वर देता है ताकि इसे पुलिस एनकाउंटर बताया जा सके। अक्षय खन्ना ने अफसर की भूमिका अभिनीत की थी। फौज कोर्ट मार्शल प्रकरण में ‘शौर्य’ महत्वपूर्ण फिल्म है। राज कपूर की फिल्म ‘आवारा’ का सारा घटनाक्रम अदालत में घटित प्रस्तुत है। बहरहाल, जस्टिस एम.सी. छागला की ‘रोज़ेज़ इन दिसंबर, एक आत्मकथा’ अत्यंत पठनीय किताब है।