ऑस्कर एवं घटियापन का ऑस्कर समारोह! / जयप्रकाश चौकसे

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ऑस्कर एवं घटियापन का ऑस्कर समारोह!
प्रकाशन तिथि :07 मार्च 2018


ऑस्कर पुरस्कार समारोह में भारत का प्रतिनिधित्व करने वाली फिल्म 'न्यूटन' को कोई पुरस्कार नहीं मिला। दुनिया के अनेक देशों में फिल्म पुरस्कार समारोह होते हैं परंतु ऑस्कर का महत्व इसलिए है कि पुरस्कृत फिल्में वहां पुन: प्रदर्शित होती हैं और अच्छी-खासी कमाई करती है गोयाकि अमेरिका के फिल्म दर्शकों ने अपने समारोह का मान बढ़ाया है। इतना ही नहीं वरन पुरस्कार प्राप्त कलाकार का मेहनताना भी बढ़ जाता है। भारत में राष्ट्रीय पुरस्कार पाने वाली फिल्में पूरे देश में प्रदर्शित ही नहीं होतीं। कम से कम दूरदर्शन पर तो उन्हें प्रसारित किया जाना चाहिए। कई दशक पूर्व ऋषिकेश मुखर्जी की 'अनुराधा' को श्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला था और राज कपूर की 'जिस देश में गंगा बहती है' को गुणवत्ता का प्रमाण-पत्र मिला था। राज कपूर ने बाबू मोशाय को बधाई दी तो 'बाबू मोशाय' मुखर्जी ने कहा कि वे अपना पुरस्कार राज कपूर को देना चाहते हैं और इसके एवज में राज कपूर अपनी फिल्म की किसी एक सिनेमाघर की कमाई उन्हें दे दें। स्पष्ट है कि राष्ट्रीय पुरस्कार और बॉक्स ऑफिस की कमाई के बीच कोई रिश्ता नहीं है।

भारत की सर्वकालिक महान फिल्म 'मदर इंडिया' को केवल इसलिए ऑस्कर से नहीं नवाज़ा गया कि अकादमी के मतदाताओं को यह बात समझ में नहीं आई कि फिल्म की नायिका महाजन द्वारा दिए गए शादी के प्रस्ताव को क्यों अस्वीकृत करती है, जबकि उसका पति पलायन कर गया है। ऑस्कर मतदाताओं को भारतीय संस्कार का ज्ञान नहीं था कि पलायन करने वाला पति मृत घोषित नहीं हुआ है। नायिका मांग में सिंदूर भरना जारी रखती है। नायिका उस महाजन से कैसे शादी कर सकती है, जिसके सूद पर सूद के कारण उसका पति पलायन कर गया है। दरअसल, भारतीय फिल्म उद्योग को अमेरिका में किसी को नियुक्त करना होगा, जो मतदाताओं को देश के सांस्कृतिक इतिहास की जानकारी प्रदान करे। अगर 'मदर इंडिया' के बारे में मतदाताओं को सही पृष्ठभूमि की जानकारी होती तो फिल्म को पुरस्कार अवश्य मिलता।

एक और प्रसंग है शशि कपूर द्वारा निर्मित अपर्णा सेन की '36 चौरंगी लेन' का, जिसमें प्रस्तुत मानवीय करुणा से प्रभावित ऑस्कर मतदाताओं ने उसे पुरस्कृत करने का निर्णय ले लिया परंतु उसी समय एक व्यक्ति ने कहा कि फिल्म अंग्रेजी में बनी है और उसे प्रवेश दिया गया है विदेशी भाषा के पुरस्कार के लिए। इस अफसरी भूल के कारण पुरस्कार नहीं मिला। अगर '36 चौरंगी लेन' सामान्य श्रेणी में प्रवेश करती तो उसे ऑस्कर मिलना तय था।

वर्ष 1928 में मार्गरेट हैरिक अमेरिका के निर्माताओं के संघ की सहसचिव थीं। जब ऑस्कर ट्रॉफी का मॉडल बनकर आया तब हैरिक ने कहा कि यह ट्रॉफी उन्हें उनके निकट रिश्तेदार मिस्टर ऑस्कर की तरह दिखती है। इसी कारण सदस्यों ने 'ऑस्कर' नामकरण किया। एक साल मार्लिन ब्रैंडो ने श्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार यह कहकर अस्वीकृत किया कि अमेरिकी सरकार अमेरिका के मूल निवासियों 'रेड इंडियन्स' के प्रति सदैव निर्मम रही है। यह एक साहसी निर्णय था। ऑस्कर पुरस्कार वितरण के दौरान सभागृह में किसी तरह का विज्ञापन नहीं किया जा सकता। हमारे पुरस्कार प्रायोजित होते हैं। हमारे देश में तो विज्ञापन का मुर्गा बांग नहीं दे तो संभवत: सूर्योदय ही न हो।

एक मजेदार तथ्य यह है कि ऑस्कर समारोह के एक दिन पूर्व 'गोल्डन रास्पबेरी' समारोह में सबसे घटिया फिल्म और घटिया कलाकार को पुरस्कार देने का एक मजाकिया समारोह भी होता है। कलाकार भी खेल भावना का प्रदर्शन करते हुए इन संदिग्ध पुरस्कारों को स्वीकार करते हैं। क्या इस तरह का कोई समारोह भारत में आयोजित किया जा सकता है? क्या कोई अभिनेता सबसे बुरे अभिनेता का पुरस्कार ग्रहण कर सकता है? गौरतलब है कि रोनाल्ड रेगन को सबसे बुरे अभिनेता का पुरस्कार दिया गया था। कालांतर में वे अमेरिका के राष्ट्रपति चुने गए थे। हमारे हुक्मरान अच्छे अभिनेता और बुरे शासक हैं। अगर हमारे यहां घटिया फिल्म समारोह होता तो 'रामगोपाल वर्मा की शोले' इसकी हकदार होती। करण जौहर को 'बॉम्बे वेलवेट' में घटिया अभिनेता का पुरस्कार दिया जाता। अनुराग बसु 'जग्गा जासूस' के लिए पुरस्कार प्राप्त करते। यह सूची बहुत बड़ी हो सकती है परंतु घटियापन तो राजनीति के क्षेत्र में सबसे अधिक देखा जा सकता है। हास्यास्पद बयानों के लिए भी एक पुरस्कार समारोह होली के अवसर पर आयोजित किया जा सकता है। एक गर्वोक्ति है कि सू्र्योदय सिंदूरी और सूर्यास्त लाल होता है तो यह न भूलें कि घास हरी होती है। घास खाने की क्षमता नेता बनने का पथ प्रशस्त करती है।