ऑस्कर का आर्थिक पक्ष : मतदाता निष्पक्ष / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 11 अक्तूबर 2019
अमेरिकन फिल्म एकेडमी द्वारा ऑस्कर पुरस्कार प्रदान किए जाने वाले हैं और 93 देशों से श्रेष्ठ विदेशी फिल्म की श्रेणी के लिए प्रविष्ठियां प्राप्त हो चुकी हैं। भारत से ज़ोया अख्तर की 'गली बॉयज' को भेजा जा रहा है। जावेद अख्तर की पुत्री ज़ोया और फरहान अख्तर इतने समृद्ध हैं कि अपनी फिल्म के व्यापक प्रचार के लिए आवश्यक धन खर्च कर सकते हैं। कुछ वर्ष पूर्व मराठी भाषा में बनी 'श्वास' भेजी गई थी। अल्प बजट में बनी इस फिल्म के निर्माता के पास ऑस्कर प्रचार के लिए यथेष्ठ धन नहीं था। जाने कितनी बार यह सुझाव दिया गया कि भारत सरकार या भारतीय फिल्म उद्योग हॉलीवुड में एक दफ्तर स्थापित करें, जो भारत की ओर से भेजी गई फिल्म का प्रचार करे और इसके साथ ही भारत में शूटिंग को प्रोत्साहन दें। यह काम शिवेन्द्र सिंह डूंगरपुर भली भांति कर सकते हैं, क्योंकि वे अनेक अमेरिकी फिल्मकारों को व्यक्तिगत रूप से जानते हैं। रॉबर्ट नोलन उनके मित्र हैं।
ऑस्कर पाने के लिए मतदाताओं के घर फिल्म के डीवीडी के साथ फिल्म की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि की जानकारी भी पहुंचाना आवश्यक है। मेहबूब खान की 'मदर इंडिया' के अवसर अच्छे थे परंतु मतदाताओं को यह समझ में नहीं आया कि नायिका ने महाजन का शादी का प्रस्ताव अस्वीकार क्यों कर दिया? वह अपने नन्हे बच्चों के साथ खेत में परिश्रम करती है। महाजन सारे उत्तरदायित्व लेने के लिए राजी था। अमेरिकी मतदाताओं को यह जानकारी नहीं थी कि अपने पति के पलायन कर जाने के बाद भी वह पति का सिंदूर धारण करती है। भला ऑस्कर मतदाताओं को 'दो चुटकी सिंदूर का महत्व' कैसे मालूम होता?
इसी तरह शशि कपूर की अपर्णा सेन निर्देशित महान फिल्म '36 चौरंगी लेन' अंग्रेजी भाषा में बनी थी अत: उसे अमेरिका में प्रदर्शित करके अमेरिकी फिल्म की श्रेणी में भेजा गया था परंतु भारत की ओर से वह स्वदेशी भाषा श्रेणी में भेजी गई। आवेदन में तकनीकी चूक के कारण वह फिल्म ऑस्कर मतदाताओं की उपेक्षा की शिकार बनी। ऑस्कर पुरस्कार का प्रारंभ 1929 में हुआ। एकेडमी के पास पुरस्कार स्वरूप दी जाने वाली ट्रॉफी बनकर आई। दफ्तर में साधारण पद पर काम करने वाली महिला ने स्टेच्यू देखते ही कहा कि यह उसके चाचा ऑस्कर के सामन दिखाई देती है। इसी साधारण सी घटना के कारण ऑस्कर नामकरण हुआ। ऑस्कर समारोह के कोई प्रायोजक नहीं होते। भारत में दिए गए पुरस्कार समारोह में प्रायोजक के नाम से ट्रॉफी दी जाती है। अब बताइए गुटखा उत्पाद प्रायोजक के नाम पर रखी ट्रॉफी आत्म-सम्मान रखने वाला कलाकार कैसे ले सकता है? ज्ञातव्य है कि राज कपूर, दिलीप कुमार और देव आनंद ने कभी प्रचार फिल्म में काम नहीं किया। सर ऑलिवर लारेंस, जो चुरूट पीते थे उसी के विज्ञापन में फिल्म में काम करने से उन्होंने इनकार कर दिया कि उनके द्वारा विज्ञापन फिल्म में काम करने से युवा वर्ग हानिकारक तंबाकू सेवन के प्रति आकर्षित होगा। यह उनकी सामाजिक प्रतिबद्धता थी। जब शम्मी कपूर ने एक गुटखे के विज्ञापन में भाग लिया तो राज कपूर ने उन्हें आड़े हाथों लिया। शम्मी कपूर का कहना था कि उनका एक परिचित सहायता के लिए उनके पास आया और ठीक उसी समय गुटखा विज्ञापन का प्रस्ताव आया तो उन्होंने विज्ञापन का मेहनताना अपने जरूरतमंद परिचित को दिलवा दिया। इस बात पर राज कपूर और अधिक नाराज हुए कि अपने परिचित की मदद अपने धन से नहीं करते हुए गुटखे के विज्ञापन से प्राप्त धन से की। गुटखा रोग फैलाता है।
ऑस्कर का महत्व इस कारण है कि पुरस्कार पाने वाली फिल्म का सिनेमाघरों में पुन: प्रदर्शन होता है और आम अमेरिकी दर्शक फिल्म देखता है। इस आर्थिक पक्ष के कारण उसका महत्व है। एक वर्ष दिल्ली में आयोजित समारोह में ऋषिकेश मुखर्जी की 'अनुराधा' को श्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार मिला और राज कपूर की 'जिस देश में गंगा बहती है' को दूसरी श्रेणी का पुरस्कार मिला। पुरस्कार समारोह के पश्चात दोनों मित्र साथ मुंबई लौट रहे थे। राज कपूर ने मुखर्जी को बधाई दी तो ऋषिकेश मुखर्जी ने कहा कि श्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार राज कपूर रख लें और बदले में उनकी फिल्म की किसी एक सिनेमाघर से प्राप्त धनराशि उन्हें दे दें। सारांश यह है कि भारतीय आम दर्शक पुरस्कार से प्रभावित नहीं होता।