ऑस्कर मंच की सामाजिक सोद्देश्यता / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :07 मार्च 2017
ऑस्कर समारोह में श्रेष्ठ फिल्म की श्रेणी में उद्घोषक की गलती से 'ला ला लैंड' का नाम घोषित हुआ और निर्माता अपने कलाकारों के साथ मंच पर भी आ गए तब कहा गया कि यह पुरस्कार फिल्म 'मूनलाइट' को दिया गया है। पूरे विश्व में यह मजाक प्रचलित हो गया कि कहीं ऐसी गलती राष्ट्रपति पद के विजेता के मामले में तो नहीं हुई कि डोनाल्ड ट्रम्प विजेता हैं। ऑस्कर समारोह में किसी श्रेणी के विजेता ने मंच पर यह कहा कि वह मैक्सिको से आकर अमेरिका में बसा है परंतु अब प्रेसीडेंट ट्रम्प द्वारा अन्य देशों से लोगों का अमेरिका आकर काम करना प्रतिबंधित किया जा रहा है। ट्रम्प महोदय तो अमेरिका और मैक्सिको की सरहद पर चीन की दीवार की तरह अभेद्य दीवार बनाना चाहते हैं परंतु इसके लिए विशाल धनराशि का प्रबंध नहीं हो पा रहा है। इस समय दुनिया में संकीर्णता का दौर चल रहा है। विज्ञान और टेक्नोलॉजी नए क्षितिज खोज रही है और बौने शासक संकीर्णता लाना चाहते हैं।
दूसरे विश्वयुद्ध के बाद अमेरिका में कम्युनिज्म का हव्वा इस कदर खड़ा किया गया था कि चार्ली चैपलिन को अपने वामपंथी सिनेमा के लिए कैद किया जाने वाला था परंतु किसी हितैषी द्वारा समय रहते ही सूचना मिल जाने के कारण वे लंदन में बस गए, जहां उनका जन्म हुआ था। मैककार्थी की संकीर्णता समाप्त होने के बाद अमेरिका में चार्ली चैपलिन को आमंत्रित किया गया और ऑस्कर से नवाज़ा गया। सिनेमा माध्यम में मानवीय करुणा के पहले कवि चैपलिन की मृत्यु के बाद कब्र से उनके शव को चुराने का प्रयास भी किया गया। यह यथार्थ उनकी हास्य फिल्म की पटकथा-सा लगता है। कुंदन शाह ने शव की चोरी पर सर्वकालिक महान हास्य फिल्म 'जाने भी दो यारों' बनाई थी।
वर्ष 1928 में अमेरिका की मोशन पिक्चर्स अकेडमी ने वार्षिक पुरस्कार समारोह की योजना स्वीकृत की और पुरस्कार की प्रतीक ट्रॉफी का डिज़ाइन बनकर आया तो अकादमी में कार्यरत एक महिला कर्मचारी ने कहा कि यह ट्रॉफी उसके चाचा ऑस्कर की शक्ल-सूरत की लगती है। तभी से नाम पड़ा ऑस्कर। ज्ञातव्य है कि उस कर्मचारी के चाचा मि. ऑस्कर का फिल्म से कोई संबंध नहीं था। हमारे देश में भव्य प्रकाशन संस्था ने सबसे पहले फिल्म पुरस्कार देना प्रारंभ किया और किसी वर्ष का पुरस्कार समारोह किसी तम्बाकू के व्यापारी ने प्रायोजित किया था। ऑस्कर कभी प्रायोजित नहीं किया जाता, किसी के विज्ञापनों से हाल सजा नहीं होता। उसकी अपनी गरिमा है।
इस वर्ष ऑस्कर मंच से कुछ लोगों ने प्रेसीडेंट ट्रम्प का बहुत मखौल उड़ाया। एक साल मार्लिन ब्रैंडो ने ऑस्कर मंच से ही रेड इंडियन्स के साथ अमेरिका द्वारा किए गए अत्याचार का विरोध किया था। वियतनाम और कोरिया में अमेरिका की दृष्टता का भी इस मंच पर विरोध किया गया है। प्राय: विजेता अपने धन्यवाद भाषण में कुरीतियों और अत्याचार के खिलाफ बोलते हैं। नेता भी इस मंच पर बख्शे नहीं जाते।
मेहबूब खान की महान 'मदर इंडिया' को विदेश से आई फिल्म की श्रेणी में पुरस्कार नहीं दिया गया, क्योंकि जूरी के सदस्यों को लगता था कि नायिका के पति के पलायन के बाद महाजन उससे विवाह का निवेदन करता है और उसके बच्चों के लालन-पालन की जवाबदारी लेना चाहता है परंतु वह इनकार कर देती है। दरअसल, ऑस्कर प्रतियोगिता में विदेश श्रेणी के लिए भेजी गई फिल्मों के निर्माता अपनी फिल्म की सांस्कृतिक व ऐतिहासिक पृष्ठभूमि का संपूर्ण ब्योरा प्रस्तुत करते हैं। वहां मेहबूब खान का कोई प्रतिनिधि यह समझाने को मौजूद नहीं था कि भारतीय ब्याहता अपने पति के इंतजार में पूरी उम्र गुजार सकती है।
शशि कपूर ने अपर्णा सेन के निर्देशन में जैनीफर केंडल कपूर अभिनीत '36 चौरंगी लेन' अंग्रेजी भाषा में बनाई। फिल्म अकेलेपन के गीत की तरह बनी थी परंतु ऑस्कर में उसे विदेशी भाषा की श्रेणी में प्रविष्ट किया गया था। उसका चयन हो जाने के बाद एक जूरी ने ध्यानाकर्षण किया कि यह अंग्रेजी भाषा में बनी है और अगर इसे अमेरिका में प्रदर्शित करके प्रतियोगिता में शामिल करते तो सर्वश्रेष्ठ फिल्म का पुरस्कार जीत सकती थी।
कुछ वर्ष पूर्व मराठी भाषा की 'श्वांस' को भारत का प्रतिनिधित्व करने के लिए चुना गया था परंतु यथेष्ट प्रार नहीं हुआ। ऑस्कर के लिए फिल्में सारा समय सिनेमाघरों में दिखाई जाती हैं और जूरी मेम्बर को सिनेमाघर के प्रवेश द्वार पर अपना पहचान-पत्र पंच करना होता है और किसी भी सदस्य द्वारा फिल्म अधिकृत सिनेमाघर में नहीं देखे जाने पर उसका वोट अमान्य कर दिया जाता है। सारांश यह कि यह बहुत कुशलता से संचालित कार्य है। भारतीय फिल्म उद्योग को अमेरिका में एक दफ्तर खोलना चाहिए जहां प्रचार विशेषज्ञ कार्य करें। इसके पहले हमारे यहां अपना एक गरिमापूर्ण पुरस्कार आयोजन करना चाहिए। अभी मौजूदा आधा दर्जन पुरस्कार समारोह अायोजित तमाशे मात्र हैं।