ऑस्कर से आइफा तक / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
ऑस्कर से आइफा तक
प्रकाशन तिथि : 02 जनवरी 2020

म प्र के मुख्यमंत्री कमलनाथ की पहल से आइफा अवॉर्ड इंदौर में आयोजित किए जा रहे हैं। संभवत: यह समारोह मार्च में आयोजित होगा, इसमें मुंबई फिल्म उद्योग के सितारे शामिल होंगे। इस तमाशे पर हुआ खर्च तमाशे के टेलीविजन प्रसारण अधिकार से निकल आता है। आइफा विविध शहरों में यह जलसा आयोजित करती है। संस्था ने विदेशों में भी आयोजन किए हैं। एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी सारा काम देखती है। उनका अनुभव और अभ्यास आयोजन को सफल बनाता है। समारोह ऐसा आभास देता है मानो आसमान के सितारे धरती पर उतर आए हैं।

हॉलीवुड में ऑस्कर पुरस्कार समारोह वर्ष 1928 से किए जा रहे हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के समय समारोह आयोजित नहीं किए गए। हिंदुस्तान में फिल्मफेयर पत्रिका ने पुरस्कार समारोह आयोजित करना शुरू किया। इसे फिल्म उद्योग का विश्वास भी प्रात हुआ। पहले एक कमेटी विजेताओं का चयन करती थी। बाद में पाठकों के मत के आधार पर निर्णय किया जाने लगा। वर्ष 1964 में लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल को फिल्म 'दोस्ती' के संगीत के लिए पुरस्कार मिला। उस वर्ष शंकर-जयकिशन की 'संगम' भी प्रतियोगिता में शामिल थी। कुछ वर्ष पश्चात लक्ष्मीकांत ने सरेआम स्वीकार किया कि उन्होंने मतपत्र भेजने का काम कुछ 'सेवकों' की मदद से किया था। इस तरह पुरस्कार समारोह का पहला घपला उजागर हुआ। इरविंग वैलेस के उपन्यास 'प्राइज' में यह उजागर किया गया कि नोबेल प्राइज तक में घपलेबाजी की जाती है। हर पुरस्कार को पाने के लिए विशेषज्ञों की सेवा ली जाती है। मारियो पुजो के उपन्यास 'गॉडफादर' में संगठित अपराध का सरगना अपनी पसंद के आदमी को ऑस्कर दिलाने के लिए मुख्य अधिकारी के प्रिय घोड़े का कटा हुआ सिर उसके बिस्तर पर रखवा देता है। ऑस्कर मंच पर सरकार का विरोध भी किया जाता है। महान कलाकार मार्लिन ब्रेंडो ने अमेरिका के मूल निवासी रेड इंडियंस पर किए गए अत्याचार का विरोध इसी मंच से किया था। रेड इंडियंस के कुचले जाने की दास्तान फिल्म 'हाऊ द वेस्ट वाज वन' में प्रस्तुत की गई थी।

विगत कुछ वर्षों में इस तरह के समारोह अनेक संस्थाएं कर रही हैं। कलाकार समारोह के मंच पर नाचने-गाने के लिए मोटी रकम मांगते हैं। लगातार पार्श्व गायन के लिए पुुरस्कार प्राप्त करने वाली लता मंगेशकर ने घोषणा की कि अब वे पुरस्कार नहीं लेंगी। उनका पावन उद्देश्य यह था कि नई प्रतिभाओं को अवसर प्राप्त हो। ज्ञातव्य है कि टेनिस के महान खिलाड़ी बोर्ग (पूरा नाम बिजॉन बोर्ग) ने आर्थिक कठिनाइयों से घिर जाने पर अपने जीते हुए मेडल और ट्रॉफियां बेच दीं। दुर्दिन आने पर भारत भूषण नामक सितारे ने भी अपनी किताबों का संग्रह बेच दिया था। तानाशाह हिटलर ने अवाम के घरों के किताबें जब्त कर उन्हें सरेआम आग लगा दी थी। तानाशाह कमजोर और कमजर्फ होते हैं। उन्हें तलवारों से अधिक भय किताबों से लगता है। कुछ समय पूर्व हुड़दंगियों ने पूना के एक पुस्तकालय में आग लगा दी थी। हुड़दंगी धर्म के नारे लगाते हुए आगजनी कर रहे थे और ये भी जानते थे कि पुस्तकालय में वेद, उपनिषद, रामायण, महाभारत की प्रतियां भी थीं।

इस तरह के समारोह में संचालक प्राय: फूहड़ बातें करते हैं। कुछ अश्लील बातें भी की जाती हैं। टेलीविजन पर प्रसारित हास्य कार्यक्रम में भी अश्लीलता परोसी जाती है। कार्यक्रम को आधा दर्जन कैमरों से शूट किया जाता है और मास्टर कंसोल पर बैठा व्यक्ति चयन करता है। मसलन जब रणवीर कपूर को मंच पर निमंत्रित करते हैं तो एक कैमरा दीपिका पादुकोण के चेहरे पर टिक जाता है। कैमरे का उपयोग करके जख्मों पर नमक छिड़का जाता है। इस अभद्रता पर तालियां भी बजाई जाती हैं। आमिर खान की फिल्म 'सीक्रेट सुपरस्टार' में पुरस्कार मंच से नाबालिग नायिका अपनी मां को आदरांजलि देती है और कहती है कि असली सीक्रेट सुपरस्टार तो उसकी मां है, जिसने उसे जन्म देने के लिए लड़ाई लड़ी। अपने घर खर्च की रकम से उसे गिटार खरीदकर दिया और अपना एकमात्र सोने का गहना बेचकर उसके लिए कम्प्यूटर खरीदा। ज्ञातव्य है कि आमिर खान किसी पुरस्कार समारोह में शिरकत नहीं करते।

वर्ष 1961 में दिल्ली में आयोजित समारोह में ऋषिकेश मुखर्जी की 'अनुराधा' को श्रेष्ठतम फिल्म का पुरस्कार मिला और राज कपूर की 'जिस देश में गंगा बहती है' को कमतर पुरस्कार मिला। राज कपूर ने मुखर्जी को मुबारकबाद दी तो उन्होंने कहा कि श्रेष्ठ फिल्म का गोल्ड मेडल राज कपूर ले लें और अपनी फिल्म द्वारा किसी एक सिनेमा से अर्जित आय उन्हें दे दें। सारांश यह कि हमारे देश में पुरस्कार जीतने वाली फिल्म का व्यवसाय पुरस्कार के कारण नहीं बढ़ता, जबकि अमेरिका में ऑस्कर जीतने वाली फिल्म का पुन: प्रदर्शन किया जाता है और वह खूब धन अर्जित करती है। हमारे अवाम में श्रेष्ठता के प्रति कोई उत्साह नहीं है। इस कालखंड पर खोखली गहराइयां नामक कविता या उपन्यास लिखा जा सकता है। बहरहाल, आइफा अर्थात इंटरनेशनल इंडियन फिल्म एकेडमी। इस संस्था द्वारा फिल्म पर कोई शोध प्रोत्साहित नहीं किया जाता।