ऑस्कर से खारिज गंभीर फिल्म 'हर' / जयप्रकाश चौकसे

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ऑस्कर से खारिज गंभीर फिल्म 'हर'
प्रकाशन तिथि : 12 मार्च 2014


ऑस्कर के लिए नामांकित फिल्मों में एक थी 'हर' जिसे पुरस्कार नहीं मिला परंतु फिल्म अनेक सवालों को जन्म देती है। कथा सरल है कि नायक का तलाक हो चुका है और एकदम अकेला है। उसका व्यवसाय है उन लोगों के लिए चिट्ठियां लिखना जिनके पास न वक्त है और ना ही वे भावों को प्रभावोत्पादक ढंग से अभिव्यक्त कर सकते हैं। अनेक कस्बों के डाकघर के बाहर पैसे लेकर खत लिखने का व्यवसाय करने वाले बैठते हैं परंतु वे अनपढ़ों के लिए काम करते हंै और श्याम बेनेगल इस विषय पर फिल्म बना चुके हैं। अंग्रेजी फिल्म का नायक अनपढ़ नहीं वरन् पढ़े-लिखे लोगों के लिए प्रेम-पत्र लिखता है। प्राय: कॉलेज कैम्पस में लोकप्रिय छात्र के प्रेम-पत्र उसका कोई मित्र लिखता है। यह लोकप्रिय छात्र बातें अच्छी करता है, कपड़े अच्छे पहनता है और कैम्पस में हीरो माना जाता है परंतु उसे प्रेम-पत्र लिखना नहीं आता। यह गुजरे जमाने की बाते हैं, आज तो एसएमएस किया जाता है, ई-मेल भेजी जाती है। प्रेम-पत्र नामक कला का लोप हो गया है। बहरहाल नेताओं के लिए भाषण लिखने वाले लोग होते हैं और यह भारत में ही नहीं सभी देशों में होता है। इन लोगों को घोस्ट राइटर कहते है। आजकल तो नेता भाषण देने की कला रंगमंच के कलाकार से सीखते हैं। उनके सारे कार्य विदेशी प्रचार संस्था तय करती है।

एक प्रसिद्ध राजकुमार के लिए प्रेम-पत्र लिखते-लिखते राज कन्या से प्रेम करने लगता है। कालांतर में राजकुमार की शादी उस राजकुमारी से हो जाती है और वर्षों बाद वह युद्ध में मारा जाता है और घटनाक्रम कुछ ऐसा चलता है कि बौने की मृत्यु के कुछ क्षण पहले विधवा राजकुमारी को ज्ञात होता है कि उसके पति के प्रेम पत्रों का लेखक यह बौना था। उसका एक संवाद प्राय: दोहराया जाता है 'आई लव्ड वंस बट लॉस्ट टुवाइस'। हॉलीवुड की 'शी' के तन्हा तलाकशुदा नायक को एक विशेष तरह के प्रोगाम्ड कम्प्यूटर की जानकारी मिलती है जो नारी स्वर में तन्हा व्यक्ति से बात करती है। यह कम्प्यूटर नायक से अधिक पढ़ा-लिखा है और वार्तालाप के स्तर पर पत्नी की कमी पूरी करता है, और ध्वनि के स्तर पर पूरी तरह पत्नी है। फिल्म में नायक का नाम श्यो है तो कम्प्यूटर 'पत्नी' का नाम सामन्था है। सामन्था प्रोग्राम्ड है पत्नियों की तरह रूठ जाने के लिए, कभी-कभी कलह करने के लिए। प्राय: प्रेम पूर्ण ही रहती है। आजकल लंबे समय तक बाहर रहने वाले पतियों की पत्नियों के लिए भी इस तरह के कम्प्यूटर बन रहे हैं और अलगाव के बाद के लिए भी व्यक्ति के अकेलेपन की मशीनी औषधि का काम करने वाले यंत्र बन रहे। आप व्यवसाय की लंबी यात्रा में अपने प्रिय के नजदीक होने का भरम बना सकते हैं।

दरअसल हॉलीवुड ने हमेशा ही विज्ञान फंतासी कथाओं में दार्शनिकता का पुट दिया है। ज्ञातव्य है कि सन् 1932 में चार्ली चैपलिन ने गांधी जी से लंबी बातचीत की थी और गांधी ने अपने मशीन विरोध को समझाने का प्रयास किया था। मशीन साम्राज्यवादी ताकतों के हाथ में गुलाम देशों के लोगों का शोषण करती है और गांधी जी की दार्शनिक चिंता यह भी थी कि मशीन पर निर्भरता कालांतर में मनुष्य को मशीन का गुलाम बना देगी और इसी चिंता को 'स्पेस ओडेसी 2001' में और 'मैट्रिक्स श्रृंखला' में किया गया है। विज्ञान मनुष्य की सभी समस्याओं और कमतरियों का निदान खोजता है परंतु उसके समाधान के साथ ही कुछ नए सवालों का जन्म होता है और राजेन्द्र कुमार अभिनीत फिल्म का नायक-नायिका युगल गीत याद आता है- 'एक सवाल मैं करूं, एक सवाल तुम करो और सवाल का जवाब ही सवाल हो..'।

मनुष्य मशीन को जन्म देता है, अभी तक कोई मशीन मनुष्य नहीं बना पाई। अत: मानवीय दिमागी ताकत संवेदनाओं के सवाल पर जाने क्यों मौन हो जाती है। विज्ञान का विश्वास है कि संवेदनाएं प्रोग्राम का हिस्सा हो सकती हैं और मशीन संवेदनाओं का दोहराव करते-करते कभी-कभी संवेदनशील हो जाती है और यह अतिरिक्त संवेदना उसके प्रोग्राम के परे जाती है। स्टीवन स्पिलबर्ग की इंटेलिजेंस में मशीनी रोबो अपनी मालकिन के कैंसरग्रस्त होने पर रोने लगता है जबकि आंसू प्रोग्राम्ड नहीं थे। इस मुद्दे के साथ यह बात भी जुड़ी है कि बाजार और विज्ञापन की ताकतों ने प्रतिद्वन्दता में जी-जान से ुटे ऐसे लोग भी बनाए हैं जो पूरी तरह संवेदनहीन हैं और इसे सगर्व कहते भी हैं। विज्ञान में मनुष्य का हित जुड़ा है परंतु बाजार केवल लाभ पर टिका है। बहरहाल जून में लद्दाख में ऐसी फिल्मों का उत्सव होने जा रहा है जो अध्यात्म से जुड़ी है और दलाईलामा इस समारोह का उद्घाटन करने जा रहे हैं।