ओएसिस दक्षिण कोरियाई मनोवैज्ञानिक फिल्म / सुषमा गुप्ता

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ओएसिस ली चांग-डोंग द्वारा निर्देशित 2002 की एक दक्षिण कोरियाई मनोवैज्ञानिक ड्रामा रोमांस फ़िल्म है। मोहब्बत की कहानी है और कहानी में दर्द ना हो तो फिर मोहब्बत कैसी! ज़िंदगी में देखी हुई बेहद खूबसूरत फ़िल्मों में से एक है ओएसिस। हालाँकि शुरुआत में आपको एक अजीब क़िस्म की कुरूपता महसूस हो सकती है। बहुत-सी कोरियन फ़िल्मों में डार्क इमोशंस को लेकर एक गहरा ताना-बाना बुना जाता है जिन्हें किम कि डुक की फ़िल्मों में बहुत शिद्दत से महसूस किया है मैंने। वोंग कार वाई उसके बाद आते हैं। यह फ़िल्म भी इस तरह की डार्क एहसासों से अछूती नहीं है।

कहानी शुरू होती है एक लड़के के जेल से छूटने से। उसके व्यवहार से साफ़ दिखाई देता है कि लड़के के साथ कुछ तो दिक्कत है। यूँ लगता है कि वह ज़रूरत से ज़्यादा मस्त मौला है जिद्दी है और मानसिक रूप से कमजोर है। ऐसा नहीं है कि वह ठीक से काम करना नहीं जानता पर एक माइल्ड ज़ेहनी डिसऑर्डर उसे है जो उसकी दिमागी समझ को कमजोर दिखाता है। हालाँकि कमजोर शब्द भी यहाँ इस्तेमाल करना सही नहीं रहेगा; क्योंकि भावनाओं की जितनी गहरी समझ उस लड़के को है इतनी तो आसपास के सारे सामान्य लोगों को नहीं थी। वैसे भी प्रेम विराजे उसके मन जिसमें हो भोलापन बाक़ी जो हो गए होशियार आप, तो फिर प्रेम छोड़ जाता है आपको।

लड़के को ज़रा बहुत जो जेल में मेहनत से पैसे मिले होंगे उनको इधर-उधर ख़र्च करता हुआ उनसे अपनी माँ के लिए स्वेटर लेता हुआ अपने घर पहुँचता है। दरवाज़ा पीटने पर पता चलता है फैमिली शिफ्ट हो गई है। जो पैसे थे, वह उड़ा चुका था। खाने पीने को कुछ है नहीं। एक रेस्टोरेंट में जाकर ख़ूब खाता है। जाहिर बात है पैसे तो है नहीं। फिर से पुलिस आती है और पकड़ के ले जाती है। रिकॉर्ड देखा जाता है, तो पता चलता है यह तो आज ही छूटा है। पुलिस वाला कहता है कि यहाँ से निकलकर अपने परिवार में जाना चाहिए ना, तुमने फिर से यह सब करना शुरू कर दिया। लड़के पर तीन चार्ज हैं, एसॉल्ट, अटेम्प्ट टू रेप, एक्सीडेंट में उसके द्वारा किसी की मृत्यु। लड़का कहता है कि घर ही गया था, घर वाले कहीं और चले गए, मेरे पास में अब पता नहीं है। पुलिस अब तक उसके घर वह इन्फॉर्म कर चुकी है। उसका छोटा भाई आया है, वह अपने भाई को देखकर सहज नहीं लगता। जबकि लड़का अपने भाई को देखकर बहुत खुश हुआ... अरे तूने बालों में रंग कर लिया यह ... वह ... भाई थोड़ा सकपकाया है। दुनिया की नज़र में हमारे हीरो का स्क्रू थोड़ा ढीला है; क्योंकि उसकी हरकतें ऐसी है सीधा खड़ा नहीं हो सकता हाथ पैर हिलाता रहता है-जैसे बहुत ज़्यादा टेंस हो और बहुत ज़्यादा हँसता रहता है। भाई पैसे चुकाता है और उसे साथ ले जाता है। रास्ते में गाड़ी रोककर उसे रिक्वेस्ट करता है कि हमारे सामान्य जीवन में अब ज़हर मत घोलना; पर हमारा हीरो तब भी उस पर प्यार लुटाता रहता है। वह उसे घर लेकर पहुँचता है, तो घर में उसकी माँ है उसके बड़े भाई भाभी है। भाई उसे देखकर चिढ़ता है। माँ भी कोई ख़ास खुश नहीं होती। पर दिन में इधर-उधर भटकते हुए उस लड़के ने एक बड़ी बास्केट खाने पीने के सामान की खरीदी और एक घर पर गया होता है। दूसरी मंज़िल पर बने उस घर में जिसका दरवाज़ा खुला है सारा सामान पैक दिखाई दे रहा है। एक लड़की दिखती है, जो ज़मीन पर बैठी है। वह उस लड़की को एकटक देखता रहता है, जिसके हाथ पैर लगभग मुड़े हुए हैं, चेहरा भी सीधा नहीं है। आँखें भी ऊपर की तरफ़ चढ़ी है। वह सेरेब्रल पाल्सी से ग्रस्त है। एक जन्मजात विकार, जो गति, मांसपेशियों की मुद्रा को प्रभावित करता है। सेरेब्रल पाल्सी अक्सर जन्म से पहले मस्तिष्क के असामान्य विकास के कारण होता है।

मैं यह तो नहीं कहूँगी कि मुझे कुछ नहीं हुआ मुझे भी गहरा विचलन हुआ। अपने ही दूर के परिवार में मैं दो ऐसी बच्चियों को जानती थी। जो फिर बहुत ज़्यादा जीवन जी भी नहीं पाईं; पर उनकी ज़िंदगी कैसी थी और उनके घर परिवारों पर क्या असर था, यह जानती हूँ मैं पर दोनों ही परिवारों में सबसे सुंदर बात थी कि उन्होंने आखिरी समय तक उन बच्चियों को सीने से लगाकर रखा था। यहाँ ऐसा नहीं था। उस लड़की के भाई भाभी अपना सामान पैक करके उस लड़की को उस घर में अकेला छोड़कर जा रहे थे। लड़का उसके भाई से पूछता है आप लोग शिफ्ट कर रहे हैं? वह जवाब नहीं देता और पूछता है कि तुम कौन हो? लड़का बताता है मैं वही ड्राइवर हूँ, जिस एक्सीडेंट में आपके पिता की मृत्यु हुई थी। भाई गुस्से से आग बबूला हो जाता है कि अब यहाँ क्या करने आए हो, निकलो यहाँ से। वह लड़का अभी भी मुड़ मुड़के ज़मीन पर बैठी उस लड़की को देखता रहता है, जो एक शब्द भी ठीक से बोल नहीं पा रही है और लगातार हिलती जा रही है अपने आपस में उलझे हाथ पैरों के साथ। लड़का थोड़ी देर घर के नीचे ही घूमता रहता है भाई देखता है और फिर से डाँट देता है, तो लड़का वहाँ से चला जाता है।

अगले दिन लड़के का भाई उसे एक रेस्टोरेंट में डिलीवरी बॉय की नौकरी दिला देता है और समझाता है कि अब तुम बच्चे नहीं रहे हो, जो करते हो उसका नतीजा क्या होगा-यह सोचा करो और ढंग से काम करना। लड़का मस्त है डिलीवरी देता है; पर उसके बाद कहीं किसी को ताश खेलते देखा है, तो वहाँ मस्ती में खड़ा हो जाता है। कहीं किसी को गाते बजाते देखा है, तो गाड़ी उसके पीछे लगा देता है। इसी सब चक्करों में रात इतनी देर से रेस्टोरेंट में पहुँचता है कि वहाँ की नौकरी से भी निकाल दिया जाता है। दरअसल असली कहानी अब शुरू होती है जज़्बात के बिल्कुल एक अलग धरातल पर जाकर। लड़का फिर से उस लड़की के घर जाता है फूल लेकर। देखता है घर बंद है। फिर देखता है कि पड़ोसन ने गमले के नीचे से चाबी निकालकर घर खोल लड़की को कुछ खाने को दिया और घर वापस लॉक कर दिया। वह पड़ोसन को कहता है कि उसे लड़की से मिलने दिया जाए। वह उसके लिए फूल लेकर आया है। पड़ोसन फूल लेकर अंदर दे देती है; पर उसे मिलने नहीं देती।

पड़ोसन के जाने के बाद वह वैसे ही घर खोलता है और लड़की के पास जाकर बैठता है। लड़की अनजान लड़के को देखकर घबरा रही है। ठीक से बोल नहीं पाती, तो आवाजें निकालने की कोशिश कर रही है। पूरी ताकत से हिल रही है। पीछे खिसकने की कोशिश कर रही है। लड़का आगे बढ़कर जबरदस्ती उसे बाहों में भर लेता है-तुम बहुत प्यारी हो बहुत सुंदर, यह सब कहते हुए उसके कपड़ों में हाथ डालना शुरू करता है। वह घबराहट से बुरी तरह विचलित होकर शोर मचाने की कोशिश करती है; पर उसके गले से तेज आवाज़ निकल ही कहाँ पाती है। घूँ-घूँ की आवाज़ निकल कर रह जाती है। लड़का बस सिर्फ़ हाथ डालने तक नहीं रुकता वह अपने शरीर के आवेग में बह ख़ुद को शांत करने के लिए लड़की का इस्तेमाल करता है। मोलेस्ट करता है और फिर जब लड़की बिल्कुल काबू के बाहर होकर पागलों की तरह हाथ पैर पटकने लगती है तो उसको झटक वहाँ से भाग जाता है; पर जाते-जाते एक काग़ज़ पर उसको अपना फ़ोन नंबर देकर जाता है कि बात करनी हो, तो मुझे इस नंबर पर फ़ोन करना।

लड़की की ज़िन्दगी जैसे तैसे उस दो कमरों के छोटे से फ़्लैट में अकेले कट रही है। एक कमरे से दूसरे कमरे के बीच रेंगते हुए। वह लड़की जो ठीक से खाना तक नहीं खा सकती< जिसके घर वाले उसे इस तरह त्यागकर अपने नए घर में चले गए हैं। फिर भी कुछ संवेदना शायद बाक़ी है< जो आते रहते हैं उसके लिए। उस दिन भी उसका भाई उसे लेने आता है। पीठ पर लादकर नीचे उतरता है। अपनी ग्लानि से बचने के लिए वह उसे रेडियो दिलाते हैं कि लड़की को म्यूजिक से बहुत प्यार है और फिर से लाकर उसे बंद कमरे में, उसके बिस्तर पर रेडियो रख जो सिर्फ़ एक बटन घुमाने से चल जाता है छोड़कर चले जाते हैं। लड़की जाने क्या सोचती रहती है और फिर उस लड़के को फ़ोन मिलाती है। वह अपने हाथ में फ़ोन होल्ड नहीं कर सकती। ज़मीन पर पड़े फ़ोन पर टेढ़े-मेढ़े हाथों से बहुत मशक्कत करने के बाद में नंबर मिला पाती है। फ़ोन उठाकर वह टूटे-फूटे शब्दों में उसे बताती है कि वह कौन है। लड़का समझ जाता है। लड़की उसे आने को कहती है और वह रात के उसी समय उसके घर चला आता है। लड़की उसे अटक अटककर कहती है कि बैठ जाओ आराम से। लड़का कहता है पहले मुझे माफ़ करो। लड़की पूछती है कि मेरे साथ ऐसे क्यों किया और तुम मेरे लिए फूल क्यों लेकर आए थे। लड़की वह सब कुछ जैसे कह रही है आम इंसान की समझ में भी नहीं आ सकता; पर लड़के को सब कुछ साफ़ समझ आ रहा होता है वह उसे इतनी सहजता से बात करता है जैसे बिल्कुल सामान्य बातचीत। यहाँ तक कि वह उसके घर के छोटे-छोटे काम करता है। उसके गंदे बर्तन साफ़ करना, उसके गंदे कपड़े धोकर सुखाना। पड़ोसन को कुछ भी पता नहीं चलता। चुपचाप वह अंदर-अंदर सब कुछ करता है। बात के दिनों में वह लगातार मिलते रहते हैं, यहाँ तक कि सबकी नज़र बचाकर उसे पीठ पर लादकर नीचे उतारकर उसकी व्हीलचेयर भी नीचे लाकर उसे घुमाने लेकर जाता है। एक दिन अपनी भाभी के पास से पैसे चुराकर उसे डेट पर भी लेकर जाता है। जिसमें मेट्रो के सफ़र में वह लड़की दूसरे जोड़ों को देखकर इमेजिन करती है कि वह भी बिल्कुल सामान्य है और उस लड़के को ऐसे ही प्यार कर रही है।

आगे की फ़िल्म में लड़के की माँ का जन्मदिन पड़ता है, तो वह घर जाकर उस लड़की के बाल धोता है, हेयर ड्रायर करता है अच्छे से तैयार करता है और कहता है-आज हमें जहाँ जाना है, तुम्हारा अच्छा लगना ज़रूरी है। अपने परिवार के डिनर पर लेकर जाता है। वह सब इस तरह की लड़की को उसके साथ देखकर जैसे सदमे में आ जाते हैं। वह लड़की जो अपने हिलते हुए हाथों से चम्मच तक पकड़ नहीं पा रही। जिसके मुंह से निकल-निकलकर खाना गिर रहा है। जिसे वह लड़का ख़ुद अपने हाथों से खिला रहा है, मुँह पोंछ रहा है। बड़ा भाई जो उसके साथ बहुत सख्त है, बाहर ले जाकर उस पर चिल्लाता है। छोटा भाई जो फिर भी उसे थोड़ा बहुत समझता है, बड़े वाले भाई को शांत करने की कोशिश करता है। इसी बातचीत से पता चलता है कि वह एक्सीडेंट जिसमें उस लड़की का पिता मरा है, वह एक्सीडेंट बड़े भाई ने किया होता है। यह अपने सिर इसलिए ले लेता है कि बड़े भाई के बीवी बच्चे हैं, तो उसकी ज़िन्दगी आराम से चलती रहे। इस बात से यह बात समझ आती है कि हो सकता है उस पर जो बाक़ी केस हैं, शायद वह भी कुछ और वज़ह हों। वह लड़का चुपचाप अपने भाई की डाँट खाकर आ जाता है और उस लड़की को लेकर वहाँ से चला जाता है। लड़की थोड़ी नाराज है< पर उसको मना लेता है। बहुत प्यार से हँसाता हुआ उसे जब घर छोड़ने आता है< तो दोनों ही भावनात्मक रूप से इस वक़्त बहुत टूटे हुए हैं। लड़की उसे रात को अपने पास रुकने को कहती है। लड़का पूछता है-क्या सचमुच! लड़की कहती है-क्या मतलब नहीं समझते कि जब कोई लड़की साथ में रात को रुकने को कहे< तो क्या मतलब है! लड़का समझ जाता है। दोनों के बीच प्यार जगह बनाता है। दोनों जब बिल्कुल एक दूसरे के हो चुके होते हैं< ठीक उसी वक़्त बहुत देर रात उस लड़की के भाई-भाभी किसी पार्टी का बचा हुआ केक लेकर वहाँ पहुँचते हैं। जैसे ही फ़्लैट का दरवाज़ा खोलते हैं कमरे में दोनों को उस अवस्था में देखते हैं< तो दहशत से चिल्लाने लगते हैं। कौन सोच सकता है कि इस तरह की लड़की भी किसी से प्यार में होकर ऐसा कर सकती है।

उन्हें लगता है कि अकेले घर में कोई घुसकर उसका रेप कर रहा है। वे लोग शोर मचाना शुरू करते हैं पड़ोसियों को इकट्ठा कर लेते हैं। जाहिर है उसकी पिटाई होती है और पुलिस पकड़कर ले जाती है। लड़के के घर वालों को भी बुलाया जाता है। लड़की की हालत देखकर लड़के का भाई उसे और मारता है कि तू तो जानवर है, इंसान कहलाने लायक भी नहीं है। सबको लगता है कि उस लड़के ने उसे फिजिकल डिसएबल मेंटली चैलेंज्ड लड़की का रेप किया है; क्योंकि चादर के दाग बता ही रहे होते हैं; पर उन पलों में दर्द के साथ जो उस लड़की की खुशी होती है, वह देखकर मेरा मन अजीब तरीके से रोने का हो जाता है कि जिंदगी में सहज होने वाली बातें भी किसी के लिए कितनी बड़ी बात हो सकती हैं। लड़की का भाई यहाँ भी लड़के के भाई से कहता है कि केस वापस ले लूँगा 20 मिलियन दे दो। लड़के का भाई कहता है- उम्र भर यह लड़का जेल में सड़ जाए, तब भी मुझे कोई मतलब नहीं। लड़के को इस तरह जेल जाता देख लड़की पुलिस स्टेशन में फिर से वॉयलेंट होकर बुरी तरह हाथ पैर पटकने लगती है। लोग सोचते हैं कि वह लड़के से डर दहशत में ऐसा कर रही है; पर लड़का उसे तसल्ली देता हुआ चिल्लाता है- घबराओ मत मैं ठीक हूँ। मुझे लगा था यहाँ पर कहानी खत्म हो जाएगी; पर कहानी खत्म नहीं होती।

कहानी इसके बाद बहुत सुंदर मोड़ लेती है। उस दृश्य में लगता है कि बस दिल फट जाएगा रो- रोकर। मुझे वह दृश्य ओ हेनरी की लास्टलीफ की याद भी दिलाता है। वह लड़की जिस फ्लैट में रहती है, उसकी खिड़की से एक पेड़ की छाया उसे बहुत परेशान करती होती है। उसे लगता है कि कोई राक्षस उसके कमरे में रात को झाँकता है। यह छाया उसके कमरे में लगी ओयसिस की पेंटिंग पर पड़ती है। पेंटिंग में एक इंडियन लड़की है बच्चा है और छोटू सा हाथी है। अपनी फेंटेसी में वह दोनों इस दृश्य में एक बार नाचते हैं और किस्स करते हैं। जिस समय में लड़का उसके पास होता है, हमेशा उस छाया के आगे खड़े होकर आबरा- डाबरा यह सब करके उसे हँसाने की कोशिश किया करता था और अब जब वह लड़की अकेली रह गई है, तो लड़का किसी भी तरीके से जेल से भागता है और जब दृश्य खुलता है, तो वह उस पेड़ पर चढ़ा उसकी सारी वह शाखार काट रहा है, जो उस लड़की के कमरे में डरावनी आकृतियाँ बनाती हैं। देर रात है शोर मच चुका है पड़ोसी इकट्ठा हैं। पुलिस आ चुकी है; पर वह पागलों की तरह बस पेड़ की टहनियों काट रहा है। नीचे से लोग कह रहे हैं कि यह आधा पागल नहीं, पूरा पागल है पर वह मस्ती में पेड़ की टहनियों को काट रहा है। यहाँ अंदर लड़की को समझ आ चुका है कि वह बाहर है। लड़की उसे बताना चाहती है कि वह उसकी उपस्थिति जानती है। वह बुरी तरह छटपटा रही है। किसी तरीके से पूरे शरीर की ताकत लगाकर खिड़की तक अपना रेडियो धकेलती है और रेडियो का फुल वॉल्यूम कर देती है, ताकि वह जान सके कि लड़की को पता है- वह बाहर है। आखिरी शाखा के टूटने के बाद लड़का नीचे गिर जाता है उसे पुलिस ले जाती है पर लड़का खुश है। लड़की बिलख-बिलखकर रो रही है। मुझे लगा कहानी अब खत्म हो जाएगी; पर नहीं कहानी यहाँ भी खत्म नहीं हुई है कहानी इसके बाद भी बाकी है। अब बिल्कुल अंत आपको क्या ही बताऊँ ढूँढकर फिल्म देख ही लीजिएगा। बेहद बेहद प्यारी प्रेम कहानी है, जो लगभग वासना के वीभत्स रूप को छूते हुए शुरू होती है और आत्मीयता के गहरे चरम तक पहुँच जाती है। दो ऐसे लोग, जो दुनिया की नज़र में कचरे के ढेर से ज्यादा कुछ भी नहीं माने गए हैं ; आपस में उनकी खुशी इस यूनिवर्स में घटने वाली चंद बेहद सुंदर घटनाओं में से एक मालूम होती हैं।

मुझे नहीं पता इस कहानी के लेखक ने कहाँ पर ऐसा कुछ देखकर यह कहानी उसके मन से उपजी होगी; पर अगर यह काल्पनिक है, तो ईश्वर करें ऐसी सब प्रेम कहानियाँ सच हो जाएँ।

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