ओनली मी / सत्या शर्मा 'कीर्ति'
घर के सभी सदस्य एक पारिवारिक समारोह में दिल्ली गए हुए थे किन्तु अपनी शारीरिक अस्वस्थता के कारण दिव्या जी घर में अकेली ही रह गयी थी।
वर्षों बाद बिल्कुल अकेली, सिर्फ़ और सिर्फ़ अपने साथ।
ऐसे में जाने क्यों अतीत की यादें अपनी ओर खींच रही थी मन उसी किशोरावस्था कि गलियों में घूम रहा था जहाँ अल्हड़-सी दिव्या दो चोटी में सबकी चहेती बनी चहकती रहती थी। आँखों में वहीं रंगीन सपने आ-जा रहे थे, जिसके हर कोने में शुभम बसा था।
एक अल्हड़-सी उम्मीद जागी।
और फिर काफी मेहनत के बाद उन्होंने फेस बुक पर शुभम को ढूँढ़ ही निकाला। पिछले 20 वर्षों में बस इतना ही तो बदला था शुभम की शरीर पर चर्बी और आँखों पर ऐनक चढ़ गई थी बाकि वही मुस्कुराता-सा चेहरा।
फिर सहज मानवीय स्वभाववश दिव्या जी ने शुभम की पूरी प्रोफाइल ही खंगाल डाला। कई पुराने लोगों को देख उनकी आँखें भर-सी आईं और कई नये चेहरे तो खुद ही रिश्ते बता रहे थे।
बस नहीं थी तो उनकी कोई याद ...उसकी कोई तस्वीर। क्या सच में अब शुभम के जीवन प्रोफाइल में वह कहीं नहीं है? आँखों के कोरों में पानी झलक आया।
पर! क्षण भर बाद ही लगा-क्या शुभम ने भी कभी उनकी प्रोफाइल सर्च किया होगा?
क्या उसे भी ऐसी ही तकलीफ हुई होगी?
काश! जीवन भी एक ऐसी वॉल होती जिससे कुछ भी डिलीट किया जा सकता। सारी मेमोरी मिटा दी जाती। पर! यहाँ तो बस "ओनली मी" के ही ऑप्शन होते हैं जहाँ आप दुनिया से छुपा कर रख तो लो पर बार-बार उसकी याद दिला कर दिल पर दस्तक देती रहती है।
सोचने लगीं दिव्या जी कि "मैसेज बॉक्स में एक हाई ही लिख दूँ या किसी पोस्ट पर लाइक कर अपनी याद दिला दूँ।"
सोचते-सोचते लगा क्यों न फ्रेंड रिक्वेस्ट ही भेज देती हूँ और धड़कते दिल से उन्होंने क्लिक कर दिया।
पर! ये क्या ...? अँगुलियों ने बिना उनसे पूछे ही शुभम को ब्लॉक कर दिया था।
और फिर हतप्रभ-सी दिव्या जी अतीत और सोशल मीडिया कि रहस्यमयी दुनिया से लॉग आउट हो राहत की साँस लेते हुए ईश्वर को धन्यवाद दिया कि—" आपने हम औरतों के पोर-पोर में ऐसे फीचर (सिक्स सेंस) सेट किए हैं जो जीवन प्रोफाइल की सेटिंग को कभी पब्लिक नहीं होने देते बस ओनली मी बन कर रह जाता है।