ओमपुरी: अद्र्धसत्य और तमस / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि : 02 सितम्बर 2013
ओमपुरी और उनकी पत्नी नंदिता के बीच अनबन का प्रारंभ नंदिता द्वारा ओमपुरी के जीवन पर लिखी किताब के प्रकाशन से होता है और इसके पूर्व उस रिश्ते के तनाव की कोई सार्वजनिक अभिव्यक्ति नहीं हुई है। मुद्दा यह नहीं है कि नंदिता का अपने पति के बारे में लिखा विवरण सच है या झूठ, मुद्दा यह है कि एक पति शयनकक्ष में अपनी पत्नी को अपने जीवन के कुछ गोपनीय प्रसंग बताता है और पत्नी शयनकक्ष की गोपनीयता को इस सिद्धांत की आड़ में भंग करती है कि लेखकीय स्वतंत्रता में कोई बंधन नहीं होता अर्थात वे ओमपुरी द्वारा उपलब्ध कराई सुविधाओं का लाभ प्राप्त करती हैं, एक पत्नी के अधिकार से और उसी धन से खरीदे उपकरणों पर उसी के खिलाफ किताब लिखती हैं और प्रकाशक भी उनकी किताब उनकी पत्नी होने के कारण ही प्रकाशित करता है। यह प्रकरण खोजी पत्रकारिता का नहीं है, जिसमें पत्रकार जोखिम उठाकर गोपनीय तथ्यों को खोजता है। क्या नंदिता ने मात्र इस तथाकथित सत्य को प्रगट करने के लिए ओमपुरी से विवाह किया था? क्या ओमपुरी कोई आतंकवादी, राष्ट्रद्रोही या खूंखार व्यक्ति हैं और उनके अंतरंग जीवन की जानकारी का प्रकाशन राष्ट्रहित में था या मानवता के कल्याण के लिए आवश्यक था? यह प्रकरण माताहारी की तरह नहीं है और न ही कोई सनसनीखेज फिल्म जैसे 'स्लीपिंग विद द एनिमि' की तरह है?
यह प्रकरण इस तरह भी नहीं है कि एक भ्रष्टाचारी पति के काले कारनामों को उनकी पत्नी उजागर करती है, क्योंकि इसमें वृहत्तर सामाजिक हित जुड़ा है, परंतु पति ने पंद्रह की उम्र में कोई असावधानी बरती है, जिसमें उनके साथी की स्वीकृति शामिल थी तो उसके वर्षों के संघर्ष और गरीबी की रेखा के नीचे वाले स्तर से ऊपर उठकर अनेक देसी-विदेशी फिल्मों में अविस्मरणीय अभिनय द्वारा राष्ट्र के सम्मान को बढ़ाए जाने को कैसे अनदेखा किया जा सकता है? सदियों से हम सब कवि वाल्मीकि के महाकाव्य 'रामायण' को पढ़कर अपने जीवन को बेहतर बनाते हैं तथा संस्कृत की इस रामायण का कोई भी पाठक इसलिए इस महान ग्रंथ का अनादर नहीं करता कि इसे लिखने के पूर्व वाल्मीकि डाकू थे। लियानार्डो द विंची की महान रचना 'द लास्ट सपर' के लिए उन्होंने क्राइस्ट के लिए जिस मॉडल का उपयोग किया, वह कातिल था। इस कारण उसके द्वारा किए गए किसी कत्ल में बहे रक्त की एक बूंद भी 'द लास्ट सपर' कलाकृति पर नहीं गिरती है।
यह संभव है कि हमारी सुस्त न्यायपालिका की रफ्तार के कारण ओमपुरी स्टीवन स्पीलबर्ग की फिल्म में नायक की भूमिका नहीं कर पाएं और उनके हाथ से एक अवसर चला जाए। क्या नंदिता को विवाह की सप्तपदी का अब कोई भी अंश याद है? क्या उस संदिग्ध किताब के कारण उनका नाम साहित्य के इतिहास में दर्ज हो गया?
यह ओमपुरी का भोलापन है कि कोर्ट के आदेश के अनुसार अलगाव की अवधि पूरी होने पर उन्हें तलाक मिल सकता था, परंतु पत्नी के अनुरोध पर उन्होंने अपने विवाह को एक और अवसर देने के सद्कार्य के कारण आसान तलाक से स्वयं को वंचित किया। दरअसल, ओमपुरी अपने पुत्र को बहुत प्यार करते हैं और वे जानते हैं कि इस पुत्र को विशेष देखभाल की आवश्यकता है। इस करुणा के कारण वे आज संकट में घिर गए हैं।
ओमपुरी आज अपने वैवाहिक 'अद्र्धसत्य' के कारण एक भयावह 'तमस' को झेल रहे हैं। ईश्वर उनकी रक्षा करे।