ओमपुरी का रुपया डॉलर हो गया / जयप्रकाश चौकसे

Gadya Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
ओमपुरी का रुपया डॉलर हो गया
प्रकाशन तिथि : 26 अगस्त 2013


स्टीवन स्पिलबर्ग और ओपरा विनफ्रे मिलकर रिचर्ड सी. मोरेस के उपन्यास 'द हंड्रेड फुट जर्नी' पर आधारित फिल्म बनाने जा रहे हैं, जिसमें ओमपुरी नायक हैं और ऑस्कर विजेता हेलन मिरेन नायिका हैं। इसमें ओमपुरी मुंबई के कौमी दंगों के बाद अपनी पत्नी और पुत्री के साथ हॉलैंड जाते हैं, जहां एक रेस्त्रां खोलते हैं और उनके रेस्त्रां से मात्र सौ कदम दूर मैडम मेलोरी का रेस्त्रां है।

दोनों के बीच गहरी व्यावसायिक प्रतिद्वंद्विता है और ओम उन्हें मैडम तालिबान कहकर संबोधित करते हैं। ज्ञातव्य है कि ओमपुरी एक विस्थापित भारतीय मुसलमान की भूमिका कर रहे हैं। ओमपुरी का पुत्र हसन पेरिस में पाक विधा में प्रवीणता प्राप्त करके मैडम मेलोरी के रेस्त्रां में काम करता है। सौ कदम की दूरी पर स्थित इन दुकानों के मालिक वर्षों बाद एक-दूसरे के मित्र बनते हैं। मानवीय रिश्तों की उलझनें कुछ ऐसी होती हैं कि सौ कदम का रास्ता तय करने में एक उम्र गुजर जाती है।

दो भाइयों में विवाद होता है और एक ही घर के बड़े अहाते में बंटवारे की दीवार खड़ी हो जाती है और यह थोड़ा-सा फासला वर्षों तक पार नहीं हो पाता। तंगदिलों में संवेदना के लिए कोई खिड़की नहीं होती। यह भी संभव है कि कुछ वर्षों के बाद विभाजित परिवार आपसी विवाद के मुद्दे को ही भूल जाते हैं और उन्हें याद भी नहीं रहता कि लड़ाई कैसे शुरू हुई थी। प्राय: कारण बहुत ही छोटा होता है, परंतु हृदय में वर्षों से अंकुरित नफरत उसे सींचकर बड़ा कर देती है। मनुष्य मन की प्रयोगशाला में अजीबोगरीब प्रयोग होते रहते हैं।

ओमपुरी पंजाब के अंबाला में जन्मे और पटियाला के निकट के पिंड सिनौर में पले। गरीबी ने उन्हें प्यार से पाला। अभिनय के जुनून ने उनसे लंबा संघर्ष कराया। नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा में प्रशिक्षण के समय नसीरुद्दीन शाह से उनकी मित्रता हो गई और दोनों ने पुणे फिल्म संस्थान में प्रशिक्षण लिया। इस तरह सात वर्ष के गहन अध्ययन के बाद रंगमंच करते हुए दोनों फिल्मों में आए और गिरीश कर्नाड की 'गोधुली' तथा खाकसार की 'शायद' में साथ-साथ अभिनय किया। सच तो यह है कि आज दोनों ही अपनी कला के शिखर पर हैं। इस समय दोनों को लेकर फिल्म बनाई जानी चाहिए। ओमपुरी ने अब तक अंग्रेजी भाषा में बनीं 21 फिल्मों में अभिनय किया है। उनकी 'सिटी ऑफ जॉय', 'ईस्ट इज ईस्ट', 'चार्ली विंस्टन्स वॉर' इत्यादि अत्यंत चर्चित फिल्में रहीं।

ओमपुरी ने अपनी प्रतिभा और परिश्रम से अपने खुरदरे चेहरे को भी चॉकलेटी सुंदर चेहरों की दुनिया में ऐसा चलाया कि वह रुपया होते हुए भी डॉलर और पाउंड हो गया। अर्थशास्त्र की दुनिया में भले ही रुपए का अवमूल्यन हो रहा हो, परंतु कला की दुनिया में रुपया डॉलर हो गया, पाउंड हो गया। व्यक्तिगत प्रतिभा इसी तरह के चमत्कार करके दिखाती है। भारतीय फिल्मों में भी ओमपुरी ने विविध भूमिकाएं अभिनीत की हैं और गोविंद निहलानी की 'अद्र्धसत्य' में नायक के रूप में वे बहुत सराहे गए थे। उन्होंने परेश रावल के साथ अनेक हास्य फिल्में अभिनीत की हैं। इंग्लैंड में उन्हें सम्मानित भी किया गया है।

भारत का यह व्यक्ति हॉलैंड में अपने रेस्त्रां में भारतीय भोजन परोसता है और सौ कदम की दूरी पर स्थित रेस्त्रां में महिला फ्रांस का भोजन परोसती है। दरअसल, विभिन्न देशों के पकवानों की भी प्रतिस्पद्र्धा हो सकती है। हर देश में स्वाद अलग होता है, परंतु भारत और पाकिस्तान में एक-सा भोजन बनाया जाता है और इस क्षेत्र में उनमें प्रतिद्वंद्विता नहीं हो सकती। इस खेल में भी प्रयोग होते हैं, मसलन डोसे में कीमा भरकर बनाया जाता है। कहीं मुर्गी के पेट में अंडा पकाकर दिया जाता है। दरअसल, किसी भी देश का भोजन वहां के नागरिकों के अवचेतन का परिचय भी देता है और उनकी पसंद के मनोरंजन को भी परिभाषित करता है। इसलिए एकल सिनेमा की मूंगफली और मल्टी का पॉपकॉर्न प्रतीकात्मक ढंग से बहुत कुछ कहते हैं।

ज्ञातव्य है कि पटियाला के निकट सिनौर नामक कस्बे की चाय की दुकान में 6 वर्ष का ओमपुरी कप-बशी धोता था और आज उसकी प्लेट विदेशी उठाता है। क्या जब-गजब यात्रा है।