ओमप्रकाश वाल्‍मीकि / परिचय

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 ओमप्रकाश वाल्मीकि की रचनाएँ     

ओमप्रकाश वाल्मीकि ओमप्रकाश वाल्मीकि वर्तमान दलित साहित्य के प्रतिनिधि रचनाकारों में से एक हैं। हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही है।

आरंभिक जीवन

ओमप्रकाश वाल्मीकि का जन्‍म 30 जून 1950 को मुजफ्फरपुर (उत्तर प्रदेश) जिले के बरला गांव में एक अछूत वाल्‍मीकि परिवार में हुआ। उन्‍होंने अपनी शिक्षा अपने गांव और देहरादून से प्राप्‍त की। उनका बचपन सामाजिक एवं आर्थिक कठिनाइयों में बीता। पढ़ाई के दौरान उन्हें अनेक आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े। वाल्मीकि जी कुछ समय तक महाराष्ट्र में रहे। वहाँ वे दलित लेखकों के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से डा०. भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया। इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ। आजकल वे देहरादून स्थित आर्डिनेंस फॅक्टरी में एक अधिकारी के रूप में कार्यरत हैं। हिंदी में दलित साहित्य के विकास में ओमप्रकाश वाल्मीकि की महत्त्वपूर्ण भूमिका है। उन्होंने अपने लेखन में जातीय-अपमान और उत्पीड़न का जीवंत वर्णन किया है और भारतीय समाज के कई अनछुए पहलुओं को पाठक के समक्ष प्रस्तुत किया है। वे मानते हैं कि दलित ही दलित की पीडा़ को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। उन्होंने सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ आलोचनात्मक लेखन भी किया है। उनकी भाषा सहज, तथ्यपरक और आवेगमयी है। उसमें व्यंग्य का गहरा पुट भी दिखता है। नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी उनकी रुचि है। आरंभिक जीवन में उन्हें जो आर्थिक, सामाजिक और मानसिक कष्ट झेलने पड़े उसकी उनके साहित्य में मुखर अभिव्यक्ति हुई है। वाल्मीकि कुछ समय तक महाराष्ट्र में रहे। वहाँ वे दलित लेखकों के संपर्क में आए और उनकी प्रेरणा से डॉ. भीमराव अंबेडकर की रचनाओं का अध्ययन किया। इससे उनकी रचना-दृष्टि में बुनियादी परिवर्तन हुआ। वे देहरादून स्थित आर्डिनेंस फॅक्टरी में एक अधिकारी के रूप में काम करते हुए अपने पद से सेवानिवृत्‍त हो गए।

दलित साहित्य की अवधारणा

वाल्मीकि के अनुसार दलितों द्वारा लिखा जाने वाला साहित्य ही दलित साहित्य है। उनकी मान्यतानुसार दलित ही दलित की पीडा़ को बेहतर ढंग से समझ सकता है और वही उस अनुभव की प्रामाणिक अभिव्यक्ति कर सकता है। इस आशय की पुष्टि के तौर पर रचित अपनी आत्मकथा जूठन में उन्होंने वंचित वर्ग की समस्याओं पर ध्यान आकृष्ट किया है।

सृजनात्मक / आलोचनात्मक लेखन

अपनी आत्मकथा जूठन के कारण उन्हें हिंदी साहित्य में पहचान और प्रतिष्ठा मिली। उन्हें सन् 1993 में डा० अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार और सन् 1995 में परिवेश सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- सदियों का संताप, बस ! बहुत हो चुका (कविता संग्रह}, सलाम (कहानी संग्रह) तथा जूठन (आत्मकथा)। उन्होंने सृजनात्मक साहित्य के साथ-साथ आलोचनात्मक लेखन भी किया है। उनकी भाषा प्राञ्जल, तथ्यपरक और आवेगमयी है। नाटकों के अभिनय और निर्देशन में भी उनका हस्तक्षेप है। अपनी आत्मकथा जूठन के कारण उन्हें हिंदी साहित्य में विशिष्ट पहचान और प्रतिष्ठा मिली। उनकी प्रमुख रचनाएँ हैं- सदियों का संताप (1989), बस!बहुत हो चुका (1997), अब और नहीं (2009) (कविता संग्रह}, सलाम (2000), घुसपैठिए (2004) (कहानी संग्रह) तथा जूठन (आत्मकथा, 1997), दलित साहित्‍य का सौंदर्यशास्‍त्र (आलोचना, 2001)। संप्रति प्रतिलिपि अंतर्जाल पत्रिका के संपादक हैं।

सम्मान

डॉ० अम्बेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार । साहित्यभूषण पुरस्कार ।उन्हें सन् 1993 में डॉ० अंबेडकर राष्ट्रीय पुरस्कार, सन् 1995 में परिवेश सम्मान और साहित्यभूषण पुरस्कार (2008-2009) से अलंकृत किया जा चुका है।

संपर्क : सी / 5 / 2 ऑर्डनेन्स फैक्टरी इस्टेट, देहरादून - 248008 email : opvalmiki@gmail.com मो० ०९४१२३१९०३४