ओशो के बारे में (स्वयं ओशो) / ओशो
"मैं यहां तुम्हें स्वप्न देने के लिये नहीं हूं, बल्कि बिलकुल इसके विपरीत मैं यहां तुम्हारे स्वप्नों को धवस्त करने के लिये हूं"
"तुम मेरे बारे यह नहीं कह सकते कि मैं सही हूं या ग़लत। अधिक से अधिक तुम यही कह सकते हो कि मैं उलझन पैदा कर रहा हूं। लेकिन यही मेरा उपाय है: तुम्हें उलझा दूं। कहां तक तुम यह सह सकोगे कि मैं यहां से वहां और वहां से यहां बदलता रहूं। एक दिन तुम चिल्लाने ही वाले हो," दूर रहो! अब निर्णय मैं लूंगा।"
"मैं कोई गंभीर कार्य नहीं कर रहा। मैं कार्य कर ही नहीं रहा। यह मेरी मौज है जो मैं तुमसे बांट रहा हूं। अब तुम इसके साथ क्या क्रते हो यह तुम्हारी समस्या है, मेरी नहीं।"
"मेरी देशना है कि अतीत से संपूर्ण संबंध विच्छेद हो। मैं चाहता हूं कि पहले तुम ज़ोरबा की भांति जीयो। उस नींव पर ही तुम्हारे बुद्धत्व का मंदिर निर्मित होगा। इस तरह हम बाहर और भीतर को एक ही सूत्र में पिरो देंगे। बाहर भी उतना ही तुम्हारा है जितना भीतर।"
"मैं तुम्हें यहां हिन्दू, मुसलमान या ईसाई बनाने के लिये नहीं। वह सब बकवास मेरे लिये नहीं. मैं यहां तुम्हें धार्मिक होने में मदद करने के लिये हूं--बिना किसी विशेषण के. ऍउर एक बार तुम इसे समझ लो तो पूरा संसार एक नये रंग में रंग जाता है."
"मैं कोई कारण नहीं देखता कि भीतर और बाहर में विभाजन किया जाये। मैं गरीब रहा हूं, मैनें अत्यंत गरीबी देखी है, और मैं अमीरी में भी जीया हूं। मेरी मानो समृद्धी दरिद्रता से कहीं बेहतर है। मैं अत्यंत सरल अभिरुचियों का व्यक्ति हूं: मैं किसी भी श्रेष्टतम से संतुष्ट हूं, मैं अधिक नहीं चाहता।"
"मैं तुम्हारे किये कुछ कर नहीं रहा हूं; क्योंकि वह भी एक प्रकार का अहंकार है, कोई भी यह सोचे कि वह तुम्हारे लिये कुछ कर रहा है। यह बस घट रहा है।"
"मैं कोई विचार नहीं हूं और न ही मैं कहीं अटका हूं। मैं प्रवाह में हूं। मैं हैराक्लिटस से सहमत हूं कि तुम एक ही नदी में दो बार नहीं उतर सकते। यदि अनुवाद किया जाए तो इसका अर्थ हुआ: तुम एक ही व्यक्ति को दोबारा नहीं मिल सकते। मैं उससे सहमत ही नहीं हूं बल्कि एक कदम आगे जाता हूं कि एक ही नदी में तुम एक बार भी नहीं उतर सकते। मनुष्य के संसार में यदि इसका अनुवाद किया जाए तो अर्थ यह हुआ कि तुम एक ही व्यक्ति को एक बार भी नहीं मिल सकते क्योंकि एक बार भी जब तुम उसे मिल रहे हो तो वह बदल रहा है, तुम बदल रहे हो, संपूर्ण संसार बदल रहा है।"
"मैं यहां किन्हीं मुद्दों पर चर्चा करने के लिये नहीं अपितु तुम्हारे भीतर एक विशिष्ट गुणवत्ता पैदा करने के लिये हूं। मैं तुम्हें कुछ समझाने के लिये नहीं बोल रहा; मेरा बोलना बस एक सृजनात्मक घटना है. मेरा बोलना तुम्हें कुछ समझाने का प्रयास नहीं-- वह तो तुम किताबों से भी समझ सकते हो और इस के अतिरिक्त लाखों अन्य तरीकों द्वारा यह संभव है-- मैं तो यहां केवल तुम्हें रूपांतरित करने के लिये हूं."
"मैं एक साधारण व्यक्ति हूं। मेरे पास कोई करिश्मा नहीं और मैं करिश्मे में विश्वास नहीं करता. मैं पद्धतियों में विश्वास नहीं करता. भले ही मैं उनका इस्तेमाल करता हूं लेकिन मैं उन पर विश्वास नहीं करता. मैं एक साधारण व्यक्ति हूं, बहुत आम. मैं भीड़ में खो सकता हूं और तुम कभी मुझे ढूंढ न पाओगे. मैं तुम्हारे आगे नहीं, साथ चलता हूं."
"मैं बेरोज़गार हूं। मैं कुछ भी नहीं कर रहा: सब इच्छाएं मिट गईं हैं, सब करना तिरोहित हो गया है। मैं बस यहां हूं। तुम्हारे लिये मैं बस एक अस्तित्व हूं। यदि तुम मुझे प्रेम करते हो तो तुम मेरा उत्साह से स्वागत करोगे, और तुम्हें अत्यंत लाभ होगा। यदि तिम मुझे घृणा करते हो तो तुम चूक जाओगे और ज़िम्मेदारी तुम्हारी होगी। अब चुनाव तुम्हारा है; लेकिन मैं कुछ नहीं कर रहा।"
"मेरा पूरा प्रयास एक नयी शुरुआत करने का है। इस से विश्व- भर में मेरी आलोचना निश्चित है. लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता-- परवाह किसे है!"
"गौतम बुद्ध अतीत के सब गुरुओं का प्रतिरूप हैं। शिष्य को दूर रखना होगा। उसे अनुशासन, समादर और अज्ञापालन सीखना होगा। यह एक प्रकार से आध्यात्मिक ग़ुलामी हुई। मैं नहीं चाहता कि तुम मेरे गुलाम बनो और मैं नहीं चाह्ता कि तुम मेरा आज्ञापालन करो। मैं सिर्फ यह चाहता हूं कि तुम तुम मुझे समझो और यदि मेरा अनुभव प्रमाणिक है और तुम्हारा विवेक उसे समझ पाता है तो तुम स्वयं ही उसका अनुसरण करोगे। यह आज्ञापालन न हुआ, मैं तुम्हें कुछ करने को नहीं कह रहा, मैं सिर्फ तुम्हें समझने के लिये कह रहा हूं, और फिर तुम्हारा विवेक जहां तुम्हें ले जाये, तुम उसका अनुसरण करो। तुम जो भी बनो, मैं प्रसन्न हूं;बस स्वयं के साथ सच्चे और ईमानदार रहो।"
"मैं तुम्हें लुभा रहा हूं ताकि तुम जीवन के प्रति प्रेमपूर्ण हो सको, थोड़ा और काव्यमयी हो सको, तुम तुच्छ व साधारण के प्रति उदासीन हो सको ताकि तुम्हारे जीवन में उदात्त का विस्फोट हो जाए।"
"मुझे एक उद्धारक की तरह न देखें। इस विचार के कारण ही- कि कोई उद्धारक आ गया है, कोई मसीहा आ गया है- लोग वैसे ही जीते रहते हैं जैसे वे जीते रहे हैं। वे क्या कर सकते हैं? उनका कहना है कि सब कुछ तभी होगा जब कोई मसीहा आयेगा। यह उनका ढंग है रूपांतरण को टालने का, यह उनका ढंग है स्वयं को धोखा देने का। बहुत हो चुका, बहुत दे दिया धोखा स्वयं को। अब और नहीं। कोई मसीहा नहीं आने वाला। तुम्हें स्वयं कार्य करना होगा,तुम्हें स्वयं के प्रति अपनी ज़िम्मेदारी निभानी होगी। और जब तुम ज़िम्मेदार होते हो तो सब कुछ स्वयं घटने लगता है।"
"मैं चाहता हूं कि जो भी बाहर उपल्ब्ध है, लोग उसके साथ सहजता से जीयें। जल्दी न करें क्योंकि जो भी अनजीया रह गया तुम्हें वापस खींचेगा। इसे खत्म करें। और तब तुम्हें अपने घर से या अपने बैंक के खाते से भागना न पड़ेगा, क्योंकि वे फिर तुम पर बोझ न रहेंगे। उनका कोई अर्थ ही न रह जायेगा। संभव है उनका कोई उपयोग हो सके, लेकिन उनमें कोई ग़लती नहीं।"