ओशो या महाविनाश / ओशो
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लेखक:अनिरुद्ध जोशी 'शतायु'
यदि आपसे कहा जाए कि ईसा मसीह वहाँ गए थे जहाँ ओशो का जन्म होने वाला था तब शायद आप विश्वास नहीं करेंगे। लेकिन इस बात के सबूत हैं। आपसे यह कहा जाए कि ओशो के छुटपन से ही हरिप्रसाद चौरसिया उनके समक्ष बाँसुरी बजाते थे, तब शायद आप मान भी जाएँ। यह भी कि युवा ओशो को देखकर जवाहरलाल नेहरु की आँखों में आँसू आ गए थे।
क्या आप जानते है कि एक 10-12 साल का बच्चा महात्मा गाँधी के हाथ से दानपात्र छीनकर यह कहे कि इसकी जरूरत मेरे गाँव को ज्यादा है। क्या 14 साल का बालक भरी बारसात में सैकड़ों फुट गहरी और उफनती नर्मदा में कूदकर मिलों पार जा सकता है? जिन्होंने नर्मदा का उफान देखा है, वे जानते हैं कि इसमें सिर्फ वही कूदता है, जिसने मरने की ठान ली हो।
स्कूल में दाखिल होते समय उन्होंने अपने पिता से कहा था कि इस जेल में भर्ती कर रहे हैं आप मुझे? मैं 'नहीं' भर्ती होना चाहता। नहीं। लेकिन उन्हें घसीटकर स्कूल में ले जाया गया। स्कूल में दाखिल हुए तो 'काना मास्टर' को पहले ही दिन स्कूल छोड़ना पड़ा। वह मास्टर जो बच्चों को बेहद निर्मम तरीके से मारकर पढ़ाता था।
ओशो जब सागर युनिवर्सिटी से बाहर हो रहे थे तब उनके प्रोफेसर ने कहा था कि इस युनिवर्सिटी को छोड़कर मत जाओ, तुम्हारे जैसे होनहार की जरूरत है। अभी तुम्हें पीएचडी करना है। ओशो ने कहा था- माफ करना 'नहीं' बहुत रह लिया इन जेलों में। दोनों ही वक्त वे बड़े से दरवाजे पर खड़े थे। आमतौर पर पहले स्कूल और कॉलेजों के बड़े से दरवाजे जेल जैसे हुआ करते थे।
ओशो को हम क्या कहें धर्मगुरु, संत, आचार्य, अवतारी, भगवान, मसीहा, प्रवचनकार, धर्मविरोधी या फिर सेक्स गुरु। जो ओशो को नहीं जानते हैं और या जो ओशो को थोड़ा-बहुत ही जानते हैं उनके लिए ओशो उपरोक्त में से कुछ भी हो सकते हैं। लेकिन जो जानते हैं वे ही जानते हैं कि ओशो उपरोक्त में से कुछ भी नहीं है। कई बार लोगों को यह कहते सुना है कि ओशो सिर्फ एक तर्कशास्त्री है, जो किसी भी विषय पर तर्क द्वारा हमें हरा सकते हैं या वह समझा सकते हैं, जो कि वह समझाना चाहते हैं। सोचें क्या इतनी छोटी-सी बात कि तुम्हें हराने के लिए तर्क करें? और तुमसे जीतकर कौन-सा स्वर्ग का राज्य मिलने वाला है।
ओशो जैसी चेतना का जन्म सैकड़ों वर्षों के बाद होता है। बुद्ध के बाद ओशो ही एकमात्र ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने चेतना के गौरीशंकर को छू लिया है। पूरे ढाई हजार वर्षों बाद कोई ऐसा व्यक्ति हुआ, जिसे बुद्ध के समकक्ष रखा जा सकता है, लेकिन फिर भी ओशो में बुद्ध से कुछ अलग ही था। ओशो में ओशोपन था, जो उन्हें दुनिया के तमाम बुद्ध पुरुषों से अलग करता है।
मनुष्य जाति के चित्त में यह बात न जाने कैसे बैठ गई कि जब भी कोई बुद्ध चेतना आए तो सो जाना या फिर उसे पत्थर मारकर जंगल में ही रहने के लिए मजबूर कर देना। प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव के साथ भी यही हुआ। भगवान महावीर को भी पत्थर मारे जाते थे। बुद्ध के सामने पागल हाथी छोड़े गए। ईसा मसीह को सूली पर लटका दिया गया।
सुकरात को जहर क्यों दिया गया? क्योंकि वह विश्वास की जगह संदेह सिखाता था। स्वाभाविक है कि कोई आपकी नींद तोड़ेगा तो आपको गुस्सा आएगा ही। ओशो भी सोए हुए मनुष्य की नींद तोड़ने ही आए थे, लेकिन इस बार भी हम चूक गए। थेलीसियम जहर देकर समयपूर्व ही उनके शरीर को मार दिया गया।
क्यों मार दिया? क्योंकि उन्होंने आपको झकझोरा। आपकी राजनीति के प्रति, आपके धर्म के प्रति और आपके तमाम तरह के पाखंड के प्रति आपको जगाने का प्रयास किया, लेकिन आप जागने के बजाय चद्दर खींचकर और गहरी नींद में सोने लगे।
ओशो कहते हैं कि पंडित, पुरोहित, मुल्ला, फादर और राजनेता यह सभी मानव और मानवता के शोषक हैं। मानवता के इन हत्यारों के प्रति जल्द ही जाग्रत होना जरूरी है, अन्यथा ये मूढ़ सामूहिक आत्महत्या के लिए मजबूर कर देंगे। ओशो कहते हैं कि मनुष्य को धर्म और राजनीति ने मार डाला है आज हमें हिंदू, मुसलमान, ईसाई और अन्य कोई नजर आते हैं, लेकिन मनुष्य नहीं। कुछ लोगों को हिम्मत करना होगी अपने 'आदमी' होने की वरना मानवता महाविनाश के दलदल में धँसती जाएगी। घोषणा कर दें की मैं सिर्फ 'आदमी' हूँ...फकत आदमी।