ओसामा बिन लादेन की हत्या या शहादत / जयप्रकाश चौकसे
प्रकाशन तिथि :01 जून 2015
पूजा एवं आरती शेट्टी ने अभिषेक शर्मा के निर्देशन में 'तेरे बिन लादेन' नामक अपनी 2010 की प्रशंसित फिल्म का भाग दो बना लिया है जो 30 अक्टूबर को प्रदर्शित होने जा रहा है। भाग एक में मुर्गी पालने वाले व्यक्ति की शक्ल लादेन से मिलने के कारण टेलीविजन से जुड़े युवा उसकी टेप असली लादेन के नाम से जारी करते हैं और दुनिया में तहलका मच जाता है। अमेरिकी गुप्तचर का एक दल लादेन को पकड़ने पाकिस्तान पहुंचता है और सत्य जानकर भी अपनी ख्याति को बचाने के लिए एक समझौता करते हैं। भाग दो में लादेन तो मर चुका है परंतु आतंकवादियों को उसको जिंदा रखने पर ही धन मिल सकता है। दूसरी ओर ओबामा के लादेन को अमेरिकी दस्ते द्वारा मारे जाने पर कुछ लोग शंका करते हैं। अत: दोनों दल उस मुर्गी पालने वाले को हथियाना चाहते हैं। इसी के गिर्द अभिषेक शर्मा ने अपनी फार्स व हास्य शैली में भाग दो बनाया है।
दरअसल, जिस ढंग से अमेरिकन दस्ता पाकिस्तान में आया और निहत्थे लादेन को मारकर उसकी लाश को समुद्र में फेंका, इस पर सचमुच कुछ लोग यकीन नहीं करते। इसके अलावा पाकिस्तान ने इस काम में अमेरिकन दस्ते की कितनी मदद की है इस पर भी धुंध छाई है और कोहरा छंटने का नाम ही नहीं लेता। गौरतलब है कि वह दस्ता लादेन के मृत शरीर को अमेरिका क्यों नहीं ले गया या पाकिस्तान में ही क्यों नहीं छोड़ा। अमेरिका को शंका थी कि मृत देह जहां रहेगी, वह जगह आतंकवादियोें के निशाने पर रहेगी तथा यह भी संभव था कि मृत्यु को शहादत का सम्मान दिया जाता और स्मारक भी बनाया जाता। इन हालात में लादेन अमर हो जाता।
शहादत की अभिलाषा बहुत गहरी होती है और इसके भ्रम को 'हेनरी बनाम बैकट' युद्ध के यथार्थ पर अंग्रेजी में 'बैकेट' नामक फिल्म बनी है, जिसमें पीटर ओ टूल व रिचर्ड बर्टन ने अभिनय किया था और इसी महान फिल्म की प्रेरणा से ऋषिकेश मुखर्जी ने अमिताभ बच्चन व राजेश खन्ना के साथ में 'नमक हराम' बनाई थी। इसी यथार्थ घटना पर टीएस इलियट ने पद्य में नाटक लिखा 'मर्डर इन कैथेड्रल' और इस पर भी फिल्म बनी है। टीएस इलियट के नाटक में एक कमाल का दृश्य है जब बैकेट को अपना सिद्धांत छोड़ने के लिए राजा हेनरी के चार टेम्पटर्स जाते हैं जो विविध लालच देते हैं परन्तु बैकेट तीन टेम्पटर्स को अस्वीकार करता है और चौथा टेम्पटर कहता है कि बैकेट का यह दावा कि दुनिया की कोई दौलत या पद का लाभ उसे अपने सत्य के रास्ते से हटा नहीं सकता, परंतु एक लोभ पर वह विजय नहीं प्राप्त कर सका है और यह लोभ शहादत का है। बैकेट बखूबी जानता है कि हेनरी की बात अस्वीकार करने पर शक्तिशाली साधन संपन्न राजा हेनरी उसकी हत्या करा देगा और हत्या होते ही वह अमर हो जाएंगा, उसके मृत्यु स्थल पर हर वर्ष मेले लगेंगे और उसकी महानता नहीं मरने वाली किंवदंती में बदल जाएंगी। यह सच भी है कि बैकेट आज भी पूजा जाता है और हेनरी का कोई नाम लेवा नहीं। इसी तरह दार्शनिक सोक्रेटीज को मृत्यु दंड सुनाने वाले जूरी को आज कोई जानता भी नहीं परन्तु सोक्रेटीज अमर हो चुके हैं।
अमर होने के लोभ से बड़ा कुछ नहीं है। वेदव्यास ने भी परोक्ष रूप से अमरत्व का खोखलापन इस तरह उजागर किया है कि कुरुक्षेत्र के मैदान में अनेक शूरवीर मरे परंतु केवल अश्वत्थामा को शंकास्पद अमरत्व इस तरह मिला कि द्रौपदी के श्राप के कारण वह मरने के लिए नित्य तरसेगा परन्तु उसे मृत्यु प्राप्त नहीं होगी। आज भी जनजातियां किसी भी दुर्घटना का कारण यह मानती है कि अश्वत्थामा ने भटकते हुए यह दुर्घटना कराई है।
वेदव्यास की रचना की एक व्याख्या यह भी की गई है कि आत्मा का दिव्य में मिलने का अर्थ है व्यक्ति का निजत्व समाप्त होना। कौन अपने अस्तित्व का अनंत विलीनीकरण चाहता है? कष्टप्रद होते हुए भी जीवन चक्र से कोई मुक्त नहीं होना चाहता और हमारे धरती प्रेम, भोग विलास इत्यादि के प्रति आंकाक्षा इतनी गहरी है कि इसी आकांक्षा ने पुनर्जन्म की अवधारणा को जन्म दिया।