ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया अंगना में फिर आजा रे... / जयप्रकाश चौकसे

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ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया अंगना में फिर आजा रे...
प्रकाशन तिथि :22 जनवरी 2015


हिदुस्तानी सिनेमा में बेटियों पर कम फिल्में बनी, परंतु टेलीविजन में अनेक सीरियल बने हैं। अभी महेश भट्ट की कहानी से प्रेरित गुरुभल्ला का "उड़ान' अत्यंत लोकप्रिय है। इसमें रेशम की खेती और उद्योग की पृष्ठभूमि पर कथा नायिका एक बालिका है, जिसे जन्म से पहले माता-पिता ने अपने बुजुर्ग के दाह संस्कार के लिए पैसे लेते समय बंधुआ बनाने का अनुबंध किया। यह महेश भट्ट का जीनियस है कि रेशम कीड़े के कारण बनता है और इतने मुलायम श्रेष्ठि वर्ग के पहनने के उद्योग की पृष्ठभूमि पर निर्वस्त्र, भूखों की कहानी प्रस्तुत हुई है। कुछ वर्ष "बालिका वधू' के प्रारंभ के एपिसोड बाल विवाह की त्रासदी को रेखांकित करते थे। बाद में सीरियल परंपरा के अनुरूप रबर की तरह खींचने पर कहानी किसी और दिशा में चली गई है। गौरतलब यह है कि राजस्थान की पृष्ठभूमि पर प्रस्तुत इस सीरियल की लोकप्रियता के वर्ष में राजस्थान में हर वर्ष से अधिक बाल विवाह हुए। यह भारतीय गुण है कि सीरियल पर तालियां पीटने वाले ही उस कहानी के उद्देश्य के विपरीत काम करते हैं। हमें तो महान वाल्मीकि, वेद व्यास, तुलसीदास, कबीर और गालिब भी नहीं बदल पाए तो छोटे या बड़े परदे की क्या औकात है। इसलिए चुनाव सभा में जमा भीड़ चुनाव के नतीजों का संकेत नहीं देती। हमारा नितांत तमाशबीन होना कोई इत्तेफाक नहीं है। मेरे एक कथा विचार पर रतलाम में जन्मा अंशुल विजयवर्गीय टेलीविजन के लिए लिख रहा है और थीम है कि एक छोटे शहर का डॉक्टर वर्षों मेहनत करके अपनी संपत्ति से एक अस्पताल बनाता है, जिसके उद्‌घाटन के लिए उनके गुरु को शहर से लेने डॉक्टर की पत्नी गई है और दुलंडी के उस दिन अजीब रंगे चेहरे वाली अनेक बालिकाएं डॉक्टर साहब के घर के इर्द-गिर्द मंडरा रही हैं। डॉक्टर अपने अस्पताल जाता है। जब वह ऑपरेशन थियेटर का मुआयना कर रहा है, रंगे पुते चेहरों वाली लड़कियां ऑपरेशन थियेटर में घुस आती हैं। जब असहाय सा खड़ा डॉक्टर उनसे प्रश्न पूछता है तो एक कन्या कहती है कि वह निर्मला की अजन्मी बेटी है, जिसे गर्भ में कन्या होने के कारण आपने आॅपरेशन कर मारा था।

वे तमाम लड़कियां डॉक्टर साहब के ही लोभ की शिकार अजन्मी कन्याओं की भटकती आत्माएं हैं। डॉक्टर उनकी वेदना से लहूलुहान होकर मर जाता है। इसी तरह एक फ्रेंच फिल्म "एज इन हेवन सो ऑन अर्थ' में टेलीविजन की एंकर की अजन्मी पुत्री अपनी मां से कहती है कि सारी अजन्मी कन्याओं ने फैसला किया है कि वे जन्म नहीं लेंगी, क्योंकि यह धरती उनके लिए नहीं है। पूरी फिल्म में मां अपनी अजन्मी बच्ची से संवाद करती है कि यह धरती अभी भी जन्म लेने लायक है। गर्भस्थ शिशु अपनी मां को बताती है कि उनके पड़ोसी की कन्या शाला से लौटने पर घंटों गलियारों में बैठी अपनी नौकरीपेशा मां-बाप का इंतजार भूखे प्यासे करती है। उसे विश्वास दिलाने के लिए मां नौकरी से त्यागपत्र दे देती है।

भारतीय सिनेमा इस कदर पुरुष प्रधान है कि पिता-पुत्र के रिश्ते पर फिल्में बनी हैं, पिता-पुत्री के रिश्ते पर नहीं। क्योंकि समाज में पुत्र पिता का शस्त्र है और पुत्री सिर पर लटकती तलवार है। संजीव-माला सिन्हा अभिनीत "जिंदगी' में तीनों पुत्र बूढ़े माता-पिता की सेवा नहीं करते, परंतु दुत्कारी हुई पुत्री अंत में उनका सम्बल बनती है। इसी फिल्म को कुछ परिवर्तन के साथ "बाबुल' नाम से बनाया गया था। फूलन देवी ने अपने बचपन में जो जुल्म सहे, उसी के परिणामस्वरूप वह डाकू बनीं। विगत वर्ष इम्तियाज अली की "हाईवे' की नायिका अपने बचपन में ही अमीर रिश्तेदार की हवस का शिकार बनी थी। परिवार ने ही उसे खामोश रहने को कहा क्योंकि अमीर चाचा की मेहरबानियों पर परिवार का व्यवसाय टिका था। साहित्य में बेटियों पर अनेक कहानियां, कविताएं हैं। अंग्रेजी की साहित्यकार बहनें ब्रोन्टे में से एक ने लिखा है कि वह चोरी छुपे कागज खरीदकर लिखती थी और परिवार के किसी सदस्य की आहट पाकर कागज छुपा लेती थी। बचपन में सब बच्चों का एक कमरा होता था और शादी के बाद पति का कमरा होता था। सृजन के लिए महिलाओं को कभी अपना कमरा नसीब नहीं होता।

दरअसल, स्त्री जाति के साथ अन्याय के लंबे इतिहास का ही नतीजा है कि बेटियों को शिक्षा तो दूर, दूध भी नहीं पिलाते कि जल्दी युवा अवस्था में गई तो शादी कैसे करेंगे। जानवरों और पक्षियों तथा पौधों में किसी तरह का भेदभाव नहीं है, इसलिए चिड़िया आज भी चहकती है। जब तक अन्याय आधारित व्यवस्थाअमीर-गरीब की खाई को और अधिक गहरा करती रहेगी, तब तक बेटियां शिक्षा से महरूम रहेंगी। सारे प्रयास लाक्षणिक ही हैं। आमिर खान के "सत्यमेव जयते' के लिए स्वानंद किरकिरे ने कमाल का गीत लिखा था, "ओ री चिरैया, नन्ही सी चिड़िया, अंगना में फिर आजा रे। अंधियारा है घना और लहू से सना, किरणों के तिनके अंबर से चुन के, अंगना में फिर आजा रे...।'