औगार / महेशा नंद

Gadya Kosh से
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गोबिन्दुल अपड़ि सुटगि अर बंसुरि उठा, गोर खुलिनि अर चलि गि डांडै मर्वड़्यूं। गोर, बछरा, डाळा-बोटा यी छा वेकऽ अपड़ा। बोंण वेकु सोरग छौ। इक्ख ऐकि वु खिलपत ह्वे जांदु छौ। ये छोर-छापरल अपड़ु कुंगळु बाळुपन इक्खि बितै। डाळ्यूं कऽ छैल ताळ ब्वेकि सि ममता, उड्यारा पेट बाबै सि छत्र-छाया, गूंणी-बदर्वा बीच भै-बैंणौं कु लाड, बुढ्यऽ बांजा डाळौं तौळ दै-दादै सि अंग्वाळ, कफ्फु, हिलांसै भौण-भासम् ननतिनौं कु सि खिगचाट, चिफळा बाठौं लम्डि-समळी वेल दाना-सयणौं कि डांट-डपट, लाड-प्यारौ भौ जाणि। छुय्या-छंछ्यड़ौं, गाड-गदिन्यौं मा छपत्वळ्ये-भपत्वळ्ये कि वु दिन निमै दींदु छौ। गोबिन्दुल नि जाणि कि ब्वे ग्वय्या लगाण कन सिखांदि। क्य हो बाळु गुळ्यांण। कन छ्वट्टा नौना औळंणा ल्हंदन। क्य हूंद छुकरेड़पना ज्यांमा छोरा कैकि बाड़ि-सग्वड़्यूं बटि कखड़ि, मुंगरि तोड़ी अर नरंगी डाळ झंझोड़ी ल्हंदन अर तब हैंकऽ दिन इसकूलुम् खंदन। ज्यू ल्हींण बटि अजि तकै वेल जाणि भस खैड़ा, टुकरा, फफ्यंडा, धिक्का-मुक्का अर निठूर जिकुड़्या लुख्वी कुरखण्या बोलि। लोळू, निरभाग, निहुंण्य, दुरगत्या, झणि कना-कना नौ दुन्यन् वेकऽ धरिनि। गोबिन्दु सौब बिधातै लेख जाणि टुप्प सांणू रा। गौं कऽ गोर चरैनि अर पेट पाळि। अमणि वल्या खोळ त् भोळ पल्या खोळ। माया-मामतै जक्ख वेल टरकंणि करिनि, वुक्खि खौरि वे थैं पाथौंन् भोरी मिलीं छै। न घौर-बार, न आबत-पर्या, न अपड़ु-बिरंणु, न जाति-बिरऽदरि। कैं ब्वेल वु जांणी छ, कु बुबा छ, क्वी नि जण्दु छौ। गोबिन्द्वी खौरि-बिखऽरी गैल्याण छै फ्यौंलि। फ्यौंलि दगड़ि छ्ंवी लगै कि, इटगि-बिटगि, लुक्कऽच्वरि खेली वेकि इकल्वांस सिळै जांदि छै। फ्यौंलि वेकु थैं पट्ये पिठैं अर द्यब्तौं कि असिस्य जन छै। वु फ्यौंली जोत जन मुखड़ी कुंगिळ माया मा अपड़ि खौरि थैं बिस्रि जांदु छौ। वेकु क्वी अपड़ू छौ त् व छै फ्यौंलि। वन वेकऽ क्वी बार-त्युवार त् नि छा पणि फागुंण अर चैतै उमैलि बयाळम् वु उदमतु अर उल्यरु ह्वे जांदु छौ। चौदिसौं जब धरति पिंगळ्ये जांदि छै, बनि-बन्या फुलुन धरति सजि जांदि छै, तब वु बोंणा पंछ्यूं कि भौंण्म् अपड़ि बंसुळी ढौळ मिले कि दुन्य-जगतरै मुर्दि-ज्यूंदि चीजू थैं बिजाळ दींदु छौ। अमणि वे थैं जग्वाळ छ अपड़ि यीं गैल्ये। ज्व दैं कि रिंगोण जन फेर बौड़ि ऐ ग्या- अपड़ा उल्यरा, सजिल्या रूप-सिंगार लेकि। गोबिन्दु फलऽरि चोळि जन बांण लेकि फ्यौंलि थैं धै-धवड़ि लगाणू छ। कबि वल्ली धार बटि त कबि पल्ली धार बटि- ‘‘फ्यौंली! फ्यौंली!! कक्ख छै लुकीं? त्वे दिखणू म्यरि आँखि ऐंसी छन। सरेल रुफण्यूं छ। झट्ट औ अर म्यरि अंध्यगोर दुन्य थैं चुटम्यिळ कै जा।’’ फ्यौंली गत झझरै ग्या। ज्यू कैरि- डांडा-कांठौ बटि दनकी, काँडा बुट्ठयौं फोड़ी, पुंगड़ै मींढी-मयळ्यूं तोड़ी, भीटी-पाख्यूं चैढ़ी, गाड-गदिन्या लांघी, नौळा-पंद्यरा, बाठा-अबाठा सब्बी जगौं सिलोटि जन पस्रे जौं। पण वS फ्यौंलि छ। जौऽ-सौऽ मुक नि दिखांदि। सरम्यळि बांणै छै। ज्यू मा बुल्दि- ‘‘अबऽरि ऐ गि दौ। यु फुलऽरि म्यरि मुख्ड़ि चट्ट चूंडी ल्ही जांदु। ये थैं अमणि मजा चखाण। गोबिन्दु त्वे थैं चौहड़ि नि रिंगा त् नौ नी छ। इतगा बर्सू बटि अमणि छै समळणी मै थैं।’’ फ्यौंलिन् किराकिरी धै लगैनि- ‘‘गोबिन्दू! हे गोबिन्दू!! मि इक्ख छौं रै हिंसरै डाळ तौळ।’’ ‘‘कैं हिंसरै डाळ तौळ यौ!!!’’ ‘‘ज्व सिलमोड़्या दुबट्टा फर छ रै!!!’’ हिंसरै डाळ तौळ फ्यौंलि अपड़ि गैल्या भुकुन्द्री अर कम्वळ्या बीच बैठ्यीं छै। वऽ गोबिन्दु थैं जिकुड़्म् कुतगळि लगाण वळि ज्यूमरा आँख्यून् हेरणी छै। गोबिन्दु फ्यौंली गुंदक्यळि स्वाणि मुख्ड़ि थैं हतगुळ्यूंम् भुन्न चांणू छौ कि बेड़ दिख्या, वुक्ख फ्यौंलि खितड़्क हैंसी। ‘‘तु हिंसरै डाळि तौळ क्य दिखणी छै गोबिन्दू? मि इक्ख छौं ग्वीराळै डाळि तौळ! हिंसरै डाळि तौळ त् म्यरि छाया छ।’’ पाछ फ्यौंलि खिकचाट कै हैंसण बैठि ग्या। गोबिन्दु चकरै ग्या। वु ग्वीराळै डाळि तौळ ग्या त् ह्यर्द- फ्यौंलि कुळैं कि डाळ्या तौळ तड़तड़ि हुयीं छै। बबला सि बोट जन लम्बी धौंप्यलि, गंज्यळी सि मुट जन चुट कमर, तड़तड़ि नकुंणि अर कळस्वंणि आँख्यूं मा माया छळकेंणी छै। चरचरि-बरबरि बक्वट्या फ्यौंलि कबि गोबिन्दु थैं मेळ्वी डाळि तौळ त् कबि पंये डाळि तौळ भट्यांणि छै अर सर्र हर्चि जाणि छै। गोबिन्दु फफ्यंडौं कऽ मुक कबि इना त् कबि उना अटगुणू छौ। पणि मजाल क्या जु फ्यौंलि वेकऽ हत आणि हो। दैं कु सि बळ्द जन रिटै द्या निहोंण्यन्। कळकळि नि लग्दि तैं थैं। फ्यौंलि उचगरा लेकि धधम्-धदा लगा अर गोबिन्दु जक्ख वऽ भट्यौ तक्खि दन्कि जौ। ‘‘नि सतौ पापि फ्यौंली! नि सतौ! कै जमऽनौ गैलु गडणी छै। धौ सिनकै त यु समौ आ कि जब हमऽरि माया सयणि ह्वेकि अपड़ा सुदिनू मा आणि छ, तबऽरि तु लुकऽच्वरि ख्यन्नि छै?’’ ‘‘गोबिन्दू! तु मै जक्ख दिखणि छै तक्ख त् म्यरि गत छ। सरेल थैं त् तु दिखणी नि लगीं छै। अब टक्क लगै कि देख- मि रैमासी, सकिन्या, तुसऽरु अर समया फुल्वा बीच बटि उठी सेरै मींढ्यूंम् झिंवरि बजाणू छौं। थौ राख मि छिंछ्याट कै तेई जना आणू छौं। इ देख, मि इ छौं माळ्वा गदना तौरी आणू छौं। देख्याली?’’ ‘‘न मि त्वे कक्खी नि छौं दिख्णू।’’ हारमान ह्वेकि गोबिन्दु थचक भुंया बैठि ग्या। ‘‘अच्छा मि बींगि ग्यौं। तु मै इलै नि देखी सकंणि छै किलै कि त्यरि दुन्य बदल्ये ग्या। धरम-करम, सौ-संसकार, रीति-रिवाज बदले ग्येनि। जब त्यारु छाळु ज्यू छौ तब तु मै कखिम बि द्येखि दींदी छै। पणि अब त् तु सीखी ग्ये नै चलंण। अपड़ि धरति छोड़ी झणि कक्ख बिर्ड़ि ग्ये। स्य धरति माया-ममता नि जण्दि। अपड़ु-पर्या नि पछ्यंण्दि। निराट खरगांस मुलकौ बस्वे ह्वे ग्ये तु। इनमा मै थैं नि देखि सकदि। मि छौं रौंत्येला मुलकै रैंण वळि। हे लोळा! त्यरि खुद मा तिबर्यूं कि देळि दमणाट कै रूणी रंदिन। जौं भीटौं फर तु मै मिनू औंदि छै, वुक्ख कर्री अर गंद्यलु जम्यूं छ। मी थैं भिंटणू कवी नि आणू छ। वु गोबिन्द फुलऽरि झणि किलै बिस्रि मी थैं जु कबि जमनौम् फुलदै कऽ तिवारौ मी थैं न्यूती लि जांदु छौ। डेरौं-डेरौं म्यरि किसराण थैं पैंणा जन बंट्दु छौ।’’ ‘‘तु कतगा बन्यू बुनी छैं फ्यौंलि। मी थैं कुछ नि बिंगेणू छ। त्यारा औगार मि बींगि नि सकुणू छौं। मि कक्ख छौं, तु कक्ख छै। क्य हम दग्ड़ि नि छां?’’ ‘‘यि त्यारा बैम छन लाटा। जै मुलुक मा हम हैंस्यां-खिल्यां छां वु इक्ख नी छ। अमणि वीं देव-दुन्य थैं तु बिस्रि ग्ये। चल म्यारा पैथर औ। वे उमैला मुलुक भेंटी औला।’’ गोबिन्दु परबसम सि फ्यौंल्या पैथर अटगुणू छौ। फ्यौंलि बसगळ्या कुयेड़ि सि जन लौंकुणि छै। ऐगि वु अपड़ि वीं रुमैलि दुन्यम्। जक्ख संगता फूल खिल्यां छन। ह्यूं कि हिंयेरमा फुल्वी किसरांण रळीं छ। दूर बटि चंद्दी तरां चमकदा ह्यूं कऽ मुंड्याळ देखी वेकऽ आँखा रत्ये ग्येनि। फुल्वा बग्वानम् बुरांस अपड़ि जवनि मा ठाट कै तड़तुड़ु हुयूं छ। सेळा धामम् बुग्याळ पसर्यूं छ। सुड़सुड़ि कुळैं, कैल, बांजा डाळौंन भुर्यीं धरति ब्योलि जन सजीं छ। उच्चि-निस्सि गैरी रौंत्येळ घाट्यूं बटि बौग्दि गंगा ब्योल्या गौळै माळा जन लगणी छ। समया, कबिलास, बनस्पा, गोंदि, सितराज, धौलू, सुरमाड़ी, रैमासि जना बनि-बन्या फुलुल् धरति इकछप हुयीं छ। लय्ये पिंगळैसल् पुंगड़ि लकदक हुयीं छन। ‘‘य धरति त् अंगळलि छ। इक्ख छ सोरग!’’ गोबिन्दु परबसम् सि ब्वन्नू छौ। ‘‘रंगते ग्ये गोबिन्दु। अर तब इनि धरति छोड़़ी बसीं छै हैंकऽ मुलुक। अबि तिल देखी क्या छ! औ यीं लौंकदि कुयड़्या बीच औ।‘‘ गोबिन्दु लौंकदि कुयेड़्या बीच जन्नि ग्या तन्नि वु उच्ची-उच्ची धारुम् जक्ख दिखणू फ्यौली गुंदक्यळि मुख्ड़ि दिखणू छ। चौतरफि फ्यौंली-फ्यौंलि दिखेणी छ। वे थैं इन लगि जन वे फर उड़्दा पौ लगि गे ह्वाला। ‘‘फ्यौंली! मै रौंस लगणि छ। अमणि कन उडणा छां न हम जन हम फर फौंकुर लग्यां ह्वला। म्यरु हत थाम फ्यौंली मी थैं डौर बि लगणि छ।’’ ‘‘गोबिन्दू या छ हमऽरि रुमैलि दुन्य। हम इक्खि मीलि छा। हमऽरि माया इक्खि बटि पनपि छै। त्यारा असऽति बैम जौळ ग्येनि। त्यारा भाग खिलि गयेनि जु तु बौड़ी अपड़ि धरतिम् ऐ ग्ये। इक्ख ऐकि तिल अपड़ि माया फिर से बिजाळ द्या। छोड़ वीं निरंखि धरति थैं। उड्डर वुखा मनिखि, स्वार्थि रिस्ता, कौजाळ पांणि, काळि जिकुड़्या लुख्वा मधि तु क्य कनि छै। गोबिन्दू! जु तु सदऽन्यू अपड़ि यी धरतिम् बौड़ी ऐ जैलि त् त्यारा औंणा बाठौं फर मि मंदरि जन पसर्ये जौलु, रुंव्वा जन फुळ्ये जौलु, पांणि जन खत्ये जौलु। ले यीं दां बि मिन दौ त्वे फरी छोड़्यालि। धाकना धारी आंदि छै कि न। झ्यूं-झरूर कै ऐ रै!!’’ फ्यौंलिन् गोबिन्दौ हत छोड़ि द्या। वे थैं लगि जन वु गगराट कै उंद लमडुंणू हो। ‘‘फ्यौंली! मि लमडुंणू छौं। म्यरु हत थाम। फ्यौंलि मि भेळ उंद लम्डि ग्यों। मि थैं बचौ। हे ब्वे! मि मुर्दू छौं। फ्यौंलि! तु कक्ख ग्ये मै अदsग्वदिम् छोड़ी। फ्यौंली! फ्यौंली!! फ्यौंली!!! मि आणू छौं। मै थैं जग्वाळ।’’ ‘‘बिक्की! हे बिक्की!! क्य ह्वा? तु किलै छै मुम्यांणि?’’ बकबौळुम् सि दादिल बिक्की झकोळि। अकऽबकिम् अंध्यरम् वींकऽ हतल पांण्यू ल्वट्या लम्डि गया। बुढड़िल् सटऽपट्टिम नौना-ब्वारि थैं किरै-किरै कि धै लगैनि- ‘‘हे ब्वारी! हे बिकरम! हरै इक्ख आ रै। बिक्की थैं ज्य हूणू ह्वलु।’’ बिक्या ब्वे-बाब लग्दऽबग्दि कै वुक्ख ऐनि, जक्ख दादि दग्ड़ि बिक्की सियूं रांदु छौ। द्वार खुलिनि। लैट बाळि त् देखि कि बिक्की अपड़ि दादि फर चिपट्यूं थथराट कै कौंप्णू छौ। मुक फर अस्यौ-पस्यौ छुट्यूं छौ। जिकुड़ि फिफटांणि छै। सुदबिजु बिक्की कुछ सुपिन्या देखी अर कुछ दाद्या झक्वंळ से अतै सि ग्या। सकस्याणू इन छौ जन झणि कतगा अटगी ऐ ह्वलु। ब्वेल वु जिकुड़ि लगा, लाड कैरि। दादिल् वेकि मुख्ड़ि पलोसी। बिक्की टपरांद-टपरांद कबि ब्वे थैं त् कबि दादि थैं दिखणू छौ। माँ जी! क्य ह्वा ये थैं?’’ ‘‘येल झणि कनु सुपिन्यु देखि बिकरम, मि त् धंध मानि ग्यों। पैलि तकै यु खुटा रा छिबड़ाणू पाछ यु मुम्यांण बैठि ग्या। ब्यट्टा! मि त् अकळा-चकिळ रै ग्यों जब येल छूड़ि गढविळ बोलि। बुल्द- फ्यौंली! फ्यौंली! मि आणू छौं। मै थैं जग्वाळ। ख्वणि बुनू- मि लमडुंणू छौं मै थैं बचौ। कुजाण ब्यट्टा यु क्यापणि-क्यापणि बुनु छौ। तु सच मान नि मान ब्यट्टा येल वु सुपिन्यू देखी जु अमणि तकै कैल नि देखी। ब्यट्टा! हम थैं अपड़ा मुलुक जाण चयेंणू छ। इबऽरि फुलऽरि मैना लग्यूं छ। गौं मा फुलऽरि देळ्यूं-देळ्यूं फूल धुळां ह्वला। क्य जण्णै ये फर फुलऽर्यूं कि रैम जि आ धौं। जु कुछ छैळ-छब्यटु ह्वलु पूजी ए जौला। म्यारु बि इक्ख ज्यू नि लगणू छ। सरेल उड्डर सि हुयूं छ। भितरा-भितरी भग्वस्ये सि ग्यों मि। अपड़ा गढ्वाळ घूमी ऐ जौला।’’