औघड़ वानी / अनिरुद्ध प्रसाद विमल

Gadya Kosh से
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बाजा गाँव सें सात-आठ कोस चानन नदी छेलै। बैशाखोॅ के प्रचंड रौदी में नै पड़ी जांव चकरधरें एक पहर रात रहतैं एकदम भोरें गाड़ी में बैल जोरबैलकै। उनकोॅ इच्छा छेलै सूरज उगतें-उगतें चानन के कछारी में पहुँची जायके आरो वाहीं नहाय-धोय केॅ बाबा जेठाौरनाथ के पूजा करै केॅ। टप्पर बान्हलोॅ गाड़ी पर जबेॅ जैवा चढ़लै तेॅ उनका आँखी सें लोर उबटी केॅ गिरै लागलै। पति के ई धरती सें मोह नै छूटै के भाव स्पष्ट छेलै। गाड़ी नगीचै में दूनों माय-बेटी आरो धन्नो मड़र खाड़ोॅ छेलै। चकरधरें दीदी के सम्बोध करी केॅ कहलकै-"कथी लेॅ कानै छौेॅ दीदी। यै नरकोॅ सें आभियो मोह नै छूटलोॅ छौं? कानी लेॅ, हम्में तोरा चुपोॅ होय लेॅ ने कहबौं। ई धरती सें हमेशा-हमेशा लेली मोह-माया त्यागी के चलोॅ। ई नीच्चड़ोॅ यहाँ हम्में अपना जीतें जी आबेॅ नै देभौं।"

सुनी केॅ धन्नोॅ मड़र सहमलै, कुछ्छू बोलतिहै मतुर ओकरा सें पैन्हेॅ गाड़ी रो बैल जेकरोॅ रास परसादी गाड़ीवान के हाथों में छेलै, चकरधरोॅ के टिटकारतैं आगू बढ़ी गेलै। टप्परोॅ के भीतर जैवा दी आरो गाड़ीवानोॅ के पीछू बैठलोॅ चकरधर कच्ची सड़कोॅ पर हिचकोला खैतें गाँवोॅ के पूरब दिशा तरफें चली पड़लै।

गाँव के अंतिम छोर पर एैतें भोरकायन के बड्डी मीठ्ठोॅ, मधुर हिरदय केॅ छूअैवाला आवाज गूंजलै। गाँव के लीला मंडली में 'धु्रव चरित' नाटक में राजा उत्तानपाद के पाठ करै वाला चकरधरोॅ केॅ गायकी पसंद छेलै। धियान लगाय केॅ सुनें लागलै, गवैया गाय रहलोॅ छेलै। -"उठ जाग भई अब भोर मुसाफिर, रैन कहाँ जो सोवत है ।"

चकरधर मस्त-मिजाज एक नम्बर के हँसोड़िया छेलै। ज़िन्दगी जीयै के उनकोॅ अलग अंदाज छेलै। एकतरफ गाँमोॅ में उनका नांकी दूध रो दूध आरो पानी रो पानी करै वाला कोय दोसरोॅ ईमानदार, निष्पक्ष पंच नै छेलै तेॅ दोसरोॅ तरफ गिरस्ती के गाड़ी सफलता के साथ चलैतें हुअें सांस्कृतिक संवेदना सें भी भरलोॅ छेलै। दर्जनों नाटक में मुख्य भूमिका निभावै वाला चकरधरें जबेॅ भीमोॅ के पाठ करै तेॅ इलाका में एक कोस सें वेशी दूर उनकोॅ आवाज जाय छेलै। तहिया माईक कहाँ छेलै। बिना माइकें रो नाटक होय छेलै। जैवा दी केॅ चुप देखी के हुनी हाँसलै-"सुनल्होॅ दीदी, की कहि रहलोॅ छेलै भोरकाही में। आतम गियान बिना सब सूना। आतमा शरीर में एैलै आरो माया, मोह में सब भूली गेलै। सत्कर्म छोड़ी केॅ अपकर्म में डूबी गेलै। गीतोॅ में कहै छै, रे मन बहुतेेॅ सुतलें, जिनगी के ई भोर बेरा में भी तेॅ जाग।"

टप्पर के कपड़ा हटाय केॅ चकरधरें दीदी केॅ हुलकी केॅ देखलकै। दीदी के आँखी में आभियो तांय लोर लबालब भरलोॅ छेलै। दूनू आँखी रो कोरोॅ से बहतें हुअें लोर गालोॅ पर सें होलोॅ टप-टप चूवी रहलोॅ छेलै। मौन, मूक, चुप-चुप ई कानबोॅ के अर्थ समझै में चकरधरोॅ के देर नै लागलै। थोड़ो देर लेली हुनी असहज तेॅ होलै मतुर ई समझी केॅ कि "कानै वाला कोय दुखी मनुष्य के साथें दुखी होयकेॅ कानला सें ओकरोॅ दुख आरो बढ़ी जाय छै, तखनी सिरिफ संतावना के मरहमें काम करै छै।" ई सोची केॅ चकरधर ठठाय केॅ हँसलै आरोॅ हँसतें हुअें ही बोललै-' दीदी, एैन्हें गेला गुजरला लोगोॅ के साथ छूटला सें कानै छोॅ? अरे, भाग मनावोॅ दीदी जे हम्में आबी गेलिहौं, यें सीनी तेॅ तोरा जानैह सें मारै के उपाय करलेॅ रहौं। चलोॅ, खंगट नै छौं तोरोॅ भाय बाप। नैहरा में तोरोॅ लोक-परलोक दूनोॅ संभरी-सुधरी जैतौं। याद राखिहोॅ दीदी, लोक सें ही परलोक बनै छै।

नैहरा नामें सें सवासिन खिलखिलाय जाय छै। ओकरो सबटा दूखे खतम होय जाय छै आरो तोंय उलटे कानी केॅ सवासिन नामोॅ रो हँसिये न उड़ावोॅ छोॅ। लोर पोछोॅ नै तेॅ हम्में गाड़ी पर सें धोंस दै देभौं।

जैवा लोर पोछी केॅ बोललै-"चाही के नै कानै छियै चक्को, अपन्हैेॅ लोर गिरी जाय छै। सोचै छिये बिना नेतरिया के हमरोॅ जैवोॅ वहाँ सबकेॅ अच्छा लागतै की नै। कहीं अनादर तेॅ नै होय जैतोॅ।"

"अतना टा विश्वास तोरा नै होय छौं। हमरा साथें तोंय जाय रहलोॅ छोॅ। सौसे परिवारें देवता नांकी तोरा पूजी केॅ राखभौं।"

फैरछोॅ होय गेलोॅ रहै। दूरे सें जैठौरोॅ पहाड़ परकोॅ भगवान शिव रो मंदिर देखावेॅ लागलोॅ छेलै। जैवा दी टप्परेॅ सें मंदिरोॅ के हाथ जोड़ी के प्रणाम करतें हुऐं पूछलकै, "कोन जघ्घोॅ पार होय रेल्होॅ छोॅ चक्को?" प्यार सें सभ्भें घरोॅ में चकरधरोॅ के चक्को ही कहै छेलै।

"साहपुर पार होय रहलोॅ छियै दीदी। ऐकरोॅ बाद इंगलीश मोड़ ऐतै आरो ओकरा टपी केॅ जेठौरे पहाड़ छै। चानन नदी के किनारा में पहाड़ोॅ पर बनलोॅ शिव मंदिर बहुते पुराना समय रो छेकै।"

"पंडीजी कहै छेलै कि मधु-कैटभ राक्षसोॅ केॅ मारी केॅ थक्की केॅ चूर-चूर होलोॅ भगवान विष्णु ने मंदार पर्वतोॅ पर सौ बरस तक आराम करलकै। बगलेॅ में क्षीर सागर छेलै जेकरा आबेॅ चीर नदी के नामोॅ सें जानलोॅ जाय छै। भगवानोॅ केॅ अंग देश के आबोहवा अतना बढ़ियां लागलै कि सब दिन लेली याहीं रही गेलै। सटले बालिसानगर जेकरा आवेॅ बौंसी कहै छोॅ नाम सें भगवानें एक बहुते सुन्दर आलीशान महल अटारी वाला नगर विसकरमा केॅ कहि केॅ बनवैलकै आरो बीचोॅ में मनमोहैवाला भव्य मंदिर बनवाय केॅ मधुसूदन नामोॅ सें वाहीं वास लेलकै।" चकरधरें कहि रहलो छेलै आरो जैवा दी अचरजोॅ से सुनी रहलोॅ छेलै।

चकरधर ई सोची केॅ मनें मन बहुत खुश होय रहलोॅ छेलै कि दीदी के मोॅन बहटरी गेलोॅ छै। दीदी केॅ धरम शास्तरोॅ रो कहानी पसंद छेलै। यै लेली दीदी केॅ सुनतें देखी केॅ चकरधरें बातोॅ केॅ आगू बढ़ैलकेॅ। "दीदी! बात तेॅ जेठौरे के करना छेलै मतुर ऐकरो कड़ी वहाँ से जुड़लोॅ छै। भगवान शिव आरो विष्णु दोनों पक्का एक दोसरा केॅ जी-जान सें चाहै वाला दोस्ते जुगां छेलै। शिवजी केॅ कैलासोॅ में विष्णु बिना रहलोॅ नै गेलै आरो दस कोसोॅ के अंतर पर शिवजी जेठौरोॅ में वास लेलकै। एकदम तीराकोनी। जेठौर शिवजी के मंदिरोॅ से मंदार पूरब-दक्खिन कोना पर तेॅ मंदारोॅ सें जेठौर उत्तर-पछियें कोना पर। हुन्नें सुदर्शन चक्र लेनें संसार केॅ पालै वाला पालनहार भगवान विष्णु साक्षात नारायण तेॅ हिन्नें जगत कल्याण भाव से भरलोॅ औघड़दानी शिवजी. एक चानन तेॅ दोसरोॅ चीर नदी के कछारी पर। कहै छै, शिवजी जेठौर आबी केॅ समाधि में लीन होय गेलै आरो पति शिव के वियोग नै वरदास्त करै के कारण सती पार्वती चानन नदी के रूपोॅ में सेवा भाव सें शिवजी के चरण पखारतें गंगा में मिली गेलै।"

चकरधर हँसलै, "यै दूनोॅ के बीचोॅ में अपनोॅ गाँव मिर्जापुर चंगेरी। कत्तेॅ पवित्रा आरो महान छै आपनोॅ माय के ई धरती। चारों तरफ पुन्नें-पुन्न बिखरलोॅ छै। पाँच कोस पर पूवें मंदार आरो पाँच कोस पर पछियें जेठौरनाथ। दोनों पहाड़ गामों सें साफ-साफ झलकै छै। शिव आरो विष्णु दोनों भगवानोॅ के दर्शन जखनी चाहोॅ घरेॅ सें। कत्तेॅ पुन्नोॅ सें भरलोॅ छै आपनोॅ जनमडीह। कत्ते टेवी के बढ़ियां जघ्घा पर सोची-समझी केॅ बसलोॅ छेलै अपना सीनी के दादा-परदादा। आय बाजा छोड़ी केॅ वहेॅ डीहोॅ पर तोंय जाय रहलोॅ छोॅ दीदी। आबेॅ दुख नै करोॅ दीदी। आवेॅ फेरू कहियो कानियोह नै।"

जैवा दी चकरधरोॅ के कहै रो अर्थ समझी गेलोॅ छेलै। लोर पोछतें हुअें कहलकै, "बड्डी तेज, चतुर आरो चालाक छोॅ तोंय चकरधर। केनां-केनां घेरे छोॅ तोंय हमरा धीरज दै लेली।"

"रामायण के पढ़लोॅ आरो पंडीजी के पढ़ैलोॅ-समझैलोॅ उ पाठ जिनगी में हमेशा याद राखै वाला के कभियो कष्ट नै होतै," धीरज, धरम, मित्रा आरू नारी, आपतकाल परखिहैं चारी। "घोॅर जाय रहलोॅ छोॅ दीदी। वहाँ सब तोरा चाहै आरो दिलोॅ सें मानै वाला छौं। तोंय धीरज सें काम लिहोॅ।"

जैवा कुछछु बोललै नै खाली मूड़ी हिलाय देलकै। जेठौर पहाड़ी के नींचू चानन नदी के किनारा में गाड़ीवानें गाड़ी रोकी देनें रहै। उषा रानी पूरब के आकासोॅ में लाल-लाल किरण बिखरैनें, मुस्कुरैली आपनो प्राणप्रीतम मनमीत सूरज केॅ स्वागत में आस्तें-आस्तें आबी रहलो छेलै।

पहाड़ोॅ के किनारा सें चानन के एक ठो पातरोॅ धार कलकल करनें बही रहलोॅ छेलै। वही धारोॅ में जैवा आरो चकरधरें नहैलकै आरो पूजा करै लेली गाछ-बिरिछ सें घिरलोॅ पहाड़ोॅ के उँचाई पर चढ़लोॅ मंदिर पहुँचलै।

पूजा करी केॅ लौटे बखती जैवा के रसता रोकी के एक भयंकर शरीर आरो चेहरा-मोहरा वाला औघड़ खाड़ोॅ होय गेलै। लंबा बड़ोॅ जटा, माथा पर लाल सिन्दूर, सौसें देहोॅ में भसम लेपलोॅ, लाल, बड़ोॅ-बड़ोॅ सिनुरिया आँख, मजबूत गठलोॅ कद काठी। देखतैं जैवा डरी गेलै, बगल होयकेॅ निकलै लेली गोड़ बढ़ैलकेॅ कि औघड़ वानी गूंजलै, "अपना सें बड़ोॅ, ओकरोह पर संत, महात्मा, औघड़ के रास्ता काटी केॅ जैवोॅ अनादर, अपमान छेकै। डरोॅ नै, हमरोॅ बात सुनो।"

जैवा सच्चे में डरी गेलोॅ छेलै। मतुर बुद्धि सें काम लेलकै। सीधे दोनों गोड़ छूवी केॅ प्रणाम करलकै। औघड़ नें आसीरवाद देतें हुअें कहलकै, "बहुते पुण्यात्मा तोंय छोॅ बेटी. पिछला जनमोॅ के बहुत बड़ोॅ चूक के ई फोॅल भोगी रेल्होॅ छोॅ तोंय। ऐकरा भोगै लेॅ ही पड़थौं। अगला जनम सोगारथ करै लेली ऐकरा यही जनम में भोगी लेॅ, नै तेॅ यें जनम-जनम तांय पीछा करथौं। संसार के सबसे बड़ोॅ औघड़ भगवान शिव के पूजा, ध्यान करोॅ। हुनिये तोरोॅ उद्धार करथौं। अगला बारह बरस बड़ा कठिन छौं। तीरथ करोॅ, चारो धाम, शांति मिलथौं।" अतना कहि केॅ औघड़ "हर-हर महादेव, जय शिवशंकर भोलेनाथ" के जयघोष करतें मंदिर तरफें बढ़ी गेलै।