औरत की कहानी / चित्तरंजन गोप 'लुकाठी'
लोलिता भागकर नैहर आ गई। भागकर क्या आई, पति ने भगा दिया --- भाग जाओ, नहीं तो घरवाले नंगी करके घूमाएँगे। साली, बांझ कहीं की... दूसरे मरद के साथ...।
सुबक-सुबककर रो रही थी वह। माँ ने पूछा बात क्या है बेटी? सच-सच बताओ।
"बात क्या होगी, माई? बच्चा नहीं हो रहा है इसलिए ऊलजलूल आरोप लगा रहे हैं, भगाने के लिए और माई, बच्चा नहीं होने का दोष तो उसी में है।" वह सुबकते-सुबकते बोली।
"हूँ...।" माँ ने लंबी सांस छोड़ी।
"माई, घोर कलियुग आ गया माई। औरत पर इतना अत्याचार ...ऐसा-ऐसा आरोप...।"
"नहीं बेटी, औरत की यही कहानी है। सब युग में ऐसा ही हुआ है।"
"सब युग में?" लोलिता ने आंसू पोछते हुए पूछा।
"हाँ बेटी। देखो न, द्वापर युग में पाँच-पाँच मरद ने एक औरत से शादी की।...भरी सभा में नंगी करने का प्रयास हुआ।"
कुछ देर रुक कर माँ ने पुनः कहा, "त्रेता युग में देखो--अग्नि परीक्षा देनी पड़ी। फिर भी, अंततः भगा ही दिया, घर से।"
"और सतयुग में?"
"उस युग में तो छल से इज़्ज़त लूटी गई और उल्टे औरत को ही पत्थर हो जाने का अभिशाप दे दिया गया।"
"हूँ...।" लोलिता ने लंबी सांस छोड़ी। उसका सुबकना बंद हो चुका था। पर आने वाले युग के लिए, मन में कई प्रश्न खटक रहे थे।