औरत से औरत तक / धर्मपाल साहिल
टेलीफोन पर बड़ी बेटी शीतल के एक्सीडेंट की खबर सुनी। घबराए हुए वासदेव बाबू का मन शंकाओं से भर उठा। अपनी छोटी बेटी मधु को साथ लेकर वह तुरन्त अपने समधी के घर पहुँचे। उन्हें गेट में दाखिल होता देख, रोने-पीटने की आवाजें और तेज हो गईं। जमाई सुरेश ने आगे बढ़कर वासदेव बाबू को सँभालते भरे गले से कहा, “बाजार से इकट्ठे लौटते, स्कूटर से एक्सीडेंट हो गया। शीतल सिर के बल सड़क पर गिरी और बेहोश हो गई। फिर होश में नहीं आई। डॉक्टर कहते हैं, ब्रेन-हेमरेज हो गया था।”
वासदेव बाबू बरामदे में सफेद कपड़ों में लिपटी अपनी बेटी की लाश को देख, गश खाकर गिर पड़े। मधु ‘दीदी उठो...देखो पापा आए हैं...दीदी उठो’ पुकार-पुकार कर बिलखने लगी। शीतल की सास ने मधु को छाती से लगाकर हिचकियाँ लेते कहा-- बेटे हौसला रख, परमात्मा को यही मंजूर था। पीछे बैठी औरतों में एक की आवाज आई-- सुरेश की माँ, रो लेने दो लड़की को, भड़ास निकल जाएगी।
पर, मधु ऊँचा-ऊँचा रोए जा रही थी और औरतों के वैण धीरे-धीरे कम होते खुसर-पुसर में बदलने लगे। एक अधेड़ औरत ने शीतल की सास का कंधा झंझोड़ते, कान के निकट मुँह करके पूछा-- क्या यह सुरेश की छोटी साली है?
-- हाँ बहन। सुरेश की माँ ने दुखी-स्वर में कहा।
-- यह तो शीतल से भी ज्यादा खूबसूरत है! तुम्हें इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी। शीतल की बच्ची की खातिर इतना तो सोचेंगे ही सुरेश के ससुराल वाले।”
इतने में गुरो बोल पड़ी-- छोड़ो भी, बच्ची को हवाले करो उसके ननिहाल के। मैं लाऊँगी अपनी ननद का रिश्ता। बेहद खूबसूरत...और दोबारा घर भर जाएगा दहेज से।
-- हाय नसीब फूट गए मेरे बेटे के। कितनी अच्छी थी मेरी बहूरानी। पल भर अलग नहीं होता था मेरा सुरेश, हाय। सुरेश की माँ सुबकी तो पास बैठी भागो ने तसल्ली देते कहा-- हौसला कर सुरेश की माँ, ईश्वर का लाख-लाख शुक्र कर, तेरा सुरेश बच गया। बहुएँ तो बहुत, बेटा और कहाँ से लाती तू...।
शीतल की लाश के पास दहाड़ें मारती मधु ने सारी बातें सुनीं और पत्थर हो गई।
(पंजाबी से अनुवाद: श्यामसुन्दर अग्रवाल)