और बच्चा मर गया / पंकज सुबीर
' कैसे हैं सर कैसा चल रहा है नई जगह पर जिलाधीश मोहन शर्मा इधर से लाइन पर थे। उस तरफ़ थे इस रतनगढ़ जिले के पूर्व जिलाधीश राजेन्द्र चौधरी। अभी तीन महीने पहले ही मोहन शर्मा ने राजेन्द्र चौधरी से कलेक्टर का कार्यभार लिया है। कलेक्टर के रूप में मोहन शर्मा कि ये पहली पोस्टिंग है, जबकि राजेन्द्र चौधरी एक घाघ और घुटे हुए अधिकारी हैं। कई जिलों में कलेक्टर रह चुके हैं। कलेक्टर बने रहने के लिये राजनीतिक हल्कों में भी पूरी सेटिंग बनाये रखते हैं। पहली बार किसी जिले की कलेक्टरी से हटा कर राजधानी के सचिवालय में बिठाये गये हैं। जब राजेन्द्र चौधरी को रतनगढ़ के कलेक्टर से हटा कर सचिवालय की लूप लाइन में डाला गया तो उनकी राजनीतिक पहुँच से वक़िफ़ उनके परिचित भौंचक्के रह गये थे।
लेकिन कहते हैं न कि राजनीतिज्ञ सब कुछ बर्दाश्त कर लेता है, परंतु उसके कार्यक्षेत्र में दखलअंदाज़ी सहन नहीं कर पाता है। राजेंद्र चौधरी को भी राजनीति का कीड़ा काट गया था और राजनीति करने के लिये उन्होंने एक आसान-सा रास्ता ढूँड लिया था, समाज सेवा का रास्ता। रतनगढ़ में काफ़ी आदिवासी इलाक़ा भी है। राजेन्द्र सिंह, वन विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर आदिवासियों के इलाक़े में उनके उत्थान के लिये कार्य करने लगे थे। रतनगढ़ जिले के वन अधिकारी राजेंद्र सिंह की गुड बुक में सबसे ऊपर चल रहे थे। हालाँकि लोगों का तो ये कहना था कि राजेंद्र चौधरी और वन अधिकारी, जंगल में स्थित वन विभाग के रेस्ट हाउस पर आदिवासी बालाओं को लेकर पड़े रहते हैं। पर ये भी बातें ही थीं, इनका कोई प्रमाण नहीं था। एक बार राजेंद्र चौधरी ने आदिवासी इलाक़े में एक भव्य भजन संध्या का भी आयोजन किया था। उस भजन संध्या में देश के सबसे मशहूर भजन गायक को बुलाया था। रात भर उनके भजन पर लोग झूमते रहे और दूसरे दिन उन भजन गायक को शराब के नशे में धुत्त वन विभाग के रेस्ट हाउस में ढेर सारी उल्टियाँ करके बेहोश पाया गया। डॉक्टरों के अनुसार संरक्षित पक्षी तीतर का गोश्त गरम होता है, उसे हजम करना आसान नहीं होता। भजन गायक भजन के बाद कुछ ज़्यादा तीतर प्रेम दिखा गये और उस पर फ्री की सरकारी मदिरा। रात में भजन गायक के साथ रुकी आदिवासी बाला ने डॉक्टरों को बताया कि रात तीन बजे से ही इनका जबरदस्त उल्टियाँ होना शुरू हो गईं थीं। ख़ैर मामला मीडिया के पास पहुँचने से पहले ही रफा दफा हो गया था। लेकिन वहाँ राजधानी में बैठे आकाओं को ख़बर हो गयी थी और राजेंद्र चौधरी की फाइल पर दूसरा लाल निशान लगा दिया गया और उनको वहाँ रतनगढ़ की कलेक्टरी से हटा कर सचिवालय के कूड़दान में फैंक दिया गया।
फाइल पर पहला लाल निशान तब लगा था जब उन्होंने जनसंख्या नियंत्रण समिति की बेठक में सत्ताधारी दल की महिला इकाई की ज़िला अध्यक्ष से पूछ डाला था कि मैडम आप बताइये आप परिवार नियोजन के लिये कौन-सा तरीक़ा इस्तेमाल करती हैं। इतना ही नहीं बाद में जब एक पत्रकार ने पूछा कि आपने एक महिला से ऐसा प्रश्न क्यों पूछा तो उन्होंने जवाब दिया था कि अरे मैं सब जानता हूँ, ये जो महिलाएँ राजनीति में आती हैं, ये घांट-घांट का पानी पिये होती हैं। इन्हें तो ख़ुद मज़ा आता है ऐसी बातों में। पत्रकार भी पहुँचा निकला, उसने ये बात ऐसी की ऐसी ही छाप दी। तब काफ़ी हंगामा हुआ था। जो लोग राजेंद्र चौधरी के रसियापन को जानते थे वे मुँह छुपा कर हँसे थे। बहरहाल तब पहला लाल निशान तो लगा था लेकिन क्षमादान इसलिये मिल गया था कि महिला इकाई की अध्यक्ष ने मामले को ज़्यादा तूल नहीं दिया था, बात आई गई हो गयी थी।
राजेंद्र चौधरी का ये रसियापन परदे में था तो उसके पीछे कारण था। चंद लोगों के अलावा राजेंद्र चौधरी ने अपने इस काम में किसी की मदद नहीं ली थी। ये चंद लोग ही राजेंद्र चौधरी की रसिकता कि पूर्ती करते रहते थे। वैसे बाहर उनकी छवि एक समाजसेवी जिलाधीश की बनी हुई थी। अंततः ये छवि ही उनको ले डूबी और लगातार चार जिलों में कलेक्टरी करने का रिकार्ड बनाने के बाद वे सचिालय नाम की लूप लाइन में पहुँचा दिये गये।
'बस ठीक है और कैसा चल रहा है वहाँ कोई दिक़्क़त तो नहीं आ रही है न' राजेंद्र चौधरी ने उत्तर दिया।
' ठीक है सर, सब ठीक चल रहा है। आप बताइये कैसे हैं मोहन शर्मा ने कुछ अदब के साथ कहा। राजेंद्र चौधरी एक सीनियर आइएएस हैं और मोहन शर्मा उनसे काफ़ी जूनियर हैं।
'हमारा क्या पूछ रहे हो, हम तो कलेक्टर से बाबू बना दिये गये हैं।' राजेंद्र चौधरी ने उधर से बुझी हुई आवाज़ में जवाब दिया।
'कैसी बात करते हैं सर, भला आपकी चमक कम हो सकती है। ये तो कुछ दिन की बात है।' मोहन शर्मा ने उतने ही अदब के साथ फिर कहा।
'देखो क्या होता है, सुनते हैं कोई लिस्ट आने तो वाली है प्रमोशन की। ख़ैर बताओ आज कैसे याद किया कोई ख़ास बात है क्या' राजेंद्र चौधरी ने बात को घुमाते हुए कहा।
'जी सर ख़ास ही बात है। और।' कहते-कहते मोहन शर्मा ने चुप्पी साध ली।
'क्या हो गया, एनी थिंग सीरियस, डोंट वरी, बताओ क्या हुआ है।' राजेंद्र चौधरी ने उधर से फिर पूछा।
'सर यहाँ के छात्रावास की एक छात्रा ने छात्रवास में ही एक बच्चे को जन्म दिया है। बच्चा काफ़ी प्रीमैच्योर हुआ था, मर भी गया है लेकिन तहलका मचा हुआ है।' मोहन शर्मा ने कुछ झिझकते हुए कहा।
'तो उससे तुम्हें क्या परेशानी हो रही है ये तो छात्रवास का मामला है, बिठा दो एक जाँच, कर दो कुछ लोगों को सस्पेंड। अपने आप ठंडा हो जायेगा मामला।' राजेंद्र चौधरी ने कुछ लापरवाही के लहजे में कहा।
'सर उसी के लिये मैंने आज सुबह छात्रावास की अधीक्षिका को बुलाया था, उससे अकेले में पूछताछ की तो उसने कहा कि।' कोई बात कहते-कहते मोहन शर्मा ने फिर से चुप्पी साध ली। उधर से राजेंद्र चौधरी भी कुछ देर चुप रहे। फिर बोले।
'कौन-सा छात्रावास है अधीक्षिका कौन है'
'सर मैंने बताया न पोस्ट मेट्रिक आदिवासी कन्या छात्रावास है। ये जो अपने ऑफिस के पीछे की दीवार से लगा हुआ है। अधीक्षिका शिखा दुबे है वहाँ की।' मोहन शर्मा ने उत्तर दिया।
' शिखा दुबे, हूँ। क्या कहा उसने राजेंद्र चौधरी ने कुछ गंभीर स्वर में फिर से पूछा।
'जी सर उसी के लिये फ़ोन किया है मैंने। उसने कहा कि।' मोहन शर्मा वह बात नहीं कह पा रहे जो कहना है।
'कहाँ की लड़की है ये, कब से है यहाँ छात्रावास में।' राजेंद्र चौधरी ने जैसे मामले को सूँघ लिया था।
'सर ये उधर की है आदिवासी बेल्ट की, भिलौना गाँव की है। पिछले छः सात महीने से है हॉस्टल में। उधर भिलौना के पास जो वन विभाग का रेस्ट हाउस है उसका कीपर है कोई लड़का, वही लाया था इसे हॉस्टल में। उसके किसी मिलने वाले की लड़की है। अधीक्षिका बता रही थी कि हॉस्टल में रखने के लिये आपने ही अनुशंसा कि थी और...' मोहन शर्मा कि हिम्मत फिर जवाब दे गई। सीनियरटी आड़े आ रही है। सीनियरिटी और उस पर राजेंद्र चौधरी जैसा पहुँचा हुआ आइएएस। आज भले ही लूप लाइन में हो, लेकिन कब तक। कल को सिर पर कमिश्नर बन कर बैठना ही है।
'लड़की ने कोई बयान तो नहीं दिया अभी कहाँ है वह अभी और वह बच्चा कहाँ है' राजेंद्र चौधरी की आवाज़ में घुल आई घबराहट ने मोहन शर्मा को संकेत दे दिया कि राजेंद्र शर्मा अब वह समझ गये हैं जो वे कह नहीं पा रहे थे।
'घबराइये मत सर, मैं बैठा हूँ अभी यहाँ पर। हालाँकि अभी मामला बहुत गरमाया हुआ है, पत्रकार बू सूँघते फिर रहे हैं। पर लड़की को हमने छिपा दिया है। बच्चा तो मरा ही हुआ था, उसको अधीक्षिका ने ठिकाने लगा दिया है। अभी हमने प्रशासन की ओर से कोई बयान नहीं दिया है, सोचा पहले आप से बात कर लूँ।' मोहन शर्मा के स्वर में अभी भी पहले की ही तरह अदब घुला हुआ है।
'हाँ वह तो मैं जानता हूँ कि तुम हो वहाँ पर। अच्छा किया जो तुमने मुझे फ़ोन लगा लिया। लड़की से बात कर लो और अधीक्षिका से भी। कुछ बलात्कार वगैरह का मामला बनवा दो और हाँ शिखा से पूछ लेना कि बच्चे को ठीक से ठिकाने लगाया है कि नहीं आजकल ये डीएनए वगैरह का भी।' बात को अधूरा छोड़ दिया राजेंद्र चौधरी ने। पहली बार उन्होंने हॉस्टल की अधीक्षिका न कह कर सीधा नाम लिया था 'शिखा' ।
'उससे तो आप निश्चिंत रहिये सर, बच्चा तो ठिकाने लगा दिया है उसने। बलात्कार वाला मामला ज़रा जमेगा नहीं। मीडिया के गले नहीं उतरेगा। हमें बच्चे के बाप का नाम तो बताना ही होगा। मीडिया वाले वैसे भी कल से ही मुझ पर निशाना साध रहे हैं कि प्रशासन मौन है। अगर बलात्कार की कहानी सुनाई तो मेरी धज्जियाँ उड़ा देंगे और हो सकता है अपने स्तर पर सूत्र तलाशने में जुट जाएँ। कुछ और फुलप्रूफ सोचना होगा।' कुछ चिंतित स्वर में कहा मोहन शर्मा ने।
'तो कुछ और कहानी बना दो। उस लड़के को बुलवा कर बात कर लो। वह बना लायेगा किसी को भी बच्चे का बाप। पैसों का ऑफर दे देना उसको। लड़की, उसका परिवार, वह लड़का और नकली बाप, जिस पर जितना लगे, ख़र्च कर देना। बाद में मैं।' बात को फिर अधूरा छोड़ दिया राजेंद्र चौधरी ने।
'क्यों शर्मिंदा करते हैं सर। मेरे रहते यहाँ आपको पैसे ख़र्च करने पड़ें तो लानत है मेरे होने पर। मैं सब देख लूँगा, जो लगेगा सब लगा दूँगा, उसकी आप फ़िक्र न करें।' मोहन शर्मा ने अदब भरे अपनेपन से कहा।
'तुम हो तब ही तो निश्ंिचत हूँ मैं। देख लो जो हो, जैसे हो इस झंझट को ख़त्म कर दो और देखना शिखा को भी ज़रा बचा ले जाना, अच्छी लड़की है वो।' राजेंद्र चौधरी ने भी अपनेपन से कहा।
'ठीक है सर आप बिल्कुल, बिल्कुल बेफिक्र रहें। बिल्कुल टेंशन नहीं पालें। मैं आपको ये सब बताता भी नहीं लेकिन मुझे लगा कि शिखा दुबे की बात को कन्फर्म करना ज़रूरी है सो मैंने कॉल किया। आप निश्चिंत रहें, मैं पहले आपको निकालता हूँ फिर शिखा को, अगर अभी उसे सस्पेंड करना भी पड़ा तो कोई बात नहीं, मामला ठंडा होते ही बहाल कर दूँगा। अच्छा बाद में बाद करता हूँ, गुड डे सर।' मोहन शर्मा ने इतना कहते हुए कुछ देर प्रतीक्षा कि उधर से जैसे ही राजेंद्र चौधरी ने ओके कहा, इधर से कॉल काट दिया। कॉल को काट कर मोहन शर्मा कुछ देर तक आँखें छोटी करके सोचते रहे, फिर प्यून को बुलाने वाली घंटी का स्विच दबा दिया।
मीडिया वालों ने पूरा शहर सिर पर उठा रखा था। छात्रवास से थाने, थाने से कलेक्ट्रेट, लड़की के गाँव, हर जगह पत्रकार घूमते फिर रहे थे। कहीं तो कोई सिरा मिले। प्रशासन की ऐसी तगड़ी नाकेबंदी थी कि कहीं कुछ सुराग नहीं मिल पा रहा था। लड़की कहाँ है, ये ही पता नहीं चल पा रहा था। उसके परिवार वाले भी ग़ायब थे। आस पास रहने वालों को भी कुछ पता नहीं था। पूछने पर एक ही उत्तर दे रहे थे, रात को तो सब थे यहीं, सुबह देखा तो झोंपड़ा बंद पड़ा है। बात आदिवासी छात्रा कि थी, इसलिये कई सारे समाजसेवी संगठन भी हरक़त में आ गये थे। इन संगठनों के स्वयंभू अध्यक्ष टीवी कैमरों के सामने मुँह करके, आदर्शवाद और जाने किस-किस वाद पर लैक्चर झाड़ रहे थे। राजनीतिक दल अपनी रोटियाँ सेंक रहे थे। विपक्षी दल ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर दी थी कि सत्ताधारी दल ने आदिवासी लड़कियों के छात्रावास को भी अय्याशियों का अड्डा बना दिया है। इसको लेकर एक जन आंदोलन भी छेड़ने की बात कही जा चुकी थी। मगर मुश्किल सबके सामने यही थी कि लड़की मिले तो बात में कुछ दम आये। लड़की न मिले तो उसके परिवार का ही कोई मिल जाये। मगर लड़की तो पूरे परिवार के साथ ग़ायब थी। उधर हॉस्टल पर भी पुलिस का कड़ा पहरा था। मीडिया को आने जाने की इजाज़त थी लेकिन पुलिस और प्रशासन का इतना सख़्त नियंत्रण था कि हॉस्टल की कोई लड़की कुछ भी बोलने को तैयार ही नहीं हो रही थी। मीडिया वाले एक-एक लड़की से पूछताछ कर रहे थे, मगर हर लड़की एक ही उत्तर दे रही थी 'हमें नहीं पता क्या हुआ।'
राजेंद्र चौधरी से बात करने के बाद मोहन शर्मा कि गतिविधियाँ तेज़ हो गईं थीं। उन्होंने शिखा दुबे और उस रेस्ट हाउस के कीपर लड़के को बुला कर देर तक चर्चा की। फिर पुलिस कप्तान के साथ भी फ़ोन पर लम्बी बात की। पुलिस कप्तान के साथ बात होने के बाद एक बार फिर से उस लड़के को बुला कर बात की। बिल्कुल अकेले में। फिर एक बार शिखा दुबे को बुला कर बात की। देर रात एक सरकारी गाड़ी कलेक्टर के निवास के ठीक पोर्च में आकर रुकी। देर रात, लगभग डेढ़ बजे। गाड़ी से एक अधेड़ उतरा। आदिवसियों की तरह छोटी कांच की धोती और उपर बंडी पहना था। सिर पर एक स्वाफा बंधा था मटमैले पीले रंग का। ये लड़की का बाप था। उसकी सात पुश्तों ने भी नहीं सोचा होगा कि उनके परिवार को कोई कभी कलेक्टर के घर मेहमान की तरह सरकारी गाड़ी से पहुँचेगा। ये लोग वह लोग हैं जो पटवारी तो छोड़ो, उसके नीचे के चौकीदार से भी कमान बन कर नमस्कार करते हैं, डरते हैं, हूजूर कह कर बुलाते हैं। कलट्टर तो उन्होंने सुना ही था कि कोई होता है। चौकीदार से भी सात कुर्सी ऊपर का अफ़सर। लड़की का बाप अपने का समेटते, झिझकते हुए कलेक्टर निवास में प्रवेश कर गया।
अल सुबह कलेक्टर निवास से ज़िला जनसंपर्क अधिकारी को फ़ोन आया 'साहब ने कहा है सुबह दस बजे एक ख़ास पत्रकार वार्ता बुलाने का। पत्रकार वार्ता में साहब और पुलिस कप्तान साहब दोनों रहेंगें। साहब ने कहा है कि सभी पत्रकारों को आप ख़ुद फ़ोन करके सूचना दें और हाँ हेवी नाश्ते की व्यवस्था करवा दें। सारी व्यवस्था करके आप साढ़े नौ बजे तक बंगले पर आ जाएँ, साहब को कुछ ख़ास बात करनी है।' आदेश पाते ही जनसंपर्क अधिकारी की नींद उड़ गई। अपने मातहत को पत्रकारों की सूची लेकर अपने घर आने का आदेश देकर वह बाथरूम की तरफ़ भागे।
दस बजे मोहन शर्मा पत्रकारों से मुख़तिब थे 'आप लोगों से क्षमा चाहता हूँ कि मामले की जानकारी देर से उपलब्ध करवा पा रहा हूँ। पुलिस कप्तान साहब की सक्रियता से छात्रवास में हुई घटना कि गुत्थी को सुलझा लिया गया है। प्रशासन और पुलिस ने इस मामले को गंभीरता से लिया था और तब से ही हमारी पूरी टीम इस मामले को लेकर लगी हुई थी। हमारी भी और पुलिस की भी।' कहते हुए उन्होंने प्रशंसात्मक नज़रों से पुलिस कप्तान की तरफ़ देखा। पुलिस कप्तान ने मुस्कुरा कर सिर को हल्के से हिला दिया।
'दरअसल में वह लड़का जो वहाँ रेस्ट आउस का कीपर है, वही इस घटना के लिये जवाबदार है। उसने ही लड़की के साथ अवैध सम्बंध बनाये थे, जिसके कारण ये बच्चा हुआ। छात्रवास की अधीक्षिका शिखा दुबे को हमने निलंबित कर दिया है। निलंबन के दौरान उनका हेडक्वार्टर ज़िला कार्यालय रहेगा। बाक़ी की बात आपको पुलिस कप्तान साहब बताएँगे।' कहते हुए मोहन शर्मा ने माइक को पास बैठे पुलिस कप्तान की तरफ़ खिसका दिया। सारे पत्रकार पुलिस कप्तान की तरफ़ देखने लगे।
'बाक़ी बातें तो आपको कलेक्टर साहब ने बता ही दीे हैं। पुलिस की तरफ़ से बस ये बताना है कि हमने उस लड़के को गिरफ़्तार कर लिया है। पूछताछ में उसने सब कबूल कर लिया है। छात्रावास की वार्डन शिखा दुबे पर भी साक्ष्य छुपाने का प्रकरण दर्ज किया है। उनको फिलहाल ज़मानत पर छोड़ दिया गया है। आरोपी ने बताया कि लड़की को यहाँ छात्रावास में दाखिले के लिये लड़की के पिता ने उसके साथ गाँव से भेजा था। वह गाँव से रेस्ट हाउस आया, जहाँ दो तीन दिन तक उसने लड़की को साथ रख कर उसके साथ बलात्कार किया। जिससे वह गर्भवती हो गई।' पुलिस कप्तान की बात पर एक दो पत्रकारों ने कुछ क्रास प्रश्न भी किये, जिनका पुलिस कप्तान ने बड़े ही डिप्लोमेटिक तरीके से उत्तर दे दिया। इसी बीच कलेक्टर के इशारे पर जनसंपर्क अधिकारी ने पत्रकारों के सामने हेवी नाश्ते की प्लेटें लगवाना शुरू कर दिया। मामला लड़की से नाश्ते की प्लेटों तथा उनमें रखी क़रीब बीस पच्चीस चीज़ों पर केन्द्रित हो गया। ' इतना सारा एक पत्रकार ने हँसते हुए पूछा।
'लीजिये उपाध्याय जी कभी-कभी तो मौक़ा मिलता है हमारे जनसंपर्क विभाग को आप लोगों की ख़ातिरदारी का।' कलेक्टर ने नाम से बुला कर पत्रकार को थोड़ा उपकृत कर दिया।
' और गौड़ साहब आपकी वह लाइसेंस वाली फाइल तो मैंने उसी समय साइन कर दी थी। हो गया था आपका वह काम मिशन डिप्लोमेसी में जुट गये हैं मोहन शर्मा ताकि किसी पत्रकार के दिमाग़ में कोई सवाल बन रहा हो तो वह दिमाग़ से मुँह तक न आकर उपकार के बोझ से नीचे उतर जाये, पेट में।
' सर लड़की कहाँ है और उसका परिवार एक पत्रकार ने फिर भी पूछ ही लिया।
'लड़की को तो मेडिकल कॉलेज में रिफर कर दिया है। उसकी हालत ठीक नहीं थी। शासन के निर्देश थे कि लड़की के स्वास्थ्य का पूरा ध्यान रखा जाये। महिला आयोग से भी फ़ोन आया था। सो हमने उसे राजधानी के मेडिकल कॉलेज रिफर कर दिया है, यहाँ उस हिसाब की व्यवस्था नहीं थी अस्पताल में। लड़की का परिवार भी वहीं है, अभी केवल उसके पिताजी हैं यहाँ पर, आप चाहें तो उनसे बात कर सकते हैं। लेकिन रिक्वेस्ट है कि मानवीय संवेदना को ध्यान में रख कर पूछें।' कहते हुए मोहन शर्मा ने अर्दली को इशारा किया। थोड़ी हीे देर में लड़की का पिता मोहन शर्मा के ठीक पीछे से निकल कर आ गया। अपने पास रखी कुर्सी पर इशारा करते हुए मोहन शर्मा ने कहा 'बैठ जाइये आप।' मगर वह नहीं बैठा, हाथ जोड़कर खड़ा रहा।
' आपको पता नहीं था क्या कि वह इतना बदमाश है उसके साथ लड़की को क्यों भेज दिया उसी पहले वाले पत्रकार ने पूछा।
'नहीं पता था साहब जी, पता होता तो भेजता ही क्यों। लड़की की तो जिन्नगी ही।' लड़की का पिता इतना कह कर कंधे पर रखी स्वापी में मुँह छिपा कर सुबकने लगा।
'अरे, अरे, अरे, चुप हो जाइये। अब क्या होगा रोने से। रोइये मत। हम सब देख रहे हैं। आप चिंता मत करिये।' कहते हुए मोहन शर्मा अर्दली की तरफ़ मुख़ातिब हुए 'अरे सुनो, ले जाओ इनको, उधर बिठा कर नाश्ता वगैरह दे दो। चिंता मत करिये सब ठीक हो जायेगा।' कहते हुए मोहन शर्मा ने उसकी पीठ थपथपा दी। अर्दली लड़की के पिता को लेकर अंदर चला गया।
'परेशान है बिचारे। लड़की के साथ इतना कुछ हो गया।' कहते हुए मोहन शर्मा ने उस पत्रकार की तरफ़ देखा जिसने दोनों बार प्रश्न पूछा था 'अरे गोविंद जी आपकी सिस्टर अभी वहीं हैं न गर्ल्स स्कूल में। कुछ पेरेंट्स शिकायत लेकर आये थे उनकी। ज़रा देख लीजियेगा। मैंने अपने स्तर पर तो टरका दिया था। मगर कहीं ऊपर जाकर मंत्री स्तर पर शिकायत कर आये तो ऊपर से कहीं ट्रांस्फर वगैरह न हो जाये। देख लीजिये, कहीं गाँव वगैरह में कर दिया तो परेशानी हो जायेगी। यहाँ तो मैं हूँ, चिंता न करें। मेरे पास कुछ आया तो दबवा दूँगा।' मोहन शर्मा कि आवाज़ मीठी तो थी पर बर्फ की तरह ठंडी थी। उस ठंडक का सिरा उस पत्रकार को ठीक-ठीक पकड़ में आ गया। उसने तुरंत उत्तर दिया 'जी सर मैं पता करता हूँ कौन लोग हैं और क्या परेशानी है।'
'उधर मेरे ऑफिस में स्टेनो से मिल लीजियेगा, वह बात देगा आपको कि कौन-कौन थे ज्ञापन देने वालों में।' मोहन शर्मा का सुर सध गया। बाक़ी के पत्रकार हेवी नाश्ते की प्लेटों को अपने-अपने स्तर पर हल्का करने में जुटे थे। 'लो भई सोलंकी जी, इमरती तो और लो, आपके ही शहर की है। हमारे तो सारे रिश्तेदार इसके दीवाने हो गये हैं। जो आता है एक ही फरमाइश करता है। देखिये मुझे तो आये तीन महीना हो गया, मुझे तो आपके पत्रकार संघ ने आज तक कोई पार्टी वार्टी में बुलाया ही नहीं और हमारे ये जनसंपर्क अधिकारी भी बस।' कह कर मोहन शर्मा ज़िला जनसंपर्क अधिकारी की तरफ़ मुड़े 'क्या करते हैं आप वर्मा जी, इतना अच्छा मौसम हो रहा है। जिले में कितनी तो जगहें हैं घूमने फिरने लायक। बनाइये कोई दौरा अधिकारियों और पत्रकारों का। इस बहाने घूमना फिरना भी हो जायेगा और कुछ मेल जोल भी बढ़ जायेगा।' मोहन शर्मा के कहते ही ज़िला जनसंपर्क अधिकारी अपने स्थान पर खड़े हो गये और हाथ में पकड़ी नोटबुक में कुछ लिखने लगे। नाश्ता ख़त्म हो गया था। सारे पत्रकार पेपर नेपकिन से हाथ साफ़ कर रहे थे।
'अच्छा तो मिलते हैं फिर। अच्छा लगा आप लोगों से मिल कर। बाक़ी कोई जानकारी चाहिए हो तो मुझे कॉल कर लीजियेगा मेरे मोबाइल पर। वर्मा जी मेरा मोबाइल नंबर दे दीजिये सबको।' कहते हुए मोहन शर्मा और पुलिस कप्तान दोनों हाथ जोड़ते हुए उठ कर खड़े हो गये।
'बधाई हो सर, मामला ठीक प्रकार से निपट गया है।' मोहन शर्मा कि आवाज़ में सफलता कि ख़ुशी छलक रही थी।
'वो तो होना ही था, तुम किसी मामले को हाथ में लो और न हो ऐसा हो सकता है भला मगर किया कैसे' राजेंद्र चौधरी ने राहत भरे स्वर में कहा।
'बस सर वही लड़का बच्चे का बाप बनने को तैयार हो गया। वही रेस्ट हाउस का कीपर।' मोहन शर्मा ने कुछ हँसते हुए उत्तर दिया।
'वही लड़का वह तैयार हो गया क्यों तैयार हो गया' राजेंद्र चौधरी ने उत्सुकता के साथ प्रश्न किया।
'मैं तो ख़ुद हैरान रह गया था सर। दरअसल में मैंने उसे बुलाकर अच्छी ख़ासी रक़म का कह दिया था कि जा किसी को भी ले आ, जो भी तैयार होगा उसे इस रक़म में से आधी दे देना, आधी तू रख लेना। घंटे भर बाद ही वह लौट कर आ गया, कहने लगा कि सर जी किसी दूसरे को आधी भी क्यों दूँ आप तो पूरी रक़म मुझे दे दो मैं ही बन जाता हूँ बच्चे का बाप। रेस्ट हाउस की कच्ची नौकरी से कुछ नहीं मिलता है। उस पर भी पता नहीं कब हटा दें। पैसे मिल जाएँगे तो कुछ काम धंधा कर लूँगा। बस पुलिस को आप संभाल लेना। इस पर मैंने उसे भरोसा दिला दिया कि पुलिस हाथ भी नहीं लगाएगी और इतना कमज़ोर केस बनाएगी कि तुरंत जमानत भी हो जाएगी और बाद में बरी होने में भी परेशानी नहीं आयेगी।' मोहन शर्मा ने कुछ हँसते हुए उत्तर दिया।
'उससे ज़्यादा भरोस वाला बाप मिलना भी नहीं था। वह जानता भी अच्छी तरह से है लड़की को। ये आपने बहुत अच्छा किया।' राजेंद्र चौधरी का स्वर आया।
'मुझे भी यही लगा सर कि इससे ज़्यादा भरोसे वाला कोई दूसरा मिलना भी नहीं है। मिल भी जाये और बाद में मुकर जाये तो और परेशानी। बस बना दिया उसको ही बाप।' मोहन शर्मा ने उत्तर दिया।
' और लड़की के घरवाले पत्रकार राजेंद्र चौधरी ने पूछा।
'सब हो गया है सर। लड़की के पिता को मैंने समझा दिया था। ये भी कह दिया है कि लड़की बालिग है इसी लड़के से शादी करवा देंगे उसकी। लड़का भी राज़ी है उसके लिये। उसकी तो वैसे ही शादी नहीं हो रही है। कोई लड़की दे ही नहीं रहा है उसको। बस, बाप आधा तो मान गया बाक़ी काम गाँधी जी के फोटो वाले हरे काग़ज़ों ने कर दिया। पत्रकारों को वार्ता बुला कर बता दिया है, एसपी भी थे साथ में। मान तो गये हैं सब। लड़की का बाप रो दिया था बुक्का फाड़ के उससे और विश्वास जम गया सबको। कुल मिलाकर स्थिति अब नियंत्रण में है आप अब चैन की साँस ले सकते हैं।' लम्बी-सी बात करके मोहन शर्मा ने पूरा घटनाक्रम बता दिया।
' और लड़की राजेंद्र चौधरी ने पूछा।
'उसे मेडिकल कॉलेज भेजा था फिर वहाँ से उसके किसी रिश्तेदार के घर भिजवा दिया है जो कहीं दूर के किसी गाँव में हैं। महीने भर बाद बुलवा लेंगे तब तक सब रफा दफा हो जायेगा। दोनों पक्ष तब भी राज़ी रहे तो लड़के के साथ ही उसकी शादी भी करवा देंगे। हो जायेगा सब मामला ठंडा।' मोहन शर्मा ने उत्तर दिया।
' कितना क्या ख़र्च हो गया पूरे मामले में राजेंद्र चौधरी ने पूछा।
'वो तो आपका पूछना भी नहीं चाहिए और मुझे बताना भी नहीं चाहिये। आप ये पूछ कर मुझे शर्मिंदा कर रहे हैं।' मोहन शर्मा ने उत्तर दिया।
अच्छा भई नहीं पूछता। वह आपका अधिकार क्षेत्र है और कुछ ख़ास राजेंद्र चौधरी ने पूछा।
'बस सर बाक़ी तो कुछ नहीं हाँ, वह आपकी शिखा दुबे को अभी निलंबित कर दिया है और एक छोटा मोटा प्रकरण दर्ज कर ज़मानत पर छोड़ भी दिया है। पुलिस कप्तान कह रहे थे कि वह करना ज़रूरी है नहीं तो पत्रकार उसी मामले को मुद्दा बना देंगे। सो अभी तो निलंबित कर दिया है महीने दो महीने बाद उसे बहाल कर दूँगा।' मोहन शर्मा ने उत्तर दिया।
मेरी शिखा दुबे राजेंद्र चौधरी ने पूछा।
'सॉरी सर, मेरा मतलब है कि ।' मोहन शर्मा ने अटकते-अटकते कहा।
'अरे, मैं तो मज़ाक कर रहा था। तुम तो घबरा ही गये। अरे जब है तो है, उसमें क्या है। पर कहा तुमने ख़ूब, आपकी शिखा दुबे।' कहते हुए ज़ोरदार ठहाका लगाया राजेंद्र चौधरी ने। इधर से मोहन शर्मा ने भी उस ठहाके में अपना स्वर मिला दिया। दोनों के ठहाकों का समवेत स्वर धीरे-धीरे ऊँचा होता जा रहा था।